भाषाविज्ञान में अनुप्रयोग क्षेत्रों के अंतर्गत एक
महत्वपूर्ण विषय ‘शैलीविज्ञान’ है, जिसमें साहित्यिक कृतियों में उन कलात्मक
तत्वों की खोज की जाती है, जिनके कारण कोई लेखन सामान्य भाषा
प्रयोग से हटकर साहित्यिक प्रयोग बन जाता है। अर्थात इस शास्त्र में ‘शैली’ के रूप में उन तत्वों को चिन्हित किया जाता है, जिनसे कोई लिखा या बोला गया पाठ सामान्य भाषा व्यवहार ना होकर के साहित्य
बन जाता है। इसके अंतर्गत मूलतः अग्रप्रस्तुति और इसके उपकरणों, जैसे- विचलन, समानांतरता, विपथन
आदि तथा शैली चिह्नक आदि का अध्ययन विश्लेषण किया जाता है। इस प्रकार के शैलीविज्ञान
का मूल संबंध साहित्य से है। अतः इसे हम साहित्यिक शैलीविज्ञान कह सकते हैं।
साहित्यिक शैलीविज्ञान के समानांतर ही भाषिक शैलीविज्ञान (linguistic stylistics) की भी बात की जाती है।
सामान्य भाषा व्यवहार में भी मनुष्य द्वारा अनेक प्रकार के शैलीवैज्ञानिक उपकरणों
का प्रयोग किया जाता है। भाषा हर स्तर पर चयन की सुविधा प्रदान करती है। ‘मुँह खोलने से लेकर अपनी बात को संप्रेषित करने तक’
हमें कई विकल्प उपलब्ध रहते हैं। हम किसी बात को कहने के लिए किस प्रकार की भाव
भंगिमा, ध्वनि, ध्वनि-गुण अथवा शब्दों
और वाक्य रचनाओं का चयन करें? इसके लिए हमारे पास कई विकल्प
उपलब्ध होते हैं। उनमें से किसी विकल्प विशेष का ही प्रयोग किसी परिस्थिति विशेष
में वक्ता द्वारा क्यों किया गया है? इसका अध्ययन भाषिक शैलीविज्ञान
कहलाएगा। उदाहरण के लिए एक प्रकार की अभिव्यक्ति के लिए समुच्चयबोधक शब्दों- 
संयोजक à ‘और, एवं, तथा, व’ 
विभाजक à ‘अथवा, या’ 
विरोधसूचक à ‘किंतु, परंतु, लेकिन’ 
आदि शब्दों जैसे कई विकल्प उपलब्ध होते हैं। इसमें संयोजक
और विभाजक शब्दों को देखें तो अंग्रेजी में इनके लिए एक-एक विकल्प (and, or) ही हैं, जबकि
हिंदी में कई विकल्प हैं। इन विकल्पों में से किस शब्द का चयन हम किसके लिए करते
हैं? यह खोजना भाषिक शैलीविज्ञान का की विषय वस्तु होगी।
यदि किसी लंबे वाक्य में एक ही प्रकार के संयोजक का एक से
अधिक बार प्रयोग करना हो? तो हम
एक ही का एक से अधिक बार प्रयोग करेंगे या अलग-अलग को चुनेंगे? यदि हम अलग-अलग को चुनते हैं तो पहले कौन-सा चुनेंगे और बाद में कौन-सा
चुनेंगे? इस प्रकार के कुछ प्रश्न किए जा सकते हैं? फिर यह भी पूछ सकते हैं कि आखिर वही क्यों चुन रहे हैं? 
इन सब बातों के कारणों पर चर्चा करना भाषिक शैलीविज्ञान के
अंतर्गत आएगा। यही बात वाक्य-सांचे के स्तर पर भी कही जा सकती है। उदाहरण के लिए ‘समय पूछने के लिए हिंदी में हमारे पास 10 से
अधिक विकल्प उपलब्ध हैं’, जैसे-
                         
i.        
समय कितना
हुआ है?
                      
ii.        
कितना समय
हुआ है?
                    
iii.        
क्या समय
हुआ है?
                     
iv.        
टाइम क्या
हुआ?
                       
v.        
टाइम कितना
हुआ है?
                     
vi.        
कितना टाइम
हुआ है?
                  
vii.        
क्या टाइम
हुआ है?
                
viii.        
समय क्या
हुआ?
                     
ix.        
कितने बज
गए?
                       
x.        
कितने बजे
हैं?
                           आदि।
 इनमें से किसी भी वाक्य
का प्रयोग करते हुए विभिन्न परिस्थितियों में या अलग-अलग लोगों से बात करते हुए हम
अलग-अलग प्रकार से पूछते हैं। अतः कब कौन-से सांचे का चयन किया जाता है? कौन-से शब्द का चयन किया जाता है? ये सब भाषिक शैलीविज्ञान की विषय वस्तु के अंतर्गत आएगा।
 
 
 
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