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Saturday, December 31, 2022
Blog on ending 2022
आवाज भी अपनी एक पहचान है
BBC विशेष
यूनिवर्सिटी ऑफ़ मोंटपेलियर में भाषा विज्ञान की शोधकर्ता मेलिसा बरकत डिफ्राड्स का कहना है कि आप अपनी आवाज़ के ज़रिये शब्दों को बोलते हैं और इसके ज़रिये जानकारियां भी साझा करते हैं, लेकिन इसके अलावा यह न केवल आपके बायोलॉजिकल स्टेटस के बारे में बताती है, बल्कि आपके सामाजिक रुतबे के बारे में भी बताती है.
कि कुछ लहजे दूसरों की तुलना में अधिक आकर्षक होते हैं?
काफ़ी समय तक यह सोचा जाता था कि जिस तरह से भारी आवाज़ राजनेताओं को लोकप्रिय बना देती है, उसी तरह इसकी वजह से पुरुष भी आकर्षक हो जाते हैं.
मेलिसा बरकत डिफ्राडस कहती हैं कि "पुरुषों में मौजूद टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का उनकी आवाज़ के भारीपन से विपरीत संबंध है, यानी अगर किसी की आवाज़ भारी है तो उसके अंदर टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम है."
"हम जानते हैं कि टेस्टोस्टेरोन से पुरुषों को बहुत फ़ायदा होता है. यहाँ तक कि उनकी प्रजनन क्षमता भी इसमें शामिल है." अगर किसी पुरुष की आवाज़ भारी है, तो उसे अधिक यौन साथी मिलेंगे और उसके यहाँ बच्चे भी ज़्यादा पैदा हो सकते हैं.'
उन्होंने कहा कि अपनी आवाज़ में भारीपन के ज़रिये यानी लहजे और आवाज़ के ज़रिए एक पुरुष अपने साथी को अपनी क्षमता का संकेत दे सकता है. इसका मतलब यह है कि उस व्यक्ति का इम्यून सिस्टम भी अच्छा है और वह बहुत आक्रामक और प्रभावशाली है और उसके पास नेतृत्व कौशल भी मौजूद है.'
महिलाओं को आकर्षित करती है भारी आवाज़?
यही कारण है कि आजकल बायोलॉजिस्ट कहते हैं कि भारी या गहरी आवाज़ महिलाओं को आकर्षक लगती हैं. इस परिकल्पना के आधार पर, क्या हम यह सिद्ध कर सकते हैं कि वह क्या चीज़ है, जो महिलाओं की आवाज़ को आकर्षक बनाती है?
जब दुनिया भर में अलग-अलग आवाज़ों की जांच की गई, तो पाया गया कि ऐसी महिलाएं जिनकी आवाज़ की पिच ज़्यादा होती है, उन्हें जल्दी पार्टनर मिलते हैं.
यह भी सच है कि युवतियों की आवाज़ की पिच ज़्यादा होती है और इससे ज़ाहिर होता है कि इससे उनकी उम्र और उनकी ख़ूबसूरती के बारे में भी पता चलता है.
इस संबंध में हुए शोध में यह बात भी सामने आई है कि महिलाएं डेट्स पर अपनी आवाज़ की पिच बढ़ाती थीं लेकिन पिछले कुछ सालों में कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि इसमें बदलाव आ रहा है. यानी महिलाएं किसी आकर्षक व्यक्ति के सामने अपनी आवाज़ हल्की कर लेती हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ल्योन में एक बायोकौस्टेशन कटारजीना पिसासिंकी ने एक अध्ययन किया जिसमें कुछ महिलाओं ने एक निश्चित व्यक्ति से छह मिनट तक बात की और उनके पास उस व्यक्ति को पसंद नापसंद करने के लिए एक डिवाइस मौजूद थी. इसके अलावा उनकी आवाज़ भी रिकॉर्ड की जा रही थी.
कतार्ज़ीना पिसांस्की ने अपनी आवाज़ों की तुलना उनकी ख़ुद की आवाज़ की बेसलाइन से की और उन्हें यह रिज़ल्ट मिला कि जो पुरुष उन्हें पसंद आये उनके सामने उन्होंने अपनी आवाज़ हल्की कर ली और जो लोग पसंद नहीं आए उनके सामने अपनी आवाज़ की पिच ऊंची कर ली.
उन्होंने यह भी पाया कि पुरुषों ने भी ऐसी महिलाओं को ज़्यादा पसंद किया जिनकी आवाज़ कोमल थी.
इसी तरह के एक अन्य अध्ययन में फ्रांसीसी पुरुषों और महिलाओं की आवाज़ों की जांच की गई और पाया कि फ्रांसीसी पुरुषों को वो महिलायें ज़्यादा आकर्षक लगीं, जिनकी आवाज़ गहरी थी या कम पिच वाली थी.
मेलिसा बरकत डिफ्राड्स कहती हैं, "लंबे समय तक हम इस भ्रम में रहे और अब हमें इस बारे में सांस्कृतिक तौर पर बदलाव भी दिखाई दे रहा है, जो बहुत दिलचस्प है क्योंकि जो चीज़ हमने फ्रांसीसी पुरुषों में देखी, वह मैंने इससे पहले अन्य संस्कृतियों में नहीं देखी.'
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गाना जिसे सुनकर 200 लोगों ने की आत्महत्या
दैनिक भास्कर से साभार
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गाना जिसे सुनकर 200 लोगों ने की आत्महत्या:गीतकार ने तार से खुद का गला घोंट लिया, जिस गर्लफ्रेंड के लिए लिखा उसने भी की सुसाइड
घंटे पहले
आज की अनसुनी दास्तान कुछ अलग है। ना किसी फिल्म स्टार पर है, ना ही किसी फिल्म पर। आज हम कहानी बता रहे हैं दुनिया के सबसे मनहूस गाने की। गाने के बनने की कहानी दिलचस्प है। इसमें एक प्रेम कहानी है। हंगरी (यूरोप) के एक स्ट्रगलिंग सॉन्ग राइटर और उसकी गर्लफ्रेंड में ब्रेकअप हुआ। इस ब्रेकअप से परेशान प्रेमी ने 30 मिनट के भीतर एक दुःख भरा गाना लिख डाला।
अधूरी प्रेम कहानी से निकला ये गाना पूरी दुनिया के लिए जानलेवा साबित हुआ। इस गाने का टाइटल था ग्लूमी संडे, यानी उदास रविवार। ये गाना इतना डिप्रेसिंग था कि इसे सुनकर दुनियाभर में 200 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली। कई लोगों के सुसाइड नोट में इस गाने की लाइनें लिखी होती थीं या उनके कमरे में उस गाने की रिकॉर्डिंग पाई जाती थी।
गाना बनाने वाले कलाकार ने खुद का गला बिजली के तार से घोंट लिया और जान दे दी। जिस गर्लफ्रेंड के लिए लिखा था, उसने भी इसे सुनकर सुसाइड कर ली। गाने को सुनकर जान देने के मामले बढ़ते देख इस पर बैन लगा दिया गया और पूरे 63 सालों तक ये बैन जारी रहा।
1933 में बना ये गाना जब रिलीज हुआ तो पूरे हंगरी में सुसाइड केस बढ़ गए। आत्महत्या के मामलों में हंगरी दुनियाभर में 11वें नंबर पर आ गया था। गाना डिप्रेसिंग था, बैन भी हुआ, फिर भी दुनियाभर में इस गाने को 100 से ज्यादा अलग-अलग सिंगर्स ने अपनी आवाज भी दी।
Monday, December 26, 2022
लड़के और लड़की में अंतर का मानसिक/ संज्ञानात्मक पक्ष
बहुत से लोग अति आदर्शवाद या उत्साह में कहते हैं कि लड़का और लड़की जन्म लेते समय मानसिक स्तर पर एक जैसे ही होते हैं, हम पालन-पोषण के दौरान उन्हें दिए जाने वाले परिवेश और व्यवहार से धीरे-धीरे उनके बीच अंतर उत्पन्न कर देते हैं और लड़कियाँ धीरे-धीरे अपने आप को लड़कों से अलग (भिन्न या शायद किसी रूप में कमतर) लड़की समझने लगती हैं।
इसलिए अतिआदर्शवाद के चक्कर में लोगों को यह भी कहते सुना जाता है कि-
मेरी लड़की 'लड़की नहीं है, लड़का है'
इसी प्रकार शायद यह स्त्रीवादी कथन भी सुनने या देखने को मिलता है-
लड़की पैदा नहीं होती है, बनाई जाती है
किंतु यह पूरी तरह सच नहीं है।
जिस प्रकार पुरुष और स्त्री की शारीरिक संरचना भिन्न है, उसी प्रकार उनकी मानसिक बनावट या न्यूरोसेंसिटिव बनावट भी भिन्न होती है। दोनों बाह्य संसार के उद्दीपन (stimulus) को अलग-अलग प्रकार से महसूस करते हैं। इसे समझने का सही उदाहरण ट्रांसजेंडर ही हैं, जिनमें लड़के के शरीर में लड़की वाली मानसिक बनावट या लड़की के शरीर में लड़के वाली मानसिक बनावट आ जाती है।
इसे दैनिक भास्कर द्वारा दी गई दो केस स्टडी से समझ सकते हैं-
Story-1
लड़का थी, सर्जरी के बाद बनी लड़की:बचपन में हुआ यौन शोषण, यूपी के स्कूल में बनी टीचर; पहचान जाहिर होने पर किया बर्खास्त
नई दिल्ली
मैं जेन कौशिक, दिल्ली से हूं। मैं टीचर हूं जो एक ट्रांसजेंडर महिला है। लेकिन जिस स्कूल में मैं पढ़ा रही थी, उन्हें मेरी पहचान मंजूर नहीं थी। नौकरी के पहले दिन ही उन्होंने मुझे साफ शब्दों में कह दिया था कि स्कूल में किसी को नहीं पता चलना चाहिए कि मैं ट्रांसजेंडर महिला हूं।
मैं भी राजी हो गई क्योंकि बहुत मुश्किल से मुझे ये नौकरी मिली थी। इससे पहले मुझे कई बार मेरी पहचान की वजह से रिजेक्ट किया गया।
एक ट्रांसजेंडर महिला को कोई जॉब नहीं देना चाहता। हालांकि जिस स्कूल में मैं काम कर रही थी, वहां से भी मुझे टर्मिनेट कर दिया गया। उनका कहना था कि किसी बच्चे को मेरी पहचान पता चल गई।
इसके बाद मैंने दिल्ली महिला आयोग को शिकायत की। हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस केस को संज्ञान में लेते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मामले की स्वतंत्र जांच कराने और स्कूल प्रशासन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है।
मैंने लड़के के रूप में जन्म लिया लेकिन मेरे शरीर में एक लड़की छिपी थी। ये बात परिवार से कहना बेहद मुश्किल था। मैं अक्सर मम्मी के कॉस्मेटिक्स से मेकअप करती थी।
जब मैं 5-6 साल की थी तब एक दिन मम्मी घर पर नहीं थी। मैंने उनके मेकअप बॉक्स में रखी लिपस्टिक और बिंदी लगाई और उनका मंगलसूत्र पहन लिया।
अचानक पापा ने दरवाजा खटखटाया और मुझे आवाज लगाई। उस समय मैं भूल ही गई थी कि मैंने मेकअप किया हुआ है। मैं तुरंत दरवाजा खोलने चली गई। पापा ने मुझे देखते ही थप्पड़ मारा। उनके हिसाब से लड़के को ये सब नहीं करना चाहिए।
10वीं में पता चला जेंडर बदलवाने के लिए होती है सर्जरी
10वीं के बोर्ड देने के बाद मैं घर पर खाली बैठी थी। उस समय हर रोज अखबार पढ़ती थी। उसमें जब नाक या होंठ बदलने के लिए प्लास्टिक सर्जरी के विज्ञापनों को देख मैं बहुत आकर्षित होती। क्योंकि बड़े होकर मैं भी लड़की की तरह दिखना चाहती थी।
एक दिन मैंने एक खबर पढ़ी। उसमें एक ट्रांसजेंडर महिला का जिक्र था जिन्होंने बैंकॉक से जेंडर बदलने के लिए रीअसाइनमेंट सर्जरी कराई थी।
दैनिक भास्कर से साभार
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Story-2
लड़का थी, लड़कों की तरफ होती थी आकर्षित:खुद को पहचानने में लगे 20 साल, आज हूं असिस्टेंट प्रोफेसर
नई दिल्ली
आज की कहानी है ट्रांस वुमन डॉक्टर अक्सा शेख की, जो जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। इसके अलावा कोविड वैक्सीन ट्रायल में रिसर्चर के तौर पर काम कर रही अक्सा भारत की पहली ट्रांंसजेंडर व्यक्ति हैं, जो एक कोविड वैक्सिनेशन सेंटर की इंचार्ज हैं। अक्सा 'ह्यूमन सॉलिडेरिटी फाउंडेशन' के नाम से एक एनजीओ भी चलाती हैं।
अक्सा का कहना है कि आज भी समाज में लोग ट्रांसजेंडर शब्द को लेकर कंफ्यूज हैं। ये शब्द सुनते ही लोग बधाई देने वाले, नाचने-गाने वाले और सड़क पर भीख मांगने वाले कुछ लोगों को इमैजिन करने लगते हैं। समाज में आज भी ट्रांस पर्सन को अपनी पहचान की लड़ाई लड़नी पड़ती है। सोसाइटी से तो इंसान फिर भी लड़ ले, लेकिन जब अपनों से ही लड़ना पड़े तो इंसान कमजोर पड़ जाता और जीवन एक अभिशाप सा लगने लगता है।
3-4 साल की उम्र से ही समझने लगी कि मैं दूसरों से अलग हूं
मैं अपने माता-पिता की तीसरी संतान थी। मेरे दो बड़े भाई हैं। मेरी परवरिश एक लड़के के तौर पर हुई। 3- 4 साल की उम्र से ही मुझे अपनी पहचान को लेकर कंफ्यूजन थी। मेरे अंदर कुछ तो था, जो दूसरो से अलग था। मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं अपने भाइयों के साथ खेलूं पर मैं अपनी सहेलियों के साथ ही खेलती थी।
लड़कों की तरह बर्ताव करते-करते फ्रस्ट्रेट हो गई
ये सोचकर कि लड़कों के बीच रहकर मैं ठीक हो जाऊंगी। मेरे मम्मी-पापा ने मेरा एडमिशन बॉयज स्कूल में करवा दिया। जब मैं 11-12 साल की हुई तो मैं अपने ही क्लास के लड़के से अट्रैक्शन होने लगा। मुझे लगा कि ये मुझे कौन सी बीमारी हो गई है। उस दौर में मैं बहुत परेशान रहने लगी।
मैं अक्सर कोशिश करती था कि मैं लड़कों की तरह बर्ताव करूं, लेकिन ऐसा करने में हमेशा नाकामयाब होती थी। इन सब कोशिशों के कारण मैं फ्रस्ट्रेट रहने लगी और इसलिए मैंने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगाया।
12 वीं तक मेरा कोई दोस्त नहीं बन पाया, ऐसे निकाला मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम
बचपन में रिश्तेदार और घरवाले मुझे डॉक्टर जाकिर हुसैन के नाम से बुलाते थे। मुझे भी अपने नाम के आगे लगा डॉक्टर शब्द इतना पसंद आया कि मैंने ठान लिया कि मुझे डॉक्टर बनना है। मुझे याद है स्कूल में 12वीं तक मेरा कोई दोस्त नहीं बन पाया। मैं सबसे अलग रहने की कोशिश करने लगी।
12वीं के बाद जब मैंने मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम दिया तो मैं टॉप 100 में थी। इस कारण मुझे महाराष्ट्र का बेस्ट मेडिकल कॉलेज के.एम हॉस्पिटल एंड सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में मेरा एडमिशन हुआ। लोगों ने मेरे मन में डाल दिया था कि मैं बस एक गे हूं और ये सब मेरे मन का वहम, अगर मैं चाहूं तो उसे बदल सकती हूं। मैं हमेशा इसी कोशिश में रहती थी कि मैं खुद को बदल सकूं।
थर्ड ईयर में डिप्रेशन में चली गई, पहली बार किसी ने फीलिंग्स के बारे में पूछा
इस तरह मेडिकल कोर्स के दो साल निकल गए और थर्ड ईयर में आते ही मैं डिप्रेशन में चली गई। मेरा बीपी इतना बढ़ गया कि वो 160/100 तक पहुंच गया। मैंने डिसाइड किया मुझे अब ट्रीटमेंट करवाना चाहिए। मैं काउंसलर से मिली और जीवन में यह पहली बार था जब किसी ने मेरी फीलिंग्स के बारे में मुझसे बात की, मुझसे पूछा कि मेरे मन में क्या चल रहा और मैं अपनी पहचान को लेकर के क्या सोचती हूं।
तब जाकर उन्होंने मुझे समझाया कि यह कोई बीमारी नहीं है तुम नार्मल हो। उन्होंने मुझे बताया कि जो कुछ भी है, उसके लिए तुम या और कोई रिस्पॉन्सिबल नहीं हो।
20 साल की उम्र में अपनी ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी को पहचाना
दैनिक भास्कर से साभार
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Saturday, December 24, 2022
खुश रहने के लिए दुनिया के सफल लोग क्या करते हैं...
दैनिक भास्कर से साभार
पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं-
https://www.bhaskar.com/db-original/news/learn-how-to-be-happy-from-the-successful-people-of-the-world-130721403.html
आज मैनेजमेंट मंत्रा में जानिए खुश रहने के लिए दुनिया के सफल लोग क्या करते हैं...
1. जीवन का मकसद तय करते हैं- खुशी के लिए अगर कोई चीज वाकई जिम्मेदार है, तो वो हैै जीवन में जीने के लिए अपना मकसद खोजना और उसे पाने की हर संभव कोशिश करना। जब आप ऐसा करते हैं तो आप केवल उन्हीं चाजों पर फोकस करते हैं जो आपके लिए वाकई मायने रखती हैं।
2. सकारात्मक विचारों पर फोकस करते हैं- एक जैसी परिस्थितियां होने पर भी स्वभाव से नाखुश लोग जीवन में घटित नकारात्मक बातों पर ही फोकस करते हैं। जो लोग खुश रहते हैं वो केवल उन्हीं बातों को याद ऱखते हैं जो उनके व्यक्तिगत विचारों और नजरिए को सकारात्मक रुख देती हैं। वो खुश रहने के बहाने तलाशते हैं।
3. सफलता-असफलता को समान रूप से देखते हैं- अल्ट्रा कॉम्पिटिटिव लोग जो हमेशा केवल जीत पर ही फोकस करते हैं वो चीजों का मजा नहीं ले पाते हैं। वो हार जाते हैं तो दुखी होते हैं, जीत जाते हैं तो लालची हो जाते हैं। महान लीडर्स की खुशी सफलता और असफलता पर निर्भर नहीं करती है। वो हर परिस्थिति में खुश रहना ही पसंद करते हैं। बाकी चीजों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं।
4. अपनी प्राथमिकताएं तय करते हैं- अगर आपके जीवन में यह स्पष्ट है कि आपके लिए सबसे ज्यादा अहम क्या है, क्या सबसे ज्यादा मायने रखता है तो यह माना जा सकता है कि आप खुश हैं। जब आपके लक्ष्य आपकी प्राथमिकताएं तय कर देते हैं तो आपको असल खुशी मिलती है।
5. दूसरों से खुद की तुलना नहीं करते- अक्सर खुशी और दुख की वजह तुलना होती है। यह आपको हमेशा असंतुष्ट रखती है। जब हम अपनी तुलना उन लोगों से करते हैं जिनके पास हमसे ज्यादा है तो दुखी होते हैं। जब तुलना उनसे करते हैं जिनके पास हमसे कम है तो कृतज्ञ महसूस करते हैं, नाकाबिल महसूस करते हैं। तुलना हमेशा अपने मूल्यों और लक्ष्य से करना चाहिए।
6. सीखते हुए आगे बढ़ते रहते हैं- दुनिया के सबसे खुश और सफल लोग कभी सीखना और बदलना बंद नहीं करते। दुनिया बदलती है तो वो भी बदलते हैं। नई चीजें जानना, नई स्किल्स खोजना और बदलाव के साथ चलना इनके खुश रहने का एक बड़ा राज है।
7. जो कहते हैं वो करते हैं- अधूरा छोड़ा कोई प्रोजेक्ट या तोड़ा हुआ कोई वादा उत्साह खत्म कर सकता है। अगर आप खुद को डेड-एंड पर पाते हैं तो भी अपने कमिटमेंट्स जरूर पूरे करें और जो काम अधूरे छूटे हुए हैं, अधूरे हैं उन्हें जरूर पूरा करें।
8. खुद पर पूरा भरोसा करते हैं- चाहे आप सफल हों या असफल हों, किसी भी परिस्थिति में उदास न हों। खुशी आपके विचारों में होती है। अगर आप जीवन में वाकई खुश रहना चाहते हैं तो इसे सफलता में, तरक्की में और आस-पास की स्थिति में तलाशना बंद कर दें। हमेशा खुश रहने वाले लोगों का माइंडसेट अपनाएं।
बिल गेट्स खुश रहने के लिए ये करते हैं-
1. अपने वादे निभाते हैं। 2. हमेशा देने की नीयत रखते हैं। 3. सेहत का ख्याल रख अपने शरीर की कद्र करते हैं। 4. परिनार और दोस्तों के लिए समय निकालते हैं। 5. रात को अच्छी नींद लेते हैं।
एलन मस्क के अनुसार-
कल का सूरज आपके बाकी जीवन का पहला सवेरा लेकर आएगा। इसे आप बना सकते हैं या बिगाड़ सकते हैं। याद रखें, खुशी एक चुनाव है।
Friday, December 23, 2022
समानांतरता और विपथन
Friday, December 16, 2022
उपसर्ग द्वारा शब्द निर्माण और कारक
उपसर्ग द्वारा शब्द निर्माण और कारक
शब्द निर्माण में कारक देखने की बात सामन्यतः ‘समास’ के अंतर्गत
की जाती है, जैसा कि मुख्य रूप से ‘तत्पुरुष समास’ में
हम देखते हैं कि इसके कारक आधारित कुछ प्रकार भी किए जाते हैं, जैसे-
कर्म तत्पुरुष
करण तत्पुरुष
संप्रदान तत्पुरुष
अपादान तत्पुरुष
अधिकरण तत्पुरुष आदि
किंतु उपसर्ग /प्रत्यय योग से बनने वाले शब्दों में भी कारकीय
संबंधों की अभिव्यक्ति हो सकती है। ऐसा सामान्यतः निर्मित शब्द के स्वरूप की दृष्टि
से होता है। उदाहरण के लिए जब उपसर्ग किसी शब्द के साथ जुड़कर नए शब्द बनाते हैं
तो उनके अर्थ में कई प्रकार के कारक आधारित भेद भी देखे जा सकते हैं।
इन्हें समझने के लिए निम्नलिखित शब्दों के उदाहरण को देख
सकते हैं-
निःसंदेह: जिसमें कोई संदेह ना हो (अधिकरण)
निःसंतान :जिसे कोई संतान ना हो (कर्म)
निःसंबल : जिसका कोई संबल ना हो (षष्ठी-संबंधवाची)
निःसंग : जिसके साथ कोई ना हो (षष्ठी-संबंधवाची)
निस्सहाय : जिसकी सहायता करने वाला कोई ना हो (संप्रदान)
स्वन और स्वनिम (Phone and Phoneme)
स्वन और स्वनिम (Phone and Phoneme)
हम अपने जीवन में किसी भी स्वन (भाषायी ध्वनि) का लाखों-करोड़ों बार प्रयोग करते हैं, किंतु प्रत्येक स्वन का केवल एक अमूर्त प्रतीक ही हमारे मन में रहता है। किसी भाषाई ध्वनि का व्यवहार में बार-बार प्रयोग ‘स्वन’ है, जबकि मन में निर्मित उसकी अमूर्त संकल्पना ‘स्वनिम’ है। इसे एक उदाहरण से इस प्रकार से देख सकते हैं-
ध्वनि और स्वन (Sound and Phone)
ध्वनि और स्वन (Sound and Phone)
हमारे कानों द्वारा महसूस की जा सकने वाली कोई भी आवाज ‘ध्वनि’ है, जबकि केवल किसी मानव भाषा में प्रयुक्त ध्वनि ‘स्वन’ है। अतः दूसरे शब्दों में ध्वनि के अंतर्गत सभी प्रकार की आवाजें आती हैं, जैसे- पंखे की आवाज, चिड़िया की आवाज, गाड़ी की आवाज, पटाखे की आवाज और किसी व्यक्ति के बोलने से उत्पन्न होने वाली आवाज। ‘स्वन’ के अंतर्गत केवल भाषा वाली ध्वनियाँ आती हैं, अतः उपर्युक्त उदाहरणों में से स्वन के अंतर्गत केवल ‘किसी व्यक्ति के बोलने से उत्पन्न होने वाली आवाज’ ही आएगी।
इस प्रकार ध्वनि और स्वन के अंतर को एक वेन आरेख के माध्यम से हम इस प्रकार से दर्शा सकते हैं-
हम भाषा व्यवहार में जिन ध्वनियों का प्रयोग करते हैं, उन्हें भाषावैज्ञानिकों को द्वारा ‘स्वन’ कहा गया है, जिससे इन्हें अन्य सभी प्रकार की ध्वनियों से अलग किया जा सके।
ChatGPT
क्या है ChatGPT, जिसके सामने गूगल भी फीका पड़ा?
जवाब : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI पर काम करने वाली कंपनी OpenAI ने एक नया चैटबॉट बनाया है। चैटबॉट यानी मशीन से चैट करना, लेकिन इसमें आपको इंसान से बात करने जैसी फीलिंग आएगी। इसका नाम है ChatGPT यानी जेनेरेटिव प्रेट्रेन्ड ट्रांसफॉर्मर।
यह एक कन्वर्सेशनल AI है। एक ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जिसके साथ आप इंसानों की तरह बातचीत कर सकते हैं। यानी आप उससे कुछ भी पूछोगे तो वो आपको इंसानों की तरह डिटेल में लिखकर उस सवाल का जवाब क्रिस्प तरीके से देगा। यह काफी एक्यूरेट होगा। इसे 30 नवंबर 2022 को लॉन्च किया गया है।
ओपन AI उन कई कंपनियों, लैब्स और इंडिपेंडेट रिर्सचर में शामिल है, जो ज्यादा मॉडर्न चैटबॉट बनाने पर काम कर रहे हैं। ये सिरी या अलेक्सा जैसे डिजिटल असिस्टेंट की तरह काम करेंगे। लोगों की बात को अच्छी तरह से समझ सकेंगे। ज्यादा काम निपटा सकेंगे। यूजर्स को भरोसा है कि नए चैटबॉट गूगल या बिंज जैसे इंटरनेट सर्च इंजन की जगह ले सकते हैं।
स्रोत-
https://www.bhaskar.com/db-original/explainer/news/chatgpt-vs-google-search-engine-comparison-explained-130687419.html
से साभार...
Tuesday, December 13, 2022
अर्थ के प्रकार (Types of Meaning)
अर्थ के प्रकार (Types of Meaning)
अर्थ वह मानसिक संकल्पना है जो किसी ध्वनि समूह (शब्द)
के साथ इस प्रकार से संबद्ध रहती है कि ध्वनि समूह (शब्द) का उच्चारण होने पर वह
संकल्पना उभर कर सामने आ जाती है, अथवा उस संकल्पना के आने पर ध्वनि
समूह स्वतः उभर आता है।
भाषा
के स्तर पर देखा जाए तो अर्थ भाषा का दूसरा पक्ष है। भाषा में एक ओर ध्वनि होती है
तो दूसरी ओर अर्थ होता है, जिसे चित्र रूप में इस प्रकार से देख सकते हैं-
ध्वनि ß à भाषा ß à अर्थ
यह
अर्थ बाह्य संसार के साथ संकल्पनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। अर्थात बाह्य संसार की
वस्तुओं, इकाइयों, विचार, अनुभव आदि
आदि का ही बिंबो या संकल्पनाओं के रूप में हमारे मन या मस्तिष्क में अमूर्तीकरण
होता है। अतः अर्थ को इस रूप में भी दिखा सकते हैं-
ध्वनि ß à भाषा ß à अर्थ ß à बाह्य संसार
इस
रूप में अमूर्तीकरण से निर्मित सभी मानसिक इकाइयों को सामूहिक रूप से अर्थ कहते
हैं।
मानव मन में बिंबों या संकल्पनाओं का निर्माण
विभिन्न प्रकार से होता है। यही कारण है कि विभिन्न आधारों पर अर्थ के कई प्रकार किए
जा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप हम कुछ आधारों
पर अर्थ के प्रकार निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं-
(1)
स्वरूप के आधार पर
इसमें
हम यह विचार करते हैं कि मानव मस्तिष्क में अर्थ किस रूप में सृजित हुआ है। इसके
कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं-
§ चित्र
के रूप में
§ परिभाषा
के रूप में
§ विवरण
या व्याख्या के रूप में
§ उदाहरण
के रूप में
§ सादृश्य
(Metaphor) के
रूप में
(2)
प्रकृति के आधार पर
इसमें
हम यह देखते हैं कि किसी शब्द द्वारा व्यक्त अर्थ की क्या प्रकृति (nature) है? अथवा वह किस प्रकार का अर्थ
व्यक्त कर रहा है? इसके कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं-
§ अभिधात्मक
अर्थ
§ लाक्षणिक
अर्थ
§ व्यंजनात्मक
अर्थ
पारंपरिक
रूप से इन्हें अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शब्दशक्तियों
द्वारा अभिव्यक्त अर्थ के रूप में समझा जा सकता है।
(3)
प्रयोग के आधार पर
इस आधार पर यह देखा जाता है कि किसी सामाजिक परिवेश विशेष में प्रयोग होने के
कारण शब्द के अर्थ के कौन-से रूप बनते हैं? इस आधार पर कुछ अर्थ के कुछ
प्रकार निम्नलिखित रूप में देखे जा सकते हैं-
§ सामाजिक
अर्थ
वह अर्थ जो किसी शब्द के लिए किसी समाज विशेष
में प्रचलित होता है, जैसे-
v गाय
हमारी माता है।
इसमें ‘माता’
शब्द का वास्तविक अर्थ या लाक्षणिक अर्थ न लेते हुए हिंदू समाज विशेष में प्रचलित
अर्थ के साथ जोड़कर इस वाक्य को देखना होगा।
§ भावनात्मक
या संवेगात्मक अर्थ
यह अर्थ का वह प्रकार है जो किसी व्यक्ति या
समूह की भावनाओं से जुड़ा होता है। इस प्रकार का अर्थ संदर्भ आधारित ही होता है, जैसे-
....
कि घर कब आओगे ....
‘बॉर्डर’
फिल्म के इस गीत में ‘घर’ शब्द का अर्थ
भावनात्मक अर्थ के अंतर्गत आएगा।
§ व्यंगात्मक
अर्थ
किसी संदर्भ विशेष में प्रयोग होने पर किसी शब्द
या शब्द समूह का व्यंग्य के रूप में विशेष अर्थ प्राप्त होता है, जिसे उसका
व्यंगात्मक अर्थ कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति कोई काम खराब करके आ रहा
हो और उसे निम्नलिखित वाक्य बोला जाए-
v बहुत
महान काम किया है तुमने
तो इस वाक्य का संदर्भ आधारित अर्थ व्यंगात्मक
अर्थ होगा।
§ प्रकरणार्थक
अर्थ
जब किसी वाक्य का संदर्भ या प्रकरण के आधार पर
अर्थ लिया जाता है, तो उसे प्रकरणार्थक अर्थ (Pragmatic
Meaning) कहते हैंइसे एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं-
यदि किसी से हम कहें कि मुझे ₹10000 चाहिए और वह कहे- अरे यार! अभी सुबह मैंने
अपने भाई को ₹20000 दे
दिए, तो उसके कहने का अर्थ यह है कि ‘वह मुझे पैसे नहीं
देगा’। किंतु उसने वह वाक्य कहा ही नहीं है, हम प्रकरण के माध्यम से इस अर्थ को ज्ञात कर रहे हैं। इस प्रकार से
प्राप्त होने वाला अर्थ प्रकरणार्थक अर्थ कहलाता है।
इस
प्रकार के अर्थ की निष्पत्ति के अध्ययन के लिए ‘प्रकरणार्थविज्ञान’ (Pragmatics) नामक प्रोक्ति-विश्लेषण की एक समानांतर शाखा
ही भी बात स्वतंत्र रूप से की जाती है।
(4)
भाषायी रूप के आधार पर
इस आधार पर अर्थ के दो प्रकार के जाते हैं -
§ कोशीय
(Lexical) अर्थ
इसके अंतर्गत वे अर्थ आते हैं जो बाह्य संसार
अथवा मन की किसी संकल्पना से जुड़े होते हैं।
इस प्रकार के अर्थ को अभिव्यक्त करने वाले शब्द 'कोशीय शब्द' कहलाते
हैं। कोशीय अर्थ –‘अभिधात्मक, लाक्षणिक, चित्रात्मक अथवा व्याख्यापरक’ किसी भी प्रकार का हो सकता है। ये अर्थ मुख्य रूप से संज्ञा, विशेषण, क्रिया और क्रियाविशेषण शब्दों प्राप्त होते
हैं।
§ व्याकरणिक (Grammatical) अर्थ
इसके अंतर्गत वे अर्थ आते हैं, जिनका संबंध
केवल व्याकरण से होता है। इस प्रकार के अर्थ को अभिव्यक्त करने वाले शब्द
व्याकरणिक शब्द कहलाते हैं। उनका काम कोशीय शब्दों को जोड़कर सार्थक वाक्यों की
निर्मित करना होता है। व्याकरणिक अर्थ देने वाले शब्दों में निम्नलिखित प्रकार के
शब्द आते हैं-
v परसर्ग
- ने को से में पर आदि
v सहायक
क्रिया - है है था थी थे
आदि
v समुच्चयबोधक
- और तथा एवं आदि
व्याकरणिक
अर्थ देने के लिए सदैव शब्दों का ही प्रयोग नहीं होता, बल्कि प्रत्ययों
का भी प्रयोग होता है, जिन्हें हम रूपसाधक प्रत्यय (Inflectional Suffixes) कहते हैं, जैसे- या, यी, ये, ता,ती, ते आदि।
उपर्युक्त
प्रकार के शब्दों या प्रत्ययों का प्रयोग होने पर व्यक्त होने वाला अर्थ व्याकरणिक
अर्थ कहलाता है।
इसी
प्रकार सुप्रसिद्ध अर्थवैज्ञानिक Geoffrey Leech (1974, 1981) द्वारा अर्थ के निम्नलिखित 07 प्रकारों की बात की गई है-
v संकल्पनात्मक
(conceptual)
v लाक्षणिक
(connotative)
v सहप्रयोगात्मक
(collocative)
v reflective
v प्रभावपरक
(affective)
v सामाजिक
(social)
v thematic
इन्हें
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