1.जरा गन्दे बन जाइए-
पर्यावरण को बचाना है तो बार-बार नहाना, गमकते साबुन, कीटाणुरोधी लोशन, शेम्पू, कंडीशनर, डिओडोरेंट का उपयोग कम करना होगा। दिन में कई बार कपड़े बदलने, उन्हें झागदार डिटर्जेंट, क्लॉथ सॉफ्टनर, क्लॉथ फ्रेगरेंटिव से धोने से बचना होगा। साफ सुथरा आँगन, धुल कर झूमते पौधे, नहाई हुई कार-बाइक कल हमारे बच्चों के लिए प्यासे मरने का कारण बनेगी। रूम फ्रेशनर, टायलेट फ्रेशनर सब चोंचले हैं।
2. आदिम बन जाइए-
गजेट्स के नवीनतम मॉडल खरीदने की सनक से बचें। जब तक चले अपना पुराना फोन, लेपटॉप, फ्रिज, एसी, माइक्रो, गाड़ी उपयोग में लें। पंखे से चल सकता है वहाँ कूलर न चलाएं और जहाँ कूलर से चल सकता है वहाँ एसी न चलाएं। प्रोसेस्ड फ़ूड, परफ्यूम, सेनिटाइजर, टिश्यू पेपर, टॉयलेट पेपर का उपयोग यथासंभव कम करें। सेनिटरी पैड की जगह सेनिटरी कप काम में लें और जब जरूरी न हो बच्चे को डायपर न पहनाएं। अपने टॉवल कम धोएं, कंघा, ब्रश समय से पहले न बदलें। पीने का पानी खुद के बर्तनों में साथ ढोने की आदत डालें। जहां हाथ चलनी, कद्दूकस, हाथ की बिलोनी से काम चले वहां मिक्सर को तकलीफ न दें। उसका तामझाम बहुत समय और पानी लेगा। आकर्षक प्लास्टिक के समान, मोहक नॉन स्टिक बर्तनों के मायाजाल में न बिलमाएँ। धातु और कांच के बर्तन बरतें, फकीरी के ठाठ का आनन्द लें
3- कंजूस बन जाइए-
हर वस्तु का पूर्ण उपयोग करने से आपकी जेब भारी रहेगी और और धरती हल्की। कम खरीदें, अपरिग्रही बनें, दिखावे से बचेंगे तो अपनी और धरती दोनों की लाज बनी रहेगी। हर सामान खरीदकर घर को दुकान बनाने से आपको कोने में सिमटकर बैठना पड़ेगा सो अलग।
4. भावुकता के साथ यथार्थवादी बनें-
जो सामान आपके उपयोग का नहीं उसे निशानी, स्मृतियों के नाम से सहेज कर रखने का कोई फायदा नहीं, अपने हाथों किसी को उपयोग के लिए देदें। यकीन मानिए आपके बाद तक वो चीज बची रही तो आपके परिजन बिना भावना लगाए कुपात्र को दे देंगे या बेदर्दी से फेंक देंगे
5. फेंसी या फैशनेबल डरपोक होने से बचें-
छिपकली-कॉकरोच, चूहे, चींटी ही नहीं, हमारे आसपास बसे अधिकांश प्राणी निरीह होते हैं उन्हें मारने से बचें. याद रहे, ये धरती सब के लिए और सबके कारण है। बेवजह किसी प्राणी को न मारें। दुनिया भर के धर्म गर्न्थो में अहिंसा का पाठ बेवजह नहीं लिखा है।
6. फेंसी नज़ाकत छोड़े-
जो काम खुद कर सकते हैं करें। बात बात में वाहन को कष्ट न दें। पैदल चलें, सीढियां चढ़ें, रसोई के दाल-चावल सब्जी का पानी जरा किचिन गार्डन में डाल आएँ, वाशिंग मशीन के पानी से आँगन धो डालें। अपने बगीचे को भी मितव्ययिता सिखाएं। वो भी आपके साथ कम में जी सकते हैं, आजमा कर देख लें।
7. पौधों से बात करें-
यकीन मानिए इस आपाधापी के जमाने में किसी को किसी से बात करने का समय नहीं है, तो अपने पास उपलब्ध जगह और संसाधनों के सहारे घर में और घर के आसपास पौधे लगाएं, उनसे बतियाएं। वो फल-फूल कर जवाब जरूर देंगे। आपकी आंखों को ही नहीं, देह, मन, जीभ और बिजली के बिल को भी सुख देंगे।
8. महीप होने का सपना त्याग दें-
याद रखें कि अकबर और अशोक का साम्राज्य भी नहीं रहा। धरती न बढ़ सकती है न मल्टी स्टोरी खेती हो सकती है। नदियां तो एकदम ही जिद्दी हैं, मर जाती हैं लेकिन उजड़ने का बदला ले कर। वो आपको उजाड़े बिना नहीं मानती। इसलिए जरूरत भर के बसेरे के स्वामित्व में सुख पाएं।
9. बाजार के मायाजाल से बचें-
बाजार चालाकी से आपको सुरसा बनाएगा, अगड़म-बगड़म, अनावश्यक कचरा खरीदने के लिए उकसाएगा, आप फक्कड़पन से कबीर बनने पर अड़े रहना।
10. जिएं और जीने दें, वरना कोई नहीं बचेगा।
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पर्यावरण को बचाना है तो बार-बार नहाना, गमकते साबुन, कीटाणुरोधी लोशन, शेम्पू, कंडीशनर, डिओडोरेंट का उपयोग कम करना होगा। दिन में कई बार कपड़े बदलने, उन्हें झागदार डिटर्जेंट, क्लॉथ सॉफ्टनर, क्लॉथ फ्रेगरेंटिव से धोने से बचना होगा। साफ सुथरा आँगन, धुल कर झूमते पौधे, नहाई हुई कार-बाइक कल हमारे बच्चों के लिए प्यासे मरने का कारण बनेगी। रूम फ्रेशनर, टायलेट फ्रेशनर सब चोंचले हैं।
2. आदिम बन जाइए-
गजेट्स के नवीनतम मॉडल खरीदने की सनक से बचें। जब तक चले अपना पुराना फोन, लेपटॉप, फ्रिज, एसी, माइक्रो, गाड़ी उपयोग में लें। पंखे से चल सकता है वहाँ कूलर न चलाएं और जहाँ कूलर से चल सकता है वहाँ एसी न चलाएं। प्रोसेस्ड फ़ूड, परफ्यूम, सेनिटाइजर, टिश्यू पेपर, टॉयलेट पेपर का उपयोग यथासंभव कम करें। सेनिटरी पैड की जगह सेनिटरी कप काम में लें और जब जरूरी न हो बच्चे को डायपर न पहनाएं। अपने टॉवल कम धोएं, कंघा, ब्रश समय से पहले न बदलें। पीने का पानी खुद के बर्तनों में साथ ढोने की आदत डालें। जहां हाथ चलनी, कद्दूकस, हाथ की बिलोनी से काम चले वहां मिक्सर को तकलीफ न दें। उसका तामझाम बहुत समय और पानी लेगा। आकर्षक प्लास्टिक के समान, मोहक नॉन स्टिक बर्तनों के मायाजाल में न बिलमाएँ। धातु और कांच के बर्तन बरतें, फकीरी के ठाठ का आनन्द लें
3- कंजूस बन जाइए-
हर वस्तु का पूर्ण उपयोग करने से आपकी जेब भारी रहेगी और और धरती हल्की। कम खरीदें, अपरिग्रही बनें, दिखावे से बचेंगे तो अपनी और धरती दोनों की लाज बनी रहेगी। हर सामान खरीदकर घर को दुकान बनाने से आपको कोने में सिमटकर बैठना पड़ेगा सो अलग।
4. भावुकता के साथ यथार्थवादी बनें-
जो सामान आपके उपयोग का नहीं उसे निशानी, स्मृतियों के नाम से सहेज कर रखने का कोई फायदा नहीं, अपने हाथों किसी को उपयोग के लिए देदें। यकीन मानिए आपके बाद तक वो चीज बची रही तो आपके परिजन बिना भावना लगाए कुपात्र को दे देंगे या बेदर्दी से फेंक देंगे
5. फेंसी या फैशनेबल डरपोक होने से बचें-
छिपकली-कॉकरोच, चूहे, चींटी ही नहीं, हमारे आसपास बसे अधिकांश प्राणी निरीह होते हैं उन्हें मारने से बचें. याद रहे, ये धरती सब के लिए और सबके कारण है। बेवजह किसी प्राणी को न मारें। दुनिया भर के धर्म गर्न्थो में अहिंसा का पाठ बेवजह नहीं लिखा है।
6. फेंसी नज़ाकत छोड़े-
जो काम खुद कर सकते हैं करें। बात बात में वाहन को कष्ट न दें। पैदल चलें, सीढियां चढ़ें, रसोई के दाल-चावल सब्जी का पानी जरा किचिन गार्डन में डाल आएँ, वाशिंग मशीन के पानी से आँगन धो डालें। अपने बगीचे को भी मितव्ययिता सिखाएं। वो भी आपके साथ कम में जी सकते हैं, आजमा कर देख लें।
7. पौधों से बात करें-
यकीन मानिए इस आपाधापी के जमाने में किसी को किसी से बात करने का समय नहीं है, तो अपने पास उपलब्ध जगह और संसाधनों के सहारे घर में और घर के आसपास पौधे लगाएं, उनसे बतियाएं। वो फल-फूल कर जवाब जरूर देंगे। आपकी आंखों को ही नहीं, देह, मन, जीभ और बिजली के बिल को भी सुख देंगे।
8. महीप होने का सपना त्याग दें-
याद रखें कि अकबर और अशोक का साम्राज्य भी नहीं रहा। धरती न बढ़ सकती है न मल्टी स्टोरी खेती हो सकती है। नदियां तो एकदम ही जिद्दी हैं, मर जाती हैं लेकिन उजड़ने का बदला ले कर। वो आपको उजाड़े बिना नहीं मानती। इसलिए जरूरत भर के बसेरे के स्वामित्व में सुख पाएं।
9. बाजार के मायाजाल से बचें-
बाजार चालाकी से आपको सुरसा बनाएगा, अगड़म-बगड़म, अनावश्यक कचरा खरीदने के लिए उकसाएगा, आप फक्कड़पन से कबीर बनने पर अड़े रहना।
10. जिएं और जीने दें, वरना कोई नहीं बचेगा।
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