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Saturday, June 29, 2024

क्षेत्र भाषाविज्ञान (Field Linguistics) क्या है?

 क्षेत्र भाषाविज्ञान (Field Linguistics) क्या है?

क्षेत्र भाषाविज्ञान भाषाविज्ञान की एक शाखा है जिसमें भाषाओं का उनके प्राकृतिक स्वरूप में अध्ययन किया जाता है। इसमें उस भाषा के मातृभाषियों या समुदायों के साथ सीधा संपर्क शामिल होता है। क्षेत्र भाषाविज्ञान में उन भाषाओं का व्यवस्थित दस्तावेज़ीकरण और विश्लेषण किया जाता है जिनका बड़े पैमाने पर अध्ययन नहीं हुआ रहता है या जिनके लुप्त होने का खतरा जान पड़ता है।

 क्षेत्र भाषाविज्ञान में अध्येता उस क्षेत्र में जाता है, जहाँ वह भाषा बोली जाती है। फिर वह उस भाषा के मातृभाषियों के साथ संवाद करते हुए तथा भाषायी ज्ञान संरक्षण के विविध प्रविधियों और टूल्स का प्रयोग करते हुए भाषायी ज्ञान को संग्रहीत करता है। इसके पश्चात उस भाषा का दस्तावेजीकरण किया जाता है।

क्षेत्रीय भाषाविज्ञान के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं-

(क) भाषा दस्तावेज़ीकरण (Language Documentation): इसमें ऑडियो रिकॉर्डिंग, लिखित प्रतिलेख और शब्दकोश जैसे विभिन्न तरीकों के माध्यम से भाषायी डेटा को रिकॉर्ड करने और दस्तावेज़ीकरण करने का कार्य आता है।

(ख) व्याकरण और भाषायी संरचना का विश्लेषण (Analysis of Grammar and Linguistic Structure) : इसके अंतर्गत भाषाओं की अंतर्निहित व्याकरणिक संरचनाओं को समझने के लिए ध्वनि-विश्लेषण (phonetic analysis), ध्वनि-व्यस्था विश्लेषण (phonemic analysis), रूपवैज्ञानिक विश्लेषण (morphological analysis), वाक्यपरक विश्लेषण (syntactic analysis), और अर्थपरक विश्लेषण (semantic analysis) संबंधी कार्य आते हैं।

(ग) सांस्कृतिक संदर्भ (Cultural Context) : इसका संबंध भाषा और संस्कृति के बीच संबंध को पहचानने से है, जिसमें यह जानने का प्रयास किया जाता है कि सांस्कृतिक परंपराओं, प्रथाओं और मान्यताओं को भाषा में कैसे कोडीकृत (encode) किया गया है।

(घ) संकटापन्न भाषाएँ (Endangered Languages) : क्षेत्र भाषाविज्ञान का मुख्य उद्देश्य लुप्तप्राय भाषाओं या कम ज्ञात भाषाओं के संग्रह और संरक्षण की दिशा में करना है। इसी कारण इसमें लुप्तप्राय या अल्पसंख्यक भाषाओं (endangered or minority languages) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिनके विलुप्त होने के खतरा दिखाई पड़ता है। आदिवासी भाषाएँ इस श्रेणी की प्रमुख भाषाएँ हैं। क्षेत्र भाषाविज्ञान में इनके संरक्षण और पुनरोद्धार (preservation and revitalization) की दिशा में काम किया जाता है।

उक्त के अलावा क्षेत्र भाषाविज्ञान का संबंध भाषायी टाइपोलॉजी (Linguistic Typology) से भी है, जिसका संबंध मानव भाषाओं में प्राप्त विविधता के पैटर्न को समझने के लिए उनकी संरचनात्मक विशेषताओं के आधार पर भाषाओं की तुलना और वर्गीकरण करने से होता है।

क्षेत्र भाषाविज्ञान में काम करने वाले अध्येता को सीधे-सीधे से उन समुदायों या क्षेत्रों में जाना होता है, जहां लक्षित भाषा बोली जाती है। साथ ही उन्हें वहाँ वक्ताओं के साथ संबंध बनाने, साक्षात्कार आयोजित करने और समुदाय के सदस्यों से सहयोग प्राप्त करने की विविध तकनीकों का प्रयोग करना होता है।

भाषाविज्ञान और क्षेत्र भाषाविज्ञान

 भाषाविज्ञान और क्षेत्र भाषाविज्ञान

क्षेत्र भाषाविज्ञान अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा है, जिसका उद्देश्य कम ज्ञात अथवा विलुप्तप्राय भाषाओं का अध्ययन करना और उनकी भाषिक सामग्री का संकलन करते हुए उनके शब्दकोश, व्याकरण आदि का निर्माण करना है। इसके लिए उसे भाषा के स्वाभाविक या प्राकृतिक स्वरूप में अर्थात समाज या समुदाय में जाकर प्रत्यक्ष विधि से डाटा को संकलित किया जाता है और उसका विश्लेषण करते हुए भाषा के विविध स्तरों- स्वनिम, रूपिम, शब्द/पद, पदबंध, उपवाक्य, वाक्य और अर्थ पर उसका विश्लेषण करते हुए उसे भाषा की ध्वनि व्यवस्था, शब्द व्यवस्था, व्याकरण और शब्दकोश आदि का निर्माण किया जाता है। इसका उद्देश्य कम ज्ञात अथवा विलुप्तप्राय हो रही भाषाओं की भाषायी ज्ञान सामग्री का संकलन, संरक्षण करना और इसके माध्यम से उन भाषाओं के पुनरुद्धार का प्रयास करना है।

क्षेत्र भाषाविज्ञान की विषयवस्तु

 क्षेत्र भाषाविज्ञान की विषयवस्तु

क्षेत्रीय भाषाविज्ञान की विषयवस्तु के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं-

(क) भाषा दस्तावेज़ीकरण (Language Documentation): इसमें ऑडियो रिकॉर्डिंग, लिखित प्रतिलेख और शब्दकोश जैसे विभिन्न तरीकों के माध्यम से भाषायी डेटा को रिकॉर्ड करने और दस्तावेज़ीकरण करने का कार्य आता है।

(ख) व्याकरण और भाषायी संरचना का विश्लेषण (Analysis of Grammar and Linguistic Structure) : इसके अंतर्गत भाषाओं की अंतर्निहित व्याकरणिक संरचनाओं को समझने के लिए ध्वनि-विश्लेषण (phonetic analysis), ध्वनि-व्यस्था विश्लेषण (phonemic analysis), रूपवैज्ञानिक विश्लेषण (morphological analysis), वाक्यपरक विश्लेषण (syntactic analysis), और अर्थपरक विश्लेषण (semantic analysis) संबंधी कार्य आते हैं।

(ग) सांस्कृतिक संदर्भ (Cultural Context) : इसका संबंध भाषा और संस्कृति के बीच संबंध को पहचानने से है, जिसमें यह जानने का प्रयास किया जाता है कि सांस्कृतिक परंपराओं, प्रथाओं और मान्यताओं को भाषा में कैसे कोडीकृत (encode) किया गया है।

(घ) संकटापन्न भाषाएँ (Endangered Languages) : क्षेत्र भाषाविज्ञान का मुख्य उद्देश्य लुप्तप्राय भाषाओं या कम ज्ञात भाषाओं के संग्रह और संरक्षण की दिशा में करना है। इसी कारण इसमें लुप्तप्राय या अल्पसंख्यक भाषाओं (endangered or minority languages) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिनके विलुप्त होने के खतरा दिखाई पड़ता है। आदिवासी भाषाएँ इस श्रेणी की प्रमुख भाषाएँ हैं। क्षेत्र भाषाविज्ञान में इनके संरक्षण और पुनरोद्धार (preservation and revitalization) की दिशा में काम किया जाता है।

उक्त के अलावा क्षेत्र भाषाविज्ञान का संबंध भाषायी टाइपोलॉजी (Linguistic Typology) से भी है, जिसका संबंध मानव भाषाओं में प्राप्त विविधता के पैटर्न को समझने के लिए उनकी संरचनात्मक विशेषताओं के आधार पर भाषाओं की तुलना और वर्गीकरण करने से होता है।

क्षेत्र भाषाविज्ञान और संबंधित अन्य विषय

 क्षेत्र भाषाविज्ञान और संबंधित अन्य विषय

क्षेत्र भाषाविज्ञान अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा है। इससे संबंधित अन्य विषय इस प्रकार हैं-

समाजभाषाविज्ञान

नृविज्ञान (anthropology)

सामाजिक विज्ञान

जनजातीय अध्ययन                         आदि।

क्षेत्र भाषाविज्ञान और समाजभाषाविज्ञान (Field Linguistics and Sociolinguistics)

 क्षेत्र भाषाविज्ञान और समाजभाषाविज्ञान

क्षेत्र भाषाविज्ञान और समाजभाषाविज्ञान दोनों ही अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की शाखाएं हैं तथा एक-दूसरे से गहन रूप से संबंधित हैं। इसके बावजूद इन दोनों के बीच पर्याप्त अंतर भी है। इन दोनों की विषयवस्तु और कार्य पद्धति को देखते हुए इनके बीच संबंध और अंतर को निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं-

क्षेत्र भाषाविज्ञान (Field Linguistics)

क्षेत्र भाषाविज्ञान भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसका उद्देश्य कम ज्ञात अथवा विलुप्तप्राय भाषाओं का अध्ययन करना और उनकी भाषिक सामग्री का संकलन करते हुए उनके शब्दकोश, व्याकरण आदि का निर्माण करना है। इसके लिए उसे भाषा के स्वाभाविक या प्राकृतिक स्वरूप में अर्थात समाज या समुदाय में जाकर प्रत्यक्ष विधि से डाटा को संकलित किया जाता है और उसका विश्लेषण करते हुए भाषा के विविध स्तरों- स्वनिम, रूपिम, शब्द/पद, पदबंध, उपवाक्य, वाक्य और अर्थ पर उसका विश्लेषण करते हुए उसे भाषा की ध्वनि व्यवस्था, शब्द व्यवस्था, व्याकरण और शब्दकोश आदि का निर्माण किया जाता है। इसका उद्देश्य कम ज्ञात अथवा विलुप्तप्राय हो रही भाषाओं की भाषायी ज्ञान सामग्री का संकलन, संरक्षण करना और इसके माध्यम से उन भाषाओं के पुनरुद्धार का प्रयास करना है।

समाजभाषाविज्ञान (Sociolinguistics)

समाजभाषाविज्ञान भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसका उद्देश्य भाषयी समाज के समाज सांस्कृतिक कारकों (Socio-cultural factors) के संबंध में भाषा की स्थिति को जानना और सामाजिक कारकों (factors) का भाषा के स्वरूप पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना है।

समाजभाषाविज्ञान में देखा जाता है कि सामाजिक कारकों (social factors) जैसे- लिंग, आर्थिक स्थिति, आयु, क्षेत्र (शहरी अथवा ग्रामीण) शिक्षा आदि के आधार पर भाषा व्यवहार में किस प्रकार के भेद हो रहे हैं। इसके लिए surveys, interviews और observational studies आदि विधियों का सहारा लिया जाता है।

समाजभाषाविज्ञान के माध्यम से समाज में भाषा की स्थिति से संबंधित जो तथ्य प्राप्त होते हैं, उनसे हमें भाषा व्यवहार भाषा नियोजन और भाषा परिवर्तन से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

क्षेत्र भाषाविज्ञान में कार्य करना (Working in Field Linguistics)

 क्षेत्र भाषाविज्ञान में कार्य करना  (Working in Field Linguistics)

क्षेत्र भाषाविज्ञान में काम करने के लिए भाषाविज्ञान का प्रचुर ज्ञान आवश्यक है। साथ ही नृविज्ञान (anthropology) और सामाजिक विज्ञान का ज्ञान सहायक सिद्ध होता है। इसके अलावा व्यक्ति को भाषिक कौशलों का ज्ञान भी आवश्यक होता है। वह जिस भाषा का अध्ययन करने जा रहा है, उस भाषा की समाजसांस्कृतिक पृष्ठभूमि का पूर्व ज्ञान भी कर लेना चाहिए, क्योंकि पूर्व परिचय रहने से बाद में कम समस्याएं आती हैं।

भाषा विश्लेषण की समझ, जैसे- व्याकरण, ध्वनि व्यवस्था, अर्थव्यवस्था आदि के विश्लेषण का पर्याप्त मात्रा में बोध होना आवश्यक होता है। साथ ही व्यक्ति को फील्ड वर्क का अनुभव भी होना चाहिए, जिससे यह पता चल सके की नए समुदायों में किस प्रकार से काम किया जाता है तथा उनके साथ कैसे संबंध बनाते हैं।

क्षेत्र भाषाविज्ञान में काम करने के लिए विविध प्रकार के मीडिया टूल्स और तकनीकों के प्रयोग का ज्ञान भी आवश्यक है, जैसे- ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए प्रयुक्त उपकरणों के संचालन आदि का ज्ञान होना चाहिए।

आज के समय में भाषाओं के डेटा के संग्रह और विश्लेषण के लिए अनेक प्रकार के सॉफ्टवेयर भी विकसित हो गए हैं, जैसे- सेमोर, टूलबॉक्स, प्रात, वेवसर्फर आदि। इनके संचालन का ज्ञान भी क्षेत्र भाषाविज्ञान के लिए काम करने में अत्यंत सहायक और उपयोगी सिद्ध होता है।

क्षेत्र भाषाविज्ञान संबंधी प्रमुख उपकरण (Tools)

 क्षेत्र भाषाविज्ञान संबंधी प्रमुख उपकरण (Tools)

क्षेत्र भाषाविज्ञान में भाषा डॉक्यूमेंटेशन (language documentation), विश्लेषण (analysis), और संरक्षण (preservation) के लिए काम किया जाता है। अतः इसमें भाषायी सामग्री को संग्रहीत (collect) करने, उसका लिप्यंकन (transcribe) करने, विश्लेषण करने (analyze) और संरक्षित करने के लिए विविध प्रकार के अनेक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। इन्हें वर्गीकृत रूप में निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं- 

रिकॉर्डिंग संबंधी उपकरण (Recording Devices):

इसके अंतर्गत मुख्य रूप से दो प्रकार के उपकरण आते हैं -

डिजिटल आवाज रिकॉर्डर (Digital Voice Recorders): इसका कार्य विविध प्रकार से आवाज की रिकॉर्डिंग करना होता है, जिससे भाषा संबंधी डाटा की प्राप्ति की जा सके।

वीडियो कैमरा (Video Cameras): इनके माध्यम से विजुअल रिकॉर्डिंग संबंधी कार्य होता है, जिससे संबंधी समुदाय की गैरभाषिक संप्रेषण (non-verbal communication) संबंधी युक्तियों, भाव-भंगिमाओं (gestures) और सांस्कृतिक गतिविधियों को संग्रहित किया जाता है।

डाटा प्रबंधन और विश्लेषण सॉफ्टवेयर (Data Management and Analysis Software):

इस प्रकार के कुछ सॉफ्टवेयर निम्नलिखित हैं-

ELAN (EUDICO Linguistic Annotator): A software tool for creating and managing annotations of video and audio recordings, used extensively for linguistic transcription and analysis.

Praat: Software for analyzing speech sounds (phonetics) and acoustic properties of speech, helpful in studying phonology and phonetics.

Toolbox (FieldWorks Language Explorer): A software suite for lexical and grammatical analysis, particularly useful for managing linguistic data in dictionary and text formats.

क्षेत्र कार्य के लिए नोटबुक और डायरी (Field Notebooks and Diaries):

क्षेत्र भाषाविज्ञान में भाषायी समुदाय के बीच जाकर काम करते समय व्यक्ति को अपने साथ नोटबुक और डायरी रखना आवश्यक होता है, जिससे वह महत्वपूर्ण बिंदुओं आदि को नोट कर सके।

शब्दकोशीय डेटाबेस (Lexical Databases):

क्षेत्र भाषाविज्ञान में जिस भाषा के लिए कार्य किया जा रहा होता है उसे भाषा के शब्दकोशीय डेटाबेस का निर्माण किया जाता है। इस निर्माण में कुछ सॉफ्टवेयर उपयोगी हो सकते हैं, जैसे-

FLEx (FieldWorks Language Explorer): Software for building and managing lexical databases, facilitating the organization and analysis of lexical data.

भौगोलिक सूचना प्रणाली संबंधित उपकरण (GIS- Geographic Information System Tools):

जिस भाषण समुदाय के लिए कार्य किया जा रहा है, उस भाषा की बोलने वालों की भौगोलिक सूचना के लिए नक्शा अथवा गूगल मैप आदि का भी प्रयोग कर सकते हैं।

भाषा डॉक्यूमेंटेशन किट (Language Documentation Kits):

किसी नई अथवा आदिवासी भाषा पर काम करने के लिए जरूरी सामानों को संग्रहित कर उनकी एक उन्हें एक किट में रख लिया जाता है, जिस भाषा डॉक्यूमेंटेशन किट कहते हैं।

अनुवाद और पाठ विश्लेषण सॉफ्टवेयर (Translation and Text Analysis Software):

 आवश्यकता अनुसार अनुवाद और पाठ विश्लेषण सॉफ्टवेयर का भी प्रयोग कर सकते हैं।

मानववैज्ञानिक और सांस्कृतिक डॉक्यूमेंटेशन उपकरण (Ethnographic and Cultural Documentation Tools):

भाषायी समुदाय की सांस्कृतिक गतिविधियों और परंपरा आदि को समझने के लिए ऐसा कुछ उपकरण प्रयोग में ले जा सकते हैं।

डेटा संरक्षण प्लेटफार्म (Deta Preservation Platforms):

भाषाई डाटा के संग्रह और विश्लेषण के पश्चात उसके संरक्षण हेतु विविध प्रकार के प्लेटफार्म का प्रयोग किया जाता है।