संस्कृत आचार्यों ने कारक संबंधी
व्याख्या में क्रिया को केंद्र में रखा है और इसे संचालित करने वाले तत्वों अथवा
उनके संबंध को कारक कहा है। पंतजलि ने ‘महाभाष्य’ में कारक को ‘क्रियाजनकत्वं हि करकत्वम्’ कहा है। इसी प्रकार
पाणिनी ने कहा है कि क्रिया के साथ अन्य पदों की निष्पत्ति को कारक कहते हैं। इस
काल में मूलतः 06 कारकों की बात की गई –कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, अधिकरण। कुछ विद्वानों ने विभक्तियों के सापेक्ष देखते हुए 08 कारक भी बताए – कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, संबंध, अधिकरण और संबोधन; किंतु मूलतः 06 कारकों पर ही प्रमुख आचार्यों द्वारा बात की गई है। संस्कृतकाल के पश्चात् इस चिंतन पर कोई उल्लेखनीय कार्य
नहीं हुआ है।
पश्चिम में ‘कारक’
(Case) की अवधारणा पहले से रही है किंतु एक व्याकरण के रूप में
आधुनिक भाषाविज्ञान में इसे फिलमोर (Charles J. Fillmore) ने ही प्रतिष्ठित किया है। इस विषय पर उन्होंने सर्वप्रथम अपना लेख ‘Towards a Modern
Theory of Case’ सन 1966 में ही प्रकाशित किया,
किंतु उनको तथा इस फ्रेमवर्क को वास्तविक प्रसिद्धि उनके 1968 के कार्य ‘The
Case for Case’ से ही मिली। फिल्मोर TGG से असंतुष्ट थे।
उन्होंने कारक व्यवस्था की बात करते हुए बाह्य संरचना और गहन संरचना को स्पष्ट रूप
से समझने पर बल दिया।
वाक्य में कारक संबंधों की घटनावृत्ति के संबंध में फिल्मोर का कहना है कि एक
साधारण वाक्य में एक कारक संबंध एक ही बार आ सकता है। विभिन्न कारक तत्व कुछ
क्रियाओं के साथ वैकल्पिक रूप से जुड़कर विविध सह-घटना प्रतिबंधों की व्याख्या करते
हैं। उदाहरण के लिए अंग्रेजी के निम्नलिखित वाक्यों को देखें:
1. John broke the window.
2. A hammer broke the window.
3. John broke the window with a hammer.
इनमें से प्रथम वाक्य में वाक्य का कर्ता क्रिया के साथ अभिकर्ता (Agent) संबंध में है। दूसरे वाक्य में यह करण (instrument) संबंध में है और चूंकि तीसरे वाक्य में अभिकर्ता और करण दोनों आए हैं, इस कारण कर्ता के स्थान पर अभिकर्ता ही आएगा।
कारक व्याकरण में प्रतिज्ञप्ति और प्रकारता (Proposition and Modality in Case
Grammar):
कारक व्याकरण मुख्यतः संज्ञा पदबंध और क्रिया के बीच संबंध को अर्थ के आधार पर
व्यक्त करता है। मूल वाक्य रचना और व्याकरणिक रूप परिवर्तन को अलगाने के लिए
फिल्मोर ने वाक्य को दो तत्वों का माना:
वाक्य = प्रकारता (modality)
+ प्रतिज्ञप्ति (Proposition)
प्रतिज्ञप्ति वाक्यों की मूल संरचना है, जिसमें व्याकरणिक कोटियों- काल, पक्ष,
वृत्ति, लिंग, वचन,
पुरूष आदि का वाक्यात्मक घटकों पर कोई प्रभाव नहीं होता है।
अतः खाना क्रिया की प्रतिज्ञप्ति इस प्रकार मानी जा सकती है-
कर्ता, कर्म, खाना
राम + आम + खाना
इन घटकों पर व्याकरणिक तत्वों के जुड़ने का संपूर्ण उपक्रम प्रकारता है। प्रकारता के अंतर्गत व्याकरणिक सूचनाएँ जोड़ते हुए इस प्रकार के वाक्य बनाए जा सकते हैं-
राम आम खाता है।
राम ने आम खाया था।
राम आम खाएगा।
फिल्मोर द्वारा 1968 में प्रतिपादित मॉडल में निम्नलिखित कारक संबंधों की बात की गई-
अतः खाना क्रिया की प्रतिज्ञप्ति इस प्रकार मानी जा सकती है-
कर्ता, कर्म, खाना
राम + आम + खाना
इन घटकों पर व्याकरणिक तत्वों के जुड़ने का संपूर्ण उपक्रम प्रकारता है। प्रकारता के अंतर्गत व्याकरणिक सूचनाएँ जोड़ते हुए इस प्रकार के वाक्य बनाए जा सकते हैं-
राम आम खाता है।
राम ने आम खाया था।
राम आम खाएगा।
कारक का संबंध इनमें से प्रतिज्ञप्ति से है।
प्रतिज्ञप्ति को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं-
क्रिया (Verb)
+ कारक (Case) = प्रतिज्ञप्ति (Proposition)फिल्मोर द्वारा 1968 में प्रतिपादित मॉडल में निम्नलिखित कारक संबंधों की बात की गई-
Agentive
Instrumental
Dative
Objective
Locative
Factitive
उनके इस मॉडल में अनेक कमियाँ पाई गईं । इसलिए बाद में उन्होंने 1971 में एक संशोधित मॉडल प्रस्तुत किया।
कारक व्याकरण में कारक संबंध
फिल्मोर के 1968 और 1971 के मॉडलों में कारकों के नाम और संख्या को तुलनात्मक रूप से इस प्रकार देखा जा सकता है:
कारक व्याकरण में कारक संबंध
फिल्मोर के 1968 और 1971 के मॉडलों में कारकों के नाम और संख्या को तुलनात्मक रूप से इस प्रकार देखा जा सकता है:
1968 का मॉडल 1971 का मॉडल
Agentive Agent
Instrumental Instrument
Dative Experiencer
Objective Object
Locative Location
Factitive Source
Goal
Time
Benefactive
1971 के मॉडल में दिए गए संबंधों को एक-एक वाक्य में उल्लेखित किया जा रहा है:
(1) Agent
(A) – यह ‘The
instigator of action.’ है। (1971, 37)
(2) Experiencer
(E) – यह ‘The
experience of a psychological event.’ है। (1971, 42)
(3) Instrument
(I) – यह ‘The
immediate cause of an event’ हैं। (1971, 42)
(4) Objective
(O) – यह “The
most neutral case, the ‘wastebasket case’, the entity which moves or undergoes
change” है।
(1971, 42)
(5) Source
(S) – यह ‘The
origin or starting point of motion’ है। (1971, 41)
(6) Goal
(G) – यह ‘The
end point of motion’ है। (1971, 42)
(7) Locative
(L) – यह ‘The
place where an object or event is located’ है। (1971, 51)
(8) Time
(T) – यह ‘The
time at which an object or event is located’ है। (1971, 51)
(9) Benefactive
(B) – यह ‘The
one who benefits from an event or activity’ है। (1971, 51)
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