शैलीवैज्ञानिक आलोचना की प्रकृति (Nature of Stylistic Criticism)
शैलीवैज्ञानिक आलोचना के संदर्भ में दो बातें
उल्लेखनीय हैं-
(1) शैलीवैज्ञानिक आलोचना का चिंतन
भाषावादी है। अर्थात यह भाषा को केंद्र में रखकर चलने वाली प्रणाली है।
(2) इसकी विश्लेषण प्रणाली वस्तुनिष्ठ
और वस्तुवादी है।
भाषा और साहित्य के संदर्भ में और दो बातें इस
दिशा में महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें इसी सूची के साथ
देखा जा सकता है-
(3) साहित्य भाषिक कला है।
इस संदर्भ में शैलीविज्ञान यह मानकर
चलता है कि -
(4) साहित्य कृति कला प्रतीक है।
उपर्युक्त चारों बिंदुओं में से हम
अपनी चर्चा का आरंभ इस बात से करेंगे कि ‘साहित्यिक
कृति कला प्रतीक है’। शैलीवैज्ञानिक आलोचना के संदर्भ में इस
दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ‘प्रतीक क्या है?’ सस्यूर आदि के अनुसार प्रतीक ‘अभिव्यक्ति और कथ्य
की समन्वित इकाई’ है। इकाई कहने का अर्थ यह है कि दोनों को
मिलाकर बनने वाली यह एक ही चीज है। सस्यूर ने इसे ‘sign’ कहा
है| सिक्के की तरह इस के दो पहलू होते हैं- अभिव्यक्ति – संकेतक (signifier) और कथ्य – संकेतिक (signified) इनका संबंध इस प्रकार है-
संकेतक à संकेत à संकेतित
(signifier) à (sign)
à (signified)
इस प्रकार किसी कला को ‘प्रतीक’ कहने का अर्थ है कि वह रचना अभिव्यक्त और
कथ्य की समन्वित इकाई है। समन्वित इकाई कहने का अभिप्राय यह है कि अभिव्यक्ति और
कथ्य दोनों का अस्तित्व एक दूसरे पर टिका है। अर्थात दोनों एक दूसरे के बिना हो ही
नहीं सकते। अतः एक ओर कथ्य को अपने आप को यथार्थ तक पहुंचाने के लिए अभिव्यक्ति का
होना जरूरी है, तो दूसरी और अभिव्यक्ति भी कथ्य को रूपाइत
करती है। उदाहरण के लिए- पानी माँगने पर कोई ‘गिलास में पानी’ लेकर आता है। इसमें पानी के साथ गिलास का आना एक पक्ष है, और दूसरी ओर पानी अपने पात्र का ही आकार ग्रहण कर लेता है, यह उसका दूसरा पक्ष है। इसमें उपयोगिता पानी (कथ्य) की है, किंतु गिलास (पात्र) के बिना पानी लाना संभव नहीं है और वह कथ्य को
रूपाकार भी दे रहा है।
अर्थबोध को भी शब्द प्रभावित करता है, जैसे- ‘कमल’ कहने पर किस
प्रकार का कमल? यह प्रश्न हमारे मन में हो सकता है। लाल, पीला, नीला, मुरझाया, खिला आदि प्रकार की उसकी विशेषताओं का ‘कमल’ शब्द से बोध नहीं होता। अतः कमल शब्द इतनी व्यापक संकल्पना है कि यह
अकेले सभी प्रकार के कमल के फूलों का बोध करा देता है। अतः कमल शब्द का अर्थ कमल
(lotus) विशेष नहीं है, बल्कि यह कमलत्व
(lotusness) का बोध कराता
है।
दूसरी ओर रूप (अभिव्यक्ति) भी कथ्य को अपनी तरफ
से रुपाइत या प्रभावित करती है। पेड़ बाह्य संसार में कहीं नहीं है, केवल उसके उदाहरण मिलते हैं। इस प्रकार पेड़ एक सामान्य विचार
(general concept) है यह सामान्यीकरण (generalization) भाषा करती है।
इसी प्रकार साहित्य कथ्य और अभिव्यक्ति का
समन्वित रूप अर्थात ‘कला प्रतीक’ है। इस कारण शैलीविज्ञान साहित्य में न तो ‘रूप से
विलग कथ्य’ (detachable content) और न
ही ‘कथ्य से असंपृक्त रूप’ (disengageable form) को देखता है। ये दोनों स्थितियाँ कला नहीं हैं।
इन्हें थोड़ा विस्तार में इस प्रकार
से देखते हैं-
(क) रूप से विलग कथ्य (Detachable
Content)
कुछ आलोचना प्रणालियाँ कथ्य को अलग
करके केवल रूप पर ध्यान केंद्रित करती हैं। इस प्रकार की दृष्टि को ‘रूपवादी आलोचना’ कहा गया है। इसके पीछे ‘कला का कला के लिए’ (art for art’s sake) की दृष्टि
दिखाई पड़ती या काम करती है।
इसमें यह देखते हैं कि रूप क्या है? अथवा अभिव्यक्ति कितनी सुंदर है? उदाहरण के लिए
हिंदी साहित्य के रीतिकालीन काव्य में रूप पक्ष पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है।
जिसमें केवल रूप पर ध्यान दिया गया हो, उसे पूर्ण कलात्मक रचना नहीं कह सकते। यह एकपक्षीय है, जो कथ्य निरपेक्ष रूप है। यह सिर्फ चमत्कार पैदा करने की बात करता है।
(ख) कथ्य से असंपृक्त रूप
(disengageable form)
ऐसी आलोचना प्रणाली जिसमें केवल कथ्य पर ध्यान
दिया गया हो, अथवा जिसमें केवल कथ्य को ध्यान में
रखा जाता हो, इसके अंतर्गत आती है। इस प्रकार की आलोचना
प्रणाली के पीछे ‘कला उपयोग के लिए’ (art
for use) की दृष्टि काम करती है। इस प्रकार की प्रणाली भी एकपक्षीय
है, जो साहित्यिक समीक्षा के लिए उपयुक्त नहीं है।
इस प्रकार उपरोक्त दोनों ही प्रकार की आलोचना
प्रणालियाँ साहित्येतर आलोचना प्रणालियाँ हैं। सही अर्थों में साहित्य की आलोचना
प्रणाली अभिव्यक्ति और कथ्य को संपृक्त या संलग्न अर्थों में देखती है।
शैलीवैज्ञानिक आलोचना
शैलीवैज्ञानिक आलोचना इसी प्रकार अभिव्यक्ति और
कथ्य के समन्वित प्रतीक के रूप में साहित्य की आलोचना करती है। इसके अनुसार ‘रूप आरोपित नहीं होना चाहिए, हर कथ्य अपना रूप लेकर
रचना में आता है।’
रूस की एक समीक्षा प्रणाली रूसी रूपवादी आलोचना (Russian
Formalism) रही है। रूपवाद में रूप की विचित्रता का रूपण/ विरूपण
किया जाता है, जैसे- व्यंग्य चित्र (distortness) कला का एक रूप distortion है।
समाजशास्त्रीय आलोचना के अंतर्गत मार्क्सवादी
समीक्षा में ध्यान कथ्य पर होता है। इसके पास एक वैज्ञानिक समीक्षा प्रणाली होती
है, जिसके अनुसार सामाजिक संबंधों की व्यवस्था आर्थी/ अर्थ क्षेत्रीय उत्पादन
और उत्पादक के संबंधों पर आधारित होती है।
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