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Saturday, September 18, 2021

शैली (Style)

 शैली (Style)

 शैली को अलग-अलग विद्वानों ने विभिन्न दृष्टिकोण से अलग अलग ढंग से परिभाषित किया है। अतः शैली की स्थिति दार्शनिकों के ब्रह्म की तरह विवादास्पद है। इनमें से कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार से देख सकते हैं-

 चेस्टरफील्ड के अनुसार-

“शैली विचार का आभरण (पहनावा) है।”

 अर्थात शैली अलंकार का पर्याय है। भारतीय अलंकारशास्त्र में अलंकार को काव्य की आत्मा कहा गया है। शैली को आभरण कहने का अर्थ है कि विचार मूल तत्व है और शैली उसके ऊपर एक बाह्य तत्व है-

स्पेंसर के अनुसार -

“शैली विचार एवं अंतर्दृष्टि है।”

अर्थात शैली आभ्यंतर कथ्य की विशेषता है।

बूफो के अनुसार -

“शैली ही व्यक्तित्व है।”

(Style is the person itself.)

अर्थात शैली हमें अन्य से अलग करती है। हमारी पहचान शैली ही है।

शॉपेन्हॉर्न के अनुसार-

“शैली मस्तिष्क की वह मुखाकृति है। जो चेहरे से अधिक व्यक्ति की आंतरिक प्रकृति का प्रामाणिक परिचय प्रदान करती है।”

मरे (Murry) के अनुसार-

“शैली संपूर्ण साहित्यिक सौंदर्य का पर्याय है।”

इस परिभाषा को साहित्य केंद्रित बनाया गया है। साहित्य की संपूर्ण कला ही शैली है।

 स्विफ्ट के अनुसार-

“ उचित क्रम में उचित शब्दों का प्रयोग ही शैली है।”

(Proper words in proper order.)

यह परिभाषा अत्यंत लोकप्रिय रही है।

‘Style’ के निकट का भारतीय पारंपरिक शब्द रीति है। इसी कारण विद्यानिवास मिश्र ने अपनी पुस्तक का नाम रीतिविज्ञान (पुस्तक का लिंक- https://lgandlt.blogspot.com/2018/05/blog-post_1.html)  रखा है। भारतीय साहित्यकार भी इस प्रश्न से जूझते रहे हैं कि साहित्य की साहित्यिकता (काव्य की आत्मा) क्या है?

 रीति संप्रदाय के आचार्य वामन के अनुसार- “रीतिरात्मा काव्यस्य।”

( अर्थात काव्य की आत्मा रीति है।) वे आगे भी कहते हैं- “विशिष्ट पद रचना रीतिः।”

भारत में वक्रोक्ति, रीति अलंकार, रस आदि को शैली कहा गया है।

 उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि शैली भाषा को साहित्य से जोड़ने वाला तत्व है। इस संदर्भ में शैली सहेतुक भाषिक अभिव्यक्ति है। इसमें साहित्य से अभिप्राय कारण या सोदेश्यता से है। यह शैली का एक पक्ष है।

 शैली का दूसरा पक्ष है- “शैली साहित्य को कला से जोड़ने वाला तत्व है।” इस संदर्भ में कहा जा सकता है- “शैली कलात्मक सौंदर्य की अभिव्यंजक भाषिक संरचना है।” अर्थात ऐसी संरचना जो भाषिक सौंदर्य को अभिव्यक्त करती है। इसका कारण यह है कि विभिन्न प्रकार के संकेतित भावों/वस्तुओं को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा कई प्रकार के विकल्प देती है, जैसे- कमल शब्द के लिए सरोज, जलज, नीरज, अंबुज आदि कहा जा सकता है। जब कोई व्यक्ति सहेतुक रूप में किसी शब्द को चुनता है तो वहाँ उस शब्द के अर्थ में संकेतार्थ (denotation) के साथ-साथ संपृक्तार्थ (connotation) भी जुड़ जाता है, जैसे- पंकज या गुदड़ी के लाल का एक अर्थ यह भी है-

विपरीत परिस्थितियों से उभरकर कामयाब होने वाला व्यक्ति

इसी प्रकार नीरज शब्द का अर्थ  देख सकते हैं-

 नीरज = वह कमल जो पानी में रहकर भी पानी से अछूता रहता है।

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