भाषा के प्रकार्य :
प्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक रोमन याकोब्सन द्वारा भाषा के 6
प्रकार्यों की बात की गई है। भाषा का मूल प्रकार्य संप्रेषण है। इसके लिए संप्रेषण
से जुड़े 6 तथ्य (factors) अलग-अलग परिस्थितियों में केंद्र में आ जाते हैं। इनके केंद्र में आने के
क्रम में भाषा के प्रकार्य इस प्रकार हैं –
वक्ता
|
श्रोता
|
संदर्भ
|
संदेश
|
कोड
|
सरणि
|
1.
अभिव्यक्तिपरक
प्रकार्य (Expressive Function): जब
अभिव्यक्ति के केंद्र में स्वयं ‘वक्ता’ होता है, तब भाषा यह प्रकार्य करती है। इसमें वक्ता
स्वयं से संबंधित बातें कहता है, जैसे –
·
वाह, कितना अच्छा मौसम है!
·
आज
मेरा दिमाग खराब है।
·
कल
मुझे बुखार था।
·
यह
कितनी खराब फिल्म थी।
2.
प्रभावपरक
प्रकार्य (Conative Function) : इसमें अभिव्यक्ति के केंद्र में ‘श्रोता’ होता है। इस प्रकार की अभिव्यक्तियों का
उद्देश्य श्रोता को प्रभावित करना होता है। अतः इन अभिव्यक्तियों के प्रत्युत्तर
स्वरूप श्रोता द्वारा किसी कार्य को करने आदि के लिए प्रेरित होने की स्थिति
प्राप्त होती है। इसमें आदेश, परामर्श,
निवेदन, प्रश्न से संबंधित भाषिक अभिव्यक्तियों को रखते हैं, जैसे –
·
पानी
लाओ।
·
चुपचाप
रहो।
·
आपको
सड़क के किनारे टहलना चाहिए।
·
क्या
मैं अंदर आ सकता हूँ?
·
तुम्हें
क्या चाहिए?
3.
काव्यात्मक प्रकार्य (Poetic Function) : इसमें अभिव्यक्ति के केंद्र में ‘संदेश’ होता है। सभी प्रकार की साहित्यिक रचनाएँ इसके अंतर्गत आती हैं। रचनाएँ
सुनने या पढ़ने के बाद श्रोता या पाठक उसके संदेश को ग्रहण करता है, जैसे – कविता। अतः कहा जा सकता है कि काव्यात्मक प्रकार्य का संबंध मानव
संवेदनाओं से होता है।
4.
संदर्भपरक
प्रकार्य (Referential Function) : जब अभिव्यक्ति के केंद्र में ‘संदर्भ’ होता है। इसमें वक्ता द्वारा व्यक्त
उक्ति को समझने के लिए श्रोता को संदर्भ में जाना पड़ता है,
जैसे –
तब हनुमान जी सीता जी से
कहा। (संदर्भ: रामायण)
5.
अधिभाषिक प्रकार्य (Metalinguistic Function): इसमें ‘कोड’ केंद्र में होता है। ‘कोड’ का
अर्थ है अभिव्यक्त की गई सामग्री में प्रयुक्त शब्द,
ध्वनियाँ या वर्ण। जब हम किसी नई वस्तु के बारे में सुनते या पढ़ते हैं तो हमारा
ध्यान उस बोली या लिखी हुई सामग्री पर ही रह जाता है। अभिव्यक्ति को समझने के लिए
उसमें आए शब्दों को ही पहले समझना पड़ता है। ऐसी स्थिति में भाषा का प्रकार्य
अधिभाषिक होता है, जैसे– कोई परिभाषा पढ़ने या सुनने के बाद
उसमें आए शब्दों को ही अलग से समझना पड़ता है।
6.
संबंधपरक
प्रकार्य (Phatic Function) : यहाँ ‘सरणि’ केंद्र में होती है। जहाँ वक्ता और श्रोता केवल एक दूसरे से संबंध
स्थापित करना चाहते हों, या सरणि का परीक्षण करना हो वहाँ यह
प्रकार्य होता है, जैसे –
(स्टेशन पर)
·
ट्रेन
बहुत लेट है,
·
बहुत
गर्मी है।
इस प्रकार के वाक्यों
द्वारा वक्ता का उद्देश्य श्रोता से संबंध स्थापित करना मात्र रहता है।
इसी प्रकार-
(मोबाइल से) हेलो, हाँ/हूँ बोलना
इस प्रकार की अभिव्यक्तियों
का उद्देश्य वक्ता/श्रोता को यह सूचित करना होता है कि सरणि (channel) बना हुआ है।
I like your post very much. It is very much useful for my research. I hope you to share more info about this. Keep posting Cyber Security Course
ReplyDelete