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Sunday, March 29, 2020

वाक्य साँचा (Sentence Frame)



वाक्य साँचा (Sentence Frame/Syntactic Frame) :-
वह साँचा जिसमें क्रिया को केंद्र में रखते हुए उसके संपादन के लिए आने अथवा आ सकने वाले पदों/पदबंधों के स्वरूप, वर्ग एवं लक्षणों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाता है, वाक्य-साँचा कहलाता है। प्रत्येक क्रिया का अपना एक विशिष्ट व्यवहारपरक स्वरूप होता है। उसके आधार पर यह निश्चित होता है कि उसके कर्ता, कर्म, करण आदि प्रकार्य-स्थानों पर कौन-से पद आ सकते हैं तथा कौन-से नहीं आ सकते। इन सब की व्यवस्थित प्रस्तुस्ति वाक्य-साँचा है। उदाहरण के लिए भौंकना क्रिया का कर्ता सदैव कुत्ता ही होगा। अतः इसके लिए जो भी वाक्य साँचा बनाया जाएगा, उसमें विशिष्ट रूप से कुत्ता को कर्ता के रूप में दर्शाया जाएगा। इसी प्रकार सोना और खाना जैसी क्रियाओं के कर्ता के रूप में सभी चेतन प्राणी आ सकते हैं। इन सब प्रकार की बातों को वाक्य साँचों में व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाता है।
सभी भाषाओं में क्रियाओं के स्वरूप और संज्ञा शब्दों लक्षण आधारित वर्गीकरण के आधार पर वाक्य-साँचे निर्मित करने के प्रयास किए गए हैं। हिंदी के लिए इसे कार्य प्रो. सूरजाभान सिंह (2000) द्वारा हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण  में व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया गया है। उसमें से एक वाक्य साँचे को उदाहरणस्वरूप हम इस प्रकार से देख सकते हैं-

विकारी और अविकारी शब्दवर्ग


विकारी और अविकारी शब्दवर्ग  (Declinable and Indeclinable word categories)
किसी शब्द के रूप बनने की स्थिति को विकार कहते हैं और जिन शब्दों के रूप बनते हैं उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित शब्दों को देखें-
लड़का – लड़का, लड़के, लड़कों
प्यारा – प्यारा, प्यारे, प्यारी
कैसा – कैसा, कैसे, कैसी
इन शब्दों के रूप में लिंग और वचन के आधार पर परिवर्तन हो रहा है। अतः इन्हें विकारी शब्द कहेंगे।
पश्चिमी व्याकरण परंपरा के आधार पर 08 शब्दवर्गों (parts of speech) की बात की गई है-
1.      संज्ञा
2.      सर्वनाम
3.      क्रिया
4.      विशेषण
5.      क्रियाविशेषण
6.      संबंधबोधक
7.      योजक
8.      विस्मयबोधक
इनमें से प्रथम चार शब्दवर्गों को विकारी शब्दवर्ग के अंतर्गत रखा जाता है, क्योंकि इन शब्दवर्गों के अधिकांश शब्द विकारी होते हैं। इन्हें दो-दो उदाहरणों के साथ दिया जा रहा है-
1.      संज्ञा
लड़का – लड़का, लड़के, लड़कों
गाय- गाय, गायें, गायों
2.      सर्वनाम
मैं- मैंने, मुझे, मुझको, मुझसे, मेरा, मेरी, मेरे, मुझमें, मुझपर
वह – उसने, उसे, उसको, उससे, उसका/की/के, उसमें, उसपर
3.      क्रिया
चलना – चल, चलना, चलनी, चलने, चलता, चलती, चलते, चला, चली, चले, चलेगा, चलेगी, चलेंगे, चलेंगी, चलूँगा, चलूँगी, चलिए, चलिएगा, चलो, चलकर।
खाना – खा, खाना, खानी, खाने, खाता, खाती, खाते, खाया, खायी, खाए, खाएगा, खाएगी, खाएँगे, खाएँगी, खाऊँगा, खाऊँगी, खाइए, खाइएगा, खाओ, खाकर।
4.      विशेषण
अच्छा – अच्छा, अच्छे, अच्छी
प्यारा – प्यारा, प्यारे, प्यारी
इनके अलावा शेष चार शब्दवर्गों को अविकारी शब्दवर्गों के अंतर्गत रखा जाता है-
1.      क्रियाविशेषण
2.      संबंधबोधक
3.      योजक
4.      विस्मयबोधक

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (One word for Multiple words)


अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
प्रत्येक शब्द का एक अर्थ होता है। सामान्यतः यह अपेक्षा की जाती है कि एक शब्द का अर्थ एक इकाई हो, जैसे-
आम, आदमी, चूहा, पेड़ आदि।
ऐसे शब्दों के बाह्य संसार में एक इकाई के रूप में अर्थ प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिनका अर्थ समझने के लिए कई शब्दों का प्रयोग करते हुए व्याख्या करनी पड़ती है। ऐसे शब्दों को अनेक शब्दों के लिए एक शब्द के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के कुछ शब्दों को इस प्रकार से देख सकते हैं-
शब्द
अनेक शब्द
गगनयान
आसमान में जाने वाला यान
भूतपूर्व
जो पूर्व में घटित हो चुका हो
दुर्लभ
जो बहुत कठिनाई से प्राप्त होता हो
त्रिकालदर्शी
जो तीनों कालों में देख सकता हो
जिज्ञासु
जो जानने की इच्छा रखता हो
अदृश्य
जिसे देखा न जा सके
कृतघ्न
जो किए गए उपकारों को न मानता हो
अद्वितीय
जिसके समान कोई दूसरा न हो

विलोम शब्द (Antonyms)


विलोम शब्द
वे शब्द जो एक-दूसरे के अर्थ का विरोधी अर्थ देते हैं, परस्पर विलोम शब्द या विपरीतार्थक शब्द कहलाते हैं। आचार्य हरिवंश तरुण (2010) द्वारा सरल हिंदी व्याकरण और रचना में कुछ विलोम शब्दों की सूची इस प्रकार दी गई है-

पर्यायवाची शब्द (Synonyms)


पर्यायवाची शब्द
वे शब्द जो एक ही अर्थ को अभिव्यक्त करते हैं, आपस में पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं। वैसे पर्यायवाची शब्दों के स्वरूप और पृष्ठभूमि आदि के आधार पर उनके प्रयोग और व्यवहार में सूक्ष्म अंतर होता है, किंतु उनके द्वारा अभिव्यक्त बाह्य संसार में अर्थ एक ही रहता है। कुछ पर्यायवाची शब्दों के उदाहरण इस प्रकार हैं-
शब्द
पर्याय
जल
पानी, वारि, नीर, तोय, अंबु, सलिल
आग
अग्नि, पावक, दाहक, अनल, कृशानु
प्रकाश
रोशनी, ज्योति, उजाला, चमक, प्रभा
सूर्य
सूरज, दिवाकर, प्रभाकर, रवि, दिनकर, दिवाकर, आदित्य
स्त्री
महिला, औरत, नारी, रमणी, कांता, अबला
हवा
वायु, पवन, अनिल, समीर, मारुत, वात
रास्ता
राह, पथ, पंथ, मार्ग
रात
रात्रि, निशा, रैन, रजनी, यामिनि
वैसे तो पर्यायवाची शब्द एक ही अर्थ की अभिव्यक्ति करते हैं, किंतु उनके प्रयोग के परिवेश अलग-अलग होते हैं, जहाँ एक शब्द की जगह दूसरे शब्द का प्रयोग नहीं होता। उदाहरण के लिए पानी और जल पर्यायवाची हैं किंतु गंगाजल की जगह गंगापानी नहीं लिखा जा सकता। इसी प्रकार रात, रात्रि और रैन पर्यायवाची हैं, किंतु रात्रिकाल की जगह रातकाल/रैनकाल अथवा रैन-बसेरा की जगह रात-बसेरा/रात्रि-बसेरा शब्दों प्रयोग संभव नहीं है। अतः पर्यायवाची शब्दों का व्यवहार करते समय उनके परिवेश का ध्यान रखना आवश्यक है।

महाप्राण व्यंजन


महाप्राण व्यंजन
किसी ध्वनि के उच्चारण में लगने वाली वायु की मात्रा को प्राण कहते हैं। (नोट- चूँकि वायु का जीवन का आधार है, इसी कारण एक व्याकरण परंपरा में इसे प्राण माना गया है)। वायु की मात्रा के आधार पर व्यंजनों के दो वर्ग किए गए हैं-
अल्पप्राण और महाप्राण।
प्रो. अनिल कुमार पाण्डेय द्वारा हिंदी की ध्वनि संरचना में इनकी व्याख्या इस प्रकार से की गई है-
अल्पप्राण - जिन ध्वनियों के उच्चारण में प्राण अथवा वायु का कम अथवा अत्यल्प प्रयोग किया जाता हैउन्हें अल्पप्राण ध्वनि कहते हैं। व्यंजन ध्वनियों के वर्गीय ध्वनियों में प्रथमतृतीय और पंचम अल्पप्राण ध्वनियाँ हैं। जैसे- क,,,,ञ, ,,,,न ,,,म ,,,व अल्पप्राण व्यंजन हैं।

महाप्राण - जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु का अधिक (अर्थात् अल्पप्राण की अपेक्षा अधिक प्रयोग)  किया जाता हैउन्हें महाप्राण कहते हैं। हिंदी में प्रत्येक वर्गीय ध्वनियों के दूसरे और चौथे व्यंजन अर्थात् ख,,ध तथा फभ महाप्राण ध्वनियाँ है। इनके अतिरिक्त ऊष्म ध्वनियाँ शस और ह महाप्राण ध्वनियाँ हैं।
हिंदी में अल्पप्राण व्यंजन के साथ ’ जोड़ने पर महाप्राण ध्वनियाँ बनती हैं। संस्कृत में व्यंजन ध्वनियों को हल् कहा गया है। अतः व्यंजन ध्वनियाँ वर्णमाला में हलंत् होती हैंउनमें ’ जोड़ने पर महाप्राण बनती हैं। जैसे -
क् +ह = ख,                                                              ग् ह = घ,                                                       च् ह = छ
ज् ह = झ,                                                             ट् ह = ठ,                                                     ड् ह = ढ
त् ह = थ,                                                              द् ह = ध,                                                प् ह = फ
ब् ह = भ                        न् ह = न्ह,                                                     म् ह = म्ह ।

......
हिंदी के वर्गीय व्यंजनों में अल्पप्राण और महाप्राण का युग्म इस प्रकार देखा जा सकता है-
अल्पप्राण
महाप्राण
अल्पप्राण
महाप्राण
ड (ड़)
ढ (ढ़)
महाप्राण व्यंजनों की व्याख्या संबंधित अल्पप्राण व्यंजन ‌+ ह के रूप में भी की जा सकती है, जैसे-
क् + ह = ख
ग् + ह = घ
च् + ह = छ           आदि।
इसी आधार पर और वर्ग के पंचमाक्षरों के भी अल्पप्राण और महाप्राण के रूप में दो वर्ग किए हैं, जैसे-
अल्पप्राण
महाप्राण
न्ह
म्ह
 प्राण की मात्रा को प्राणत्व कहते हैं।