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Wednesday, July 31, 2024

व्यतिरेकी विश्लेषण क्या है? (What is Contrastive Analysis?)

 

व्यतिरेकी विश्लेषण वह कार्य है जिसमें दो भाषाओं की तुलना करते हुए उनके बीच प्राप्त होने वाली संरचनागत असमानताओं और समानताओं का विश्लेषण किया जाता है। इसका उद्देश्य भाषा शिक्षण अथवा अनुवाद संबंधी अनुप्रयोग होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एक भाषा का द्वितीय भाषा के रूप में अथवा विदेशी भाषा के रूप में शिक्षण करने के लिए उस भाषा (L1) और शिक्षार्थी की मातृभाषा (L2) की संरचना में पाई जाने वाली भिन्नता और समानता को खोजने की प्रक्रिया व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाती है।

ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो 1960 के दशक में अमेरिका में द्वितीय भाषा अर्जन (Second Language Acquisition-SLA) और शिक्षण के संदर्भ में व्यतिरेकी विश्लेषण का विकास हुआ था| इसकी संकल्पना रॉबर्ट लेडो (Robert Lado) द्वारा दी गई थी। उन्होंने इस विश्लेषण की आवश्यकता की ओर संकेत करते हुए Linguistics Across Cultures (1957) में कहा है-

"Those elements which are similar to [the learner's] native language will be simple for him, and those elements that are different will be difficult".

व्यतिरेकी विश्लेषण (Contrastive Analysis) की विधि

 

व्यतिरेकी विश्लेषण दो भाषाओं के बीच संरचना के स्तर पर पाए जाने वाली असमानता और समानता को तुलना के माध्यम से खोजने की प्रक्रिया है। यह समानता और असमानता को खोजने का कार्य भाषा के सभी स्तरों पर किया जाता है, जिनमें 'स्वनिम से लेकर वाक्य' तक के स्तरों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। इसके साथ 'ध्वनि' और 'अर्थ' के स्तर पर भी देखा जाता है। इसे निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं-

भाषा एक (L1)                    भाषा दो (L2)



इस विश्लेषण के माध्यम से यह जानने का प्रयास किया जाता है कि इनमें से प्रथम भाषा को द्वितीय भाषा के मातृभाषी को शिक्षण किया जाए तो उसे सीखने में किस प्रकार की समस्याएं आ सकती हैं और क्या वे समस्याएं दोनों भाषाओं के बीच प्राप्त संरचनागत समानता और असमानता के कारण हो रही हैं।

व्यतिरेकी विश्लेषण का कार्य भाषा के सभी स्तरों पर किया जाता/ जा सकता है। दोनों भाषाओं के बीच जिस स्तर पर व्यतिरेक प्राप्त होता है, उसी के अनुरूप शिक्षण बिंदु तैयार किए जाते हैं। उदाहरण के लिए शब्द संरचना में भिन्नता प्राप्त होने पर उसके लिए विशेष पाठ बिंदुओं का चयन किया जाएगा। इसे एक भाषा के उदाहरण से समझने का प्रयास करें तो संस्कृत या उससे निकली हुई आधुनिक भारतीय भाषाओं, जैसे- हिंदी में 'संधि' होती है जबकि पश्चिमी भाषाओं में संधि नहीं होती। अतः 'संस्कृत' या उससे निकली हुई आधुनिक भारतीय भाषाओं, जैसे- हिंदी आदि का यूरोपीय देशों में शिक्षण करने पर संधि के लिए विशेष शिक्षण पाठ तैयार करने होंगे।

व्यतिरेकी विश्लेषण के विद्वानों (राबर्ट लेडो) का इस संदर्भ में कथन है कि यदि शिक्षण की जाने वाली भाषा और शिक्षार्थी की मातृभाषा के बीच संरचनागत समानता है तो उसे सीखने में सरलता होती है, जबकि भिन्नता होने पर उसे कठिनाई हो सकती है।

व्यक्तिरेकी विश्लेषण (Contrastive Analysis) और व्यतिरेकी भाषाविज्ञान (Contrastive Linguistics)


1960 के दशक से ही व्यतिरेकी  विश्लेषण भाषा शिक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण भाषा विश्लेषण पद्धति के रूप में उभरकर सामने आया है। 'भाषा शिक्षण' भाषाविज्ञान का एक आधारभूत अनुपयुक्त क्षेत्र है। व्यतिरेकी विश्लेषण भाषा शिक्षण के लिए आधारभूत सैद्धांतिक सामग्री प्रदान करता है। ऐसी स्थिति में व्यतिरेकी विश्लेषण स्वतः ही भाषाविज्ञान की एक महत्वपूर्ण विश्लेषण प्रणाली बन जाती है, जो भाषा शिक्षण के लिए दो भाषाओं के बीच तुलनात्मक संरचनागत सामग्री प्रदान करती है।

व्यतिरेकी  विश्लेषण की भाषाविज्ञान में उपयोगिता को देखते हुए ही इस प्रणाली को कुछ विद्वानों द्वारा व्यतिरेकी  भाषाविज्ञान नाम भी दिया गया है। यही कारण है कि भाषाविज्ञान में व्यतिरेकी  भाषाविज्ञान शब्द भी देखने को मिलता है।

अंग्रेजी में इसे Contrastive linguistics और differential linguistics भी कहा गया है। विकिपेडिया में इसके बारे में कहा गया है-  "Contrastive linguistics is a practice-oriented linguistic approach that seeks to describe the differences and similarities between a pair of languages ".

भाषाविज्ञान (Linguistics) और व्यतिरेकी भाषाविज्ञान (Contrastive Linguistics)

 

भाषाविज्ञान वह विज्ञान या शस्त्र है जिसके अंतर्गत मानव भाषओं का अध्ययन विश्लेषण किया जाता है तथा उसमें प्राप्त होने वाले नियमों की खोज की जाती है। इस खोज से जो ज्ञान उपलब्ध होता है उसका अनुप्रयोग भाषा शिक्षण, अनुवाद, कोश निर्माण, भाषा नियोजन, भाषा प्रौद्योगिकी और कंप्यूटेशनल भाषाविज्ञान जैसे अनेक क्षेत्रों में किया जाता है। भाषाविज्ञान में किसी एक भाषा की संरचना का भी विश्लेषण किया जा सकता है और एक से अधिक भाषाओं की संरचना का भी विश्लेषण किया जा सकता है। जब हम एक से अधिक भाषाओं की संरचना का विश्लेषण करते हैं तो उनके बीच समानता और भिन्नता का प्राप्त होना स्वाभाविक है।

भाषा शिक्षण अथवा अनुवाद की दृष्टि से दो भाषाओं के बीच संरचना के स्तर पर प्राप्त होने वाली भिन्नताओं और समानताओं की खोज करने की पद्धति व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाती है। भाषाविज्ञान के एक अंग या क्षेत्र के रूप में इसे व्यतिरेकी भाषाविज्ञान भी नाम दिया गया है। इस स्थिति में देखा जाए तो व्यतिरेकी  भाषाविज्ञान भाषाविज्ञान का एक अंग है जो सैद्धांतिक भाषाविज्ञान और अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान दोनों से जुड़ा हुआ है।

तुलनात्मक भाषाविज्ञान (Comparative Linguistics) और व्यतिरेकी भाषाविज्ञान (Contrastive Linguistics)

पारंपरिक रूप से भाषाविज्ञान के तीन भेद किए जाते हैं- वर्णनात्मक भाषाविज्ञान, तुलनात्मक भाषाविज्ञान और ऐतिहासिक भाषाविज्ञान। इनमें से तुलनात्मक भाषाविज्ञान और ऐतिहासिक भाषाविज्ञान एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनका संबंध यूरोप में विकसित हो रहे आधुनिक भाषाविज्ञान की पूर्व अवस्था से है जिसका प्रारंभ 18वीं शताब्दी के अंत में हुआ था, जब सर विलियम जॉन्स ने 1786 ई. में संस्कृत, ग्रीक और लैटिन भाषाओं के बीच पर्याप्त समानताओं की बात की थी। इससे प्रभावित होकर उस समय के विद्वानों ने एक से अधिक भाषाओं के बीच तुलना करते हुए उनकी समानताओं की खोज करना शुरू कर दिया तथा यह जानने का प्रयास किया की ऐतिहासिक रूप से कौन-सी भाषा किस से जुड़ी हुई है और समान रूप वाली एक से अधिक भाषाएँ किस पुरानी भाषा से विकसित हुई हैं। इस क्रम में भाषा परिवारों की स्थापना हुई।

अतः तुलनात्मक भाषाविज्ञान मूल रूप से वह पद्धति है, जिसमें-

§  एक से अधिक भाषाओं की तुलना की जाती है और उनके बीच प्राप्त समानताओं की खोज की जाती है।

§  इसके माध्यम से यह जानने का प्रयास किया जाता है कि वे एकाधिक भाषाएँ किस पुरानी भाषा से निकली हुई हैं?

§  क्या वे दोनों एक दूसरे से संबंधित हैं? अथवा एक दूसरे से भिन्न-भिन्न हैं।

यदि वे दोनों एक दूसरे से संबंधित होती हैं तो उन्हें एक भाषा परिवार के अंतर्गत रखा जाता है और भिन्न-भिन्न होने पर उन्हें दूसरे भाषा परिवारों के साथ संबद्ध किया जाता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि 'तुलनात्मक भाषाविज्ञान' भाषाविज्ञान का वह प्रारंभिक रूप है जिसमें भाषाओं की तुलना के माध्यम से उनके पुराने रूपों की खोज करने का प्रयास किया जाता है तथा उनके ऐतिहासिक विकास का पता लगाया जाता है।

व्यतिरेकी विश्लेषण वह कार्य है जिसमें दो भाषाओं की तुलना करते हुए उनके बीच प्राप्त होने वाली संरचनागत असमानताओं और समानताओं का विश्लेषण किया जाता है। इसका उद्देश्य भाषा शिक्षण अथवा अनुवाद संबंधी अनुप्रयोग होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एक भाषा का द्वितीय भाषा के रूप में अथवा विदेशी भाषा के रूप में शिक्षण करने के लिए उस भाषा (L1) और शिक्षार्थी की मातृभाषा (L2) की संरचना में पाई जाने वाली भिन्नता और समानता को खोजने की प्रक्रिया व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाती है।

व्यतिरेकी विश्लेषण के नियमों और सिद्धांतों को अपने आप में समाहित करने वाली भाषाविज्ञान की शाखा व्यतिरेकी भाषाविज्ञान कहलाती है।

यहां ध्यान रखने वाली बात है कि व्यतिरेकी भाषाविज्ञान में भी दो भाषाओं के बीच तुलना की जाती है किंतु उस तुलना का उद्देश्य वर्तमान में दो भाषाओं के बीच प्राप्त संरचनागत समानता और असमानता को उद्घाटित करना होता है और यह उद्घाटन भाषा शिक्षण (और अनुवाद) को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। अतः यह पारंपरिक रूप से चल रहे तुलनात्मक भाषाविज्ञान से बिल्कुल अलग है।

व्यतिरेकी विश्लेषण (Contrastive Analysis) और त्रुटि विश्लेषण (Error Analysis)

 

व्यतिरेकी विश्लेषण वह कार्य है जिसमें दो भाषाओं की तुलना करते हुए उनके बीच प्राप्त होने वाली संरचनागत असमानताओं और समानताओं का विश्लेषण किया जाता है। इसका उद्देश्य भाषा शिक्षण अथवा अनुवाद संबंधी अनुप्रयोग होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एक भाषा का द्वितीय भाषा के रूप में अथवा विदेशी भाषा के रूप में शिक्षण करने के लिए उस भाषा (L1) और शिक्षार्थी की मातृभाषा (L2) की संरचना में पाई जाने वाली भिन्नता और समानता को खोजने की प्रक्रिया व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाती है।

व्यतिरेकी विश्लेषण भाषा शिक्षण के लिए आवश्यक नियम और टूल्स प्रदान करता है किंतु अनेक विद्वानों द्वारा इस पद्धति की इस रूप में भी आलोचना की जाती है कि द्वितीय भाषा अर्जन अथवा विदेशी भाषा अर्जन में केवल दोनों भाषाओं के बीच प्राप्त होने वाली संरचनागत समानता और असमानता ही भाषा अधिगम में समस्या नहीं पैदा करती है बल्कि उसमें अन्य दूसरे भी अनेक कारण होते हैं। उन कारणों की खोज त्रुटि विश्लेषण के माध्यम से की जाती है।

 अतः 'व्यतिरेकी विश्लेषण' त्रुटि विश्लेषण से भी अपने आप को जोड़ता है। भाषा शिक्षण में हो रही कठिनाइयों को खोजने के लिए प्रयुक्त होने वाली ये दो प्रमुख विधियां है। दोनों की प्रविधि अलग है, किंतु लक्ष्य एक है।

Tuesday, July 16, 2024

वर्तनी की अशुद्धियाँ

 इस लेखन में अशुद्धियाँ निकालें और अभ्यास करें-