अभिहितान्वयवाद-अन्विताभिधानवाद
— अन्विताभिधानवाद
— अभिहितान्वयवाद
— ‘पद’ - मूल घटक
— ‘वाक्य’ - पदों का समूह
— प्रवर्तक - आचार्य कुमारिल
— पद के अलावा वाक्य का कोई महत्व नहीं है।
— ‘अभिहितानां पदार्थानाम् अन्वयः’।
— (पद अपने अर्थ को कहते हैं और वाक्य में उनका अन्वय हो जाता है।
इस अन्वय से ही वाक्य का अर्थ अर्थात वाक्यार्थ व्यक्त होता है।)
— ‘वाक्य’ - मूल घटक
— वाक्य को तोड़ने पर ही अलग-अलग पदों का अर्थ प्रात होता है।
— प्रवर्तक - आचार्य प्रभाकर हैं (कुमारिल भट्ट के ही शिष्य)।
— ‘अन्वितानां पदार्थानां अभिधानाम्’।
— (वाक्य में पदों के अर्थ समन्वित रूप से विद्यमान रहते हैं।
उनके अलग-अलग अर्थ को समझने के लिए वाक्य को तोड़ा जाता है।)
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