महाप्राण व्यंजन
किसी ध्वनि के उच्चारण में लगने वाली
वायु की मात्रा को प्राण कहते हैं। (नोट- चूँकि वायु का जीवन का आधार है, इसी कारण एक व्याकरण परंपरा में इसे प्राण
माना गया है)। वायु की मात्रा के आधार पर व्यंजनों के दो वर्ग किए गए हैं-
अल्पप्राण और महाप्राण।
प्रो. अनिल कुमार पाण्डेय द्वारा ‘हिंदी की ध्वनि संरचना’ में इनकी व्याख्या इस प्रकार से की गई है-
अल्पप्राण - जिन ध्वनियों के उच्चारण में प्राण अथवा वायु का कम अथवा अत्यल्प प्रयोग किया जाता है, उन्हें अल्पप्राण ध्वनि कहते हैं। व्यंजन ध्वनियों के वर्गीय ध्वनियों में प्रथम, तृतीय और पंचम अल्पप्राण ध्वनियाँ हैं। जैसे- क,ग,ङ, च,ज,ञ, ट,ड,ण, त,द,न ,प,ब,म , य,र,ल,व अल्पप्राण व्यंजन हैं।
महाप्राण - जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु का अधिक (अर्थात् अल्पप्राण की अपेक्षा अधिक प्रयोग) किया जाता है, उन्हें महाप्राण कहते हैं। हिंदी में प्रत्येक वर्गीय ध्वनियों के दूसरे और चौथे व्यंजन अर्थात् ख,घ, छ,झ, ठ, ढ, थ, ध तथा फ, भ महाप्राण ध्वनियाँ है। इनके अतिरिक्त ऊष्म ध्वनियाँ श, ष, स और ह महाप्राण ध्वनियाँ हैं।
हिंदी में अल्पप्राण व्यंजन के साथ ‘ह’ जोड़ने पर महाप्राण ध्वनियाँ बनती हैं। संस्कृत में व्यंजन ध्वनियों को हल् कहा गया है। अतः व्यंजन ध्वनियाँ वर्णमाला में हलंत् होती हैं, उनमें ‘ह’ जोड़ने पर महाप्राण बनती हैं। जैसे -
क् +ह = ख, ग् + ह = घ, च् + ह = छ
ज् + ह = झ, ट् + ह = ठ, ड् + ह = ढ
त् + ह = थ, द् + ह = ध, प् + ह = फ
ब् + ह = भ न् + ह = न्ह, म् + ह = म्ह ।
......
हिंदी के वर्गीय व्यंजनों में
अल्पप्राण और महाप्राण का युग्म इस प्रकार देखा जा सकता है-
अल्पप्राण
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महाप्राण
|
अल्पप्राण
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महाप्राण
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क
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ख
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ग
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घ
|
च
|
छ
|
ज
|
झ
|
ट
|
ठ
|
ड (ड़)
|
ढ (ढ़)
|
त
|
थ
|
द
|
ध
|
प
|
फ
|
ब
|
भ
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महाप्राण व्यंजनों की व्याख्या ‘संबंधित अल्पप्राण व्यंजन + ह’ के रूप में भी की जा सकती है, जैसे-
क् + ह = ख
ग् + ह = घ
च् + ह = छ आदि।
इसी आधार पर ‘त’ और ‘प’ वर्ग के पंचमाक्षरों के भी अल्पप्राण और महाप्राण
के रूप में दो वर्ग किए हैं, जैसे-
अल्पप्राण
|
महाप्राण
|
न
|
न्ह
|
म
|
म्ह
|
प्राण की मात्रा को ‘प्राणत्व’ कहते हैं।
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