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Thursday, August 20, 2020

2O Open Access Journals

 For academicians, researchers, here a collection of 2O Open Access Journals 

1.Taylor & Francis 

https://www.tandfonline.com/openaccess

2. ElSEVIER 

https://www.elsevier.com/about/open-science/open-access/open-access-journals

3.WILEY 

https://authorservices.wiley.com/open-research/open-access/index.html

4. SPRINGER 

https://www.springeropen.com/

5. SCIENCE OPEN 

https://www.scienceopen.com/

6. SCIENCE DIRECT 

https://www.sciencedirect.com/browse/journals-and-books

7. JSTOR

https://about.jstor.org/oa-and-free/

8. (OAL)OPEN ACCESS LIBRARY 

http://www.oalib.com/

9. OXFORD ACADEMIC 

https://academic.oup.com/journals/pages/open_access

10. LUND UNIVERSITY LIBRARIES 

https://www.lub.lu.se/en/services-support/publishing-registering/open-access

11. KARGER

https://www.karger.com/OpenAccess

12. THIEME OPEN 

https://open.thieme.com/web/19/home

13. OMNICS OPEN ACCESS

https://www.omicsonline.org/

14. BMC

https://www.biomedcentral.com/

15. MDPI 

https://www.mdpi.com/about/journals

16. COGENT OA 

https://www.cogentoa.com/

17. OPEN ACCESS

https://www.omicsonline.org/

18. ERUDIT 

https://www.erudit.org/en/

19. HIGHWIRE 

https://www.highwirepress.com/

20. DIRECTORY OF OPEN SCIENCE ARTICLES

https://www.doaj.org/

 


अष्टाध्यायी के सूत्रों की महाभाष्य में व्याख्या

  

अष्टाधायी के चतुर्थ अध्याय का आरंभ
महाभाष्य में सूत्रों व्याख्या का एक नमूना...




संस्कृत की पुस्तकों को डाउनलोड करने हेतु लिंक

 

संस्कृत की पुस्तकों को डाउनलोड करने हेतु लिंक-






अष्टाध्यायी (ई-बुक लिंक)

 

ई-बुक डाउनलोड करने हेतु लिंक-

https://ia801601.us.archive.org/9/items/in.ernet.dli.2015.322486/2015.322486.-1897.pdf

Monday, August 17, 2020

शब्द और पद

 शब्द और पद

(1) पद की अवधारणा

पद मुख्यतः संस्कृत व्याकरण परंपरा से आया हुआ अवधारणात्मक शब्द है| संस्कृत में पद को परिभाषित करते हुए कहा गया है-

सुप्तिङत पदम्।

 अर्थात सुप् और तिंङ् प्रत्ययों के योग से बनने वाला ध्वनि समूह पद होता है। इस परिभाषा को समझने के लिए हमें संस्कृत में शब्दऔर पदके मूल रूपऔर उसकी निर्माण प्रक्रिया को थोड़ा-सा समझना होगा- संस्कृत में शब्दों के जो वर्ग किए जाते हैं- उनमें मूल शब्द मुख्यतः धातु या प्रातिपदिकके रुप में आते हैं। ये मूल शब्द (धातु या प्रातिपदिक) सीधे-सीधे वाक्य में प्रयुक्त नहीं हो सकते। जब इनका प्रयोग वाक्य में होता है तो प्रतिपदिक, जिसमें संज्ञा, सर्वनाम और विशेषणशब्द आते हैं, के साथ सुप् प्रत्यय जुड़ जाते हैं और धातु के साथ तिङ् प्रत्यय जुड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए रामशब्द के साथ सुप् प्रत्यय जुड़ेंगे, तो इस शब्द के रूप कुछ इस तरह से बनेंगे-

विभक्ति               एकवचन           द्विवचन             बहुवचन

प्रथमा                   रामः                  रामौ                  रामाः

द्वितीया                 रामम्                 रामौ                  रामान्

तृतीया                  रामेण                 रामाभ्याम्           रामैः

चतुर्थी                  रामाय                रामाभ्याम्           रामेभ्यः

पंचमी                   रामात्                रामाभ्याम्           रामेभ्यः

षष्ठी                     रामस्य               रामयोः               रामाणाम्

सप्तमी                   रामे                   रामयोः               रामेषु

संबोधन                हे राम!               हे रामौ!              हे रामाः!

इसी प्रकार गम्धातु के साथ तिङ प्रत्ययों के जुड़ने पर उनके रूप इस प्रकार से बनते हैं-

संस्कृत में शब्द इसी प्रकार प्रत्ययों के साथ जुड़कर विभिन्न रूपों में ही वाक्य में प्रयोग में आते हैं और पद कहलाते हैं।

 (2) शब्द और पद में संबंध तथा अंतर

शब्द भाषा की वह केंद्रीय इकाई है, जो स्वतंत्र रूप से अर्थ को धारण करती है। भाषा की तीन मूलभूत इकाइयाँ हैं- ध्वनि, शब्द और वाक्य। इनमें वाक्यभाषाई संप्रेषण का आधार होता है। जब हम किसी से कोई बात कहते हैं तो कम से कम एक वाक्य का प्रयोग करते हैं। उस वाक्य के माध्यम से कम से कम एक सूचना श्रोता तक पहुंचती है और वह उसके हिसाब से प्रतिक्रिया देता है, अर्थात काम करता है या उत्तर देता है।

शब्दों से वाक्य बनते हैं। भारतीय परंपरा में शब्द के समानांतर ही एक और अवधारणा पद दी गई है। इसलिए जब हम हिंदी व्याकरण अथवा भाषाविज्ञान से संबंधित हिंदी पुस्तकें पढ़ते हैं, तो हमें कहीं शब्दों का समुच्चय वाक्य होता हैलिखा हुआ मिलता है तो कहीं पदों का समुच्चय वाक्य होता हैलिखा हुआ मिलता है। ऐसी स्थिति में कई बार भ्रम बना रहता है कि शब्दऔर पदएक ही हैं या इन दोनों में कुछ अंतर है? इसे समझने के लिए शब्द/ पदकी यहां संक्षिप्त व्याख्या की जा रही है।

 शब्दको भाषा की मूलभूत कोशीय इकाई कहा गया है। अर्थात शब्द का संग्रह शब्दकोशों में किया जाता है- जिसमें एक ओर शब्द होता है और दूसरी ओर उसका अर्थ होता है। यह बात हमारे मानसिक शब्दकोश (mental lexicon) पर भी लागू होती है। मानसिक शब्दकोश से तात्पर्य हमारे मन मस्तिष्क में स्थित उस इकाई से है, जिसमें एक और ध्वनियों के अमूर्त प्रतीक रहते हैं और दूसरी ओर उनसे संबंधित अर्थ के मानसिक प्रतीक अमूर्त रूप में स्थापित रहते हैं। इस इकाई को मानसिक कोश कहते हैं। यही चीज व्यापक स्तर पर कागज में प्रिंट करते हुए जब प्रस्तुत की जाती है तो वह शब्दकोश कहलाता है।

अतः शब्द की स्थिति इस प्रकार से प्राप्त होती है-

                           शब्द

ध्वनि समूह                     अर्थ

 शब्द ही जब वाक्य में प्रयुक्त होते हैं तो पदबन जाते हैं। उनमें उनके अर्थ के अलावा व्याकरणिक कोटियों से संबंधित सूचनाएं भी जुड़ जाती हैं, जिनके माध्यम से वे वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ अपना संबंध स्थापित करते हैं। पद के रूप में शब्दों का प्रयोग दो तरह से होता है-

(1) उनके मूलभूत को कोशीय रूप में, और

(2) उनके रूपांतरित रूप में

कोशीय रूप वह रूप है, जो शब्दकोश में दिखाई पड़ता है। इसे हम शब्द का मूलभूत रूप भी कह सकते हैं। यह मूलभूत रूप रूप-परिवर्तन की दृष्टि से कहा जाएगा, जैसे-

लड़का बाजार जाता है

इस वाक्य में लड़का, बाजार और हैतीन शब्द ऐसे हैं जिनको हम कोशीय रूप में कहेंगे। ये शब्द पद भी है और अपनी मूलभूत रूप में भी हैं। अतः पद में शब्द का कोशीय रूप भी आता है।

इसके अलावा रूपांतरित रूपभी आता है, जैसे-

लड़के घरों से बाहर निकल रहे हैं

इसमें लड़के, घरों, निकल, रहे, हैं’ - ये सारे शब्द रूपांतरित रूप हैं।  पिछले वाक्य में आए हुए लड़का, बाजार, हैशब्द कोशीय रूप में होते हुए भी पदहैं, क्योंकि वे वाक्य में चुके हैं और वर्तमान वाक्य में उनके ये रूपांतरित रूप भी पदहैं।

अतः स्पष्ट है कि रूप रचना की दृष्टि से कोशीय रूप में आया हुआ शब्द भी पद हो सकता है, किंतु शर्त यह है कि वह वाक्य में प्रयुक्त हुआ हो; उसके अलावा शब्द का रूपांतरित रूप भी पदहोता है क्योंकि वह व्याकरणिक कोटियां के हिसाब से परिवर्तित होकर के वाक्य में आया हुआ रहता है।

अंग्रेजी में दोनों के लिए ‘word’ शब्द ही है।

(3) भाषा और साहित्य में पद की अवधारणाओं में अंतर

 पद शब्द का प्रयोग हमें भाषा और साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए साहित्य के छेत्र में आपने कभी मीरा के पद, सूर के पद, तुलसी के पदआदि शब्दों का प्रयोग सुना होगा। अतः यहां पर ध्यान रखने वाली बात है कि यह पद भाषाविज्ञान अथवा व्याकरण में प्रयुक्त होने वाले पद शब्द की अवधारणा से अलग है। यहां पर पद शब्द से तात्पर्य विशेष प्रकार के छंद से है, जबकि भाषाविज्ञान तथा व्याकरण में पद शब्द का तात्पर्य वाक्य में आए हुए शब्दों से है।

(4)  पद और पदबंध

भाषाविज्ञान में हमें पद के अलावा पदबंधशब्द की भी अवधारणा मिलती है। पदबंध को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि एक पद अथवा एक से अधिक पदबंधों का वह समूह, जो वाक्य में कोई एक ही प्रकार्य (function) संपन्न करता है, पदबंध कहलाता है। अतः पदबंध एक पद का भी हो सकता है और एक से अधिक पदों का भी हो सकता है। पदबंध पद से बड़ी इकाई है, जो वाक्य में कोई एक ही प्रकार्य संपन्न करता है। प्रकार्य का से तात्पर्य यहाँ पर कर्ता, कर्म, करण, आदि तथा संबंधवाची और पूरक आदि संबंधों से है।