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Friday, May 12, 2017

सजेस्टोपीडिया – भाषा शिक्षण की एक महत्वपूर्ण विधि

SHODH PRERAK ISSN 2231-413X, Vol. VI, Issue 1, January, 2016
डॉ. अनिल दुबे
सहायक प्रोफेसर, भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी विभाग
म.गा.अं.हिं.वि., वर्धा
प्रस्‍तावना –
            प्रभावी भाषा शिक्षण में पाठ्यचर्या एवं अध्‍यापक तथा विद्यार्थी की व्‍यक्तिगत विशेषताओं के साथ ही शिक्षण विधि का भी बहुत महत्‍वपूर्ण स्‍थान होता है । यदि भाषा-अध्‍यापक इन विधियों तथा इनके विकास के इतिहास से सुपरिचित नहीं होगा तो वह अनेक विधिगत विकल्‍पों से स्‍वयं को वंचित कर लेगा जिनसे वह लाभान्वित हो सकता था । (केरोल ग्रिफिट्स, 2005, पृ. 28) इस प्रपत्र का उद्देश्‍य सजेस्‍टोपीडिया नामक अपेक्षाकृत कम ज्ञात भाषा शिक्षण विधि की कार्यप्रणाली एवं सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए उसकी प्रभावकारिता की समीक्षा करना है ।
            1960 और 70 के दशकों में भाषा शिक्षण के क्षेत्र में महत्‍वपूर्ण पैराडाइम परिवर्तन देखे गए । व्‍याकरण – आधारित अभिगमों तथा पद्धतियों के विकल्‍पों की खोज के प्रयासों ने विचारों के नए आयाम उदघाटित किए । मुख्‍यधारा के भाषा शिक्षण जगत के संचारपरक (कम्‍यूनियकेटिव) अभिगम के प्रति बढ़ति रुचि ने जैसे एक आंदोलन का रूप ग्रहण कर लिया जिसने भाषा के बीज (कोर कंपोनेंट) के रूप में व्‍याकरण को विस्‍थापित करते हुए, भाषा, भाषा शिक्षण, शिक्षार्थी एवं अध्‍यापक सभी के विषय में नए विचारों का मार्ग प्रशस्‍त किया । जहाँ इस दौरान, श्रव्‍यभाषावाद (ऑडियोलिंगुअलिज्‍म) और स्थितिपरक (सिचुएशनल) भाषा शिक्षण मनोवैज्ञानिकों द्वारा विकसित मुख्‍यधारा की विधियाँ रहीं, वहीं, ऐसी भी अनेक विधियाँ विकसित हुई जो गैर भाषावैज्ञानिक क्षेत्रों, जैसे, शिक्षाशास्‍त्र आदि में विकसित सिद्धांतों पर आधारित थी । ऐसी नवाचारी विधियों में पूर्ण भौतिक अनुक्रिया (टोटल फिजिकल रिस्‍पॉन्‍स) , मौन पथ (सायलेंट वे), परामर्श अधिगम (काउंसेलिंग लर्निग), सजेस्‍टोपीडिया और अभी हाल ही में विकसित तंत्रिका भाषाविज्ञान विषयक (न्‍यूरोलिंग्विस्टिक) प्रोगामिंग (न्‍यूरोलिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग) और मल्‍टीपल इं‍टेलिजेंस इत्‍यादि का समावेश किया जा सकता है । ये विधियाँ भाषावैज्ञानिक सिद्धांतों या अनुसंधानों की अपेक्षा सीखने के विविध सिद्धांतों , और कभी-कभी तो किसी एक सिद्धांतकार या शिक्षाशास्‍त्री के सिद्धांतों पर आधारित हैं इनमें सीखने के जिन सिद्धांतों को स्‍वीकार किया गया है वे उन सिद्धांतों से भिन्‍न हैं जो सामान्‍यत: द्वितीय भाषा शिक्षणकी पाठ्य पुस्‍तकों में देखने को मिलते हैं । (जैक सी. रिचर्डस् , 2005, पृ. 16) संभवत: यही कारण है कि ये विधियाँ भाषावैज्ञानिक व्‍यवहार क्षेत्र (डोमेन) में पूर्णत: विकसित नहीं हो पाई हैं ।
परिचय-
सजेस्‍टोपीडिया साठा और सत्तर के दशक में बल्‍गेरियन मनोवैज्ञानिक और शिक्षक जॉर्जी लोजानोव द्वारा सोफिया विश्‍वविद्यालय में किक‍सित एक शिक्षण विधि है जो यद्यपि किसी भी ज्ञानानुशासन में प्रयुक्‍त की जा सकती है पर विदेशी भाषा शिक्षण के क्षेत्र में इसे विशेष महत्‍वपूर्ण माना गया । सजेस्‍टोपीडिया एक संयुक्‍त शब्‍द है जो सुझाव (सजेशन) और अध्‍यापन विद्या (पैडागॉगी) के मेल से बना है । लोजानोव का दावा है कि पारम्पिरिक विधियों की अपेक्षा इस विधि के प्रयोग द्वारा शिक्षार्थी 3-5 गुणा अधिक तेजी से अन्‍य भाषा सीख सकता हैं ।  यह पद्धति साकारात्‍मक सुझाव पर आश्रित है तथापि  जैसे-जैसे  इस विधि में विकास हुआ, गैर सुझावात्‍मक अधिगम पर अधिक ध्‍यान दिया गया जिससे कभी-कभी इसे डीसजेस्‍टोपीडिया भी कहा जाता है । सजेस्‍टोपीडिया, सुझावशास्‍त्र (सजेस्‍टोलॉजी) के आधार पर प्रस्‍तुत अधिगमसंबंधी अनेकानेक अनुशंसाओं का समुच्‍चय है ।लोजानोव इसक विज्ञान मानते है । जो मानव मन पर सतत पड़ने वाले गैर  विवेकपूर्ण (नान रैशनल) तथा/अथवा गैर सचेतन (नॉन कांशियस) प्रभावों के, जिनके प्रति व्‍यक्ति अनुक्रिया करता रहता है – अध्‍ययन पर आधारित है ।सजेस्‍टोपीडिया विधि इन प्रभावों का उपयोग कर इन्‍हें पुर्नप्रेषित (रीडायरेक्‍ट) कर शिक्षण प्रक्रिया को अनुकूलतम (ऑप्‍टिमम) स्‍तर पर लाने का उपक्रम करती है ।
उद्देश्‍य और सिद्धांत –
            इसका मुख्‍य उद्देश्‍य सकारात्‍मक सुझावों की शक्ति द्वारा शिक्षण प्रक्रिया को गतिमान करना था । लोजानोव अपनी वेबसाइट में कहते हैं कि सजेस्‍टोपीडिया अधिगम प्रक्रिया के संबंध में आरंभिक नकारात्‍मक अवधारणा से,जो छात्र के मन में अब तक के जीवनकाल के समाज द्वारा स्‍थापित की गई है – से मुक्ति की एक प्रणाली है । डीसजेस्‍टोपीडिया इस मुक्ति के विचार पर स्‍वयं को अधिक केंद्रित करता है  ।
            लोजानोव का मानना हैं – गैर सुझावात्‍मक अधिगम, किसी भी प्रकार के दबाव से मुक्‍त है, अपने अब तक के जीवन में छात्र द्वारा ग्रहण किए गए हर ऐसे नकारात्‍मक सुझाव  या मानसिक प्रोग्राम से मुक्ति का लक्ष्‍य है जो बुद्धिमत्ता को सीमित करते हुए हर प्रकार के ज्ञान, कुशलताओं एवं आदतों के स्‍वयंस्‍फूर्त ग्रहण को बाधित करता है ।
            सजेस्‍टोपीडिया विधि अपने इस विश्‍वास को न केवल मानव मन के सचेतन स्‍तर पर बल्कि उपचेतन स्‍तर पर भी , कार्य करके क्रियान्वित करती है । और क्‍योंकि मानव मन-मस्तिष्‍क असीमित क्षमताओं से संपन्‍न माना जाता है अत: यह विधि शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाती है ।
विशेषताएँ –
            छात्र को स्‍वयं से सफलतापूर्वक सीखने के लिए एक सकारात्‍मक अपेक्षा तथा अरामदेह और आत्‍मविश्‍वासपूर्ण अनुभव कराने में कक्षाकक्ष का भौतिक या बाहरी वातावरण बहुत अहम भूमिका निभाता है । रंगबिरंगे चित्रों से सजे कक्षा कक्ष, नाट्य रूपांतरित पाठ्य पुस्‍तकें, गीत-संगीत, मनभावन फर्नीचर और अध्‍यापक का सर्वसत्तावादी व्‍यवहार इस विधि की महत्‍वपूर्ण विशेषताएँ हैं ।
            लोजानोव ने भारतीय येाग तथा रूसी मनोविज्ञान के योगदान को मुक्‍तकंठ से स्‍वीकार किया है । लोजानोव ने राजयोग से चेतना की अवस्‍थाओं के समायोजन (आल्‍टरिंग) एकाग्रता और लयबद्ध श्‍वासोच्‍छवास हेतु प्रविधियाँ ग्रहण की तो रूसी मनोविज्ञान से यह विचार कि सभी छात्र एक प्रदत्त विषयवस्‍तु को कुशलता के समान स्‍तर तक सीख सकते है । लोजानोव, हर प्रकार के छात्र हेतु वह अकादमिक रूप से प्रतिभासंपन्‍न (गिफ्टेड) हो या नहीं, - समान रूप से प्रभावी शिक्षण आश्‍वासन देते हैं ।
व्‍यावहारिक क्रियान्‍वयन –
            यह विधि सावधानीपूर्वक संरचित अभिगम (एप्रोच) के साथ कार्य करती है जिसमें 4 मुख्‍य चरण होते हैं –
1.      प्रस्‍तुतीकरण (प्रेजेन्‍टेशन) :
यह पूर्वतैयारी का चरण है जिसमें छात्र को आरामदेह अनुभव कराते हुए उसकी मानसिकता को सकारात्‍मकत बनाया जाता है ताकि वह विश्‍वास कर सके कि सीखना एक सरल और रुचिकर गतिविधि होगी । इसके बाद शिक्षक द्वारा पाठ्य इकाई के आधार पर व्‍याकरण और शब्‍दों का परिचय दिया जाता है ।
2.      प्रथम या सक्रिय मेल ( कॉन्‍सर्ट) :
इसके अंतर्गत अध्‍ययन सामग्री का सक्रिय प्रस्‍तुतीकरण किया जाता है । जैसे, यदि विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम में, शास्‍त्रीय संगीत के साथ किसी पाठ्यांश का नाट्यमय वाचन (ड्रैमेटिक रीडिंग) हो सकता है । शिक्षक सामान्‍य गति से सस्‍वर वाचन करते हुए कतिपय शब्‍दों को अनुतानित (इनटोन) करता है और छात्र उसका अनुकरण करते हैं ।
3.      द्वितीय मेल (कॉन्‍सर्ट) या निष्क्रिय समीक्षा (पैसिव रिव्‍यु)
इसमें छात्र को आरामदेह स्थिति में रहते हुए बरोक संगीत (पुरानी शैली का एक पूर्व शास्‍त्रीय (प्री क्‍लासिकल) संगीत-प्रकार जो 17 वीं शताब्‍दी में यूरोप मे लोकप्रिय था) सुनने हेतु आमंत्रित किया गया है , इस संगीत की पृष्‍ठभूमि में शांतिपूर्वक पाठ पढ़ा जाता है ।
4.      अभ्‍यास –
इसके अंतर्गत, सीखे गए भाग का, विविध खेलों, गीतों, पहेलियों, नाटिकाओं आदि के माध्‍यम से पुनर्बलन किया जाता है । इसमें शिक्षक की भूमिका परामर्शदाता की होती है ।
इसके बाद उत्‍पादन की अवस्‍था आती है जिसमें छात्र बगैर किसी रोकटोक या सलाह के लक्ष्‍य भाषा में बोलते और परस्‍पर अंतक्रिर्या करते हैं ।

वयस्‍कों के लिए ये सत्र अधिक लंबे होंगे और सामग्री भी उनके अनुरूप होगी । लेकिन क्‍योंकि बालक कोमल मस्तिष्‍क वाले तथा सामाजिक सुझावों से अधिक प्रभावित होते हैं अत: उनके लिए विधि तथा सामग्री दोनों ही उनके स्‍तर के अनुरूप या अधिक सरल और छोटे होंगे । बालकों के अभिभावकों को भी इस विधि की सम्‍यक, जानकारी देना आवश्‍यक समझा गया है क्‍योंकि उनकी अभिवृत्तियाँ बालक के दृष्टिकोण को नकारात्‍मक या सकारात्‍मक दोनो ही प्रकार से प्रभावित कर सकती हैं ।
अध्‍यापक –
सजेस्‍टोपीडिया में अध्‍यापक को निर्देशात्‍मक नहीं होना होता यद्यपि यह एक अध्‍यापक नियंत्रित पद्धति मानी गई है । सजेस्‍टोपीडिया विधि में अध्‍यापक को वास्‍तविक अर्थों में छात्रों का सच्‍चा साझेदार होना होता है । उन्‍हें कॉन्‍सर्ट सत्र के दौरान  शास्‍त्रीय कलाओं को अपने व्‍यवहार में शामिल करना होता है । शिक्षकों को विविध अध्‍यापन विधियों के विशेष ज्ञान के साथ ही आत्मिक प्रेम के साथ अपने छात्रों से संवाद तथा मनुष्‍य – मात्र के प्रति सम्‍मान का भाव रखना आवश्‍यक है अन्‍यथा वह वांछित परिणाम नहीं ला सकता ।
            लोजानोव के अनुसार, अध्‍यापक को चाहिए कि वह अध्‍ययन सामग्री को सजेस्‍टोपीडिक पद्धति से, उचित अनुपता के साथ, संरचित करना आवश्‍यक है, अर्थात –पूर्ण-आंशिक, आंशिक-पूर्ण, और अंश में पूर्ण तथा पूर्ण में अंश की पद्धति से । अध्‍यापक को एक अच्‍छा पेशेवर और प्रभावशाली व्‍यक्तित्‍व से संपन्‍न होने के साथ ही प्रतिष्ठित, विश्‍वसनीय और निर्भर-योग्‍य होना चाहिए। इसमें छात्रों को आरामदेह स्थिति में रहते हुए बरोक संगीत (पुरानी शैली का एक संगीत-प्रकार जो 17 वीं शताब्‍दी में यूरोप में लोकप्रिय था) सुनने हेतु आमंत्रित किया जाता है, इस संगीत की पृष्‍ठभूमि में शांतिपूर्वक पाठ पढ़ा जाता है ।
1.      Lessons from Good Language Learners Ed. Carol Griffiths. Cambridge University Press Printed Publication Date: 200, Online Publication Date: Aug 2009. Online ISBN 9780511497667
2.      Approaches and Methods in Language Teaching (Second Edition) By Jack C.Richards. Cambridge University Press, Printed Publication Date: 2005, Online Publication Date: July 2010. Online ISBN: 9780511667305

3.      http: /lozanov.hit.bg/30.04.2006

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