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जिस उर्दू भाषा को आज हम जानते हैं उसका इतिहास हमें तुर्की, अरबी और फ़ारसी ज़बान में मिलता है. ये सभी भाषाएं व्यापार और सैन्य अभियानों के साथ अलग-अलग समय में भारत आईं.
इतिहासकार आलोक राय कहते हैं, "ये आम भाषा भारतीय उपमहाद्वीप में अलग-अलग संस्कृतियों के मिलन से पैदा हुई है. अलग-अलग समय में इसे हिंदवी, हिंदुस्तानी, हिंदी, उर्दू और रेख़्ता जैसे नाम दिए गए."
डॉक्टर राय का कहना है, "उर्दू ज़बान को इसकी आम बोली जाने वाली ज़बान से अलग करने के लिए कुछ अंशों का इस्तेमाल किया जाता है और ये सिलसिला मुग़ल दौर के आख़िर में शुरू हुआ था."
उर्दू को आज की तरह उस वक़्त मुसलमानों की ज़बान नहीं समझा जाता था. लेकिन इसमें सामाजिक तबक़े का अमल-दख़ल था. ये वो भाषा थी जिसे उत्तरी भारत का अभिजात वर्ग इस्तेमाल करता था जिसमें हिंदू भी शामिल थे.
जबकि दूसरी तरफ़ हिंदी की साहित्यिक शैली 19वीं और 20वीं सदी के आख़िर में मौजूदा उत्तर प्रदेश में तैयार की गई थी.
अलबत्ता उर्दू ज़बान के बहुत से अल्फ़ाज़ फ़ारसी, जबकि हिंदू ज़बान के शब्द संस्कृत, और प्राचीन हिंदू लिपियों से लिए गए थे.
डॉक्टर राय कहते हैं, "लिहाज़ा दोनों ज़बानों का आधार एक सामान्य व्याकरण है. लेकिन हिंदू और उर्दू के सियासी कारण भी हैं."
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