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Friday, September 24, 2021

संज्ञान और मन (Cognition and Mind)

 संज्ञान और मन (Cognition and Mind)

मानव मस्तिष्क की प्रक्रियाओं से निर्मित अमूर्त इकाई को सामूहिक रूप से मननाम दिया गया है। इसे कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम की तरह समझ सकते हैं, जिसे देखा तो नहीं जा सकता है किंतु यही संपूर्ण शरीर के सभी अंगों को परस्पर संबद्ध करके रखता है सभी प्रकार के कार्यों के संपन्न करने का माध्यम या स्रोत होता है।

संज्ञान की दृष्टि से मनकी स्थिति पर विचार किया जाता है कि क्या मन और संज्ञान दो भिन्न-भिन्न इकाइयाँ हैं या एक ही इकाई के दो रूप या दो नाम है?

इसी प्रकार मन और संज्ञान और चेतना(Consciousness) से भी जोड़कर देखा जाता है और यह जानने का प्रयास किया जाता है कि ये दोनों इकाइयाँ चेतना से किस प्रकार से संबद्ध हैं। चेतना के निम्नलिखित मुख्य पक्षों की बात की जाती है-

·       स्वयं और दूसरे के अस्तित्व का बोध

·       बाह्य परिवेश (समय और स्थान) का बोध

·       इच्छा और क्रिया

इस क्रम में बुद्धि (intelligence) दृष्टि से भी मन और संज्ञान पर विचार भी एक महत्वपूर्ण पक्ष है, जो वर्तमान में तकनीकी अनुप्रयोग की दृष्टि से कृत्रिम बुद्धि (AI) के क्षेत्र में गंभीर विचार का विषय हो चुका है। इस दिशा में कार्य कर रहे सभी विद्वानों द्वारा इसके विविध पक्षों पर सूक्ष्म कार्य किया जा रहा है।

संज्ञान और मन के संदर्भ में शरीर

शरीर किसी भी प्राणी से संबद्ध वह भौतिक वस्तु है, जिसका पदार्थ के रूप में अस्तित्व होता है और विभिन्न अंगों के माध्यम से गठित होता है। इसी शरीर में भौतिक रूप से मस्तिष्क नामक इकाई होती है जो न्यूरानों द्वारा निर्मित होती है और जिसमें सभी प्रकार की मन और संज्ञान संबंधी गतिविधियाँ संचालित होती हैं। अतः मन और संज्ञान की स्थिति को शरीर के संदर्भ में भी देखा जाता है। पदार्थ और रूप की दृष्टि से कुछ विद्वानों के लिए यह विवाद का विषय रहा है कि मन की सत्ता भौतिक है या अमूर्त। यदि मन की सत्ता है तो क्या यह शरीर के अंदर रहता है या केवल शरीर से संबद्ध रहता है?

इस संबंध में पश्चिम में एक बड़ी अवधारणा प्रचलित रही है जिसे द्वैतवाद (Dualism) कहते हैं। इस धारा के अनुसार मन और शरीर दो भिन्न-भिन्न पदार्थों से बनी हुई चीजें हैं। इस धारा के विद्वानों में प्रमुख नाम देकार्ते का है। मस्तिष्क की स्थिति को समझाते हुए देकार्ते कहते हैं -

The brain is the seat of the body-mind interaction.

द्वैतवाद की धारा में यह विचार का विषय रहा है कि मन और शरीर आपस में अंतरक्रिया किस प्रकार से करते हैं?

द्वैतवाद के सापेक्ष एकलवादी दृष्टि (Monism) भी उल्लेखनीय है, जिसके दो भेद  किए जाते हैं-

 पदार्थवाद (Materialism) : यह धारा यह मानती है कि संपूर्ण ब्रह्मांड में केवल पदार्थ का ही अस्तित्व है शरीर मस्तिष्क मन आदि भी पदार्थ के रूप में ही हैं।

 विचारवाद (Idealism) :  यह धारा केवल मन की सत्ता पर भरोसा करती है। विचारधारा के प्रमुख विचारक Gottfried Leibniz अनुसार प्रत्येक वस्तु में एक मन होता है, पदार्थ से लेकर प्राणियों तक में इसके विभिन्न स्तर देखे जा सकते हैं|उनके इन विचारों को panpsychism  कहा गया है। इस क्रम में जॉर्ज बर्कले (G. Berkeley) के विचार भी देखे जा सकते हैं जिन्होंने कहा है कि हम जो भी जानते हैं वह केवल हमारी धारणा (perception) है। अतः ब्रह्मांड में उपस्थित चीजें केवल हमारे मानसिक बोध हैं।

वर्तमान में विचारवाद का विकास क्वांटम विचारवाद (quantum idealism) के रूप में भी हुआ है, जो यह मानता है कि वास्तविकता (reality) को हम समझ नहीं सकते। हमारे लिए वास्तविकता वही है जो हम देख पाते हैं या जिसका बोधन कर पाते हैं।

 इसी प्रकार त्रयवाद (Trialism)  की अवधारणा भी देखी जा सकती है।  इस संबंध में Karl Popper & John Eccles (1977) और Rudy Rucker (1982)  के विचार देखे जा सकते हैं।

मनोविज्ञान में मन की अवधारणा के संबंध में व्यवहारवाद और मनोवाद नामक दो धाराएं अत्यंत प्रचलित रही हैं। व्यवहारवाद (Behaviourism) के सबसे बड़े विद्वान जेबी वाटसन माने जाते हैं। उन्होंने मन की अवधारणा को अवैज्ञानिक बताया है और कहा है कि किसी भी प्राणी के समस्त व्यवहार को उद्दीपन-अनुक्रिया (stimulus-response) संबंधों के माध्यम से दर्शाया जा सकता है। भाषाविज्ञान के क्षेत्र में ब्लूमफील्ड व्यवहारवाद के प्रबल समर्थक रहे हैं।

मनोवाद (Mentalism) के समर्थक विद्वान मन की अवधारणा को स्वीकार करते हैं और वे यह मानते हैं कि शरीर की समस्त प्रक्रियाएँ मन द्वारा संचालित या नियंत्रित होती हैं।

इसी प्रकार प्रकार्यवाद (Functionalism) की एक धारा भी देखी जा सकती है जो यह मानती है कि मानव मन की विभिन्न स्थितियां विभिन्न प्रकार्यों से संबद्ध होती हैं। शनगढ़ की दृष्टि से इस धारा का विकास संगणकीय प्रकार्यवाद के रूप में भी हुआ है।

इस क्रम में संज्ञान संबंधी चिंतकों द्वारा संज्ञानवाद (Cognitivism) की बात की जाती है इन चिंतकों में मिलर (George Miller), ब्रॉडबेंट (Donald Broadbent) आदि का नाम उल्लेखनीय है।

 और पढ़ें- 

 संज्ञान और मन

संदर्भ-

https://www.slideshare.net/scaruffi/tat1-47012477

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