भाषाविज्ञान में प्रकार्यात्मक (Functional) शोध के पक्ष
प्रकार्य
(Function)
क्या है?
किसी
व्यवस्था में किसी 'घटक विशेष' (Specific Component/Part) द्वारा
संपादित किया जाने वाला ‘कार्य विशेष’ (Specific
Task) उसका प्रकार्य कहलाता है। उदाहरण के लिए 'शरीर' में 'लिवर' एक घटक विशेष है जिसका प्रकार 'भोजन को पचाना'
है अथवा 'पाचन क्रिया संपन्न करना' है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय की व्यवस्था में 'कुलपति'
एक पद विशेष है जिसका प्रकार्य विश्वविद्यालय की गतिविधियों को
सुचारू रूप से संचालित कराना है।
विभिन्न
व्यवस्थाओं में विभिन्न घटकों के लिए प्रकार्य निर्धारित होते हैं। अतः उस घटक की
जगह आने वाली कोई भी वस्तु वही काम करेगी। उदाहरण के लिए आंख का काम बाह्य संसार
की वस्तुओं को देखना है। यदि किसी की आंख खराब हो जाए और उसकी जगह मशीनी
ट्रांसप्लांट के माध्यम से छोटे कैमरे लगा दिए जाएं तो वे वही प्रकार्य करेंगे।
इसी प्रकार विश्वविद्यालय की व्यवस्था में कुलपति के अवकाश पर जाने पर जिस भी
व्यक्ति को वह चार्ज दिया जाएगा, वह वही प्रकार्य संपन्न करेगा ।
भाषा
में प्रकार्य (Function
in Language)
हम
जानते हैं कि भाषा एक बहु स्तरीय व्यवस्था है जिसमें छोटी इकाइयों द्वारा आपस में
मिलकर क्रमशः बड़ी इकाइयों का निर्माण किया जाता है, जिनका क्रम निम्नलिखित है -
स्वनिम, रूपिम, शब्द/पद, पदबंध, उपवाक्य,
वाक्य, प्रोक्ति (+ अर्थ)
इनमें
जब छोटी इकाइयों के योग से बड़ी इकाइयों का निर्माण होता है, तो उस स्तर
पर एक व्यवस्था निर्मित होती है। इन व्यवस्थाओं के निर्माण में लगने वाली छोटी
इकाइयों का प्रकार्य देखा जा सकता है। इस दृष्टि से किया जाने वाला शोध
प्रकार्यात्मक शोध के अंतर्गत आता है।
प्रकार्यात्मक
अध्ययन का विकास
भाषाविज्ञान के क्षेत्र में प्रकार्यात्मक अध्ययन का आरंभ एफ.डी. सस्यूर
द्वारा दिए गए विचारों के बाद ही हुआ है। सस्यूर ने ‘एककालिक
अध्ययन’ (Synchronic Study) पर बल देते हुए आधुनिक
भाषाविज्ञान की नींव रखी, जो अध्ययन विश्लेषण की दृष्टि से
मुख्यतः दो दिशाओं में विकसित हुआ- संरचनात्मक अध्ययन और प्रकार्यात्मक अध्ययन ।
बीसवीं सदी के आरंभ में यूरोप में विभिन्न संप्रदायों (School) के अंतर्गत अलग-अलग दृष्टियों से इन में से किसी एक अध्ययन प्रणाली का
प्रयोग करते हुए काम किया गया। इस क्रम में प्रकार्यात्मक दृष्टि से सर्वाधिक
कार्य 'प्राग संप्रदाय' (Prague School) द्वारा किया गया है। रोमन याकोब्सन इस संप्रदाय के सुप्रसिद्ध
भाषावैज्ञानिक हैं।
प्राग
संप्रदाय के सुप्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक रोमन याकोब्सन द्वारा संप्रेषण के स्तर पर
भाषा के 06 प्रकार्यों की बात की गई है, जिन्हें इस लिंक पर
जाकर विस्तार से देखा जा सकता है-
इसी
प्रकार स्वनिमिक स्तर पर भी इस संप्रदाय द्वारा प्रकार्य की दृष्टि से पर्याप्त
काम किया गया है।
और
पढें-
प्रकार्यात्मक भाषाविज्ञान : संक्षिप्त
परिचय
प्रकार्यात्मक
दृष्टि से शोध के बिंदु
वाक्य
के स्तर पर कारक संबंध मूल्य प्रकार्यात्मक संबंध ही हैं। भारतीय चिंतन परंपरा में
आचार्य पानी और समकालीन वैयाकरणों द्वारा कारक संबंधों पर विस्तार से चिंतन किया
गया है। पश्चिमी भाषाविज्ञान में यह कार्य फिल्मोर ने किया है। इन सभी का अध्ययन
करते हुए हिंदी या किसी भी भाषा ने कारक संबंधों की स्थिति संबंधी प्रकार्यात्मक
अध्ययन किया जा सकता है।
इसी प्रकार क्रिया
शब्दों द्वारा कृदंत के रूप में किए जाने वाले व्यवहार या प्रयोग का भी
प्रकार्यात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जा सकता है, जैसे-
· मुझे चलने में
कठिनाई हो रही है।
इसमें ‘चलने में’ क्रिया पदबंध होते हुए भी संज्ञा पदबंध का प्रकार्य कर रहा है।
साथ ही संज्ञा पदबंधों का अथवा विशेषण और क्रियाविशेषण
पदबंधों का ‘पूरक’ के रूप में किया जाने वाला प्रयोग भी प्रकार्यात्मक अध्ययन से संबंधित है, जैसे-
· मोहन बहुत बड़ा
डॉक्टर है
· मोहन बहुत सुंदर
है
· मेरा घर बहुत
दूर है
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