🌹 नरसींह-गाथा 🌹
जब अपने पिता राजा शुद्धोधन के आग्रह पर भगवान बुद्ध कपिलवस्तु पधारे थे, उस समय राहुल-माता यशोधरा ने राहुल को इन्हीं शब्दों में तथागत का परिचय दिया था।
🍂चक्कवरङ्कितरत्त-सुपादो,
लक्खणमण्डितआयतपण्हि ।
चामरछत्तविभूसितपादो,
एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥१॥🍂
🌷जिनके रक्तवर्ण चरण चक्र से अलंकृत हैं, जिनकी लंबी एड़ी शुभ लक्षण वाली है, जिनके चरण पर चंवर तथा छत्र अंकित हैं, जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥१॥🌷
🍂सक्यकुमारवरो सुखुमालो,
लक्खणचित्तिकपुण्णसरीरो।
लोकहिताय गतो नरवीरो,
एस हि तुम्ह पिता नरसीहो॥२॥🍂
🌷जो कुमार श्रेष्ठ शाक्य सुकुमार हैं, जिनका संपूर्ण शरीर सुंदर लक्षणों से चित्रित है, नरों में वीर, जिन्होंने लोक-हित के लिए गृह-त्याग किया है; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं॥२॥🌷
🍂पुण्णससङ्कनिभो मुखवण्णो,
देवनरान पियो नरनागो।
मत्तगजिन्दविलासितगामी,
एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥३॥🍂
🌷जिनका मुख पूर्ण चंद्र के समान प्रकाशित है, जो नरों में हाथी के समान हैं तथा सभी देवाताओं और नरों के प्रिय हैं, जिनकी चाल मस्त गजेंद्र की सी है; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं॥३॥🌷
🍂खत्तियसम्भवअग्गकुलीनो,
देवमनुस्सनमस्सितपादो।
सीलसमाधिपतिहितचित्तो,
एस हि तुम्ह पिता नरसीहो॥४॥🍂
🌷नरों के प्रिय हैं, जिनकी चाल मस्त गजेंद्र जो अग्र क्षत्रिय कुलोत्पन्न हैं, जिनके चरणों की सभी देव और मनुष्य वंदना करते हैं, जिनका चित्त शील-समाधि में सुप्रतिष्ठित है; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं॥४॥🌷
🍂आयतयुत्तसुसण्ठितनासो,
गोपखुमो अभिनीलसुनेत्तो।
इन्दधनुअभिनीलभमूको,
एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥५॥🍂
🌷जिनकी नासिका चौड़ी तथा सुडौल है, बछिया की सी जिनकी बरौनियाँ हैं, जिनके नेत्र सुनील वर्ण हैं, जिनकी भौहें इन्द्र धनुष के समान हैं, जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं ॥५॥🌷
🍂वसुबट्ट-सुसण्ठित-गीवो,
सीहहनु मिगराजसरीरो।
कञ्चनसुच्छवि उत्तमवण्णो,
एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥६॥🍂
🌷जिनकी ग्रीवा गोलाकार है, सुगठित है, जिनकी ठोड़ी सिंह के समान है तथा जिनका शरीर मृगराज के समान है, जिनका वर्ण सुवर्ण के समान उत्तम है; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं॥६॥🌷
🍂सिनिद्धसुगम्भीरमञ्जुसुघोसो,
हिङ्गुलबद्ध-सुरत्तसुजिव्हो।
वीसति वीसति सेतसुदन्तो,
एस हि तुम्ह पिता नरसीहो ॥७॥🍂
🌷जिनकी वाणी स्निग्ध, गंभीर, सुंदर है; जिनकी जिह्वा सिंदूर के समान रक्त-वर्ण है, जिनके मुँह में श्वेत वर्ण के बीस-बीस दांत हैं; जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं॥७॥🌷
🍂अञ्जनवण्णसुनीलसुकेसो,
कञ्चनपट्टविसुद्धनलाटो।
ओसधिपण्डरसुद्धसुउण्णो,
एस हि तुव्ह पिता नरसीहो ॥८॥🍂
🌷जिनके केश सुरमे के समान नीलवर्ण हैं, जिनका ललाट स्वर्ण के समान विशुद्ध है, जिनके भौंहों के बीच के बाल औषधि तारे के समान हल्का पीला है, जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं॥८॥🌷
🍂गच्छति नीलपथे विय चन्दो,
तारगणापरिवेठितरूपो।
सावकमज्झगतो समणिन्दो,
एस हि तुम्ह पिता नरसीहो॥९॥🍂
🌷जो आकाश में चन्द्रमा की भांति बढ़े जा रहे हैं, जो (श्रमणेन्द्र) अपने श्रावकों से उसी प्रकार घिरे हुए हैं जैसे चंद्रमा तारों से, जो नरों में सिंह हैं, यही तेरे पिता हैं॥९॥🌷
- सारत्थ. टी. ३.२२१-२२३,
राहुलवत्थुकथावण्णना
🙏🙏🙏
No comments:
Post a Comment