भाषाविज्ञान में संरचनात्मक शोध : हिंदी संबंधी कुछ बिंदु
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है संरचनात्मक शोध का उद्देश्य
भाषा की किसी इकाई की 'संरचना का को उद्घाटित करना' (to explore the structure) है, अर्थात उस भाषिक इकाई में लगी हुई छोटी इकाइयों
तथा उनके आपसी संयोजन संबंधी नियमों को विश्लेषण के माध्यम से प्रस्तुत करना है।
अतः मानव भाषाओं से संबंधित वे सभी शोधकार्य जिनमें भाषिक इकाइयों की संरचना का
विश्लेषण किया जाता हो, संरचनात्मक शोध के अंतर्गत आएंगे। इस
प्रकार के शोधकार्यों या शोधकार्य के लिए क्षेत्रों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं
-
1.
'संधि' के क्षेत्र में किया गया कोई भी भाषा
संबंधी विश्लेषण का शोधकार्य संरचनात्मक शोध के अंतर्गत आएगा । संधि में दो शब्दों
के योग की बात की जाती है और उनका योग होने पर होने वाले ध्वन्यात्मक परिवर्तन की
बात की जाती है और फिर उन्हीं ध्वनियों के स्थिति के अनुसार नियम दिए जाते हैं।
उदाहरण के लिए दीर्घ संधि का नियम देख सकते हैं -
अ + अ = आ
अ + आ = आ (शिव + आलय = शिवालय)
अ + अ = आ
आ + आ = आ (विद्या + आलय = विद्यालय)
2. रूपिमिक स्तर पर शब्दों और उनके साथ जुड़ने वाले उपसर्ग/ प्रत्यय की रचना
के विश्लेषण से संबंधित काम संरचनात्मक शोध के अंतर्गत आएगा, जैसे- मुरारीलाल उप्रेती द्वारा 'हिंदी में प्रत्यय और पश्चाश्रयी विचार' के अंतर्गत
किया गया विश्लेषण संरचनात्मक शोध संबंधी कार्य है ।
3. सूरजभान सिंह द्वारा 'हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण'
(2000) में दिए गए वाक्य सांचे भी संरचनात्मक विश्लेषण पद्धति पर
आधारित वाक्य सांचे हैं। अर्थात वाक्य साँचों के निर्माण से संबंधित शोध कार्य भी
संरचनात्मक शोध के अंतर्गत आएगा।
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