अ-लोप
हिंदी
में अ-लोप की स्थिति
देखी जाती है। प्रत्येक शब्द दो प्रकार की ध्वनियों से बना होता है- स्वर और
व्यंजन। ‘स्वर’ वे ध्वनियाँ हैं, जिनका स्वतः उच्चारण
किया जा सके। अर्थात
जिनके उच्चारण में किसी और ध्वनि के सहयोग
की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जबकि व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं,
जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है। हिंदी में कुल 10 स्वर हैं-
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ
इसी प्रकार ‘क से ह तक’ 33 व्यंजन हैं।
जब एक से
अधिक व्यंजनों को जोड़कर किसी शब्द का निर्माण होता है तो
उसकी दो स्थितियाँ
संभव
हैं-
(1) व्यंजन
के
साथ कोई मात्रा आई हो, जैसे-
काला = क + आ
+ ल + आ
कोई = क + ओ + ई
बारी = ब + आ + र + ई
(2) व्यंजन के साथ कोई मात्रा न लगी हो, जैसे-
कल
कमल कटहल नगर आदि।
इन शब्दों में दो व्यंजनों के बीच कोई स्वर या मात्रा नहीं दिखाई पड़ रही है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यंजन के साथ ‘अ’ होता है। ऐसा मान लिया जाता है। अतः उपर्युक्त शब्दों का विच्छेद इस
प्रकार होगा-
कल = क + अ + ल + अ
कमल = क + अ + म + अ + ल + अ
कमल = क + अ + म + अ + ल + अ
कटहल = क + अ + ट + अ ह + अ + ल +
अ
नगर = न + अ + ग + अ + र + अ
अब ध्यान देने वाली बात यह है कि
जब हम इनका उच्चारण करते हैं तो क्या प्रत्येक
व्यंजन के बाद ‘अ’ का उच्चारण करते हैं? इसका उत्तर होगा ‘नहीं’। हम कुछ व्यंजनों के बीच
‘अ’ का उच्चारण करते हैं,
जबकि कुछ व्यंजनों
के बीच ‘अ’ का लोप
कर
देते हैं। यही
अवस्था ‘अ’ लोप कहलाती है। इसकी दो स्थितियाँ संभव हैं-
(क) मध्य अ लोप
(ख) अंत्य अ लोप
(क) मध्य अ लोप
शब्द के बीच में दो व्यंजन ध्वनियों के
बीच ‘अ’ का उच्चारण नहीं करने
की स्थिति मध्य अ लोप है, जैसे-
कमल = क + अ + म + ल
कटहल = क + ट + अ ह + ल
इनमें हम देख सकते हैं कि ‘कमल’ शब्द उच्चारण करते
समय हम ‘क+मल’ बोलते हैं। अतः ‘म और ल के बीच अ का लोप’ हो जाता है।
इसी प्रकार ‘कटहल’ शब्द का उच्चारण
करते समय हम ‘कट+ हल’ बोलते हैं। अतः ‘क+ट’ और ‘ह+ल’ के बीच अ का लोप होता है।
ये स्थितियाँ मध्य अ लोप कहलाती हैं।
(ख) अंत्य अ लोप
शब्दों के अंत में ‘अ’ ध्वनि का उच्चारण नहीं
करने की स्थिति अंत्य अ लोप है। जब किसी शब्द का अंत बिना मात्रा वाले व्यंजन से होता
है तो उसे अकारांत शब्द कहते हैं, जैसे-
कमल, राज, ईख, और, परिणाम आदि।
इनमें से प्रत्येक शब्द की अंतिम ध्वनि
बिना किसी मात्रा का व्यंजन है। अतः इनके बाद ‘अ’ मान लिया जाता है। यदि अंत में ‘अ’ न हो तो इन्हें इस प्रकार लिखा जाएगा-
कमल् राज् ईख् और् परिणाम्
किंतु चूँकि व्यंजनों को पूरा लिखा गया
है अतः उनके बाद ‘अ’ मान लिया जाता है, किंतु उच्चारण करते समय हम ऊपर हल
चिह्न लगाकर लिखे गए शब्दों का ही उच्चारण करते हैं अर्थात-
हम लिखते हैं- ‘कमल’ किंतु बोलते हैं-
कमल्
हम लिखते हैं- ‘राज’ किंतु बोलते हैं-
राज्
उच्चारण में शब्द के अंत में आए ‘अ’ को नहीं बोलने की यही
स्थिति अंत्य अ लोप कहलाती है।
हिंदी सीखने वाले लोग (जैसे- दक्षिण भारतीय
या विदेशी) लेखन में अंतिम व्यंजन के बाद ‘अ’ देखते हुए उसका भी उच्चारण करते हैं, जो अ का दीर्घीकरण होते-होते ‘आ’ हो जाता है। इसीलिए ‘राम’ का ‘रामा’, ‘कृष्ण का कृष्णा’, ‘रामायण का
रामायणा’ हो जाता है।
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