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मध्य प्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई अब हिन्दी में भी की जा सकेगी. साथ ही मध्य प्रदेश देश का वो पहला राज्य होगा जहाँ हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई करवाई जाएगी.
हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई करवाने का मक़सद क्या है? ये कैसे करवाया जाएगा?
इसके जवाब में प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग बताते हैं, "इसका मक़सद पढ़ाई को ग्रामीण क्षेत्रों और हिन्दी मीडियम से पढ़ने आने वाले छात्रों के लिए आसान बनाना है."
वह कहते हैं कि यह किसी भी तरह से अंग्रेज़ी में मेडिकल पढ़ाई का विकल्प नहीं है बल्कि छात्रों को एक ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना है, जिससे वो आसानी से विषय के बारे में समझ सकें.
विश्वास सारंग ने ही इस पूरे प्रोजक्ट की रूप रेखा तैयार की है. उन्होंने बताया कि इसकी शुरुआत उन्होंने फ़रवरी में एक मीटिंग करके की. पहले तो डॉक्टरों और शिक्षकों को इसे लेकर संदेह था लेकिन लगातार बैठक के बाद सभी इस प्रोजेक्ट के लिए जुट गए.
इस प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले एमबीबीएस के प्रथम वर्ष के तीन विषयों एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री की किताबों को हिन्दी माध्यम में किया गया है. लेकिन धीरे-धीरे इसे आगे के वर्षों के लिए भी लागू किया जाएगा.
तकनीकी शब्दों में नहीं किया गया बदलाव
जब विश्वास सारंग पूछा गया कि कहीं इससे ये न हो कि हिंदी विषय में पढ़ने वाले छात्रों अंग्रेज़ी वालों से पिछड़ जाएं तो उन्होंने बताया, "ऐसा मुमकिन ही नहीं है. क्योंकि तकनीकी शब्दों को नहीं बदला गया है. बस उसे देवनागरी में लिखा गया है ताकि छात्र उसे आसानी से पढ़, समझ सकें."
उन्होंने कुछ उदाहरण देते हुए बताया कि, "जैसे स्पाइनल कॉर्ड को देवनागरी में 'स्पाइनल कॉर्ड' लिखा गया है, उसे मेरूदंड नहीं लिखा गया है. तो कोशिश यही है कि छात्र विषय को अपनी भाषा में आसानी से समझ सकें. उसके साथ ही अंग्रेज़ी में भी लिखा होगा तो उसे समझने में आसानी होगी."
इस पूरे प्रयोग को मध्य प्रदेश सरकार देश में पहला प्रयोग बता रही है. वहीं उनका मानना है कि इससे दूसरे प्रदेशों में वहाँ की स्थानीय भाषाओं में भी बदलने का रास्ता खुलेगा.
इस पूरे प्रोजक्ट के लिए भोपाल के सरकारी गांधी मेडिकल कॉलेज में एक वॉर रूम स्थापित किया गया है. इसका नाम मंदार रखा गया, जहाँ पर प्रदेश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के 97 डॉक्टर्स ने इस काम को अंजाम दिया है.
प्रोजेक्ट पर काम करने वाले डॉक्टरों का क्या है कहना?
वहीं इस विषय को तैयार करने वालें एक डॉक्टर दीपक शर्मा ने बताया कि यह काम चुनौतीपूर्ण था.
उन्होंने कहा, "इसे आसान काम तो नहीं कहा जा सकता है. कोशिश यही रही कि जो भी तकनीकी शब्द हैं, उनके साथ छेड़छाड़ न किया जाए और जो भी बदलाव किए जाएं वो पढ़ने वालों को आसानी से समझ आ जाएं."
डॉक्टर दीपक शर्मा ने कहा कि इस काम के लिए महीनों से वे और उनके साथी लगे रहे तब जाकर अब ये किताबें तैयार हो पाई हैं.
वहीं एक अन्य डॉक्टर रश्मि दवे शर्मा ने भी कहा कि काम तो मुश्किल था लेकिन अब जबकि इसकी शुरुआत हो गई है तो ये काम अब आगे ही बढ़ता जाएगा.
उन्होंने बताया, "तकनीकी शब्दों को नहीं बदला गया है. अगर उसे बदलते तो निश्चित तौर पर छात्रों को दिक्क़त आती. लेकिन इसमें सिर्फ़ उन्हें देवनागरी में लिखा गया है, जिसकी वजह से उन्हें समझने में आसानी होगी."
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https://www.bbc.com/hindi/india-63256348
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