व्याकरणिक प्रतिदर्श (Grammatical Model) : विशेष व्याख्यान - प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
Sep 2019
मानव भाषाओं के विश्लेषण के लिए विकसित किए जाने वाले भाषा
सिद्धांत व्याकरणिक प्रतिदर्श कहलाते हैं। भाषा विश्लेषण और उसके अनुप्रयोग के लिए
भाषा सिद्धांत की आवश्यकता पड़ती है। किसी भी भाषा सिद्धांत का प्राथमिक कार्य यह
बताना है कि भाषा क्या है? एक भाषा के लिए अनेक सिद्धांत विकसित किए
जाते हैं या हो सकते हैं। वर्तमान में हम देख सकते हैं कि अनेक भाषा सिद्धांत
उपलब्ध हैं। इनके बावजूद अभी भी नए सिद्धांत की गुंजाइश बनी हुई है। अभी तक भाषा
का स्वरूप किसी भी सिद्धांत के माध्यम से पूर्णतः स्पष्ट नहीं हो सका है। इसी कारण
एक ही सिद्धांत के कई रूप भी देखने को मिलते हैं, जैसे- चॉम्स्की का रूपांतरण प्रजनक व्याकरण (TGG)।
इनके कई रूपों के विकसित होने का कारण यह है कि हम कोई भी चीज समग्र रूप में नहीं
देख पाते। एक बार में हमें उस चीज का एक ही हिस्सा दिखाई पड़ता है। अतः यहां हमें
भाषा की परिभाषा देखनी होगी।
उससे पहले थोड़ा यह विचार किया जा सकता है कि ‘परिभाषा’
किसे कहते हैं? किसी वस्तु को शब्दों की परिधि में बाँधना परिभाषा है यहाँ
परिधि में बाँधते हुए ध्यान रखा जाता है कि परिधि के अंदर दूसरी चीजें ना आ जाएँ।
यदि दूसरी चीजें आती हैं, तो वह अतिव्याप्ति का दोष कहलाता है। इसी
प्रकार परिधि में पूरी वस्तु आ जाए। यदि पूरी वस्तु नहीं आ पाती है,
तो परिभाषा में अव्यक्ति का दोष कहलाता है। अतः परिभाषा सटीक और पूर्ण होनी आवश्यक
है।
भाषा सिद्धांत का चयन
भाषिक सिद्धांत अपने-अपने व्याकरणिक प्रतिदर्श प्रस्तुत
करते हैं। अतः हमें एक से अधिक भाषा सिद्धांत अथवा एक से अधिक व्याकरणिक प्रतिदर्श
प्राप्त होते हैं। अतः उन्हें देखकर सही या गलत का मामला नहीं होता या हम यह भी
नहीं कह सकते कि कौन सा सिद्धांत अधिक सही है और कौन सा सिद्धांत कम सही है।
विभिन्न भाषा सिद्धांत भाषा के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हैं। उनका उद्देश्य
भाषा और अ-भाषा (language and non-language) के बीच अंतर करना होता है,
जो भाषाशास्त्र या भाषाविज्ञान का मूल कार्य है।
व्याकरणिक प्रतिदर्श या भाषा सिद्धांत की आवश्यकता हमें
किसी भाषा के विश्लेषण अथवा शोध हेतु पड़ती है। जब हम एक नया शोध करने चलते हैं,
तो हमें किसी न किसी भाषा सिद्धांत का चयन करना होता है। चयन करते समय हमें यह
ध्यान रखना होता है कि कौन सा सिद्धांत शोध कार्य के अनुकूल होगा। उदाहरण के लिए
हम यहाँ कुछ भाषा सिद्धांतों को इस प्रकार देख सकते हैं-
संरचनावादी भाषा सिद्धांत - भाषा के ऐतिहासिक विश्लेषण या कालक्रमिक
अध्ययन से हटकर एककालिक स्वरूप के अध्ययन की ओर आना भाषा का संरचनावादी सिद्धांत कहलाया,
जिसके प्रणेता एफ.डी. सस्यूर हैं। संरचनावादी भाषा सिद्धांत के अनुसार-
भाषा एक संरचना है। (language
is a structure)
उन्होंने भाषा के बारे में कहा कि भाषा स्वसमाहित (स्वायत्त)
स्तरबद्ध इकाइयों के अंतःसंबंधों की व्यवस्था है, जिसके प्रत्येक इकाई का मूल्य अन्य इकाइयों
की व्यवस्था पर निर्भर करता है। इसमें तीन बातें ध्यान देने लायक हैं-
·
भाषा
व्यवस्था की इकाइयाँ स्वायत्त होती हैं।
·
भाषा
की इकाइयाँ स्तरबद्ध होती हैं, जिसमें निचले स्तर की इकाई ऊपरी इकाई का अंग
बन जाती है।
संरचनावादी सिद्धांत के दो रूप हैं-
यूरोपीय संरचनावाद-
इस संरचनावाद के प्रणेता सस्यूर हैं। यहाँ पर ध्वनि,
रूप,
शब्द,
पद,
पदबंध,
वाक्य आदि स्तरों की बात की गई। किंतु रूप स्तर तक ही काम किया गया। दूसरे शब्दों
में कहें तो इस सिद्धांत का फोकस शब्द तक रहा। अर्थ को भी यहाँ स्थान दिया गया है।
अमेरिकी संरचनावाद-
इसके प्रणेता लियोनार्ड ब्लूमफील्ड हैं। यहाँ भी ध्वनि से
लेकर वाक्य तक चर्चा की गई है, किंतु अर्थ की कोई बात नहीं की गई है। यह
भाषा विश्लेषण का व्यवहारवादी उपागम है। व्यवहारवादी सिद्धांत मन की संकल्पना नहीं
मानता,
इसलिए भाषा के संदर्भ में यह सिद्धांत ‘रूप’ (form) पर केंद्रित रहा है। इस दृष्टि से देखा जाए
तो भाषा का सबसे छोटा रूप ‘रूपिम’ (morpheme) है और ‘वाक्य’
(sentence) सबसे बड़ा रूप है। रूपिम
स्तर के अंतर्गत स्वनिम व्यतिरेक (contrast) के बिंदु हैं और वे आपस में विन्यासक्रमी
संबंध में रहते हैं। इकाइयों का क्रम इस प्रकार है-
स्वन, रूप, शब्द, पदबंध, वाक्य।
यह सिद्धांत इन इकाइयों की स्थापना और खोज की विधियाँ
प्रदान करता है। विविध प्रकार की विधियों का प्रतिपादन लियोनार्ड ब्लूमफील्ड और
उनके अनुयायियों द्वारा किया गया है।
चॉम्स्की और प्रजनक व्याकरण-
यह व्याकरण भाषा के संदर्भ में नियम को केंद्र में रखता है
और भाषा को परिभाषित करते हुए कहता है-
भाषा नियम शासित गतिविधि है। (language is a rule governed activity)
अतः इसके पहले
संरचना की बात की जाती रही, किंतु यहाँ चॉम्स्की उसके नियमों की बात करते
हैं। उनके अनुसार व्याकरण नियमों की व्यवस्था है। अभिव्यक्ति और बोधन दोनों के लिए
भाषा में नियमबद्धता आवश्यक है। इकाइयों की संबद्धता नियमों द्वारा शासित होती है।
इसी क्रम में कुछ अन्य व्याकरण, जैसे- टैगमिमिक्स (Tagmemics)
आदि दिए गए। टैगमिमिक्स का प्रतिपादन के. एल. पाइक द्वारा
किया गया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक Language in
Relations to a Unified Theory of Human Behavior (1967) है। Tagmemics में विश्लेषण की मूल इकाई ‘Tagmeme’
है। यह स्लॉट और भरक के संबंधों का नाम है-
स्लॉट + भरक = टैग्मीम
जैसे-
उद्देश्य विधेय (स्लॉट)
लड़का आया
(भरक)
संज्ञा क्रिया (शब्द वर्ग)
कई टैग्मीम मिलकर सिनटैग्मीम की रचना करते हैं।
प्रकार्यवादी
सिद्धांत
प्रकार्यवादी सिद्धांत यह मानता है कि भाषा प्रकार्य के
लिए बनी है। भाषा का मूल प्रकार्य यह है कि हम अपने भावों,
विचारों, अनुभवों को दूसरों के साथ संप्रेषित कर सकें। अतः प्रकार्य
के अनुसार ही संरचना होती है। इस संदर्भ में हैलिडे द्वारा व्यवस्थापक प्रकार्यात्मक
व्याकरण (systemic functional
grammar) प्रतिपादित किया गया। इसमें
तीन प्रकार के प्रकार्यों की बात की गई है-
अनुभवात्मक प्रकार्य (Ideational function)- इसके अनुसार भाषा के माध्यम से व्यक्ति अपने अनुभवों की
अभिव्यक्ति करता है, अथवा उन्हें साझा करता है।
अंतरवैयक्तिक प्रकार्य (Interpersonal function)- यहाँ
पर भाषा और वक्ता के बीच समाज आ जाता है। सामाजिक विभेद,
जैसे- आयु, शिक्षा, पद आदि भाषाई प्रयोग पर प्रभाव डालते हैं।
इनके अनुरूप ही वक्ता भाषा रूप का निर्माण करता है।
पाठात्मक प्रकार्य (Textual function)- इसके माध्यम से अनुभवात्मक और अंतरवैयक्तिक
प्रकार्य संभव हो पाते हैं। इसमें ‘अर्थ’ सबसे ऊपर होता है,
फिर वाक्य होता है तथा इस प्रकार क्रमशः ध्वनि पर जाते हैं।
प्रकार्यात्मक भाषा विज्ञान के अंतर्गत ही रोमन याकोब्सन द्वारा
संप्रेषण के घटकों को केंद्र में रखते हुए भाषा के 06 प्रकार्यों की बात की गई है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि हैलिडे और रोमन याकोब्सन अलग-अलग संप्रदायों से संबंधित
हैं।
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