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Wednesday, July 20, 2022

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस क्या सच में इंटेलिजेंट हो चुका है?

 

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस क्या सच में इंटेलिजेंट हो चुका है?-दुनिया जहान

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

ये साल था 2021. ब्लैक लेमोइन गूगल की रेस्पॉन्सिबल आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस डिविजन में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे थे.

वो एक चैटबोट जेनरेटर सिस्टम के परीक्षण में जुटे थे. इसका नाम है 'लैमडा.'

बीते महीनों के दौरान उन्होंने इसके साथ कई मुद्दों पर सैकड़ों बार बातचीत की थी. इनमें से एक टेक्स्ट चैट को उन्होंने सॉफ़्टवेयर के जरिए सुना.

इसकी शुरुआत ब्लैक लेमोइन के सवाल से होती है. लेमोइन पूछते हैं, "तुम्हें किस बात से डर लगता है?"

पूरा पढ़ें-

https://www.bbc.com/hindi/science-62150683

Friday, July 15, 2022

निकटस्थ अवयव विश्लेषण (IC Analysis) और उत्तर विकास

 निकटस्थ अवयव विश्लेषण (IC Analysis)

हिंदी में इसे 'सन्निहित घटक विश्लेषण' भी कहते हैं। इसका अंग्रेजी में पूरा नाम Immediate Constituent Analysis है। इसका प्रतिपादन एल. ब्लूमफील्ड द्वारा किया गया। यह वाक्य विश्लेषण की पद्धति है। वाक्य में शब्द या पद एक के बाद एक क्रम से आते हैं। अतः उन्हें देखकर यह बताना कठिन है कौन-सा शब्द/पद वाक्य किस दूसरे शब्द/पद से प्रकार्य की दृष्टि से जुड़ा हुआ है। ब्लूमफील्ड ने संरचना और प्रकार्य की दृष्टि से आपस में जुड़े हुए शब्दों/पदों और पदबंधों को अलग-अलग चिह्नित करने जो पद्धति विकसित की वही IC Analysis कहलाई। इसमें सबसे पहले एक से अधिक उन शब्दों/पदों को एक साथ समूह में प्रदर्शित किया जाता है, जो एक पदबंध का निर्माण करते हैं। इसके बाद सभी पदबंधों को उद्देश्य और विधेय (subject and predicate) के क्रम में आपस में जोड़ दिया जाता है।

कुछ वाक्यों में निकटस्थ अवयव विश्लेषण के उदाहरण इस प्रकार हैं-


  Rulon Wells ने निकटस्थ अवयव विश्लेषण संबंधी कार्यों को आगे बढ़ाया है। 

IC Analysis की कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाएँ

(क) परम घटक (Ultimate Constituent) : किसी रचना के सबसे छोटे अर्थपूर्ण घटक को घटक कहते हैं।

(ख) आंतरिक संसक्ति (Internal Cohesion) : यह दो घटकों के बीच पाए जाने वाली वह अवस्था है जिससे वह घटक आपस में जुड़े होते हैं।

(ग) आंतरिक भिन्नता (Internal diversity) यह दो घटकों के बीच पाए जाने वाले वह अवस्था है जिसके कारण वे घटक एक दूसरे से भिन्न होते हैं।

(घ) स्वायत्तता (Independence) : किसी रचना के घटक परस्पर संबंध होने पर इस प्रकार से स्वतंत्र होते हैं कि वे कहीं भी एक समूह में आ सकते हैं, जैसे-

  •  मैंने एक पका आम खाया।
  •  एक पका आम बाजार में नहीं मिलता।
  •  उसके साइकिल से गिरे हुए एक पके आम को किसी ने उठा लिया।

उपर्युक्त वाक्यों में 'एक पका आम' पदबंध इस प्रकार से स्वायत्त है कि वह कहीं भी एक समूह के रूप में आने की क्षमता रखता है। 

SK Verma और N. Krishnaswamy ने Modern linguistics : An Introduction (1989) में बताया है कि निकटस्थ अवयव विश्लेषण में प्रस्तुति के लिए कई प्रकार के मॉडलों का प्रयोग किया जाता है। उनके द्वारा दर्शाए गए कुछ मॉडलों को इस प्रकार से देख सकते हैं -


    इस क्रम में उन्होंने आगे यह भी कहा है कि वाक्य रचना में आने वाले निकटस्थ अवयवों को उनके लेबल के माध्यम से भी समझाया जा सकता है। ये लेबल हेड, क्वालीफायर लेबल हो सकते हैं अथवा विविध प्रकार के पदबंधों के भी लेबल हो सकते हैं, जिन्हें उनके द्वारा दिए गए निम्नलिखित चित्रों में देखा जा सकता है-

इसी प्रकार निकटस्थ अवयवों को ट्री डायग्राम के माध्यम से भी दिखाया जा सकता है जिसे हम विकिपीडिया के निम्नलिखित चित्र से देख सकते हैं-

(संदर्भ- https://en.wikipedia.org/wiki/Immediate_constituent_analysis)         इस प्रकार हम देख सकते हैं कि निकटस्थ अवयव विश्लेषण पद्धति के माध्यम से विभिन्न प्रकार की वाक्य रचनाओं में आने वाले घटकों का विश्लेषण विविध प्रकार से किया जा सकता है। यद्यपि इस विश्लेषण पद्धति की अपनी सीमाएं रही हैं, जिनकी ओर संकेत बाद के भाषावैज्ञानिकों द्वारा किया गया है और नए मॉडलों को भी प्रस्तावित किया गया है, जिनमें रूपांतरक प्रजनक व्याकरण, निर्भरता व्याकरण, कारक व्याकरण आदि प्रमुख रहे हैं। रूपांतरक प्रजनक व्याकरण का तो उदय ही संरचनावादी विश्लेषण पद्धति को चुनौती देते हुए हुआ है जिसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे।

किसी वाक्य में आए घटकों के विश्लेषण में निर्भरता व्याकरण (Dependency Grammar - DG) आधारित विश्लेषण पद्धति और निकट अष्ट अवयव विश्लेषण (IC Analysis) आधारित विश्लेषण पद्धति के माध्यम से बनने वाले वृक्ष आरेख में अंतर को विकिपीडिया के निम्नलिखित चित्र  की सहायता से देख सकते हैं-

 

विनीत चैतन्य और राजीव सिंघल नेNatural Language Processing : A Paninian Perspective’  में पाणिनीय मॉडल को आधार बनाते हुए इस प्रकार की संरचनाओं को कारक आधारित प्रकार्यों को जोड़ते हुए भी दिखाया है, जिसे निम्नलिखित चित्र में देखा जा सकता है-



                            (1996, पृ. 16) 

 

इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण देख सकते हैं-


 


K1 = karta, K2 = Karma, K3 = Karan


प्रजनक व्याकरण और भाषा संबंधी शोध

 प्रजनक व्याकरण और भाषा संबंधी शोध 

रूपांतरक प्रजनन व्याकरण (Transformational generative grammar - TGG) में दो प्रक्रियाओं की बात की गई है, जिन्हें संपन्न करने के लिए दो प्रकार के नियमों की बात की जाती है - 

(क) प्रजनन (Generation)  

किसी भाषा में वाक्यों और पदबंधों के प्रजनन का काम प्रजनक नियम (generative rules) करते हैं। इन नियमों को  पदबंध संरचना नियम (Phrase structure rules)  भी कहते हैं। इनके दो वर्ग किए जा सकते हैं -

·       पदबंधों का निर्माण करने वाले प्रजनक नियम

इसके अंतर्गत पदबंध सांचे आते हैं। उदाहरण के लिए डॉ. धनजी प्रसाद द्वारा 'हिंदी का संगणकीय व्याकरण' (2019) में दिए गए संज्ञा पदबंध के कुछ साँचे इस प्रकार से देखे जा सकते हैं -

 

क्र.सं.

साँचा

उदाहरण

1

DEM

यह

2

PRN

मैं

3

PRI*

मुझे

4

NN

लड़का

5

PRI+NN

मेरा लड़का

6

DEM+NN

वह लड़का

7

JJ+ NN

अच्छा लड़का

8

NN+NNP

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

9

PRI+JJ+NN

मेरा अच्छा लड़का

10

PRI+NN+NNP

मेरा भाई सोहन

इसी प्रकार से किसी भाषा में विभिन्न प्रकार के पदबंधों (संज्ञा, विशेषण, क्रिया पदबंध आदि) की रचना करने वाले प्रजनक नियमों की खोज की जा सकती है । 

·        वाक्यों का निर्माण करने वाले प्रजनक नियम

इसके अंतर्गत वाक्य सांचे आते हैं। उदाहरण के लिए प्रो. सूरजभान सिंह 'हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण' (2000) में हिंदी के अनेक वाक्य सांचे दिए हैं, उनमें से दिए गए कुछ वाक्य साँचे इस प्रकार से देखे जा सकते हैं -



(ख) रूपांतरण (Transformation)  

प्रत्येक भाषा में प्रजनक नियमों के अलावा रूपांतरक नियम (transformational rules) भी होते हैं, जो किसी एक प्रकार की वाक्य रचना को दूसरे प्रकार की वाक्य रचना में बदल देते हैं। रूपांतरण नियमों द्वारा मूल वाक्यों को दूसरे प्रकार के वाक्यों में किए जाने वाले कुछ परिवर्तन इस लिंक पर देखे जा सकते हैं -

https://lgandlt.blogspot.com/2020/03/sentence-transformation.html 

चॉम्स्की ने रूपांतरण की अवधारणा को समझाने के लिए 'गहन संरचना' (Deep Structure) और 'बाह्य संरचना' (Surface Structure) की भी अवधारणा दी।

गहन संरचना

मोहन आम खाना

बाह्य संरचना /सतही वाक्य

मोहन आम खाता है 

मोहन आम खाता था 

मोहन आम खाएगा 

मोहन आम खाता होगा

मोहन आम खा रहा है 

मोहन आम खाया

 मोहन आम खा चुका है 

अतः प्रजनक व्याकरण के आधार पर पदबंध संंरचना नियम (Phrase Structure Rules) और रूपांतरण नियमों (Transformational Rules) की खोज की जा सकती है। इसी प्रकार जी.बी. सिद्धांत (GB Theory) के विविध पक्षों को आधार बनाते हुए भी किसी भाषा से संबंधित शोधकार्य किया जा सकता है।





Tuesday, July 5, 2022

भाषाविज्ञान में शोध (Research in Linguistics)

भाषाविज्ञान में शोध (Research in Linguistics)

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 (1) सैद्धांतिक भाषाविज्ञान में शोध के पक्ष

(2) संरचनात्मक दृष्टि से भाषा का एककालिक अध्ययन

(3) भाषाविज्ञान में संरचनात्मक शोध : हिंदी संबंधी कुछ ...

(4) निकटस्थ अवयव विश्लेषण (IC Analysis) और उत्तर विकास

(5) भाषाविज्ञान में प्रकार्यात्मक शोध के पक्ष

(6) भाषा का कालक्रमिक/ऐतिहासिक (Diachronic) अध्ययन

(7) प्रजनक व्याकरण और भाषा संबंधी शोध

 

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भाषा प्रौद्योगिकी : परिप्रेक्ष्यप और अभिगम

(1) भाषा प्रौद्योगिकी : परिप्रेक्ष्यप और अभिगम -01

(2) भाषा प्रौद्योगिकी : परिप्रेक्ष्य और अभिगम-2

(3) भाषा प्रौद्योगिकी : परिप्रेक्ष्य और अभिगम-3 

(4) भाषा प्रौद्योगिकी : परिप्रेक्ष्य और अभिगम-4

(5) भाषाविज्ञान में संरचनात्मक शोध

(6) भाषाविज्ञान में ऐतिहासिक शोध

 

एम.फिल. भाषा प्रौद्योगिकी/पीएच.डी. कोर्सवर्क (old)

 


सैद्धांतिक भाषाविज्ञान में शोध के पक्ष

 सैद्धांतिक भाषाविज्ञान में शोध के पक्ष

सैद्धांतिक भाष विज्ञान के अंतर्गत मानव भाषाओं की संरचना, प्रकार्य अथवा विकास से संबंधित किया जाने वाला अध्ययन-विश्लेषण और शोध से संबंधित कार्य आता है। इस कार्य को मुख्यतः दो वर्गों में वर्गीकृत करके देखा जा सकता है

1. एककालिक (Synchronic) अध्ययन

2. कालक्रमिक/ऐतिहासिक (Diachronic) अध्ययन

वास्तव में ये दोनों किसी भाषा के संदर्भ में जानने समझने की दो विधियां हैं- जिनमें से पहले का उद्देश्य भाषा व्यवस्था को समझना है, तो दूसरे का उद्देश्य भाषा विकास को समझना। इनमें स्पष्ट अंतर सर्वप्रथम आधुनिक भाषाविज्ञान के जनक एफ.डी. सस्यूर द्वारा किया गया और उन्होंने इस बात पर भी बल दिया की भाषाविज्ञान का वास्तविक विवेच्य-विषय भाषाओं का एककालिक अध्ययन करना ही है।

इन्हें संक्षेप में इस प्रकार से देख सकते हैं-

1. किसी भाषा का एककालिक (Synchronic) अध्ययन

इसके अंतर्गत हम यह देखते हैं कि किसी भाषा का आज या किसी काल बिंदु विशेष पर क्या स्वरूप है? यह भाषा के किसी भी स्तर विशेष पर या किसी उपव्यवस्था विशेष में देखा जा सकता है, जैसे-

·       स्वनिमिक स्तर 

किसी भाषा के स्वनिमों की व्यवस्था देखना

·       रूपिमिक स्तर

उपसर्ग + शब्द व्यवस्था; शब्द + प्रत्यय व्यवस्था

ज्ञान, ज्ञात

इन दोनों में '' उपसर्ग जोड़ा जा सकता है-

अज्ञान, अज्ञात

किंतु कोई एक प्रत्यय नहीं जोड़ा जा सकता-

ज्ञान-ज्ञानी

ज्ञात –ज्ञाता

·       वाक्यात्मक स्तर

किसी भाषा की पदबंध, उपवाक्य या वाक्य व्यवस्था देखना

 

किसी भाषा का एककालिक अध्ययन तीन अभिगमों से कर सकते हैं-

§  संरचनात्मक

§  प्रकार्यात्मक

§  प्रजनक

शोध की दृष्टि से इन्हें भाषाविज्ञान में एककालिक शोध की तीन विधियाँ या पद्धतियाँ इस प्रकार से कह सकते हैं-

§  संरचनात्मक शोध

§  प्रकार्यात्मक शोध

§  प्रजनक शोध

उदाहरण के लिए रूपवैज्ञानिक स्तर पर हिंदी के संदर्भ में संरचनात्मक शोध का एक विषय इस प्रकार से हो सकता है -

हिंदी में एक भाषा के शब्द के साथ दूसरी भाषा के उपसर्ग/प्रत्यय के योग का विश्लेषण

इसमें अंग्रेजी, अरबी/फारसी या दूसरी भाषाओं से आए हुए शब्दों के साथ लगने वाले उपसर्ग प्रत्यय का विश्लेषण किया जाएगा, जैसे-

मशीन - मशीनी

कंप्यूटर - कंप्यूटरीकृत

कागज- कागजों (वास्तविक बहुवचन- कागजात)

हिंदी में इस प्रकार का एक कार्य मुरारीलाल उप्रेती द्वारा किया गया है, जिसे उनकी पुस्तक हिंदी में प्रत्यय एवं पश्चाश्रयी विचार में देखा जा सकता है।

2. किसी भाषा का कालक्रमिक/ऐतिहासिक (Diachronic) अध्ययन

भाषा के किसी स्तर पर समय के साथ हुए विकास या परिवर्तन का अध्ययन और उसे नियमों के रूप में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया भाषा विज्ञान में ऐतिहासिक अध्ययन के अंतर्गत आती है।

निम्नलिखित लिंक पर इसके बारे में विस्तार से पढ़ सकते हैं-

भाषा का कालक्रमिक/ऐतिहासिक (Diachronic) अध्ययन