(दूर शिक्षा, म.गा.अं.हिं.वि.,वर्धा के एम.ए. हिंदी की पाठ्य सामग्री में)
पाठ्यचर्या का शीर्षक : हिंदी भाषा एवं भाषा-शिक्षण
खंड: 2– हिंदी भाषा-संरचना
इकाई – 2
: शब्द संरचना
17.1 प्रस्तावना
भाषा एक व्यवस्था
है जिसके माध्यम से ध्वनि प्रतीकों द्वारा विचार करने और विचारों को आपस में
संप्रेषित करने की सुविधा प्राप्त होती है। इसमें एक ध्यान देने वाली बात यह है कि हम बोलने
और सुनने में प्रयोग तो ‘ध्वनि’ का करते हैं, किंतु संप्रेषण ‘अर्थ’ का
होता है, जबकि ध्वनियाँ स्वयं में अर्थहीन होती हैं। अतः
प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि तब ध्वनियों के माध्यम से अर्थ का संप्रेषण कैसे हो
जाता है? इसका उत्तर है- ‘ध्वनियाँ
विविध भाषिक स्तरों पर संरचित होकर ‘वाक्य’ नामक संप्रेषणात्मक इकाई का निर्माण करती हैं।’
वाक्यों में शब्द लगे होते हैं। शब्दों का अपना अर्थ तो होता है, किंतु वे वाक्य में जाकर ही संप्रेषणीय बन पाते हैं। भाषा में वाक्य से
बड़ी इकाई ‘प्रोक्ति’ पाई जाती है। इस
प्रकार प्राप्त होने वाले भाषा के स्तर निम्नलिखित हैं-
स्वनिम à रूपिम à शब्द/पद
à पदबंध à उपवाक्य à वाक्य à प्रोक्ति
इनमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि ‘शब्द’ केंद्रीय इकाई है। भाषायी स्तरों में ‘शब्द’ रूपिम से बड़ी और पदबंध से छोटी इकाई है। शब्दार्थ
की दृष्टि से देखा जाए तो शब्द ‘स्वतंत्र अर्थ को धारण करने
वाली इकाई’ है। वाक्य में प्रयुक्त होने पर शब्द ‘पद’ बन जाते हैं। इन सब बिंदुओं की ओर संकेत करते
हुए प्रस्तुत इकाई में ‘हिंदी की शब्द-संरचना’ का विस्तृत विवेचन किया जाएगा।
3.0 शब्द संरचना
‘शब्द’ वह ध्वनि समूह है, जिसका
अपना एक अर्थ होता है। एक ध्वनि वाले कुछ शब्दों को छोड़ दिया जाए तो सामान्यतः
शब्द एक से अधिक ध्वनियों से निर्मित होते हैं। ध्वनियों का अपना कोई अर्थ नहीं
होता। किंतु किसी भी भाषा में बहुत सारे शब्द एकाधिक सार्थक खंडों से भी मिलकर बने
होते हैं। जिन शब्दों के और अधिक सार्थक खंड नहीं किए जा सकते, वे ‘मूल शब्द’ (root word)
कहलाते हैं। भाषाविज्ञान में ‘रूपिम’
की संकल्पना दी गई है। सभी मूल शब्द और उपसर्ग/प्रत्यय रूपिम होते हैं। जिन शब्दों
में एक से अधिक सार्थक खंड मिले होते हैं, वे ‘निर्मित/व्युत्पादित शब्द’ (derived word) कहलाते हैं। निर्मित शब्दों में प्रयुक्त सार्थक घटकों की व्यवस्था उनकी ‘शब्द संरचना’ है। हिंदी की शब्द संरचना को समझने के
लिए हिंदी के निर्मित शब्दों में लगने वाले सार्थक खंडों और उनकी व्यवस्था का
विश्लेषण किया जाता है।
4.0 शब्द के प्रकार
शब्द पर कई
दृष्टियों से विचार किया जा सकता है, जैसे- अर्थ की दृष्टि
से, प्रकार्य की दृष्टि से, रूपिमिक
संख्या की दृष्टि से और संरचना की दृष्टि से। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार देखा
जा सकता है-
4.1 अर्थ की दृष्टि से शब्द के प्रकार
इस आधार पर
शब्द के दो प्रकार किए जाते हैं-
(क) कोशीय शब्द- वे शब्द
जिनका कोशीय अर्थ होता है। अर्थात जो शब्द बाह्य संसार में एक अर्थ या संदर्भ रखते
हैं, कोशीय शब्द होते हैं, जैसे- घर, अच्छा, खेलना आदि।
(ख) व्याकरणिक शब्द- वे शब्द हैं जिनका
कोशीय अर्थ नहीं होता है और जो कोशीय शब्दों को आपस में जोड़कर वाक्य को व्याकरणिक बनाने
के लिए प्रयुक्त होते हैं, व्याकरणिक शब्द कहलाते हैं, जैसे– परसर्ग (ने, को, से, में पर), सहायक क्रियाएँ (है,
हैं, था, थी, थे)
आदि।
4.2 प्रयोग की दृष्टि से शब्द के प्रकार
प्रयोग के आधार
पर शब्द को दो रूपों में देखा जा सकता है-
(क) शब्द- शब्द वह भाषिक इकाई है जिसका बाह्य संसार (या
मनःअमस्तिष्क) में एक स्वतंत्र अर्थ होता है।
(ख) पद- पद वह भाषिक इकाई है जिसका वाक्य में स्वतंत्र व्यवहार
होता है। वाक्य में प्रयुक्त होकर शब्द ही पद बन जाते हैं।
4.3 रूपिमिक संख्या की दृष्टि से शब्द के प्रकार
किसी भाषा की
लघुतम अर्थवान इकाई रूपिम (morpheme) है। रूपिमिक संख्या की दृष्टि से
भी शब्द के दो प्रकार किए जा सकते हैं-
(क) एकरूपिम- वे शब्द जिनमें एक ही रूपिम हो, एकरूपिमिक शब्द कहलाते हैं। सभी मूल शब्द एकरूपिमिक होते हैं।
(ख) बहुरूपिमिक- वे शब्द जिनमें एक से अधिक
रूपिम हों, बहुरूपिमिक शब्द कहलाते हैं। सभी निर्मित शब्द बहुरूपिमिक
होते हैं।
4.4 निर्माण प्रक्रिया की दृष्टि से शब्द के प्रकार
संरचना की दृष्टि
से शब्द मूलतः दो प्रकार के होते हैं- मूल शब्द और निर्मित शब्द। मूल शब्द एक ही
अर्थवान इकाई (रूपिम) से बने होते हैं, इसलिए उनकी संरचना नहीं
होती। किंतु निर्मित शब्दों में एक से अधिक अर्थवान इकाइयाँ होती हैं। इसलिए उनकी
संरचना होती है। निर्मित शब्दों की ही शब्द संरचना देखी जाती है। निर्माण
प्रक्रिया की दृष्टि से ऐसे शब्दों के निम्नलिखित प्रकार किए जा सकते हैं-
(क) उपसर्गयुक्त
शब्द- ऐसे शब्द जो मूल शब्दों के साथ उपसर्ग जोड़ने से निर्मित
होते हैं, उपसर्गयुक्त शब्द कहलाते हैं, जैसे- अकाल, संरचना, विकास आदि।
(ख) प्रत्यययुक्त
शब्द- वे शब्द जो मूल शब्दों के साथ प्रत्यय जोड़ने से निर्मित
होते हैं, प्रत्यययुक्त शब्द कहलाते हैं, जैसे- ज्ञानी, कथनीय, बालपन आदि।
(ग) उपसर्ग और
प्रत्यययुक्त शब्द- वे शब्द जिनमें मूल शब्दों के साथ उपसर्ग और प्रत्यय
दोनों जुड़े होते हैं, उपसर्ग और प्रत्यययुक्त शब्द कहलाते हैं, जैसे- ज्ञानी, कथनीय, बालपन
आदि।
(घ) सामासिक शब्द- जब दो शब्दों
को जोड़कर एक नया शब्द बनाया जाता है, तो इस प्रकार निर्मित
शब्द को सामासिक शब्द कहते हैं, जैसे- राजघर, नीलकमल आदि।
(ङ) संधिकृत शब्द- दो शब्दों के
योग में ध्वन्यात्मक परिवर्तन होने की स्थिति ‘संधि’ है। संधि द्वारा निर्मित शब्द संधिकृत शब्द कहलाते हैं, जैसे- विद्यालय, सूर्योदय आदि।
(च) पुनरुक्त शब्द- एक ही शब्द
की दो बार आवृत्ति करके बनाए गए शब्द पुनरुक्त शब्द कहलाते हैं। ऐसे शब्दों में दो
प्रकार की पुनरुक्ति होती है, पूर्ण पुनरुक्ति,
जैसे- घर-घर, रग-रग आदि; और आंशिक
पुनरुक्ति, जैसे- पानी-वानी, साथ-संगत
आदि।
(छ) प्रतिध्वन्यात्मक
शब्द (Onomatopoic Words)– बाह्य संसार की ध्वनियों का अनुकरण करके
बनाए गए शब्द प्रतिध्वन्यात्मक शब्द कहलाते हैं। सामान्यतः ये शब्द पुनरुक्त होते
हैं, जैसे- खट-खट, भौं-भौं, धाँय-धाँय, सर्र-सर्र आदि।
(ज) संक्षिप्त रूप (Abbreviation)– शब्दों के आरंभ स्थान से कुछ वर्णों को लेकर भी बनाए गए शब्द इस श्रेणी
में आते हैं। यह प्रक्रिया मूलतः अंग्रेजी जैसी भाषाओं में अपनाई जाती है, जैसे- professor के लिए prof., doctor के लिए dr. आदि। इन शब्दों का हिंदी में भी प्रो., डॉ. आदि के रूप में प्रचलन देखा जा सकता है।
(झ) संकुचित शब्द (Contraction)– यह भी
अंग्रेजी (या इस प्रकार की) भाषाओं में शब्द-निर्माण की विशेषता है, जैसे- I am के लिए I’m, it is या it has के लिए it’s, she will के लिए she’ll आदि।
(ञ) परिवर्णी शब्द
(Acronym)– कई शब्दों
वाले किसी नाम के शब्दों के प्रथम वर्णों या अक्षरों को मिलाने से बनने वाले शब्द ‘परिवर्णी शब्द’ कहलाते हैं। यह भी हिंदी में
अंग्रेजी के प्रभाव से आया है, जैसे- भाजपा, BBC आदि।
(ट) कतित रूप (Clipped form)– यह भी मुख्यतः अंग्रेजी (या इस प्रकार की) भाषाओं में शब्द-निर्माण की
विशेषता है। प्रायः ऐसे शब्दों का हिंदी में देवनागरीकरण कर लिया जाता है, जैसे- telephone के लिए ‘phone’ को हिंदी में ‘फोन’, gymnasium
के लिए ‘gym’ को हिंदी में ‘जिम’ आदि।
अतः स्पष्ट है
कि हिंदी में कई प्रकार से शब्दों का निर्माण होता है। इनमें उपसर्ग/प्रत्यय योजन, समास और संधि संस्कृत से आई हुई प्रक्रियाएँ हैं तो संक्षिप्त रूप, परिवर्णी शब्द और कतित रूप जैसी प्रक्रियाएँ अंग्रेजी के प्रभाव से
समाविष्ट हुई हैं। इन सभी प्रक्रियाओं से निर्मित शब्दों की शब्द संरचना का
विश्लेषण आगे किया जा रहा है।
5.0 निर्मित शब्दों की संरचना का विश्लेषण
5.1 उपसर्गयुक्त शब्द
उपसर्ग (Prefix) वे भाषिक
इकाइयाँ हैं जिन्हें शब्द के पूर्व जोड़कर नए शब्दों की रचना की जाती है। जिस शब्द
के साथ उपसर्ग जुड़ते हैं,
उससे ये पहले
आते हैं। अतः इनका सूत्र इस प्रकार दिया जा सकता है-
उपसर्ग + शब्द
= निर्मित शब्द
उदाहरण
अ (उप.) + भाव (शब्द) = अभाव (निर्मित शब्द)
अति (उप.) +
अधिक (शब्द) = अत्यधिक (निर्मित शब्द)
हिंदी में
निम्नलिखित प्रकार के उपसर्ग प्राप्त होते हैं-
(क) तत्सम
उपसर्ग- संस्कृत के कुछ उपसर्ग हिंदी में ज्यों-के-त्यों आ गए
हैं। ऐसे उपसर्गों को तत्सम उपसर्ग कहा जाता है। हिंदी में निम्नलिखित तत्सम
उपसर्ग हैं-
अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर्, दुस्, निर्, निस्, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु
(ख) तद्भव उपसर्ग- हिंदी में कुछ ऐसे उपसर्ग हैं, जो संस्कृत उपसर्गों ध्वन्यात्मक दृष्टि से कुछ परिवर्तित रूप हैं। इन्हें तद्भव
उपसर्ग भी कहते हैं, जो इस प्रकार हैं-
अ, अन, कु, दु, नि, औ, भर, सु, अध, उन, पर, बिन
(ग) अरबी/फ़ारसी
उपसर्ग- हिंदी में अरबी/फ़ारसी भाषाओं से आए उपसर्ग इस प्रकार हैं-
कम, खुश, गैर, ना, ब, बा, बद, बे, ला, सर, हम, हर
(घ) अंग्रेजी
उपसर्ग- हिंदी में अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन पिछले कुछ दशकों से
तेजी से बढ़ा है। उन शब्दों के साथ कुछ उपसर्ग भी आए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-
सब, डिप्टी, वाइस, जनरल, चीफ़, हेड
इसी प्रकार कुछ
हिंदी में संस्कृत के कुछ ऐसे अव्यय शब्द, जैसे- अधः, अंतः, अ, चिर, पुनर् आदि हैं जो उपसर्ग की तरह प्रयुक्त होते
हैं। प्रत्येक उपसर्ग का अपना एक अर्थाभाव होता है। जब वह किसी शब्द के साथ जुड़ता
है तो उस उपसर्ग के जुड़ने से निर्मित शब्द में उपसर्ग का भाव आ जाता है। उदाहरण के
लिए कुछ उपसर्गों को देख सकते हैं-
उपसर्ग अर्थ उदाहरण
अति अधिक, बहुत अत्यधिक, अत्यंत, अतिरिक्त, अतिशय
अधि ऊपर, श्रेष्ठ अधिकार, अधिपति, अधिनायक
अनु पीछे, समान अनुचर, अनुकरण, अनुसार, अनुशासन
अप बुरा, हीन अपयश, अपमान, अपकार
इसी प्रकार सभी
उपसर्गों के अर्थ और प्रयोग देखे जा सकते हैं। शब्दवर्ग की दृष्टि से भी उपसर्गों
को वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे- संज्ञा से विशेषण बनाने वाले, विशेषण से संज्ञा बनाने वाले, जातिवाचक संज्ञा से
भाववाचक संज्ञा बनाने वाले, विशेषण से क्रियाविशेषण बनाने
वाले आदि।
उपसर्ग का
स्थान - उपसर्ग द्वारा निर्मित शब्दों की संरचना में यह देखा
जाता है कि वे शब्दों के साथ कितने स्थान पूर्व तक जुड़ सकते हैं?: हिंदी में उपसर्ग सामान्यत दो स्थान पूर्व तक जुड़ते हैं, जैसे-
(क) प्रथम पूर्व
स्थान : प्रथम पूर्वस्थान पर सभी उपसर्ग आते हैं। उदाहरण- वि +
कार = विकार, सु + कर्म = सुकर्म आदि।
(ख) द्वितीय पूर्व
स्थान : द्वितीय पूर्वस्थान से तात्पर्य है एक उपसर्ग जुड़े हुए
शब्द में एक और उपसर्ग जोड़ने का स्थान। हिंदी में दो उपसर्गों से बहुत सारे शब्द
निर्मित होते हैं, जैसे- उप + विभाग = उपविभाग, अति + सजग = अतिसजग आदि। किंतु प्रथम पूर्वस्थान पर कौन-सा उपसर्ग होने
पर द्वितीय पूर्वस्थान पर कौन-सा उपसर्ग आएगा, यह शोध का
विषय है, जैसे- ‘उप + विभाग’ तो होता है किंतु ‘वि + उपभाग’ नहीं होता।
5.2 प्रत्यययुक्त शब्द
प्रत्यय (Suffix) वे बद्ध रूपिम
हैं, जो किसी शब्द
के अंत में जुड़कर नए शब्द का निर्माण करते हैं। हिंदी में प्रत्यय दो प्रकार के
हैं– व्युत्पादक (derivational) और रूपसाधक (inflectional)। व्युत्पादक
प्रत्यय (Derivational
suffix) वे प्रत्यय हैं, जिनके द्वारा नए कोशीय शब्द निर्मित होते
हैं। रूपसाधक प्रत्यय (Inflectional
suffix) वे प्रत्यय हैं, जिनके द्वारा किसी शब्द के विविध व्याकरणिक रूप निर्मित
होते हैं। व्युत्पादक प्रत्ययों का अध्ययन ‘शब्द संरचना’ का विषय है और रूपसाधक प्रत्ययों का अध्ययन ‘रूप
संरचना’ का। प्रत्यय शब्द के अंत में लगते हैं। अतः इनका
सूत्र इस प्रकार से दिया जा सकता है-
शब्द +
प्रत्यय = निर्मित शब्द
गर्म + आहट
= गर्माहट
खाट + ओला = खटोला
उपसर्गों की
तरह प्रत्ययों के भी चार वर्ग किए जा सकते हैं-
(क) तत्सम प्रत्यय- संस्कृत के वे प्रत्यय जो हिंदी में
ज्यों-के-त्यों आ गए हैं, तत्सम प्रत्यय कहलाते हैं। इन प्रत्ययों के
दो वर्ग किए गए हैं- कृत प्रत्यय, जैसे- -अक (लेखक), -अन (लेखन), आदि; तद्धित
प्रत्यय, जैसे- -आहट (घबराहट), -ई (सुंदरी)
आदि। कृत प्रत्यय धातुओं के साथ जोड़े जाते हैं, जबकि तद्धित
प्रत्यय नाम पदों के साथ।
(ख) तद्भव प्रत्यय- हिंदी में कुछ तद्भव प्रत्यय भी पाए
जाते हैं, जैसे- -आई (पंडिताई), -आलू (दयालू) आदि।
(ग) देशज प्रत्यय- कुछ प्रत्यय देशज प्रयोगों से हिंदी में
आए हैं, जैसे- -अक्कड़ (पियक्कड़), -आटा (फर्राटा) आदि।
(घ) अरबी/फ़ारसी प्रत्यय- कुछ अरबी/फ़ारसी भाषाओं के कुछ प्रत्यय
भी हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, जैसे- -आना (याराना), -खोर
(आदमखोर) आदि।
शब्दों के साथ
लगने के बाद नए शब्दों में प्रत्ययों का अर्थ या भाव समाहित हो जाता है, उदाहरण के लिए कुछ को देखा जा सकता है-
प्रत्यय अर्थ उदाहरण
अंत किया
हुआ गढ़ंत, बढ़ंत
आ स्त्रीलिंग प्रत्यय प्रिया, बछिया
आऊ वाला टिकाऊ, थकाऊ
त्व भाव मातृत्व, नेतृत्व
इसी प्रकार सभी
प्रत्ययों के अर्थ और प्रयोग देखे जा सकते हैं। शब्दवर्ग की दृष्टि से भी
प्रत्ययों को वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे- संज्ञा से विशेषण
बनाने वाले, विशेषण से संज्ञा बनाने वाले, जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा बनाने वाले,
पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने वाले, क्रिया से संज्ञा बनाने
वाले, क्रिया से विशेषण बनाने वाले,
विशेषण से क्रियाविशेषण बनाने वाले आदि।
प्रत्यय का
स्थान
किसी भी मूल
शब्द के साथ प्रत्यय मूल शब्द के बाद मुख्यतः चार स्थान तक जुड़ सकते हैं। इन्हें
निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-
(क) प्रथम पश्च
स्थान : किसी शब्द के तुरंत बाद प्रयुक्त होने का स्थान प्रथम
पश्च स्थान है। इस स्थान पर प्रत्ययों को जोड़कर सर्वाधिक शब्दों का निर्माण किया
जाता है, जैसे- गर्म + ी = गर्मी, लेख + अक = लेखक, मानव + ता = मानवता आदि।
(ख) द्वितीय पश्च
स्थान: किसी शब्द के बाद एक प्रत्यय लग जाने बाद प्रयुक्त होने
का स्थान द्वितीय पश्च स्थान है, जैसे- वंदन (वंद +न) + ीय = वंदनीय, भारतीय (भारत + ीय) + ता = भारतीयता आदि।
(ग) तृतीय पश्च
स्थान : किसी शब्द के बाद दो प्रत्यय लग जाने बाद प्रयुक्त होने
का स्थान तृतीय पश्च स्थान है, जैसे- भारतीयता (भारत + ीय+ ता) + वाद =
भारतीयतावाद।
(घ) चतुर्थ पश्च
स्थान : किसी शब्द के बाद तीन प्रत्यय लग जाने बाद प्रयुक्त होने
का स्थान चतुर्थ पश्च स्थान है, जैसे- भारतीयतावाद (भारत + ीय+ ता+ वाद)
से भारतीयतावादी। चार स्थानों तक
प्रत्ययों के जुड़ने से बनने वाले शब्द कम ही होते हैं।
5.3 उपसर्ग और प्रत्यययुक्त शब्द
शब्दों के साथ
उपसर्ग और प्रत्यय जुड़ने की ऐसी स्थिति नहीं है कि किसी शब्द के साथ उपसर्ग जुड़
जाने पर प्रत्यय नहीं जुड़ेगा अथवा प्रत्यय जुड़ जाने पर उपसर्ग नहीं जुड़ेगा, बल्कि प्रत्यययुक्त शब्द में उपसर्ग और उपसर्गयुक्त शब्द में प्रत्यय
जुड़ते हैं। वे शब्द जिनमें उपसर्ग और प्रत्यय दोनों जुड़े होते हैं, उपसर्ग और प्रत्यययुक्त शब्द कहलाते हैं। इनके मूलतः तीन वर्ग किए जा
सकते हैं-
(क) उपसर्ग +
प्रत्यययुक्त शब्द : वे शब्द जिनमें पहले से प्रत्यय जुड़े
होते हैं, बाद में उपसर्ग जोड़े जाते हैं, इस वर्ग में आते हैं, जैसे- अ + भारतीय = अभारतीय। ऐसे शब्दों में प्रत्यय हटा देने पर उपसर्ग
का योग संभव नहीं होता, जैसे- अ + भारत से ‘अभारत’ नहीं बना सकते।
(ख) उपसर्गयुक्त
शब्द + प्रत्यय: वे शब्द जिनमें पहले से उपसर्ग जुड़े होते हैं, बाद में प्रत्यय जोड़े जाते हैं, इस वर्ग में आते
हैं, जैसे- निषेध + आत्मक
= निषेधात्मक। ऐसे शब्दों में उपसर्ग हटा देने पर प्रत्यय का योग संभव नहीं
होता, जैसे- षेध + आत्मक से ‘षेधात्मक’ नहीं बना सकते।
(ग) उपसर्ग + शब्द
+ प्रत्यय : वे शब्द जिनमें उपसर्ग और प्रत्यय स्वतंत्र होते हैं, जैसे- ‘वि + देश + ई = विदेशी। ऐसे शब्दों में से
उपसर्ग या प्रत्यय हटा देने पर शब्द प्रभावित नहीं होता,
जैसे- केवल ‘वि+ देश’ से ‘विदेश’ अथवा ‘देश + ई’ से देशी बना सकते हैं।
5.4 सामासिक शब्द
दो या दो से
अधिक शब्दों को जोड़कर नया स्वतंत्र शब्द बनाने की प्रक्रिया समास है। समास द्वारा
निर्मित शब्द को सामासिक शब्द कहते हैं। हिंदी में समास के माध्यम से अनेक शब्दों
का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में दो शब्द आपस में जुड़ते हैं तथा एक नए अर्थ
की अभिव्यक्ति करते हैं। आपस में जुड़ने वाले शब्दों के बीच कोई प्रत्यय आदि दिखाई
नहीं पड़ता है किंतु उन शब्दों के बीच किसी-न-किसी विभक्ति का लोप होता है। समास
द्वारा निर्मित शब्दों को अलग-अलग विश्लेषित किया जा सकता है। किसी सामासिक शब्द
को विश्लेषित करने की प्रक्रिया को ‘समास-विग्रह’ कहते हैं। समास के निम्नलिखित प्रकार किए गए हैं-
(क) अव्ययीभाव समास- वह समास
जिसमें पहला पद प्रधान होता है और पूरा शब्द क्रियाविशेषण का कार्य करता है, अव्ययीभाव समास
है, जैसे- यथासंभव, प्रतिपल, भरसक आदि।
(ख) तत्पुरुष समास- वह समास
जिसमें दूसरा पद प्रधान होता है,
तत्पुरुष समास
कहलाता है। इस समास में पहला शब्द अधिकांशतः संज्ञा या विशेषण होता है और उसके
विग्रह में इस शब्द के साथ ‘कर्ता और
संबोधन’ के अलावा सभी
कारक संबंध प्राप्त होते हैं। उदाहरण- राजमाता (राजा की माता), स्वर्गदूत
(स्वर्ग का/से आया हुआ दूत) आदि। तत्पुरुष के मुख्यतः दो भेद हैं- व्याधिकरण
तत्पुरुष और समानाधिकरण तत्पुरुष। समानाधिकरण तत्पुरुष को ही कर्मधारय समास कहा
गया है।
(ग) कर्मधारय समास- जिस समास के
विग्रह में दोनों घटक शब्दों में एक ही विभक्ति पाई जाती है, उसे कर्मधारय
समास कहते हैं। इसके कई उपभेद हैं,जिन्हें मुख्यतः दो
वर्गों में रखा गया है- विशेषतावाचक कर्मधारय, जैसे- महाजन,
पुरुषोत्तम आदि; उपमावाचक कर्मधारय, जैसे- चंद्रमुखी,
चरणकमल आदि।
(घ) द्वंद्व समास- जिस समास में
दो पद मिलकर एक ही इकाई का कार्य करते हैं, उसे द्वंद्व समास कहते हैं। इसके मुख्यतः तीन भेद किए गए
हैं- इतरेतर द्वंद्व, जैसे- भाई-बहन,
रोटी-कपड़ा आदि; समाहार द्वंद्व, जैसे-
चाय-पानी, घर-बार आदि; और वैकल्पिक
द्वंद्व, जैसे- कम-अधिक, थोड़ा-बहुत
आदि।
(ङ) बहुब्रीहि समास- वह समास
जिसमें कोई भी पद प्रधान नहीं होता और जिसमें दोनों पदों के अर्थ की जगह एक नए
अर्थ की प्राप्ति होती है,
बहुब्रीहि समास
कहलाता है, जैसे- अनंत
(जिसका कोई अंत न हो = आकाश /ईश्वर), लंबोदर (लंबा है उदर जिसका = गणेश) आदि।
(च) द्विगु समास- वह समास
जिसमें पहला पद संख्यावाची शब्द होता है, द्विगु समास कहलाता है, जैसे- त्रिभुवन, पंचवटी, अष्टाध्यायी, दोपहर, चौमासा, सतसई, चौराहा, दुपट्टा, चहारदिवारी
आदि।
हिंदी में समास
के माध्यम से संज्ञा, जैसे- ताजमहल,
राजदरबार आदि; सर्वनाम, जैसे-
कोई-न-कोई आदि; विशेषण, जैसे- मूढ़मति, क्षमाप्रार्थी आदि; क्रिया,
जैसे- खाना-पीना, दौड़-भाग आदि; क्रियाविशेषण, जैसे- रातोंरात, सुबह-शाम आदि सभी शब्दवर्गों के
शब्द बनते हैं। भोलानाथ तिवारी (2004) द्वारा ‘हिंदी भाषा की
संरचना’ में वाक्य स्तर पर समासों की भी बात की गई है, जैसे- दहीबड़ा- बड़ा जो दही में पड़ा हो, डाकघर- घर जो
डाक के लिए हो आदि। अर्थ की दृष्टि से भी सामासिक शब्दों को दो वर्गों में रखा जा
सकता है, एक- वे सामासिक शब्द जिनमें मूल शब्दों का अर्थ
परिवर्तित नहीं होता, जैसे- देशभक्ति,
यथाशीघ्र आदि; दो- वे सामासिक शब्द जिनमें मूल शब्दों का
अर्थ परिवर्तित हो जाता है, जैसे- बारहसिंहा, दशानन, जलपान आदि।
5.5 संधिकृत शब्द
जब दो शब्दों
को मिलाने पर ध्वन्यात्मक परिवर्तन भी होता है तो इस ध्वनि-परिवर्तन को संधि कहते हैं। यह
परिवर्तन सामान्यतः प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण और द्वितीय शब्द के प्रथम वर्ण में
होता है। वैसे इसके कुछ अपवाद (जैसे– घुड़दौड़) भी हैं, जिनमें शब्द के अंदर
संधि हुई है। शब्द के बाहर और अंदर होने वाले परिवर्तन के आधार पर वर्तमान में
संधि के दो वर्ग किए जा रहे हैं- बाह्य संधि और आंतरिक/आभ्यंतर संधि। हिंदी में
संधि मूलतः संस्कृत से ही आई है। अतः संस्कृत व्याकरण परंपरा के आधार पर संधि के
निम्नलिखित प्रकार किए जाते हैं-
(क) स्वर संधि- जब दो शब्दों
का योग करने पर स्वरों में परिवर्तन होता है तो इस संधि को स्वर संधि कहते हैं।
इसके चार प्रकार हैं-
· दीर्घ संधि - (अ+अ/अ+आ/आ+आ
= आ) देव + आलय = देवालय, (इ+इ/इ+ई/ई+ई =ई) गिरि + ईश = गिरीश, (उ+उ/उ+ऊ/ऊ+ऊ = ऊ) भानु+उदय = भानूदय। आदि।
· गुण संधि - (अ+ई/आ+ई =
ए) महा+ई = महेश, (अ +उ/आ+उ = ओ) महा+उत्सव = महोत्सव। आदि।
· वृद्धि संधि- (अ + ऐ = ऐ) मत + ऐक्य =
मतैक्य, (अ + औ = औ) परम + औषध = परमौषध। आदि।
· यण संधि- (इ + आ = या)
इति + आदि = इत्यादि। आदि।
(ख) व्यंजन संधि- जब दो शब्दों
का योग करने पर व्यंजनों
में परिवर्तन होता है तो इस संधि को व्यंजन संधि कहते हैं। इसके कुल 12 प्रकार किए गए हैं, जैसे-
· क, च, ट, प का ग, ज, ड, ब,
जैसे- वाक् + ईश = वागीश। (नियम- अनुनासिक के अलावा कोई घोष ध्वनि आने पर।
· त् का द्
, जैसे- सत् + बुद्धि = सद्बुद्धि। (नियम- त’ के बाद
किसी स्वर या ‘ग, घ, द, ब, भ, य, र,व’
के आने पर)।
इसी प्रकार
विभिन्न स्थितियों में व्यंजनों में परिवर्तन देखा जा सकता है।
(ग) विसर्ग संधि : विसर्ग के
बाद विभिन्न प्रकार की ध्वनियों के आने से होने वाले वर्ण परिवर्तन को विसर्ग संधि
कहते हैं। इसमें सात प्रकार के परिवर्तन होते हैं, जैसे – विसर्ग के बाद ‘अ’ का ‘ओ’ में परिवर्तन (मन: + बल à मनोबल), ‘र’ में परिवर्तन (जैसे – दु:
+ उपयोग à दुरुपयोग) आदि।
संधि को भी
समास का एक उपप्रकार माना गया है क्योंकि संधि में भी मूल प्रक्रिया दो शब्दों को
जोड़ने की ही होती है, इसमें शब्द योग के साथ-साथ ध्वनि-परिवर्तन
भी होता है। अतः यह प्रक्रिया शब्द और ध्वनि दोनों से जुड़ी हुई है। इसलिए कुछ
विद्वान इसे ध्वनि-संरचना के अंतर्गत भी रखते हैं। ‘संधि’ मूलतः ध्वनि संरचना और शब्द संरचना के बीच की कड़ी है, जिसका अध्ययन आधुनिक भाषाविज्ञान में स्वनिमविज्ञान (Phonology/Phonemics)
और रूपविज्ञान (Morphology) की संयुक्त शाखा
रूपस्वनिमविज्ञान (Morpho-phonology/Morphophonemics) के
अंतर्गत किया जाता है।
5.6 अन्य शब्द
हिंदी में
अधिकांश शब्द उपसर्ग/प्रत्यय योजन, समास और संधि से बनते
हैं, किंतु इनके अलावा और भी कुछ युक्तियाँ हैं, जिनसे शब्दों का निर्माण होता है। इन युक्तियों से बनने वाले शब्दों की
चर्चा ऊपर ‘शब्द के प्रकार’ के अंतर्गत
की जा चुकी है। उनकी संरचना के विश्लेषण संबंधी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं-
(क) पुनरुक्त शब्द- हिंदी में कई
प्रकार से पुनरुक्त शब्दों की रचना होती है, जैसे-
पूर्ण
पुनरुक्ति- संज्ञा, जैसे- घर-घर; सर्वनाम, जैसे- मैं-मैं;
क्रिया, जैसे- खा-खा; विशेषण, जैसे- सुंदर-सुंदर; क्रियाविशेषण, जैसे- जहाँ-जहाँ आदि।
आंशिक
पुनरुक्ति- जैसे- संज्ञा, जैसे- पानी-वानी; सर्वनाम, जैसे- तुम-तड़ाम;
क्रिया, जैसे- खाना-वाना; विशेषण, जैसे- सुंदर-उंदर; क्रियाविशेषण, जैसे- जहाँ-तहाँ आदि।
स्वरागम- जैसे- माल
+माल = मालामाल, रात + रात- रातोंरात।
स्वर-परिवर्तन- जैसे- कट-कुट, छेड़-छाड़ आदि।
व्यंजनागम- जैसे-
इमली-शिमली आदि।
व्यंजन-परिवर्तन-
जैसे- मोटा-झोटा, लटके-झटके आदि।
बीच में उपसर्ग- जैसे-
वाद-विवाद, दिन-प्रतिदिन आदि।
बीच में परसर्ग- जैसे-
गाँव-का-गाँव, जैसा-का-वैसा आदि।
बीच में ‘न’- जैसे- कोई-न-कोई, किसी-न-किसी आदि।
इसी प्रकार
पुनरुक्त शब्दों की संरचना का विश्लेषण किया जा सकता है।
(ख) प्रतिध्वन्यात्मक
शब्द – प्रतिध्वन्यात्मक शब्द भी पुनरुक्त शब्द ही होते हैं, जैसे- खट-खट, भौं-भौं,
धाँय-धाँय, सर्र-सर्र आदि।
(ग) संक्षिप्त रूप
और संकुचित शब्द – ये दोनों मूलतः अंग्रेजी जैसी भाषाओं में से
संबद्ध हैं। इसलिए हिंदी में इनकी संरचना का विश्लेषण अपेक्षित नहीं है।
(घ) परिवर्णी शब्द– परिवर्णी
शब्दों का निर्माण अंग्रेजी के प्रभाव से हिंदी में आया है, किंतु आज इनका प्रयोग व्यापक पैमाने पर हो रहा है। परिवर्णी शब्दों की
संरचना को उनमें आए प्रत्येक वर्ण के पूर्ण शब्द को ज्ञात करके विश्लेषित किया जा
सकता है, जैसे- भाजपा = भारतीय जनता पार्टी, रासेयो = राष्ट्रीय सेवा आयोग। रोमन वर्णों से बने परिवर्णी शब्दों को
अंग्रेजी शब्दों के माध्यम से जाना जा सकता है, जैसे-
UGC (यू.जी.सी.)- University Grants Commition आदि। अंग्रेजी के कुछ परिवर्णी शब्दों में एक ही शब्द के एकाधिक वर्ण लिए
गए रहते हैं, इसलिए ऐसे शब्दों में प्रत्येक वर्ण (letter)
का विस्तार अपेक्षित नहीं होता, जैसे- M.Phil.
(एम.फिल.) Master of Philosophy. इसी प्रकार
कुछ शब्दों में क्रम आगे-पीछे भी किया जा सकता है, जैसे- Ph.D.
– Doctorate/Doctor of Philosophy.
(ङ) कतित रूप – ऐसे शब्दों का हिंदी में निर्माण के बजाए देवनागरीकरण ही किया जाता है।
इसलिए इनकी संरचना के संबंध में भी यहाँ विस्तार नहीं दिया जा रहा है।
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पर खुलने वाली फाइल में पृष्ठ 93 पर जाएँ-
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ReplyDeleteआदरणीय महोदय,आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके इस ब्लॉग पर प्रदत्त सामग्री मेरे लिए परीक्षा में बहुत सहायक सिद्ध हुई।🙏
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