क्षेत्र भाषाविज्ञान की विषयवस्तु
क्षेत्रीय भाषाविज्ञान की विषयवस्तु के प्रमुख बिंदु इस
प्रकार हैं-
(क) भाषा दस्तावेज़ीकरण (Language Documentation): इसमें ऑडियो रिकॉर्डिंग, लिखित प्रतिलेख और शब्दकोश जैसे विभिन्न तरीकों के माध्यम से भाषायी डेटा को
रिकॉर्ड करने और दस्तावेज़ीकरण करने का कार्य आता है।
(ख) व्याकरण और भाषायी संरचना
का विश्लेषण (Analysis
of Grammar and Linguistic Structure) : इसके
अंतर्गत भाषाओं की अंतर्निहित व्याकरणिक संरचनाओं को समझने के लिए ध्वनि-विश्लेषण
(phonetic analysis),
ध्वनि-व्यस्था विश्लेषण (phonemic analysis),
रूपवैज्ञानिक विश्लेषण (morphological analysis),
वाक्यपरक विश्लेषण (syntactic analysis),
और अर्थपरक विश्लेषण (semantic analysis) संबंधी कार्य आते हैं।
(ग) सांस्कृतिक संदर्भ (Cultural Context) : इसका संबंध भाषा और संस्कृति
के बीच संबंध को पहचानने से है, जिसमें यह जानने का प्रयास किया
जाता है कि सांस्कृतिक परंपराओं, प्रथाओं और मान्यताओं को भाषा
में कैसे कोडीकृत (encode) किया गया है।
(घ) संकटापन्न भाषाएँ (Endangered Languages) : क्षेत्र भाषाविज्ञान का मुख्य उद्देश्य लुप्तप्राय भाषाओं या कम ज्ञात भाषाओं
के संग्रह और संरक्षण की दिशा में करना है। इसी कारण इसमें लुप्तप्राय या
अल्पसंख्यक भाषाओं (endangered
or minority languages) पर ध्यान
केंद्रित किया जाता है, जिनके विलुप्त होने के खतरा
दिखाई पड़ता है। आदिवासी भाषाएँ इस श्रेणी की प्रमुख भाषाएँ हैं। क्षेत्र
भाषाविज्ञान में इनके संरक्षण और पुनरोद्धार (preservation and revitalization) की दिशा में काम किया जाता है।
उक्त के अलावा क्षेत्र भाषाविज्ञान का संबंध भाषायी
टाइपोलॉजी (Linguistic Typology) से भी है, जिसका संबंध मानव भाषाओं में प्राप्त विविधता के पैटर्न को
समझने के लिए उनकी संरचनात्मक विशेषताओं के आधार पर भाषाओं की तुलना और वर्गीकरण
करने से होता है।
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