वैचारिकी
A Multidisciplinary
Refereed International Research Journal, Vol-IV, Issues-3, September 2014 (ISSN
– 2249-8907)
डॉ. धनजी प्रसाद
सहायक प्रोफेसर, भाषा प्रौद्योगिकी
किसी शब्द,
पदबंध या वाक्य का ऐसा प्रयोग जिसमें उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हों ‘संदिग्धार्थकता’ है। प्रत्येक
भाषा
में
कुछ
शब्द
ऐसे
होते
हैं
जिनका
प्रयोग
एक
से
अधिक
शब्दवर्गों
के
लिए
होता
है।
ऐसे
शब्दों
को
संदिग्धार्थक
शब्द
कहा
जाता
है।
शब्द स्तर पर प्राप्त होने वाली संदिग्धार्थक स्थिति को ‘शाब्दिक
संदिग्धार्थकता’ कहते हैं। इसी
प्रकार
वाक्य
में
पदबंधों
का
प्रयोग
होने
पर
भी
कुछ
विशेष
प्रकार
की
संरचनाओं
में
संदिग्धार्थकता
की
स्थिति
आ
जाती
है।
इसे
‘संरचनात्मक
संदिग्धार्थकता’ कहते हैं।
शाब्दिक
संदिग्धार्थकता
की
स्थिति
में
वाक्य
में
प्रयुक्त
शब्द
के
ही
दो
शब्दवर्ग
होते
हैं।
उदाहरण के लिए निम्नलिखित तीन वाक्यों में सोना शब्द के प्रयोग को देखें –
1.
मुझे दिन में ही सोना
पड़ता है।
2.
वैश्विक माँग के कारण सोना
महँगा हो गया है।
3.
मुझे सोना चाहिए।
इनमें पहले वाक्य में ‘सोना’ क्रिया है, दूसरे में ‘संज्ञा’ है। किंतु तीसरे वाक्य में स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि यह ‘संज्ञा’ है या ‘क्रिया’। यही स्थिति संदिग्धार्थकता है जो शब्द स्तर की होने के कारण शाब्दिक संदिग्धार्थकता
कहलाती है। हिंदी में ऐसे कई प्रयोग पाए जाते हैं, जैसे -
‘आम’ शब्द के
भी
दो
शब्दवर्ग
हैं
– ‘संज्ञा’ (मुझे आम चाहिए)
और
‘विशेषण’ (मैं आम
आदमी हूँ)। इसी प्रकार
संरचनात्मक
संदिग्धार्थकता
में
एक
से
अधिक
अर्थों
की
स्थिति
प्राप्त
होती
है।
यह
स्थिति
वाक्य
स्तर
पर
होती
है।
ऐसे
वाक्यों
में
आए
पदबंध
मूलत:
किसी
अन्य
वाक्य
के
रूपांतरण
होते
हैं
जो
पदबंध
के
रूप
में
वाक्य
में
प्रयुक्त
होते
हैं।
इन
वाक्यों
का
विसंदिग्धिकरण
चॉम्स्की
की
बाह्य
संरचना
(surface
structure) और आंतरिक संरचना (deep
structure) की संकल्पना का
प्रयोग
करते
हुए
सरलता
से
किया
जा
सकता
है।
उदाहरण
के लिए – ‘मैंने
दौड़ते हुए
शेर को
देखा।’ वाक्य
में
‘दौड़ते
हुए
शेर’ एक संदिग्धार्थक
संरचना
है।
इसके
विसंदिग्धिकरण
के
लिए
हमें
इसकी
आंतरिक
संरचना
में
आए
दोनों
वाक्यों
को
अलग-अलग
व्याख्यायित
करना
होगा, यथा –
मैंने
शेर
को
देखा, शेर दौड़
रहा
था।
मैंने
शेर
को
देखा, मैं दौड़
रहा
था।
प्राकृतिक भाषा
संसाधन के लिए संदिग्धार्थकता एक बहुत बड़ी चुनौती है। हिंदी में
प्राप्त
होने
वाली
शाब्दिक
संदिग्धार्थकता
भी कई प्रकार की होती है जो भिन्न-भिन्न शब्दवर्गों से संबंधित होती है। इन शब्दवर्गों
में संज्ञा, विशेषण, क्रिया और क्रिया विशेषण प्रमुख हैं।
प्रस्तुत शोधपत्र में क्रिया संबंधी संदिग्धार्थकता को मशीनी
संसाधन
के
सापेक्ष
प्रस्तुत
किया जा रहा है –
(1)
शब्दवर्ग संबंधी
संदिग्धार्थकता
हिंदी क्रिया शब्द कुछ अन्य शब्दवर्गों के
रूप में भी आते हैं। शब्दवर्ग संबंधी संदिग्धार्थकता से यहाँ आशय है – क्रिया के
वे रूप जो कोश में ही दो प्रकार के होते हैं और उनके दोनों अर्थ दिए गए रहते हैं। अत: इस वर्ग
के
अंतर्गत
वे
सभी
आएँगे
जिनका
एक
शब्दवर्ग
क्रिया
(VB) हो। इस
प्रकार
के
शब्द
हिंदी
में
पर्याप्त
मात्रा
में
पाए
जाते
हैं।
इन्हें
निम्नलिखित
युग्मों
में
विभाजित
किया
जा
सकता
है–
1.1 ) क्रिया
और
व्यक्तिवाचक
संज्ञा
(VB
and NNP) – जैसे
– गया
– 1. एक
स्थान
का
नाम, 2. जाना का
भूतकालिक
रूप।।
1.2) क्रिया
और
जातिवाचक
संज्ञा
(VB
and NN) – इसके
दो
रूप
देखे
जा
सकते
हैं
–
(क) जातिवाचक
संज्ञा
और
मूल
क्रिया
– जैसे
– सोना
– 1. एक
मूल्यवान
धातु, 2. सोना क्रिया; चलना – 1. अन्न
आदि
को
चालने
वाली
वस्तु, 2. चलना क्रिया।
(ख) जातिवाचक
संज्ञा
और
रूपसाधित
क्रिया
– जैसे
– झाड़ी–
1. मुख्यत:
रेगिस्तानी
प्रदेश
या
कम
पानी
वाले
स्थानों
पर
पाए
जाने
वाले
छोटे-छोटे
पेड़-पौधे, 2. झाड़ना क्रिया
का
भूतकालिक
स्त्रीलिंग
रूप; बोली – 1. भाषा
का
किसी
क्षेत्र
विशेष
में
प्रचलित
रूप, 2. बोलना क्रिया
का
भूतकालिक
स्त्रिलिंग
रूप।
1.3) क्रिया
और
विशेषण
(VB
and JJ) – जैसे
– पिछड़ा
– 1. पीछे
रह
जाने
वाला; क्रम
में
साथ
वाले
के
आगे
या
बराबरी
में
भी
नहीं
रहने
वाला, 2. पिछड़ना क्रिया
का
भूतकालिक
रूप।
नोट : चूंकि
यह
शब्द
मूलत:
पिछड़ना
क्रिया
के
भूतकालिक
रूप
की
तरह
ही
व्यवहार
कर
रहा
है, इस कारण
इसे
शब्द
और
प्रयोग
संबंधी
संदिग्धार्थकता
के
अंतर्गत
भी
रखा
जा
सकता
है।
1.4) क्रिया
और
क्रियाविशेषण
(VB
and RB) – इसकी
चर्चा
शब्द
प्रयोग
संबंधी
संदिग्धार्थकता
वाले
भाग
में
की
जाएगी।
1.5) क्रिया
और
अक्षर (VB and
CH) – ‘आना’ क्रिया का
धातुरूप
‘आ’ एक वर्ण
(हिंदी
वर्णमाला
का
दूसरा
स्वर)
भी
है।
(2)
शब्द प्रयोग
संबंधी
संदिग्धार्थकता
इसे
‘शब्द-प्रकार्य
संदिग्धार्थकता’ (word-function ambiguity) भी
कहा
जा
सकता
है।
हिंदी
में
बहुत
सारे
शब्द
ऐसे
हैं
जो
अर्थ
की
दृष्टि
से
एक
ही
होते
हैं
किंतु
उनका
वाक्य
में
प्रयोग
होने
पर
वे
अलग
शब्दवर्ग
का
प्रकार्य
संपन्न
करते
हैं।
शब्द
प्रयोग
संबंधी
संदिग्धार्थकता
की
दृष्टि
से
क्रिया
सबसे
महत्वपूर्ण
है।
इसका
प्रयोग
कई
प्रकार
के
प्रकार्यों
को
संपन्न
करने
के
लिए
किया
जाता
है।
पारंपरिक
व्याकरणों
में
इसके
अन्य
प्रयोगों
को
‘कृदंत’ नाम दिया
गया
है
जिसके
तीन
वर्ग
किए
गए
हैं
– संज्ञात्मक, विशेषणात्मक और
क्रियाविशेषणात्मक।
इसके
अलावा
क्रिया
(मुख्य
क्रिया
या
कोशीय
क्रिया)
का
प्रयोग
पक्षात्मक
क्रिया, वृत्तिमूलक क्रिया
और
रंजक
क्रिया
के
रूप
में
भी
होता
है।
अत:
इन
सभी
को
मिलाकर
बनने
वाले
कुल
6 उपवर्ग
निम्नलिखित
हैं
–
2.1 क्रिया
का संज्ञा
के रूप
में प्रयोग (VB as
NN) :
लगभग
सभी
मुख्य
क्रियाओं
का
प्रयोग
संज्ञा
के
रूप
में
किया
जा
सकता
है।
कारकीय
संबंध
की
दृष्टि
से
बात
करें
तो
ये
कर्ता
और
कर्म
दोनों
ही
स्थानों
पर
प्रयुक्त
होने
की
क्षमता
रखती
हैं।
संज्ञा
के
रूप
में
क्रियाओं
का प्रयोग होने
पर
उनके
साथ
लगभग
सभी
परसर्गों
(ने
के
अलावा)
का
प्रयोग
होता
है।
इसके
लिए
हिंदी
में
विविध
प्रकार
के
वाक्य
साँचे
उपलब्ध
हैं। उदाहरण के
लिए
निम्नलिखित
वाक्यों
को
देखें
-
1) सुबह-सुबह
टहलना
अच्छी
बात
है।
2) मैं
चलने
को
बोल
रहा
हूँ।
3) आपके
लिखने
से
हमारा
काम
हो
जाएगा।
4) अब
लिखने
का
काम
समाप्त
हुआ।
इन
सभी
वाक्यों
में
क्रिया
शब्दों
का
संज्ञा
के
रूप
में
प्रयोग
हुआ
है।
यदि
क्रिया
शब्दों
के
बाद
कोई
परसर्ग
या
अन्य
अव्यय
शब्द
(जैसे
– तक, वाला) आता
है
तो
धातु
की
साथ
जुड़ा
हुआ
‘-ना’ अपने तिर्यर्क
रूप
‘-ने’ में परिवर्तित
हो
जाता
है
नहीं
तो
आकारांत
रूप
में रहता है।
विसंदिग्धिकरण
की
दृष्टि
से
इन
शब्दों
की
क्रिया
के
रूप
में
पहचान
के
पश्चात
इन्हें
कृदंत
के
रूप
में
कोई
टैग
दिया
जाना
चाहिए
या
फिर
संज्ञात्मक
प्रयोग
को
किसी
चिह्नक
द्वारा
दर्शाया
जाना
चाहिए।
2.2 क्रिया
का
विशेषण
के
रूप
में
प्रयोग (VB as
JJ) : जिस प्रकार
क्रिया
का
संज्ञा
के
रूप
में
प्रयोग
होता
है
उसी
प्रकार
इसका
विशेषण
के
रूप
में
भी
प्रयोग
होता
है।
इसके
लिए
क्रिया
के
'-ता, -ती, -ते' रूप के
बाद
'हुआ, हुई, हुए' शब्द आते
हैं
या
'-ना, -ने' रूप
के
बाद
वाला,वाली, वाले' आदि
आते
हैं, जैसे –
1)
यह दिल्ली
जाने
वाली
गाड़ी
है।
2)
यह आपकी
लिखी
हुई
किताब
है।
3)
वह पढ़ने
वाला
लड़का
है।
4)
तुम रोता
हुआ
चेहरा
लेकर
क्यों
आए
हो।
‘वाला, वाली, वाले’ से युक्त
पदों
के
वाक्यों
में
ऐसे
पदबंधों
के
बाद
संज्ञा
का
आना
आवश्यक
है।
यदि
पहले
संज्ञा
शब्द
आ
जाए
और
अंत
में
क्रिया
के
साथ
‘वाला’ युक्त पदबंध
आए
तो
इस
प्रकार
बनने
वाला
वाक्य
वृत्ति
(mood)
को
दर्शाने
वाला
भी
हो
सकता
है, यथा –
1)
यह गाड़ी
दिल्ली
जाने
वाली
है।
2)
वह लड़का
पढ़ने
वाला
है।
इन
वाक्यों
में
प्रथम
वाक्य
संदिग्धार्थक
है।
इसमें
‘जाने
वाली’ द्वारा एक
तरफ
वृत्ति
का
बोध
हो
रहा
है
तो
दूसरी
तरफ
विशेषण
का।
इसकी
अलग-अलग
व्याख्या
इस
प्रकार
की
जा
सकती
है।
यह
गाड़ी
दिल्ली
जाने
वाली
है।
(यह
वह
गाड़ी
है
जो
दिल्ली
जाएगी
= विशेषणात्मक
प्रयोग)
यह
गाड़ी
दिल्ली
जाने
वाली
है।
(यह
गाड़ी
दिल्ली
के
लिए
निकलने
वाली
है
= वृत्तिमूलक
प्रयोग)
यदि
इस
वाक्य
में
से
गंतव्य
स्थान
(दिल्ली)
निकाल
दिया
जाए
तो
यह
वाक्य
पूर्णत:
वृत्तिमूलक
हो
जाएगा, यथा –
यह
गाड़ी
जाने
वाली
है।
इसके
अलावा
क्रिया
के
भूतकालिक
रूपों
के
साथ
भी
'हुआ, हुई, हुए' आदि का
प्रयोग
करने
पर
बने
हुए
रूप
भी
विशेषण
की
तरह
प्रयुक्त
होते
हैं।
कुछ
क्रियाओं
के
भूतकालिक
युग्म
का
प्रयोग
भी
विशेषण
के
लिए
किया
जाता
है।
दोनों
के
कुछ
उदाहरण
निम्नलिखित
हैं
–
1)
यह देखी
हुई
फिल्म
क्यों
देख
रहे
हो?
2)
वह फटा
हुआ
कपड़ा
लाया।
3)
चोर घर
में
रखा
हुआ
सारा
सामान
उठा
ले
गए।
4)
वह पढ़ा-लिखा
मूर्ख
है।
5)
यह उसका
रटा-रटाया
जवाब
है।
कुछ
वाक्यों
में
क्रिया
के
केवल
भूतकालिक
रूप
का
या
उसके
साथ
‘हुआ’ का प्रयोग
ऐच्छिक
होता
है, जैसे -
6)
यह खुला
पत्र
है।
7)
यह खुला
हुआ
पत्र
है।
इस प्रकार, विशेषण का
कार्य
करने
वाले
सभी
क्रियारूपों
को
चिह्नित
करते
हुए
उसे
अलग-अलग
टैग
करने
की
आवश्यकता
पड़ती
है, जिसके लिए
विसंदिग्धिकरण
नियमों
की
आवश्यकता
होती
है।
2.3 क्रिया का
क्रियाविशेषण
के
रूप
में
प्रयोग (VB as
RB) : हिंदी में
क्रियाओं
का
क्रियाविशेषणों
के
रूप
में
भी
प्रयोग
होता
है।
इसके
लिए
क्रियाओं
के
साथ
‘-ता
हुआ’, ‘-ती हुई’, ‘-ते हुए’ अथवा ‘-कर’ का प्रयोग
होता
है।
उदाहरण
के
लिए
निम्नलिखित
वाक्यों
को
देखें
-
1) वह
रोता
हुआ
घर
गया।
2) मैं
पढ़ते
हुए
स्कूल
गया।
3) वह
लड़की
नाचती
हुई
चल
रही
थी।
‘-कर’ के
प्रयोग
में
एक
विशेष
संदिग्धार्थक
स्थिति
आती
है।
सामान्यत:
इसका
प्रयोग
भूतकालिक
कृदंत
के
लिए
होता
है।
कुछ
विशेष
प्रकार
की
क्रियाओं
के
संयोजन
के
साथ
ही
आने
पर
यह
क्रियाविशेषण
के
रूप
में
प्रयुक्त
होता
है।
ये
क्रियाएँ
मुख्यत:
आंगिक
भावबोधक
होती
हैं, जैसे – मुस्कराना, हँसना, चिल्लाना
आदि।
उदाहरण
के
लिए
निम्नलिखित
वाक्यों
को
देखा
जा
सकता
है
–
1)
वह चिल्लाकर
बोला।
2)
मोहन हँसकर
बात
करता
है।
3)
वह लड़की
रोकर
बोल
रही
है।
4)
तुम मुस्कराकर
चल
रहे
हो।
5)
वह बैठकर
बात
कर
रहा
है।
इन
वाक्यों
में
‘-कर’ से युक्त
होकर
आने
वाली
क्रियाएँ
क्रियाविशेषण
का
कार्य
कर
रही
हैं।
वैसे
तीसरा
वाक्य
फिर
भी
संदिग्धार्थक
है।
इसमें
‘रोकर’ क्रिया के
प्रयोग
के
दो
अर्थ
किए
जा
सकते
हैं।
पहला
- ‘लड़की
पहले
रोई
फिर
बोली’ और दूसरा
– ‘लड़की
द्वारा
रोने
और
बोलने
का
कार्य
साथ-साथ
किया
जा
रहा
है’।
इनमें
जब
वाक्य
का
दूसरा
अर्थ
हो
तभी
यह
क्रियाविशेषण
कहलाएगा।
2.4 क्रिया का
पक्षात्मक
क्रिया
के
रूप
में
प्रयोग (VB as
AX) : ‘रहना’ और
‘चुकना’ दो ऐसी
क्रियाएँ
हैं
जिनकी
शाब्दिक
कोटि
मुख्य
क्रिया
के
रूप
में
भी
है
और
पक्षात्मक
क्रिया
के
रूप
में
भी।
वाक्य
में
प्रयोग
की
दृष्टि
से
देखा
जाए
तो
‘रह’ क्रिया के
तीन
भूतकालिक
रूपों
– ‘रहा, रही, रहे’ का प्रयोग
दोनों
ही
स्थितियों
के
लिए
हो
सकता
है।
अत:
इनके
प्रयोग
संबंधी
वास्तविक
स्थिति
के
लिए
विसंदिग्धिकरण
नियमों
की
आवश्यकता
पड़ती
है।
उदाहरण
के
लिए
निम्नलिखित
वाक्य
द्रष्टव्य
हैं
-
1) वह
मुंबई
जा
रहा
है।
2) वह
मुंबई
में
10 वर्ष
रहा
है।
3) ट्रेन
तेज
गति
से
चल
रही
है।
4) इसकी
तो
यही
औसत
गति
रही
है।
5) वे
घर
जा
रहे
हैं।
6) वे
अब
कहीं
के
नहीं
रहे
हैं।
‘चुकना’ क्रिया
के
भी
तीनों
भूतकालिक
रूप
– ‘चुका, चुकी, चुके’ पक्षात्मक क्रिया
के
रूप
में
भी
प्रयुक्त
होते
हैं।
किंतु
मुख्य
क्रिया
के
रूप
में
इनका
सीधे-सीधे
प्रयोग
प्राप्त
नहीं
होता।
अत:
इन
रूपों
को
केवल
पक्षात्मक
क्रिया
का
ही
टैग
दिया
जा
सकता
है
जिससे
कि
संदिग्धार्थक
स्थिति
न
उत्पन्न
हो।
2.5 क्रिया का
वृत्तिमूलक
क्रिया
के
रूप
में
प्रयोग (VB as
AS) : पक्षात्मक क्रियाओं
की
तरह
की
कुछ
मुख्य
क्रियाएँ
वृत्तिमूलक
क्रियाओं
का
भी
कार्य
करती
हैं।
‘पड़ना, सकना आदि
ऐसी
ही
क्रियाएँ
हैं।
इनके
‘धातु+ता/ती/ते’ रूप, तीनों
भूतकालिक
तथा
तीनों
भविष्यकालिक
रूप
मुख्य
क्रियाओं
के
साथ
प्रयुक्त
होता
होकर
वृत्ति
का
बोध
कराते
हैं।
ऐसी
स्थिति
में
उन्हें
वृत्तिमूलक
क्रिया
के
रूप
में
टैग
करने
की
आवश्यकता
होती
है।
उदाहरणस्वरूप
कुछ
वाक्य
इस
प्रकार
हैं
–
1) मुझे
घर
जाना
पड़ता
है।
2) मैं
अब
चल
सकता
हूँ।
3) क्या
कल
आपको
यह
करना
पड़ेगा?
4) क्या
कल
तक
यह
पानी
चल
सकेगा?
5) मुझे
कल
भूखे
ही
सोना
पड़ा।
6) उसका
काम
कल
भी
नहीं
हो
सका।
इसी प्रकार
अन्य
प्रयोग
भी
देखे
जा
सकते
हैं।
इनमें
से
‘पड़ना’ क्रिया का
प्रयोग
रंजक
क्रिया
के
रूप
में
भी
होता
है।
2.6 क्रिया का
रंजक
क्रिया
के
रूप
में
प्रयोग (VB as
EX) : ‘रंजक क्रिया’ दक्षिण एशियाई
भाषाओं
की
एक
महत्वपूर्ण
विशेषता
है।
हिंदी
में
भी
8 से
12 रंजक
क्रियाएँ
पाई
जाती
हैं।
विभिन्न
हिंदी
व्याकरणाचर्यों
द्वारा
इनकी
अलग-अलग
संख्या
बताई
गई।
हिंदी
सुप्रसिद्ध
व्याकरणविद
प्रो.सूरजभान
सिंह
(2000) ने
इनकी
संख्या
08 बताई
है।
आपके
शब्दों
में, “हिंदी की
सर्वमान्य
08 प्रमुख
क्रियाएँ
नीचे
दी
जा
रही
हैं, जिनमें में
प्रथम
तीन
की
प्रयोग-आवृत्ति
सबसे
अधिक
है
– 1.
जाना
(भाग
जाना)
2. लेना
(कर
लेना)3.
देना
(फेंक
देना)
4. आना
(उतर
आना)
5. पड़ना (रो पड़ना)
6. उठना
(काँप
उठना)
7. बैठना
(कर
बैठना)
8. डालना
(कर
डालना)
।
इनके
अतिरिक्त, अपेक्षाकृत अधिक
सीमित
प्रयोगों
में
प्रचलित
कुछ
अन्य
रंजक
क्रियाएँ
भी
हैं।
इनके
मुख्य
क्रिया
और
रंजक
क्रिया
के
रूप
में
प्रयोग
संबंधी
निम्नलिखित
उदाहरणों में देखें –
1)
राम का
लड़का
घर
गया।
2)
राम का
जादू
चल
गया।
3)
मैंने एक
मकान
लिया।
4)
मैंने काम
कर
लिया।
अत: इन
सभी
क्रियाओं
के
मुख्य
क्रिया
के
रूप
में
प्रयोग
और
रंजक
क्रिया
के
रूप
में
प्रयोग
को
अलग-अलग
चिह्नित
करने
की
आवश्यकता
पड़ती
है, जिसके लिए
विसंदिग्धिकरण
नियम
लगाए
जाते
हैं।
अत:
हिंदी में क्रिया संदिग्धार्थकता को विस्तृत रूप से समझते हुए उसके विसंदिग्धिकरण
के लिए पर्याप्त नियम निर्मित करने की आवश्यकता है।
संदर्भ :
1.
गुरू, कामता प्रसाद (2005) हिंदी व्याकरण, वाराणसी : नागरी प्रचारिणी सभा।
2.
गोस्वामी, डॉ. कृष्ण कुमार (2007) आधुनिक हिंदी : विविध आयाम, दिल्ली : आलेख प्रकाशन।
3.
मल्होत्रा, विजय कुमार (2002) कम्प्यूटर के भाषिक अनुप्रयोग, नई दिल्ली
:
वाणी प्रकाशन ।
4.
सिंह, डॉ. सूरजभान (2000) हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण, दिल्ली : साहित्य सहकार।
5.
Chakrabarti, Debasri,
Mandalia, Hemang et. al. (2008) Hindi Compound Verbs and their Automatic
Extraction.
6.
Koul, O. N. (2008). Book
Title: Modern Hindi Grammar. Dunwoody Press, Springfield, VA 22150, USA.
7.
Bhatt, R. (2003). Locality
in Correlatives. In Natural Language & Linguistic Theory, Vol. 21, No. 3, pp. 485–541.
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