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Monday, January 20, 2020

भाषा की अवधारणा


भाषा की अवधारणा
भाषा की परिभाषा देते हुए कहा जा सकता है-
भाषा यादृच्छिक ध्वनि-प्रतीकों की वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से मनुष्य विचार करता है तथा अपने भाषायी समाज में विचारों का आदान-प्रदान करता है।
इस परिभाषा में प्राप्त कुछ अवधारणात्मक शब्द इस प्रकार हैं-
·      यादृच्छिक– भाषिक इकाइयाँ (शब्द, वाक्य आदि) जो अर्थ अभिव्यक्त करती हैं, वह संबंधित मानव समाज की सामूहिक इच्छा से माना हुआ अर्थ होता है। उनके अपने अर्थ से कोई प्राकृतिक संबंध नहीं होता है।
·      ध्वनि-प्रतीक– भाषा में विचार करने या संप्रेषण करने के लिए मूलतः ध्वनि-प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। किसी भाषा विशेष में व्यवहृत होने वाली भाषायी ध्वनियों को स्वन और उनके ध्वनि-प्रतीकों को स्वनिम कहते हैं।
·      व्यवस्था– भाषा मूलतः एक व्यवस्था है, जिसमें स्वनिम से प्रोक्ति तक स्तर पाए जाते हैं।
·      मनुष्य – भाषाविज्ञान में प्रयुक्त भाषा शब्द का संबंध केवल मानव प्राणियों से है।
·      विचार करना– जब हम अकेले होते हैं तो भाषा का प्रयोग करते हुए मन-ही-मन विचार करते रहते हैं।
·     अपना भाषायी समाज– विश्व में हजारों भाषाएँ बोली जाती हैं। किसी भाषा को समझने वाले लोगों का समूह उस भाषा का भाषायी समाज है।
·      विचारों का आदान-प्रदान– एक भाषायी समाज के लोगों का एक-दूसरे के साथ विचारों को साझा करना।

भाषा की अवधारणा को संरचना की दृष्टि से भाषा के संदर्भ में इस प्रकार देख सकते हैं-
संरचना की दृष्टि से भाषा
भाषा ध्वनि प्रतीकों की ऐसी व्यवस्था है जिसमें निरर्थक ध्वनियों के माध्यम से अर्थ और विचार का संप्रेषण किया जाता है।
 संप्रेषण के लिए एक बार में कम-से-कम जिस ध्वनि-गुच्छ का प्रयोग किया जाता है, उसे वाक्य कहते हैं। 
ध्वनियों का समूहन 'वाक्य' के रूप में करने के लिए मानव मस्तिष्क को उनका संचयन और व्यवस्थापन कई क्रमशः बड़े स्तरों पर किया जाता है, जिन्हें भाषाविज्ञान में-
रूपिम, शब्द/पद, पदबंध और उपवाक्य += वाक्य
के रूप में विश्लेषित किया जाता है। 
एक से अधिक वाक्य आपस में मिलकर एक और बड़ी संगठित इकाई का निर्माण करते हैं, जिसे प्रोक्ति नाम दिया गया है। 
इन सभी इकाइयों और उन्हें गठित करने वाले नियमों को संरचना की दृष्टि से इस प्रकार से देखा जा सकता है-
                        

भाषा की परिभाषाएँ


भाषा की परिभाषाएँ
भाषा की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

हिंदी के विद्वानों के अनुसार-
(1) देवेंद्रनाथ शर्मा
जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते हैं उस यादृच्छिक रूढ़ ध्वनि-संकेत प्रणाली को भाषा कहते हैं।
भाषाविज्ञान की भूमिका, 1972
(2) भोलानाथ तिवारी
भाषा उच्चारण-अवयवों से उच्चरित मूलतः प्रायः यादृच्छिक (arbitrary) ध्वनि-प्रतीकों की वह व्यवस्था है, जिसके द्वारा किसी भाषा-समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।
भाषाविज्ञान, 1951
(3) बाबूराम सक्सेना
जिन ध्वनि चिह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है, उनको समष्टि रूप में भाषा कहते हैं।
सामान्य भाषाविज्ञान, 1953
(4) कामताप्रसाद गुरु
भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली-भाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकता है।
हिंदी व्याकरण, 1920

पश्चिमी विद्वानों के अनुसार
(1) Aristotle
Speech is the representation of the experience of the mind.
(2) F.D. Saussure
Language is an arbitrary system of signs constituted of the signifier and signified.
Course in General Linguistics, 1916
(3) Edward Sapir
Language is a purely human and non-instinctive method of communicating ideas, emotions, and desires by means of a system of voluntarily produced sounds.
Language. An introduction to the study of speech, 1921
(4) L. Bloomfield
The totality of the utterances that can be made in a speech community is the language of that speech community.
Language, 1933
(5) Bloch and Trager
A language is a system of arbitrary vocal sounds by means of a social group cooperates.
Outline of Linguistic Analysis,1942
(6) Noam Chomsky
A language is a set of (finite or infinite) sentences, each finite length and constructed out of a finite set of elements.
Syntactic Structures, 1957

Sunday, January 19, 2020

मानव मशीन अंतरक्रिया (Man Machine Interaction-MMI)


मानव मशीन अंतरक्रिया (Man Machine Interaction-MMI)
समय के साथ दिन-प्रति-दिन मनुष्य के दैनिक कामकाज में मशीनों की उपयोगिता बढ़ती जा रही है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे नित नए शोधों और अविष्कारों से मशीनों की क्षमता एवं गुणवता में निरंतर वृद्धि हो रही है। अभी तक सामान्य स्थिति यही है कि मानव साधक है और मशीन साधन है, किंतु तकनीकी जगत में हो रहे शोध धीरे-धीरे मानव और मशीन के बीच संबंधों को उस स्थान पर ले जा रहे हैं, जहाँ दोनों के बीच अंतरक्रिया भी की जा सके।
Association for Computing Machinery (ACM) ने मानव मशीन अंतरक्रिया को इस प्रकार परिभाषित किया है- "a discipline concerned with the design, evaluation and implementation of interactive computing systems for human use and with the study of major phenomena surrounding them".
Hewett; Baecker; Card; Carey; Gasen; Mantei; Perlman; Strong; Verplank. "ACM SIGCHI Curricula for Human–Computer Interaction". ACM SIGCHI. Archived from the original on 17 August 2014. Retrieved 15 July 2014.
मानव मशीन अंतरक्रिया के दो पक्ष हैं-
·       सामान्य प्रयोग की युक्तियों (devices), जैसे- steering wheel, automobile pedal और button आदि में मशीनों का नियंत्रण।
·       मानव कंप्यूटर अंतरक्रिया (Human–computer interaction)
इनमें से वर्तमान तकनीकी विकास का मुख्य संदर्भ मानव कंप्यूटर अंतरक्रिया (Human–computer interaction) का ही है। इसका उद्देश्य ऐसी कंप्यूटर तकनीकें विकसित करना है, जिनके माध्यम से मानव प्रयोक्ताओं और मशीनी अंतरापृष्ठ के बीच संवाद स्थापित हो सके।
कंप्यूटर के विकासक्रम में हम देख सकते हैं कि पहले Character User Interface-CUI के माध्यम से प्रयोक्ता कंप्यूटर के साथ अभिक्रिया करते थे। यह कंप्यूटर की उपयोगिता को न केवल सीमित कर देता था, बल्कि प्रयोक्ताओं के लिए निर्देशों (commands) को याद रखना भी कठिन काम था।
Graphical User Interface-GUI का विकास मानव कंप्यूटर अंतरक्रिया की दिशा में एक बड़ा कदम था। इससे कुछ शिक्षित आम आदमी द्वारा भी कंप्यूटर का परिचालन संभव हो सका और कंप्यूटर हमारे दैनिक जीवन में वह स्थान बना सका, जो आज है।
वर्तमान में शोधकर्ताओं द्वारा बड़े पैमाने पर Voice user interfaces (VUI) की दिशा में काम किया जा रहा है। इससे मशीनों को मानव भाषाओं में बोलकर आदेश दे पाना संभव हो सकेगा। अभी इस प्रकार की कुछ युक्तियाँ (devices), जैसे- एलेक्सा, गूगल असिस्टैंट आदि यह काम कर रही हैं, किंतु उनसे कुछ त्रुटियाँ होने की संभावना बनी रहती है। जिस गति से इस दिशा में शोध हो रहा है, यह निश्चित है कि शीघ्र ही Voice user interfaces (VUI) से युक्त कंप्यूटर युक्तियाँ हमारे दैनिक क्रियाकलापों की भागीदार होंगी।
मानव कंप्यूटर अंतरक्रिया (Human–computer interaction) का अंतिम लक्ष्य ऐसी रोबोटिक युक्तियाँ बनाना है जो मनुष्य के साथ सीधे-सीधे संवाद कर सकें। स्टीफेन हॉकिंस को Motor Neuron disease होने के बाद उनके द्वारा प्रयुक्त मशीन इसका अच्छा उदाहरण है।

Friday, January 17, 2020

भविष्य में मशीनें इंसानों की तरह बातें कर सकेंगी?

BBC विशेष...

भविष्य में मशीनें इंसानों की तरह बातें कर सकेंगी?

केकड़े और मानव
क्या कोई केकड़ा उसी तरह दर्द महसूस कर सकता है, जिस तरह हम इंसान करते हैं?
हमें ये तो पता है कि केकड़े और इंसान में वही सेंसर होते हैं, जो हमें तकलीफ़ का एहसास कराते हैं. इन्हें नोसिसेप्टर्स कहते हैं. केकड़ों को जब उबलते पानी में डाला जाता है, तो वो अपनी पूंछ यूं मरोड़ते हैं, मानो दर्द से बिलबिला उठे हों.
पर, सवाल ये है कि क्या वो गर्म पानी को महसूस कर पाते हैं? या फिर ये उन के शरीर की महज़ एक प्रतिक्रिया होती है, गर्म पानी में डाले जाने पर?
हम जब कोई काम करते हैं, तो हमारे ज़हन में चेतना का बहुत पेचीदा तजुर्बा होता है. लेकिन, हम ये नहीं मान सकते कि जानवर भी ऐसा ही महसूस करते हैं. भले ही उन के ज़हन हम से मिलते-जुलते क्यों न हों.
जैसे कि कोई कुत्ता. कुत्तों का दिमाग़ और शरीर इंसान के शरीर और ज़हन से काफ़ी मिलता है. वो भी हमारी तरह बाहरी दुनिया को देख-सुन सकते हैं. लेकिन उन में वही चेतना होती है, जो इंसान में होती है, ये कहना मुश्किल है.
जब भी वैज्ञानिक चेतना के बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो तमाम पहेलियां उठ खड़ी होती हैं. मसलन, क्या इंसानों जैसे दिमाग़ वाले जानवरों में भी जागरूकता होती है? इंसानों के अंदर जागरूकता कब पैदा होती है? हमें जैसा महसूस होता है, वैसा क्यों होता है? और, क्या भविष्य में कंप्यूटर भी हमारे ज़हन जैसी अंदरूनी ज़िंदगी का अनुभव हासिल कर सकेंगे?
लैब में तैयार होंगे मानव अंग
वैज्ञानिक जूलियो टोनोनी ने इन सवालों में से कई के जवाब तलाशने की कोशिश की है. उन्होंने इस के लिए 'इंटीग्रेटेड इनफ़ॉरमेशन थ्योरी' ईजाद की है. जिस का मतलब है कि हमारे ज़हन के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग तजुर्बे करते हैं. फिर वो अपनी अपनी जानकारी आपस में साझा करते हैं. इस से ही हमारे ज़हन में चेतना की बड़ी तस्वीर बनती है.
चेतना आख़िर है क्या? जूलियो टोनोनी का ये सिद्धांत इस सवाल के जवाब के साथ शुरू होता है.
केकड़े और मानव
टोनोनी कहते हैं कि कोई भी तजुर्बा हमें चेतना का एहसास कराता है, तो उस के कई पहलू होते हैं. वो कुछ ख़ास बिंदुओं पर भी ग़ौर करता है. और उन के बीच फ़र्क़ भी करता है. मसलन, आप किसी मेज़ पर कोई किताब रखी देखते हैं. उस किताब का रंग लाल है. और किताब के पास कॉफ़ी का एक कप भी रखा है. तो, हमारे दिमाग़ के अलग-अलग हिस्से इन अलग-अलग जानकारियों को प्रोसेस करते हैं. फिर ये सारी जानकारियां मिल कर एक बड़ी तस्वीर के तौर पर सामने आती हैं. जिस से हम जान पाते हैं कि सामने की मेज़ पर लाल रंग की एक किताब रखी है. और उस के बगल में कॉफी का एक कप भी रखा है.
ब्रिटिश लेखिका वर्जिनिया वूल्फ़ ने इसे 'अनगिनत परमाणुओं की लगातार बारिश' बताया था.
चेतना के इन सिद्धांत की मदद से जूलियो टोनोनी ये दावा करते हैं कि हम किसी इंसान, जानवर या कंप्यूटर की चेतना की गणना कर सकते हैं. और इस के लिए हमें ये समझना होगा कि उस के ज़हन के अलग-अलग हिस्सों में आने वाली जानकारी, आपस में किस तरह जुड़ती हैं.
वो कहते हैं कि हमारा दिमाग़ कंप्यूटर के सीपीयू यानी सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट की तरह होता है. हम इसे डिजिटल कैमरे की मिसाल से और बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. डिजिटल कैमरा रौशनी पड़ने पर हर पिक्सेल अलग पकड़ता है. फिर कैमरे के भीतर जा कर ये सारे पिक्सेल मिल कर एक मुकम्मल तस्वीर के तौर पर सामने आते हैं. यही काम हमारा दिमाग़ भी करता है. दिमाग़ के कुछ हिस्से रंग देखते हैं. तो कुछ आकार देखते हैं. कोई जगह को महसूस करता है, तो कोई वहां मौजूद चीज़ों में फ़र्क़ करता है. फिर वो सब मिल कर पूरी तस्वीर के तौर पर हमें दिखाई देते हैं.
यही बात हमारी याददाश्त पर भी लागू होती है. हमारी याददाश्त अलग अलग खानों में बंद अनुभव नहीं है. बल्कि तमाम अनुभवों का निचोड़ है. मसलन, जब हम जलेबी देखते हैं, तो उसे खाने का भी मन होता है. और कई बार हमें बचपन में खाई जलेबी का तजुर्बा भी याद आ जाता है.
जूलियो टोनोनी के इस दावे की पुष्टि के लिए तमाम सबूतों की ज़रूरत होती है. जो फ़िलहाल नहीं हैं.
अमरीका की कैलिफ़ोर्निया बर्कले यूनिवर्सिटी के डेनियल टोकर कहते हैं कि तमाम जानकारियों का एकीकरण ही हमारी चेतना है, ये सहज ज्ञान की बात है. लेकिन, इसे मज़बूती देने के लिए और सबूतों की ज़रूरत है. टोकर ये ज़रूर मानते हैं कि ये रिसर्च सही दिखा में जा रही है. वो कहते हैं कि जूलियो टोनोनी की थ्योरी भले आगे चल कर सही न निकले. मगर ये हमें इंसानों और दूसरे जीवों ही नहीं, मशीनों की चेतना को समझने में भी मदद करेगी.
केकड़े और मानव
अगर ये सिद्धांत हमें ये बता देता है कि किसी केकड़े को भी दर्द होता है, तो इस के दूरगामी नतीजे होंगे. जानवरों के अधिकारों के लिए लड़ने वालों के पास अपनी बात रखने के लिए और मज़बूत तर्क होंगे.
इस की मदद से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से जुड़े कई सवालों के जवाब भी तलाशे जा सकते हैं. मसलन, क्या मशीनें आगे चल कर इंसानों की तरह सोच-समझ सकेंगी? बातें कर सकेंगी? हालांकि, टोनोनी का कहना है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस वाली मशीनों की जो संरचना अभी हमारे सामने है, उस की बुनियाद पर वो ये कह सकते हैं कि मशीनें, इंसानों की तरह की अंदरूनी ज़िंदगी के अनुभव कभी नहीं कर सकेंगी.
उस की वजह टोनोनी ये बताते हैं कि मशीनों की गणना की क्षमता नहीं, बल्कि ऊपरी बनावट इस के लिए ज़िम्मेदार है. इसलिए हम कभी इस नैतिक दुविधा में नहीं पड़ेंगे कि मशीनें, इंसानों से ज़्यादा जागरूक और चैतन्य हो जाएंगी.
हां, आगे चल कर अगर टोनोनी का सिद्धांत सही साबित होता है, तो हम ये समझ सकेंगे कि हम आपस में कैसे बात करते हैं. अमरीका के मशहूर मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में थॉमस मलोन ने इस सिद्धांत को कई लोगों पर एक साथ लागू किया. उन्होंने देखा कि अक्सर समूह में काम करने वाले लोगों में सामूहिक चेतना जागृत होती है. वो एक जैसे सोचने लगते हैं. एक सा महसूस करते हैं. एक तरह से फ़ैसले करते हैं और किन्हीं परिस्थितियों में एक जैसी प्रतिक्रियाएं भी देते हैं.
केकड़े और मानव
हालांकि, थॉमस मलोन सावधान करते हैं कि अभी ये प्रयोग शुरुआती दौर में है. इस पर और रिसर्च की ज़रूरत है.
फिलहाल, तो हम यक़ीन के साथ ये नहीं कह सकते कि केकड़े को गर्म पानी में डालने पर उसे भयंकर तकलीफ़ का एहसास होता है. हम ये भी नहीं कह सकते कि किसी समाज या कंप्यूटर में सामूहिक चेतना का एहसास होता है या नहीं. लेकिन, हो सकता है कि भविष्य में जूलियो टोनोनी के सिद्धांत से हमें इन सवालों के जवाब मिल सकें.