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Thursday, September 5, 2024

न्यूरोभाषाविज्ञान की विषयवस्तु (Scope of Neurolinguistics)

 न्यूरोभाषाविज्ञान की विषयवस्तु

 न्यूरोभाषाविज्ञान के अंतर्गत भाषा और मानव मस्तिष्क से जुड़े कुछ प्रश्नों का उत्तर ढूढ़ने का प्रयास किया जाता जाता है; जैसे- भाषिक सूचनाएँ मस्तिष्क में कहाँ संसाधित होती हैं? भाषा संसाधन मस्तिष्क में किस प्रकार घटित होता है? मस्तिष्क संरचनाएँ किस प्रकार भाषा अर्जन और भाषा अधिगम से जुड़ी हुई हैं? आदि। इसके लिए न्यूरोभाषाविज्ञान में मानव मस्तिष्क का न्यूरोशरीरशास्त्रीय (neurophysiological) विश्लेषण किया जाता है और विविध पक्षों पर प्रकाश डाला जाता है। इसे निम्नलिखित शीर्षकों के द्वारा समझा जा सकता है:

(1)  भाषा संसाधन का क्षेत्र निर्धारण (Localization of Language processing):- न्यूरोभाषाविज्ञान में मानव मस्तिष्क में भाषा से संबंधित विशिष्ट स्थानों (specific locations) का परीक्षण और विश्लेषण एक प्रमुख कार्य है। आरंभ में ब्रोका और वरनिके क्षेत्रों के निर्धारण के कार्य ने इसे आधार प्रदान किया। इसमें मुख्यतः इन बातों को देखा जाता है कि भाषिक सूचनाओं के संसाधन के समय मानव मस्तिष्क में कौन सी गतिविधियाँ होती हैं? क्या किसी विशेष प्रकार कि सूचना का संसाधन मस्तिष्क के किसी विशेष क्षेत्र में किया जाता है? भाषिक सूचनाओं के संसाधन के समय मस्तिष्क के भिन्न-भिन्न क्षेत्र किस प्रकार अंतरक्रिया (interaction) करते हैं? और किसी व्यक्ति द्वारा मातृभाषा के अतिरिक्त दूसरी भाषा का व्यवहार करने पर किस प्रकार मस्तिष्क के सक्रिय भाग में परिवर्तन होता है। इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर स्वरूप किए जाने वाले शोधकार्यों द्वारा मानव मस्तिष्क में संसाधन के क्षेत्र निर्धारण का कार्य होता है।

(2)  भाषा अर्जन (Language Acquisition):- न्यूरोभाषाविज्ञान मानव मस्तिष्क और भाषा अर्जन के बीच संबंधों को देखता है। भाषा अर्जन से संबंधित सामान्य शोधकार्यों में शिशु में भाषा विकास संबंधी चरणों की बात की गई है; जैसे- बबलाना, एक शब्दीय उच्चारण आदि। न्यूरोभाषावैज्ञानिक शोधकार्यों में भाषा विकास के चरणों और मस्तिष्क विकास के चरणों के बीच संबंधों को देखने का प्रयास किया गया है। कुछ अन्य शोध कार्यों में उन भौतिक परिवर्तनों का भी परीक्षण किया जाता है। जिनसे द्वितीय भाषा अर्जन (Second Language Acquisition) के दौरान मानव मस्तिष्क  गुजरता है। इसे neuroplasticity नाम दिया गया है।

(3)  भाषा चिकित्सा (Language pathology) :-  न्यूरोभाषावैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग भाषा संबंधी व्याधियों जैसे:- अफेजिया, डिसलेक्सिया आदि के अध्ययन में किया जाता है। इसमें मस्तिष्क की भौतिक विशेषताओं से इनके संबंध को भी देखा जाता है।

(4)  मस्तिष्क चित्रण (Brain Imaging) :- भाषावैज्ञानिक और मनोभाषावैज्ञानिक मॉडलों के परीक्षण के लिए न्यूरोभाषाविज्ञान में मस्तिष्क चित्रण पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। इन पद्धतियों को मुख्यतः दो वर्गों में रखा जा सकता है:

(क)  रक्तसक्रिय/हीमोडायनेमिक (hemodynamic)

(ख) विद्युतदैहिक/इलेक्ट्रोफिजिओलोजिकल (electrophysiological)

 (क) हीमोडायनेमिक (hemodynamic):- मस्तिष्क चित्रण की यह तकनीक इस तथ्य के आधार पर कार्य करती है कि जब मस्तिष्क का कोई विशिष्ट भाग किसी कार्य को करता है तो उस क्षेत्र में ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए रक्त भेज दिया जाता है। मस्तिष्क में होने वाली इस प्रकार की क्रियाओं के दौरान परीक्षण से प्राप्त संकेतों और चित्रों को Blood Oxygen Level-Dependent (BOLD) रिस्पांस कहा गया है। PET (Poistron Emission Tomography), और FMRI (Functional Magnetic Resonance Imaging) आदि तकनीकों द्वारा इस प्रकार का परीक्षण किया जाता है।

 (ख) इलेक्ट्रोफिजिओलोजिकल (electrophysiological):- इलेक्ट्रोफिजिओलोजिकल तकनीकों में इस बात (तथ्य) को आधार बनाया जाता है कि जब न्यूरानों का समूह एक साथ छूटता है तब वे एक विद्युतिक द्विध्रुव (electric dipole) या धारा का निर्माण करते हैं। EEG (Electroen cephalography) और MEG (Magnetoencephalography) इसकी दो प्रमुख तकनीकें हैं। ईईजी में खोपड़ी पर लगे इलेक्ट्रोडों की सहायता से मस्तिष्क के विद्युत क्षेत्रों को मापा जाता है और MEG में मस्तिष्क के प्रक्षेत्र की विद्युतिक गतिविधि (electrical activity) द्वारा निर्मित चुम्बकीय क्षेत्रों का मापन अतिसंवेदनशील युक्तियों (extremely sensitive devices) द्वारा किया जाता है।

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