सांस्कृतिक
विरासत एवं सामाजिक पहचान
सांस्कृतिक
विरासत
मनुष्य
की विशेषताओं को मूलतः दो प्रकार की विरासत के माध्यम से समझा जा सकता है-
जैविक –
शारीरिक रचना, कार्य एवं
आवश्यकताएँ आदि।
सांस्कृतिक
– व्यवहार, रहन-सहन, खान-पान विधियाँ आदि।
जैविक
विशेषताओं की समझ मनुष्य को या किसी भी प्राणी को जन्म से ही होती है। सांस्कृतिक
विशेषताएँ मनुष्य समाज में रहकर सीखता है। इस दृष्टि से भाषा एक सांस्कृतिक विरासत
है, क्योंकि हम जिस समाज में रहते हैं उसी की
भाषा सीख लेते हैं।
भाषा किसी समाज और संस्कृति की वाहक
होती है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होती है। मानव शिशु के परिवार और
समाज में जो भाषा बोली जाती है उसे वह सीखता है।
सामाजिक
पहचान
भाषा
किसी भी व्यक्ति की सामाजिक पहचान कराने में सक्षम होती है। व्यक्ति का सुर (tone), शब्द चयन (word selection) और वार्तालाप का तरीका उसके भौगोलिक क्षेत्र, धर्म
और सामाजिक पृष्ठभूमि की पहचान करा देते हैं।
2.5
वस्तु के रूप में भाषा
कोई भी
इकाई जिसका एक रूपाकार और प्रयोग होता है, वस्तु है। वस्तु को दो रूपों में समझा जा सकता है- मूर्त और अमूर्त।
अमूर्त वस्तुएँ वे हैं जिन्हें हम देख या महसूस नहीं कर सकते, लेकिन उनका प्रयोग करते हैं।
इस
दृष्टि से देखा जाए तो भाषा एक अमूर्त व्यवस्था है। ध्वनियों या पाठों द्वारा इसकी
अभिव्यक्ति होती है। अतः वाचिक और लिखित रूप भाषा की सामग्री हैं।
स्वायत्तता
यद्यपि भाषा का संबंध मानव मन और मानव समाज से है, किंतु इसके बावजूद भाषा की एक स्वतंत्र
व्यवस्था भी प्राप्त होती है जिसे हम ‘भाषा की संरचना’ के रूप में देख सकते हैं।
भाषा
की संरचना
यह
निम्नलिखित स्तरों पर पाई जाती है-
स्वनिम
अर्थ
|
पदबंध
उपवाक्य
वाक्य
प्रोक्ति
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