प्रासंगिकता का
सिद्धांत (Theory of Relevance)
इसे Relevance
theory भी कहा गया है। यह सिद्धांत किसी कथन या उक्ति के बोधन
या निर्वचन का एक फ्रेमवर्क है। इसे सबसे पहले Dan Sperber और Deirdre Wilson द्वारा प्रस्तावित किया
गया था। यह सिद्धांत मूलतः ग्राइस के सिद्धांतों से ही प्रभावित है। यह सिद्धांत
मूलतः इस बात पर आधारित है-
“every
utterance conveys the information that it is relevant enough for it to be worth
the addressee's effort to process it.”
अर्थात
यदि कोई व्यक्ति कुछ कहता है, तो वह यह
मानकर चलता है कि वह जो भी बात कर रहा है वह इतनी प्रासंगिक है कि श्रोता द्वारा
उसे सुनकर समझा जा सकता है और आवश्यक प्रतिक्रिया की जा सकती है। इसमें हम यही
मानकर चलते हैं कि वह कथन उस बात के लिए वक्ता की समझ में सर्वोत्तम कथन होता है।
प्रासंगिकता
के सिद्धांत में कथनों को निदर्शनात्मक (ostensive) और अनुमितिपरक (inferential) होने को भी
देखा जाता है। इसमें सामान्य कथन और अलंकारिक कथन दोनों ही प्रकार के कथनों को
देखा जाता है।
वर्तमान
में प्रोक्ति विश्लेषण, प्रकरणार्थविज्ञान और संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान के क्षेत्र में यह सिद्धांत अत्यंत प्रचलित है।
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