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आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की एबीसीडी
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GETTY IMAGESआपने ए फ़ॉर एप्पल और ज़ेड फ़ॉर ज़ेब्रा वाली एबीसीडी तो पढ़ी होगी. पर क्या आपने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की एबीसीडी पढ़ी है?
अगर नहीं, तो चलिए हम आज आप को पढ़ाते हैं आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की एबीसीडी...
ए यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस
तकनीक इंसान की देन है. लेकिन कई मायनों में मशीनें इंसान की सोच से आगे निकल चुकी हैं.
अक़्लमंद मशीनें यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस ने इंसान की ज़िंदगी पूरी तरह बदल दी.
ये हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शामिल हो चुकी हैं.
ये मशीनें इंसान के सोचने समझने और काम करने के तरीक़े को चुनौती देने की हालत में पहुँच गई हैं.
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ALAMYबी यानी बायस यानी पक्षपात
कंप्यूटर की मदद से चलने वाली सभी मशीनों में डेटा फीड होता है. ये डेटा एल्गोरिदम की बुनियाद पर काम करता है.
लेकिन मशीन बनाने वालों ने इनके साथ भी भेदभाव कर दिया. जैसे नौकरी देने वाले रोबोट में ऐसा डेटा फ़ीड किया जो मर्दों के मुक़ाबले महिलाओं को कम आँकता है. या गोरी रंगत वालों के मुक़ाबले गहरे रंगत वालों को बड़ा अपराधी मानता है.
तकनीक के दिग्गजों पर इस समस्या को हल करने का दबाव बढ़ने लगा है.
सी फॉर चैटबॉट
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस वाली मशीनें इंसानों की तरह बातें करती हैं.
ये भाषा के दो स्तर अपनाती हैं. पहला नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग और दूसरा नैचुरल लैंग्वेज जेनरेशन.
हम इन मशीनों से जैसे बात करते हैं, वैसे ही ये हमसे बातें करती हैं. इन्हें ही हम चैटबॉट यानी बातूनी मशीनें कहते हैं.
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GETTY IMAGESडी यानी डिज़ाइन
किसी भी चीज़ की डिज़ाइनिंग चुनौती भरा और वक़्त खाने वाला काम है. ख़ास तौर से कारों के डिज़ाइन बनाना आसान काम नहीं है.
लेकिन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए इस काम को ज़्यादा तेज़ी और बेहतर तरीक़े से किया जा रहा है.
जनरल मोटर्स और एयरबस जैसी कंपनियाँ तो नए डिज़ाइन और पार्ट्स बनाने के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का ही इस्तेमाल कर रही हैं.
ई यानी इमरजेंसी
किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जा रही है.
इस वक़्त दुनिया में एक बड़ी आबादी पलायन कर रही है. एक अंदाज़ के मुताबिक़ लगभग 68 लाख लोग लड़ाई, जंग, बुरे हालात, और क़ुदरती आपदाओं की वजह से बेघर हो चुके हैं.
यूनाइटेड नेशंस के साथ काम करने वाले रिसर्चर्स ने ऐसा डेटा तैयार किया है जो एल्गोरिदम की मदद से संकट की संभावना बता सकता है.
अमरीका की पॉलिटिकल इनस्टेबिलिटी टास्क फ़ोर्स और ब्रिटेन का एलेन टुरिंग इंस्टिट्यूट इस तरह की आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस वाली मशीन बना रहे हैं.
यही नहीं ये मशीनें न्यूज़ रिपोर्ट का आकलन करके ये बता सकेंगी की किस इलाक़े में तनाव पैदा होने वाला है.
पूरा पढ़ें-
https://www.bbc.com/hindi/magazine-46494335
 
 
 
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