डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय
एसोसिएट प्रो. एवं अध्यक्ष, भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
प्रत्येक भाषा में
लिंग व्यवस्था का स्वरूप बहुत ही व्यवस्थित व नियमपरक होना चाहिए| क्योंकि वाक्यगत संरचनाओं में लिंग का अपना
महत्व होता है| कुछ भाषाओं लिंग का प्रभाव क्रिया पर नहीं पड़ता
तो कुछ में कर्ता आदि पर, परन्तु अधिकांश भाषाओं में वाक्यविन्यासी स्तर पर लिंग
का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है| प्रत्येक भाषा में
लिंगों की संख्या भिन्न-भिन्न हैं| जहाँ संस्कृत में
पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसक लिंग है, अंग्रेजी में पुल्लिंग स्त्रीलिंग व नपुंसक
लिंग तीन-तीन लिंग की व्यवस्था दी गयी है वहीँ हिंदी में दो ही लिंग पुल्लिंग व
स्त्रीलिंग की व्यवस्था है| अन्य भाषाओं के इन लिंगों की व्यवस्था में जो
तीसरे प्रकार का लिंग (नपुंसक लिंग) है उसे इन्हें दोनों कोटियों में रखा गया है| अब सवाल यह है कि किसको कहाँ रखा गया है| उसका अपना कोई सिद्धांत भी नहीं है कि अमुक
सिद्धांत के आधार पर इन्हें अलग- अलग रखा जा सके| सजीव
शब्दों का तो लिंग निर्धारण आसानी से किया जा सकता है, जैसे – पुरुष-महिला,
राजा-रानी, माता-पिता, गाय-बैल, हाथी-हाथिनी, घोड़ा-घोड़ी, नर पक्षी, मादा पक्षी, नर
कीट, मादा कीट आदि|
हिंदी में पशु व पक्षी वाचक कुछ जाति वाचक शब्दों
को पुल्लिंग व स्त्रीलिंग की कोटि में रखा गया है जैसे – पुल्लिंग-कौआ, खटमल,
सारस, चिता, उल्लू, केंचुआ, भेड़िया आदि|
स्त्रीलिंग-कोयल, छिपकली, लोमड़ी, दीमक, चील,
मैना, गिलहरी, तितली, मक्खी आदि|
उपर्युक्त पुल्लिंग
वर्ग के शब्दों को यदि स्त्रीलिंग के रूप में प्रयुक्त करना हो तो उस शब्द के पूर्व
‘मादा’ शब्द जोड़ना होगा (मादा उल्लू-मादा कौआ तथा स्त्रीलिंग वर्ग के शब्दों को
यदि पुल्लुंग के रूप प्रयुक्त करना हो तो उस शब्द के पूर्व नर शब्द जोड़ना होगा (नर
कौआ, नर छिपकली)|
सर्वनामों में लिंग का निर्धारण संदर्भ से किया
जाता है| वह, यह, हम, मैं, तुम, आप आदि सर्वनाम शब्दों का
लिंग निर्धारण संदर्भ से ही किया जा सकता है| उदहारण के लिए –
वह आ रहा है/ आ रही है|
तुम आ जाओ| (यहाँ संदर्भ से ही
निर्धारित किया जा सकता है कि आने वाला पुरुष लिंग है अथवा स्त्री लिंग)|
तुम कब जाओगे ?
तुम कब आओगी ?
आप कौन हैं?
मैं आ रहा हूँ/ आ रहीं हूँ|
वह लड़का है / वह लड़की है|
ऊपर दिए गये उदाहरणों में सर्वनामों का प्रयोग
दोनों लिंगों में किया जा सकता है परंतु इनके स्थान पर यदि संज्ञा शब्द का प्रयोग
करेंगे तब वहाँ पुरूषवाची संज्ञा व स्त्रीवाची संज्ञा का प्रयोग अलग-अलग होगा जैसे
–
लड़का आ रहा है|
लड़की आ रही है|
श्याम आ जाओ|
राधा आ जाओ|
राम लड़का है|
सीता लड़की है|
सजीव शब्दों में भी कुछ ऐसे वाक्य प्रयोग किए
जाते हैं जो पुरुष व स्त्री दोनों के वाचक होते हैं परंतु उन्हें या तो पुल्लिंग
की कोटि में रखा गया है अथवा स्त्रीलिंग की कोटि में|
पुल्लिंग-मनुष्य, मानव, पशु, अभिभावक, औलाद,
समाज, पक्षी, विद्यार्थी| स्त्रीलिंग-संतान, भीड़, चिड़िया, मक्खी|
पशु वर्ग में अधिकाशत: शब्द के पुल्लिंग व
स्त्रीलिंग रूप मिलते हैं यथा- गाय-बैल, घोड़ा-घोड़ी, हाथी-हाथिनी, ऊंट-ऊंटनी,
कुत्ता-कुतिया, बाघ-बाघिन, शेर-शेरनी आदि|
परंतु समस्याएँ वहाँ
आती हैं जहाँ निर्जीव अथवा अमूर्त शब्दों के लिंग का निर्धारण करना हो| इसके अलावा मानव अथवा पशु-पक्षियों के शरीर के
लिंग निर्धारण की जब बात हो तो वहाँ भी समस्याएँ खासकर अहिन्दी भाषी के लिए आती
हैं|
प्रस्तुत आलेख का
उद्देश्य है कि अहिन्दी भाषी शिक्षार्थियों के साथ हिंदी भाषाई शिक्षार्थियों के लिए
लिंग निर्धारण के कुछ व्यावहारिक पक्ष प्रस्तुत किये जाएं जिससे कुछ हद तक उस
संदर्भ में आने वाली समस्याओं से छुटकारा मिल सके| चाहे
हिंदी भाषी हो या अहिन्दी भी शिक्षार्थी लिंग निर्धारण की अपेक्षा सरल होता है
उनके लिए हिंदी संज्ञाओं के बहुवचन रूप बनाना| उदाहरण के लिए –
कुर्सी से
कुर्सियां, मेज से मेजें, घोड़ा से घोड़े, लड़का से लड़के, लड़की से लड़कियाँ, चिड़िया से
चिड़ियाँ, भावना से भावनाएँ, पुस्तक से पुस्तकें, संकल्पनाएँ, आदतें, सीमाएँ, कथाएँ
आदि| भाषा-भाषाएँ, आशा-आशाएँ, वासना-वासनाएँ,
दिशा-दिशाएँ, पत्रिका-पत्रिकाएँ, रेखा-रेखाएँ, संरचना-संरचनाएँ|
उपर्युक्त उदाहरणों
को देखने से एक बात जो सामने आती है वह यह कि जितनी भी स्त्रीवाची संज्ञाएँ हैं,
बहुवचन रूप बनने पर उसमें ‘एँ’ अथवा ‘याँ’ प्रत्यय जुड़ते हैं जबकि पुरूषवाची
संज्ञाओं में ‘ए’ अथवा शून्य| शून्य से तात्पर्य
है कोई परिवर्तन नहीं होता| शून्य प्रत्यय पुरूषवाची एवं स्त्रीवाची दोनों
प्रकार के शब्दों में लग सकते हैं| परन्तु पुरूषवाची
शब्दों में शून्य प्रत्यय लगने की संभावनाएँ बहुत अधिक हैं जबकि स्त्रीवाची शब्दों
में बहुत कम|
अधिकांश वैयाकरणों
ने ई अथवा इ कारांत शब्दों को स्त्रीवाची माना है| इ
(हृस्व इ) ईकारांतशब्द सभी स्त्रीवाची हो सकते हैं (सजीव को छोड़कर) परंतु ई (दीर्घ
ई) कारांत सभी शब्द स्त्रीवाची हो आवश्यक नहीं| उदाहरण के लिए ईकारांतशब्द
–परिस्थिति, प्रकृति, विधि, लिपि, गति, संस्कृति, सिद्धि, स्थिति, आकृति, पूर्ति,
परिस्थिति, शक्ति, पुष्टि, व्यक्ति, उक्ति, रूचि, त्रुटी, राशि, हानि, जाति,
ख्याति, ध्वनि आदि ईकारांतशब्द स्त्रीवाची हैं|
अपवाद रूप में कवि पुल्लिंग है कवियित्री स्त्रीलिंग,
जो सजीव हैं| मणि पुल्लिंग है| ये
शब्द संस्कृत के हैं वहाँ भी पुल्लिंग है|
ईकारांत
शब्द-स्त्रीवाची-इकाई, शैली, आवादी, मनमानी, हिंदी, तलहटी, ऊँचाई, लम्बाई चौड़ाई,
गहराई, दूरी खाड़ी, चेतावनी, सामग्री, गाड़ी, साड़ी, टाई, कड़ाई, चाभी, नाभी, गद्दी,
सर्दी|
ईकारांत पुरूषवाची
शब्द- पानी, दही, पक्षी, विद्यार्थी, पटवारी, आदमी, चौधरी, नाशपाती, दफ्तरी|
अब विशेषण शब्द से
भाववाचक ‘ता’ अन्त प्रत्यय से युक्त भाववाचक संज्ञाओं को देखें-कुशलता, बहुलता,
तीव्रता, आधुनिकता, राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता, मानवता, आवश्यकता, दीर्घता, पशुता,
नम्रता, नग्नता, निरंतरता, प्रभुता, योग्यता, सहायता, एकता, विशेषता, जनता,
भारतीयता, उग्रता, पशुता, अगराजकता, महानता, सुन्दरता, कृतज्ञता, अज्ञानता| दरिद्रता, शीघ्रता, नम्रता, रम्यता, मान्यता, आद्रता,
सदस्यता, मध्यस्थता, दुष्टता, श्रेष्टता, सत्यता, मित्रता, वक्रता, सूक्ष्मता,
शुभ्रता, सभ्यता|
उपर्युक्त सभी
भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग शब्द हैं| हिंदी में ‘ता’
प्रत्यय स्त्री का वाचक है जबकि ‘त्व’ प्रत्यय पुरुष का| जिस संज्ञा शब्द के अंत में ये प्रत्यय जुड़ेंगे,
उसी के अनुरूप लिंग का निर्धारण होगा| जैसे ‘सुन्दरता’
जहाँ स्त्रीवाची शब्द है भीं ‘सौन्दर्य’ पुरूषवाची|
‘निजता’ जहाँ स्त्रीवाची शब्द हैं वहीँ ‘निजत्व’ पुरूषवाची शब्द| ‘गंभीरता’ जहाँ स्त्रीवाची शब्द है वहीँ
गाम्भीर्य पुरूषवाची|
इसी प्रकार अन्य उदाहरण दृष्टव्य हैं –
पुरूषवाची शब्द
अस्तित्व, मातृत्व, भातृत्व, कर्तृत्व, एकत्व,
कृतित्व, द्वित्व, प्रभुत्व पुरूषत्व, पितृत्व आदि|
हिंदी में कुछ अव्यय
भी स्त्रीवाची एवं कुछ पुरूषवाची होते हैं| उनके पूर्व कुछ
परसर्ग (संबंधकारक) जुड़कर पदबंध की रचना करते हैं| यथा- (स्त्रीवाची) – की ओर- की खातिर- की तरफ –
की भाँति|
पुरूषवाची-के वजाय, -के बाद, -के पहले, -के बदले,
-के लिए|
आकारांत शब्द बहुधा स्त्रीवाची होते हैं, जिनका
बहुवचन रूप बनने पर ‘एँ’ प्रत्यय जुड़ता है| जिसका उल्लेख पहले
भी किया जा चुका है, यथा- दिशा, भावना, आशा, प्रशंसा, वासना, निराशा, प्रक्रिया,
सभा, संख्या, रखा, संरचना, क्रिया, आत्मा, हवा, भाषा, सुविधा आदि| परन्तु कुछ आकारांत शब्द पुल्लिंग भी होते हैं
परन्तु बहुवचन रूप बनने पर एँ अथवा याँ नहीं लगते जैसे –चकवा, पत्ता, कत्था,
रूतबा, कटघरा, मट्ठा, बाजरा, हिजड़ा इनके बहुवचन रूप में ‘ए’ जुड़ेगा| चकवे, पत्ते, कत्थे, रूतवे, मट्ठा, बाजरे, हिजड़े
आदि|
कुछ प्रसंगों से हम
किसी शब्दों का लिंग निर्धारण कर सकने में सफल हो सकते हैं| जैसे किसी वाक्य में ‘की’ परसर्ग का प्रयोग हुआ
है तो उसके बाद का पद अथवा शब्द स्त्रीवाची होगा| उदाहरण
के लिए – उनकी कहानी मैंने सुनी है| में ‘की’ परसर्ग के
बाद पद ‘कहानी’ स्त्रीलिंग है| इसी प्रकार हम पाते
हैं कि परसर्ग ‘की’ ‘री’ (मेरी) ‘नी’ (अपनी) परसर्ग के अब्द के शब्द स्त्रीलिंग
होते हैं| इसी प्रकार का, के परसर्ग के बाद का शब्द
पुल्लिंग होता है| परंतु प्रश्न उठता है कि यह निर्धारण संदर्भगत
अथवा वाक्यगत है जो पाठक अथवा प्रयोक्ता के सम्मुख है| परंतु यदि हिंदी प्रयोक्ता को किसी शब्द का लिंग
निर्धारण करना हो तो कैसे करें ?
हिंदी में जहाँ रूप
पुल्लिंग है वहीं उसका पर्याय शब्द आत्मा स्त्रीलिंग| जहाँ ‘पवन’ शब्द पुल्लिंग है वहीँ ‘हवा’ स्त्रीलिंग| जहाँ ‘मौसम’ पुल्लिंग है वहीँ ‘ऋतु’ स्त्रीलिंग| जहाँ ‘नयन’ पुल्लिंग है वहीँ ‘आँख’ स्त्रीलिंग|
जिस प्रकार प्राय:
विशेषण शब्दों में ‘ता’ प्रत्यय जुड़कर भाववाचक संज्ञा बनते हैं जो पहले दिया जा
चुका है उसी प्रकार ‘आवट’ व ‘आहट’ प्रत्यय शब्द के अंत में जुड़कर भाववाचक संज्ञा
बनाते हैं जैसे – आवट- सजावट, लिखावट, रूकावट, मिलावट, बनावट, गिरावट आदि|
आहट – हकलाहट, घबराहट, चिल्लाहट, जगमगाहट,
मुस्कराहट आदि|
इसी प्रकार – इमा प्रत्यय युक्त शब्द गरिमा,
लालिमा, कालिमा, महिमा, हरितिमा आदि संज्ञाएँ स्त्रीवाची हैं|
उपर्युक्त इस प्रकार की सभी भाववाचक स्त्रीलिंग
होती हैं|
परंतु ‘पा’ व ‘पन’ प्रत्ययों के युग से बनने वाली
भाववाचक संज्ञाएँ पुल्लिंग होती हैं जैसे –
-पा-बुढ़ापा, मोटापा आदि
-पन – बचपन, पागलपन, बड़प्पन, छुटपन आदि|
हिंदी में सर्वनाम
वह, यह, मैं, तुम, हम, आप आदि सभी स्वयं कोई लिंग व्यक्त नहीं करते परंतु वाक्य
में प्रयुक्त होने पर विधेय क्रिया अथवा पूरक द्वारा इनका निर्धारण होता है कि ये
स्त्रीलिंग हैं या पुल्लिंग जैसे –
वह लड़का है| (पूरक द्वारा)
वह लड़की है| (पूरक द्वारा)
वह जा रहा है| (क्रिया द्वारा)
वह जा रही है| (क्रिया पूरक)
परन्तु वर्तमान
कालिक स्थिति बोधक सहायक क्रिया अथवा कप्यूला क्रिया है, हैं द्वारा सर्वनाम के
लिंग का निर्धारण नहीं हो पाता| हाँ, भूतकालिक अथवा
संभावनार्थक सहायक क्रिया अथवा भविष्यवाची काल चिह्नक सहायक क्रिया के द्वारा लिंग
की पहचान हो सकती है जैसे –
वह दिल्ली में है
वे दिल्ली में हैं लिंग बाधित
वह दिल्ली में थी
वे दिल्ली में थीं स्त्रीवाची
वह दिल्ली में होगी
वे दिल्ली में होंगी स्त्रीवाची
सामासिक शब्द के पूर्व पद के लिंग के अनुसार ही
विशेषण पदों में परिवर्तन होता है| क्योंकि पूर्वपद ही
उसके निकट होता है –
स्कूल के लड़के लड़कियां मेरे साले, सालियाँ
उनकी बेटी बेटे
परंतु क्रिया पद
द्वितीय पद के लिंग के अनुसार रूपांतरित होता है क्योंकि द्वितीय पद क्रिया के
निकट का पद है – स्कूल के लड़के लड़कियाँ जा चुकी हैं| ( में
लड़कियाँ जो द्वितीय पद है उसके अनुसार क्रिया का प्रयोग स्त्रिलिंग में हो रहा है|
मेरे साले सालियाँ आयी हैं| सालियाँ के अनुसार आयी हैं|
उनकी बेटी बेटे चले गये| ‘बेटे’ के अनुसार चले गये|
प्रस्तुत आलेख के
द्वारा व्यावहारिक रूप से इस समस्या का समाधान ढूढ़ने का प्रयास किया गया है| व्यावहारिक रूप इसलिए कहना उपयुक्त है कि इसे
सिद्धांत नहीं कह सकते क्योंकि सिद्धांत तो सिद्ध होता है परंतु मेरा प्रयास हिंदी
के प्रयोक्ताओं के लिंग निर्धारण सम्बन्धी समस्याओं को कुछ कम करना है|
Very useful
ReplyDeletethanks
ReplyDeleteHello Dr. Dhanji,
ReplyDeleteThanks for the article especially on Hindi Neuter Gender clarification. Can you please explain in detail of Hindi Stri & Pulling applied in Sakarmak & Akarmak Kriya and gender applies in due course??
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