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Wednesday, September 25, 2019

संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान : विशेष व्याख्यान - प्रो. उमाशंकर उपाध्याय


संज्ञानात्मक व्याकरण (Cognitive Grammar) : विशेष व्याख्यान - प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
Sep. 2019
यह भाषा और संज्ञान के परस्पर संबंधों का विश्लेषण करते हुए विकसित भाषाविज्ञान की एक नई शाखा है। स्वयं चॉम्स्की भाषा और संज्ञान को एक दूसरे से जुड़ा हुआ मानते हैं। उन्होंने कहा कि भाषा संज्ञान से जुड़ी है, किंतु वह उसी के अंदर स्वतंत्र विभाग है। यह संपूर्ण संज्ञान से जुड़ी रहती है। संरचनावाद के सापेक्ष इस विचार को देखा जाए तो ब्लूमफील्ड ने कहा था कि जब तक वस्तु (object) और संकल्पना (concept) का पूर्णतः विश्लेषण करने लायक विज्ञान ना हो जाए, तब तक अर्थ को भाषाविज्ञान के साथ नहीं रखा जा सकता। इस कारण ब्लूमफील्ड ने अर्थ को छोड़ दिया था। किंतु चॉम्स्की ने भाषा के लिए संज्ञान के अलग विभाग की संकल्पना दी।
भाषा विश्लेषण का संज्ञानात्मक अधिगम मूलतः अर्थ के प्रति या समग्रतः भाषा के प्रति संज्ञान की भूमिका की बात करता है। मूलतः मनोवैज्ञानिकों द्वारा रूपांतरण प्रजनक व्याकरण (TGG) में दिए गए नियमों, भाषा के स्वरूप और भाषा अर्जन प्रक्रिया के संबंध में प्रयोग किए गए। उनके परिणाम रूपांतरण प्रजनक व्याकरण (TGG) के दावे के अनुरूप नहीं प्राप्त हुए। इसलिए उनकी इस व्याकरण से पर्याप्त असहमतियाँ रहीं। उन्होंने कहा कि मानव मन (संज्ञान) की क्षमताओं- स्मृति, तर्क, बिंब, ध्यान आदि (जिनके लिए चॉम्स्की के मॉडल में कोई स्थान नहीं है) के समान ही भाषा भी एक क्षमता है। मानव शिशु जिस प्रकार अन्य चीजें सीख रहा होता है, उसी प्रकार भाषा भी सीख रहा होता है। अतः भाषा संज्ञान का अभिन्न अंग है।
इस प्रकार भाषा विश्लेषण के संज्ञानात्मक उपागम के दो रूप किए जा सकते हैं-
रूपात्मक उपागम (formal approach)- चॉम्स्की, फोडर आदि विद्वानों द्वारा प्रयुक्त उपागम।
प्रकार्यात्मक उपागम (functional approach)- लैंगाकर आदि विद्वानों द्वारा प्रयुक्त उपागम।
लैंगाकर ने सर्वप्रथम ‘Space grammar’ (1982) पुस्तक प्रकाशित की। इसके बाद Foundations of Cognitive Grammar, Volume 1, Theoretical Prerequisites. (1987)-  Stanford: Stanford University Press. तथा ‘Foundations of Cognitive Grammar, Volume 2, Descriptive Application. (1991)  Stanford: Stanford University Press. प्रकाशित की।
अतः प्रजनक व्याकरण के बाद संज्ञानात्मक व्याकरण की बात होने लगी। लैंगाकर संज्ञान की क्षमताओं और संकल्पना को केंद्र में रखते हैं। चॉम्स्की वाक्य-व्यवस्था (syntax) को केंद्र में रखते हैं। संज्ञान के दौरान संकल्पनात्मक संरचनाओं के अंतर्गत मन में चीजें संग्रहित हो जाती हैं। भाषा उनकी अभिव्यक्ति के लिए वाक्य और ध्वनि की व्यवस्था प्रदान करती है। सुनने में इसके विपरीत प्रक्रिया होती है। अतः चॉम्स्की में अर्थ की भूमिका व्याख्यायक है, जबकि लैंगाकर में आधार (base) है।
संकल्पनात्मक संरचनाओं के निर्माण के उपकरण
एक सबसे बड़ा उपकरण रूपक (metaphor) या लक्षणा की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में किसी अज्ञात वस्तु को ज्ञात वस्तु के आधार पर समझने का प्रयास किया जाता है। इंद्रिय अनुभव हमारे सबसे गहरे अनुभव हैं। भाववाचक संज्ञाओं पर हम उनका आरोपण करते हैं, जैसे-
जलना एक भौतिक अनुभूति है, किंतु जब हम कहते हैं- दिल जलना तो जलने की अनुभूति का अमूर्त रूप में आरोपण है। इसी प्रकार से विभिन्न प्रकार की विशेषताओं, लक्षणों और क्रियाओं को अमूर्त संदर्भ में विस्तारित किया जाता है।

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