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Thursday, December 26, 2019

अर्थ क्या है?


अर्थ क्या है?
इंद्रिय अनुभवों और विचार प्रक्रिया के माध्यम से हमारे मन में संचित संकल्पनात्मक इकाइयाँ और उनकी व्यवस्था अर्थ हैं। हमारे मन में दो प्रकार से संकल्पनाएँ अवस्थित रहती हैं-
·                  स्वतंत्र इकाइयों के रूप में।
·                  इकाइयों की संयोजित व्यवस्था के रूप में।
स्वतंत्र इकाइयों के रूप में स्थित संकल्पनाओं की अभिव्यक्ति शब्दों के माध्यम से होती है।
इकाइयों की संयोजित व्यवस्था शब्दों से बड़ी इकाइयों, जैसे- पदबंध, वाक्य आदि  के रूप में होता है।
अर्थ का संप्रेषणीय संयोजन वाक्य स्तर होता है। हम अपने दैनिक जीवन में वाक्य का ही प्रयोग करते हैं। वाक्य शब्दों से बनाए जाते हैं। शब्द के दो पक्ष हैं-
ध्वनि और अर्थ
इन्हें आरेख के रूप में इस प्रकार से देखा जा सकता है-

इसे सस्यूर की संकेत की अवधारणा से समझ सकते हैं-
इनमें संकेतक का संबंध ध्वनि पक्ष से और संकेतित का संबंध अर्थ पक्ष से है।


अर्थ के रूप –

(1) चित्रात्मक (पदार्थपरक)
कुर्सी
मेज
(2) परिभाषा या व्याख्यापरक (भाववाचक)
समाज, विचार
(3) ....
पारंपरिक रूप से अर्थ को शब्द के ध्वनिपरक पक्ष के सापेक्ष देखा गया है और शब्द से तात्पर्य शब्द के ध्वन्यात्मक रूप से ही लिया गया है, जबकि शब्द ध्वनि और अर्थ दोनों का मेल होता है। जब हम शब्द स्तर पर बात कर रहे होते हैं तो-
ध्वनि समूह    + स्वतंत्र अर्थ
की बात कर रहे होते हैं, जैसे-
मेज
किताब
किंतु जब हम कहते हैं-
किताब मेज पर है।
तो यह किताब और मेज दोनों के अर्थों की संयोजनीय स्थिति को दर्शाता है। किताब मेज पर है बोलना इस वाक्य का ध्वन्यात्मक पक्ष है। अर्थ की दृष्टि से हमारे मन निम्नलिखित चित्र उभरता है-
ध्वन्यात्मक पक्ष से निर्मित वाक्य तभी सही माने जाते हैं, जब अर्थ की दृष्टि से बाह्य संसार में वह शब्द समूह सार्थक हो। इन्हें निम्नलिखित दो वाक्यों से समझ सकते हैं-
·      पेड़ से पत्ते गिरते हैं।
·      पत्ते से पेड़ गिरते हैं।

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