न्यूरोभाषाविज्ञान मानव मस्तिष्क के उन
न्यूरॉन तंत्रों (neural mechanisms) का अध्ययन करता है जो भाषा के बोध (comprehension), अर्जन (acquisition) और उत्पादन
(production) को नियंत्रित करते हैं। मानव मस्तिष्क मनुष्य के
भाषा-ज्ञान और भाषा-व्यवहार दोनों का आधार
है। न्यूरॉन मानव मस्तिष्क की वे कोशिकाएँ हैं जिनमें ज्ञान एवं सूचना का संचयन और
संसाधन होता है। न्यूरॉन तंत्र के का कार्य न्यूरोविज्ञान (Neurology) में किया जाता है। यह मुख्यत: चिकित्साविज्ञान का एक क्षेत्र है जो मानव मस्तिष्क
में न्यूरॉनों के प्रकार्य, प्रणाली आदि में अनियमितताओं का अध्ययन
करता है। इसी क्रम में न्यूरोभाषाविज्ञान एक नया उपक्षेत्र है जो मानव मस्तिष्क के
भाषा संसाधन वाले पक्ष का अध्ययन विश्लेषण करता है। इसमें मानव मस्तिष्क में होने वाली
भाषा संबंधी अनियमितताओं के विश्लेषण एवं उनके उपचार से संबंधित कार्य किया जाता है।
इस संबंध में प्रो. शशिभूषण ‘शितांशु’
(2012) ने इसे तंत्रिका भाषाविज्ञान नाम देते हुए अपनी पुस्तक ‘अद्यतन भाषाविज्ञान’ में कहा है, “तंत्रिका भाषाविज्ञान, भाषाविज्ञान का एक नव्यतम प्रकार
है। वस्तुत: यह भाषारोगविज्ञान से संबंधित भाषाविज्ञान है। वहाँ रोग-विषयक भाषावैज्ञानिक
अभिगम (एप्रोच) की बात होती है, जहाँ भाषा-विकार होता है या उससे
उत्पन्न भाषिक रुग्णता सामने आती है। वहाँ यह अभिगम भाषा-विकारों का उपचार करता है।”
इसके मूल अध्ययन क्षेत्र को परिभाषित करते हुए ‘विकिपेडिया’ में कहा गया है – “Neurolinguistics is the study of the neural mechanisms
in the human brain that control the comprehension, production, and acquisition
of language.”
न्यूरोभाषाविज्ञान कई दूसरे विज्ञानों से
जुड़ा हुआ है। एक अंतरानुशासनिक ज्ञानक्षेत्र (interdisciplinary discipline) के रूप में यह
कई दूसरे ज्ञानक्षेत्रों से अपने आप को संबंधित करते हुए अपनी पद्धति (methodology) और सिद्धांत (theory) का विकास करता है। कई क्षेत्रों
से संबंधित होने के कारण इस विषय में शोधकर्ताओं द्वारा विविध प्रायोगिक तकनीकों (Variety
of experimental techniques) का प्रयोग किया जाता है। इसमें उन्हें कई
पृष्ठभूमियों का लाभ प्राप्त होता है। न्यूरोभाषाविज्ञान में अधिकांश कार्य मनोभाषाविज्ञान
और सैद्धांतिक भाषविज्ञान से प्राप्त मॉडलों के आधार पर हुआ है। इसमें मुख्य फोकस इस
बात का परीक्षण करने में होता है कि मनोभाषाविज्ञान द्वारा प्रस्तावित भाषा के बोधन
और उत्पादन से संबंधित प्रक्रियाओं का मस्तिष्क द्वारा कैसे अनुप्रयोग (implementation) किया जाता है। न्यूरॉन मानव मस्तिष्क की क्रियाओं (activities) के कारक होते हैं। न्यूरोभाषाविज्ञान उन शरीरक्रियात्मक तंत्रों (physiological
mechanisms) का अध्ययन करता है जिनके द्वारा मस्तिष्क भाषा से संबंधित
सूचनाओं को संसाधित करता है। इसके साथ ही यह भाषावैज्ञानिक और मनोभाषावैज्ञानिक सिद्धांतों
का aphasiology, brain imaging, electrophysiology, और computer modeling के आधार पर परीक्षण करता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से न्यूरोभाषाविज्ञान का
मूल ‘अफेजियाविज्ञान’ (aphasiology) में है जो मस्तिष्क क्षति (brain
damage) से उत्पन्न भाषिक व्याधियों का अध्ययन है। 19 वीं सदी में सर्वप्रथम
पॉल ब्रोका (Paul Broca) ने भाषा संसाधन से संबंधित विशेष मस्तिष्क
क्षेत्र (particular brain area) को चिह्नित किया। इसे उनके ही
नाम पर ‘ब्रोका क्षेत्र’ के नाम से जाना
गया। इसके बाद कार्ल वारनिके (Carl Wernicke) ने एक दूसरे क्षेत्र
को चिह्नित किया जिसे ‘वारनिके क्षेत्र’ नाम दिया गया। ब्रोका क्षेत्र वाक् उत्पादन (speech production) से संबंधित है। मानव मस्तिष्क के चित्र में ये क्षेत्र इस प्रकार प्राप्त
होते हैं:-
इसके बाद किए गए कार्यों में कॉर्बिनियन
ब्राडमैन (Korbinian
Brodman) का कार्य महत्वपूर्ण है जिन्होंने मस्तिष्क के सतह (surface
of brain) का संख्यात्मक क्षेत्रों (numbered areas) में विभाजन करते हुए मापन किया। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र अपनी कोशिकीय-रचना
(cytoarchitecture/cell structure) और प्रकार्य (fuction) पर आधारित है। इन क्षेत्रों को ब्राडमैन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
इनका न्यूरोभाषाविज्ञान में विस्तृत रूप से प्रयोग किया गया है। आधुनिक समय में ‘न्यूरोभाषाविज्ञान’ (neurolinguistics) शब्द को हैरी व्हिटेकर (Harry Whitaker) से जोड़कर देखा
जाता है जिन्होंने ‘journal of neurolinguistics’ को 1985 में
स्थापित किया।
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