व्यतिरेकी विश्लेषण दो भाषाओं के बीच संरचना के स्तर पर पाए
जाने वाली असमानता और समानता को तुलना के माध्यम से खोजने की प्रक्रिया है। यह
समानता और असमानता को खोजने का कार्य भाषा के सभी स्तरों पर किया जाता है, जिनमें 'स्वनिम से
लेकर वाक्य'
तक के स्तरों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। इसके साथ 'ध्वनि' और 'अर्थ' के स्तर पर भी
देखा जाता है। इसे निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं-
भाषा एक (L1) भाषा दो (L2)
व्यतिरेकी विश्लेषण का कार्य भाषा के सभी स्तरों पर किया
जाता/ जा सकता है। दोनों भाषाओं के बीच जिस स्तर पर व्यतिरेक प्राप्त होता है, उसी के अनुरूप शिक्षण बिंदु तैयार किए जाते हैं। उदाहरण के
लिए शब्द संरचना में भिन्नता प्राप्त होने पर उसके लिए विशेष पाठ बिंदुओं का चयन
किया जाएगा। इसे एक भाषा के उदाहरण से समझने का प्रयास करें तो संस्कृत या उससे
निकली हुई आधुनिक भारतीय भाषाओं, जैसे- हिंदी
में 'संधि' होती है जबकि
पश्चिमी भाषाओं में संधि नहीं होती। अतः 'संस्कृत' या उससे निकली
हुई आधुनिक भारतीय भाषाओं, जैसे- हिंदी
आदि का यूरोपीय देशों में शिक्षण करने पर संधि के लिए विशेष शिक्षण पाठ तैयार करने
होंगे।
व्यतिरेकी विश्लेषण के विद्वानों (राबर्ट लेडो) का इस
संदर्भ में कथन है कि यदि शिक्षण की जाने वाली भाषा और शिक्षार्थी की मातृभाषा के
बीच संरचनागत समानता है तो उसे सीखने में सरलता होती है, जबकि भिन्नता होने पर उसे कठिनाई हो सकती है।
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