शैलीविज्ञान और काव्यभाषा
प्रयोग के स्वरूप के आधार पर भाषायी व्यवहार के
क्षेत्रों को दो वर्गों में बाँट सकते हैं-
·
सामान्य भाषायी व्यवहार
·
सर्जनात्मक भाषायी
व्यवहार
इनमें से सामान्य भाषायी व्यवहार
हमारी दैनिक दिनचर्या से संबंधित है, जबकि
सर्जनात्मक भाषायी व्यवहार ‘सर्जना’ (creativity)
से। हम भाषा के माध्यम से अपने दैनिक क्रियाकलापों को संपन्न करते
हैं, सूचनाओं का आदान-प्रदान भी करते हैं। उद्देश्यपूर्ण और
विशिष्ट सूचनाओं का विशाल संकलन ज्ञान होता है, जिसे विविध
शाखाओं में बाँटकर हम अध्ययन-अध्यापन करते हैं। प्रविधि के आधार पर उनके दो वर्ग
हैं- विज्ञान और मानविकी। ये भी व्यापक रूप में हमारे सामान्य भाषायी व्यवहार का
अंग हैं।
इनके अलावा भाषायी व्यवहार का एक
दूसरा पक्ष है- सर्जना का पक्ष। अर्थात भाषा का ही प्रयोग करते हुए कुछ ऐसा लिख
देना जिसका अपना संसार होता है, तथा जिसे पढ़कर पाठक
की संवेदनाएँ स्पंदित होती हैं या जिसे बार-बार पढ़ने (देखने-सुनने) का मन करता है।
इसे ही साहित्य कहते हैं। अतः ‘साहित्य’ को सूत्र रूप में इस प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं-
भाषा + सर्जना = साहित्य
साहित्य भी भाषा ही है, उसमें कुछ सर्जनात्मक तत्व आ जाते हैं। वे तत्व ‘कला’ (art) के रूप में होते हैं। अर्थात कलात्मक तत्व
होते हैं। अतः हम ‘साहित्य’ को तत्वों
की दृष्टि से दो भागों में बाँटकर देखते हैं, जिसे पुनः
सूत्ररूप में इस प्रकार से दिखा सकते हैं -
भाषा + कला = साहित्य
अतः साहित्य भी भाषा ही है, केवल उसमें कुछ कलात्मक तत्वों का समावेश हो जाता है। इसे आरेख के माध्यम
से इस प्रकार से दर्शा सकते हैं-
शैलीविज्ञान
एक शैलीवैज्ञानिक के लिए ‘साहित्य’ भी ‘भाषा’ ही है, किंतु वह भाषा विशेष प्रकार के कलात्मक
तत्वों से युक्त होती है। शैलीविज्ञान उन्हीं कलात्मक तत्वों की खोज ‘शैली’ के रूप में करता है,
जो सामान्य भाषा को साहित्य बनाते हैं ।
काव्यभाषा
काव्यभाषा का अर्थ है- साहित्य की
भाषा । इसमें ‘गद्य’ और ‘पद्य’ दोनों आ जाते हैं। इसके अध्ययन का शास्त्र ‘काव्यशास्त्र’ कहलाता है। यह भी उन तत्वों की खोज
करता है, जो सामान्य भाषा को साहित्य बनाते हैं।
अतः जब शैलीविज्ञान और काव्यशास्त्र
दोनों एक ही उद्देश्य के लिए काम करते हैं तो यह जानना आवश्यक है कि दोनों में
अंतर क्या है?
शैलीविज्ञान और
काव्यशास्त्र में अंतर
इन दोनों विषयों में अंतर इनकी दृष्टि
का है। शैलीविज्ञान की दृष्टि भाषावैज्ञानिक होती है, जबकि काव्यशास्त्र की साहित्यिक या साहित्यशास्त्रीय। इसलिए दोनों
अपनी-अपनी विश्लेषण पद्धतियों में अलग-अलग प्रतिमानों या उपकरणों का प्रयोग करते
हैं।
शैलीविज्ञान में विश्लेषण
के प्रतिमान या उपादान
शैलीविज्ञान यह देखता है कि साहित्य
बनाने के लिए भाषा में ही किस प्रकार के परिवर्तन किए गए हैं। इसके लिए वह
निम्नलिखित प्रतिमानों का प्रयोग करता है-
(क) अग्रप्रस्तुति (Foregrounding)
· विचलन
(Deviation)
· समानांतरता
(Parallelism)
· विपथन
(Deflection)
· विरलता
(Rareness)
(ख) शैलीचिह्नक (Style
marker)
काव्यशास्त्र में
विश्लेषण के प्रतिमान या उपादान
काव्यशास्त्र यह देखता है कि ‘साहित्य’ बनाने के लिए किन भाषेतर या कलात्मक तत्वों
या उपादानों का प्रयोग किया गया है। इसके लिए वह निम्नलिखित उपादानों का प्रयोग
करता है-
चित्र, बिंब,
प्रतीक, अलंकार, छंद
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