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Thursday, November 11, 2021

हिंदी की दुर्दशा

 प्रश्न संख्या 96 और 98 इस बात के उदाहरण हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं में कितने बड़े-बड़े मूर्खों को हिंदी के प्रश्नपत्र बनाने को दिए जाते हैं-


संदर्भ-

शीघ्र ही देता हूँ...

Saturday, October 30, 2021

विभेदक अभिलक्षण (Distinctive Features)

 विभेदक अभिलक्षण (Distinctive Features)

विभेदक  = भेद उत्पन्न करने वाला

विभेदक का शाब्दिक अर्थ है- भेद उत्पन्न करने वाला। किसी भाषा की ध्वनि व्यवस्था में दो ध्वनियों में भेद उत्पन्न करने वाले अभिलक्षणों को विभेदक अभिलक्षण कहते हैं। भेद उत्पन्न करने से यहाँ तात्पर्य है कि उस अभिलक्षण के साथ जुड़कर बनने वाली दूसरी ध्वनि में अर्थभेद की क्षमता हो।

अर्थभेद की क्षमता का अर्थ है- नई ध्वनि से निर्मित शब्द का पुरानी ध्वनि से निर्मित शब्द के अर्थ से अलग अर्थ हो।

उदाहरण-

ध्वनि + अभिलक्षण      = नई ध्वनि

    + प्राणत्व   = 

  + घोषत्व               = ग

अब इन ध्वनियों से बनने वाले शब्दों को देखते हैं-

क से = कल, काल ; ख से खल, खाल

क से = कल, काल ; ग से गल, गाल

इनमें खल, खाल अथवा गल, गाल शब्दों के अर्थ कल, काल शब्दों के अर्थ से भिन्न हैं। अतः प्राणत्व और घोषत्व विभेदक अभिलक्षण हैं।

Saturday, October 23, 2021

मेटावर्स :.BBC Hindi

 

इंटरनेट का भविष्य बताए जाने वाला 'मेटावर्स' आख़िर है क्या?

मेटावर्स, वर्चुअल रियलिटी (वीआर) का ही सुधरा हुआ रूप है.

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

फ़ेसबुक ने हाल में घोषणा की है कि 'मेटावर्स' का विकास करने के लिए वो यूरोप में 10,000 लोगों को बहाल करेगी.

मेटावर्स एक कॉन्सेप्ट है, जिसे कई लोग 'इंटरनेट का भविष्य' भी बता रहे हैं. लेकिन ये वास्तव में है क्या?

मेटावर्स आख़िर है क्या?

बाहरी लोगों को लग सकता है कि मेटावर्स, वर्चुअल रियलिटी (वीआर) का ही सुधरा हुआ रूप है. हालांकि कई लोग इसे इंटरनेट का भविष्य तक मानते हैं.

वास्तव में, कई लोगों को लगता है कि वीआर के लिहाज से मेटावर्स वही तकनीक साबित हो सकती है, जैसा अस्सी के दशक वाले भद्दे फोन की तुलना में आधुनिक स्मार्टफोन साबित हुआ है।

मेटावर्स में सभी प्रकार के डिजिटल वातावरण को जोड़ने वाले 'वर्चुअल वर्ल्ड' में दाख़िल होने के लिए कंप्यूटर की जगह केवल हेडसेट का उपयोग किया जा सकता है.

पर इस वर्चुअल वर्ल्ड का उपयोग व्यावहारिक तौर पर किसी भी काम के लिए हो सकता है. जैसे- काम, खेल, संगीत कार्यक्रम, सिनेमा या बाहर घूमने के लिए.

अधिकांश लोग सोचते हैं कि मेटावर्स का मतलब ये होगा कि हमारे पास स्वयं का प्रति​निधित्व करने वाला एक 3डी अवतार होगा.

पर मेटावर्स अभी तक सिर्फ़ एक विचार है. इसलिए इसकी कोई एक सहमत परिभाषा नहीं है.

फेसबुक की तकनीक.

इमेज स्रोत,REUTERS

अचानक यह बड़ी चीज क्यों बन गई?

डिजिटल वर्ल्ड और ऑगमेंटेड रियलिटी यानी एआर (सच्ची दुनिया को दिखाने वाली उन्नत डिजिटल तकनीक) को लेकर हर कुछ सालों में काफी प्रचार होता है, लेकिन कुछ समय बाद यह ख़त्म हो जाता है.

हालांकि, धनी निवेशकों और बड़ी टेक कंपनियों के बीच मेटावर्स को लेकर बहुत उत्साह है.

और कोई भी यह सोचकर पीछे नहीं रहना चाहता कि कहीं यह इंटरनेट का भविष्य न बन जाए.

वीआर गेमिंग और कनेक्टिविटी में पर्याप्त तरक्की हो जाने से अब ये महसूस हो रहा है कि प्रौद्योगिकी पहली बार वहां पहुंची है, जहां इसके होने की ख़्वाहिश थी.

पूरा पढ़ें-

https://www.bbc.com/hindi/science-58957004

मारथा विनयार्ड और न्यूयार्क शहरों का अध्ययन : लेबॉव

मारथा विनयार्ड और न्यूयार्क शहरों का अध्ययन : लेबॉव

लेबॉव को समाजभाषाविज्ञान के आधुनिक जनक के रूप में देखा जाता है। उनका उद्देश्य भाषा को एकरूप व्यवस्था (homogeneity) में देखने के बजाय उसके वैविध्य को सामने लाना था। इस क्रम में उन्होंने मारथा विनयार्ड शहर का सबसे पहले अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने विभिन्न सामाजिक संदर्भों में इस शहर के भाषायी प्रयोगों का विस्तृत विश्लेषण किया था। मारथा विनयार्ड शहर न्यू-इंग्लैंड के पास है, जहाँ से यूरोपीय लोग ज्यादा आते रहे हैं। इस शहर के निवासियों को मूलतः तीन भागों में बांटा जा सकता है- अंग्रेज यांकी, भारतीय और पुर्तगाली लोग (English Yankee settlers, aboriginal Indians and recent Portuguese settlers)। भाषायी व्यवहार की दृष्टि से यह शहर विविधताओं से युक्त है, क्योंकि इसमें भिन्न-भिन्न देशों के लोग रही हैं और यहाँ पर्यटन के लिए भी लोगों का आना-जाना लगा रहता है। इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए 1961 में लेबॉव ने यहाँ के लोगों के भाषा व्यवहार का अध्ययन किया और उनके भाषाई व्यवहार में परिवर्तन संबंधी अनेक महत्वपूर्ण बिंदु प्रस्तुत किए।

इसी प्रकार लेबॉव ने न्यूयॉर्क शहर का भी अध्ययन किया। 1966 ई. में लेबाव द्वारा किया गया यह अध्ययन समाजभाषाविज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान का एक स्तंभ है। इस अध्ययन में लेबॉव की परिकल्पना इस प्रकार देखी जा सकती है-

 “If any two subgroups of New York City speakers are ranked in a scale of social stratification, then they will be ranked in the same order by their differential use of (r)” (Labov, 1972:44)

इस परिकल्पना के निर्माण के लिए युवाओं ने पहले कई सारे साक्षात्कार भी किए थे और उनके आधार पर उन्होंने  अपना अध्ययन प्रस्तावित किया बाद में उन्होंने अपनी परिकल्पना को इस प्रकार से परिवर्तित भी किया था-

“Salespeople in the highest ranked store will have the highest values of (r); those in the middle ranked store will have intermediate values of (r); and those in the lowest ranked store will show the lowest values”. (Labov, 1966:65)

इसके लिए उन्होंने शहर के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के सूचकों के माध्यम से सूचनाओं का विस्तृत संग्रह किया और उसके आधार पर निष्कर्ष भी दिए जिन्हें http://www.maria-juchem.de/Labov.PDF पर ‘Case Study Martha’s Vineyard and New York’ में संक्षेप में अंग्रेजी में देखा जा सकता है।

संदर्भ-

§  Labov, William. The Social Stratification of English in New York City. Washington, DC: Center for Applied Linguistics. 1966

§  Labov, William. Sociolinguistic Patterns. Philadelphia: University of Pennsylvania Press. 1972