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Wednesday, September 25, 2019

भाषा और लिपि (Language and Script)


भाषा और लिपि (Language and Script)
भाषा का मूल रूप वाचिक (बोला गया रूप) है। इसे मानव सभ्यता के विकास की दृष्टि से इस प्रकार समझ सकते हैं कि आदिकाल में जब लोगों ने संगठित होकर रहना आरंभ किया होगा, तो उन्होंने आपसी संप्रेषण के लिए कुछ ध्वनि प्रतीकों का प्रयोग किया होगा। इनमें ध्वनि प्रतीक और हाथों या अन्य अंगों के संकेत दोनों मिश्रित रहे, किंतु कालांतर में धीरे-धीरे ध्वनि प्रतीकों की संख्या बढ़ते हुए एक व्यवस्था का विकास हुआ। इसमें तात्कालिक इच्छाओं (भूख, प्यास, निद्रा, भय, शत्रु, आक्रमण आदि) के संकेतों से आगे बढ़ते हुए स्मरण, योजना, प्रयोजन, विचार आदि विस्तृत कार्यों का समावेश हुआ। इन सभी के लिए कुछ ध्वनि-समूह निर्मित हुए और इन ध्वनि-समूहों का धीरे-धीरे एक निश्चित क्रम निकल पड़ा। इन ध्वनि-समूहों को शब्द और उनके क्रमपूर्ण प्रयोग वाक्य कहा गया तथा इनके निर्धारक नियमों की व्यवस्था को भाषा का नाम दिया गया।
भाषा में बढ़ती शब्दों तथा वाक्यों की संख्या और संप्रेषण क्षमता के विकास के कारण सूचनाओं को संगृहीत करने की आवश्यकता को जन्म दिया। वाचिक रूप में भाषिक सामग्री को लंबे समय तक रखना अथवा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर प्रयोग करना संभव नहीं था, क्योंकि वाचिक भाषा में कही गई बात तो बोलने के तुरंत बाद ध्वनि तरंगों के रूप में वायुमंडल में विलीन हो जाती है। इसी कारण ध्वनि प्रतीकों के लिए कुछ ऐसे चिह्नों का विकास किया गया, जिन्हें पत्तों, मिट्टी, पत्थर आदि चाक, चूना आदि माध्यमों से उकेरा जा सके। इस प्रकार धीरे-धीरे भाषा का लिखित रूप विकसित हुआ।
लिखित रूप में प्रयुक्त होने वाले चिह्नों का संकलन लिपि (script) है। किसी भी भाषा में भाषायी सामग्री के विकास अथवा संचय के लिए उसके लिखित रूप का होना आवश्यक है। किसी भाषा को भाषा का दर्जा देने के लिए उसमें लिखित सामग्री की उपलब्धता एक बड़ा पैमाना है। इसके बावजूद लेखन भाषा के वाचिक रूप का अनुकरण मात्र है। आज भी हजारों की संख्या में आदिवासी भाषाएँ हैं, जिनकी कोई लिपि नहीं है।
भाषा और लिपि में संबंध
·       लिपि भाषा का अनुकरण है। भाषा में हम जैसा बोलते हैं, लिपि के माध्यम से वैसा ही लिखने का प्रयास किया जाता है।
·       लिखित और मौखिक दोनों रूपों में शब्द और वाक्य सीमाओं की पहचान की जा सकती है।
·       प्रायः लिपियों में संबंधित भाषा के सभी ध्वनि प्रतीकों के लिए लिपि चिह्न देने का प्रयास किया जाता है। ऐसा नहीं होने पर भी लिपि चिह्नों के संयोजन और कुछ अन्य प्रतीकों का प्रयोग करके लिखित रूप को मौखिक रूप का प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाता है।
·       समय के साथ भाषा और लिपि दोनों का स्वरूप बदलता रहता है।
भाषा और लिपि में अंतर
·       भाषा और लिपि दो अलग-अलग स्वतंत्र व्यवस्थाएँ हैं।
·       लिपि के बिना भी भाषा का व्यवहार होता रहता है। भाषा के बिना लिपि का व्यवहार संभव नहीं है।
·       एक ही भाषा की सामग्री को अलग-अलग लिपियों में लिखा जा सकता है, जैसे हिंदी का वाक्य विभिन्न लिपियों में-
मोहन जाता है।                                   (देवनागरी लिपि)
Mohan jata hai                               (रोमन लिपि)
মোহন জাতা হৈ                        (बंगाली लिपि)
ಮೋಹನ ಜಾತಾ ಹೈ                  (कन्नड़ लिपि)
மோஹந ஜாதா ஹை              (तमिल लिपि)
మోహన జాతా హై                         (तेलुगु लिपि)
මෝහන ජාතා හෛ                      (सिंहली लिपि)
·       इसी प्रकार एक ही लिपि में अनेक भाषाओं की सामग्री लिखी जा सकती है, जैसे- देवनागरी लिपि में कुछ भाषाओं के वाक्य-
मोहन घर जा रहा है।                            (हिंदी वाक्य)
मोहन इज गोइंग टू होम.                        (अंग्रेजी वाक्य)
मोहन घरी जात आहे.                          (मराठी वाक्य)
मोहन घरे जात बा।                              (भोजपुरी वाक्य)
मोहनः गृहम् गच्छति।                           (संस्कृत वाक्य)



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