हिंदी मिश्र वाक्य संरचना
में ‘कि’ उपवाक्य
डॉ. धनजी प्रसाद
सहायक प्रोफेसर, भाषा प्रौद्योगिकी
म.गा.अ.हि.वि., वर्धा
1. प्रस्तावना
वाक्य किसी भी भाषा की आधारभूत इकाई है।
इसे संप्रेषण की दृष्टि से भाषा की सबसे छोटी इकाई और व्याकरणिक रचना की दृष्टि से
सबसे बड़ी इकाई कहा जाता है। एक वाक्य कम-से-कम एक सूचना को
संप्रेषित करता है। शब्द संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो एक वाक्य अपने संदर्भ
में एक शब्द का भी हो सकता है और अनेक शब्दों का एक बड़ा समूह भी हो सकता है। इस
पर विविध दृष्टियों से निरंतर विचार किया जाता रहा है। संस्कृत वैयाकरणों ने एक
वाक्य की रचना की पूर्णता के संदर्भ में तीन आधारभूत तत्वों की बात की है-
आकांक्षा, योग्यता और सन्निधि। इन तीनों आवश्यकताओं की पूर्ति करने
वाला शब्द समूह वाक्य कहलाता है। पश्चिम में भी वाक्य पर विविध दृष्टियों से विचार
किया गया है। प्रो. सूरजभान सिंह द्वारा ‘हिंदी का वाक्यात्मक
व्याकरण’ (2003) पुस्तक के प्रथम अध्याय में विविध दृष्टियों से वाक्य के
स्वरूप एवं परिभाषा पर चर्चा की गई है, जिसमें संस्कृत व्याकरण परंपरा का दृष्टिकोण, संरचना का दृष्टिकोण, मनोवैज्ञानिक
दृष्टिकोण, व्यवहारवादी दृष्टिकोण, संप्रेषणात्मक
दृष्टिकोण और प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण आदि प्रमुख हैं।
एक वाक्य का मूल स्वरूप किस रूप में
माना जाए? यह निरंतर विचार का विषय रहा है। अपने संदर्भ में एक शब्द
भी वाक्य का कार्य करता है, जैसे-
प्रश्न- बाहर कौन है?
उत्तर- मैं।
यहाँ ‘मैं’ अपने संदर्भ प्रश्न
के उत्तर में एक पूरे वाक्य का कार्य कर रहा है। सूरजभान सिंह (2003) द्वारा इस
प्रकार के वाक्यों को ‘अल्पांग वाक्य’ नाम दिया गया है। संरचना की दृष्टि से वाक्य के मूलतः दो वर्ग किए
गए हैं- सरल वाक्य और असरल वाक्य। सरल वाक्य वे वाक्य हैं, जिनमें संरचना की
दृष्टि से केवल एक मुख्य क्रिया रहती है और
और अर्थ की दृष्टि से केवल एक सूचना का संप्रेषण होता है, जैसे-
(1) महेश घर जा रहा है।
असरल वाक्य वे हैं, जिनमें एक से अधिक
मुख्य क्रिया वाले वाक्य खंडों (उपवाक्यों) का प्रयोग होता है और उनसे जुड़ी
सूचनाओं का संप्रेषण होता है, जैसे-
(2) बिजली चमक रही है और बारिश हो रही
है।
उपर्युक्त वाक्यों में से वाक्य (1)
सरल वाक्य है और वाक्य (2) असरल वाक्य है। असरल वाक्यों में एक से अधिक उपवाक्य
होते हैं, जिनमें एक से अधिक मुख्य क्रियाएं होती हैं और उनके माध्यम
से एक से अधिक सूचनाओं का संप्रेषण होता है। ये सूचनाएँ आपस में जुड़ी होती हैं और
वक्ता द्वारा एकल रूप में श्रोता तक पहुँचाई जाती हैं।
कई बार
ऐसी भी स्थिति आ जाती है कि एक वाक्य में मुख्य क्रिया एक ही रहती है, किंतु अर्थ की
दृष्टि से वह दो वाक्यों का समुच्चय रहता है, जैसे-
(3) महेश और रमेश घर जा रहे हैं।
यह वाक्य संरचना की दृष्टि से एक सरल
वाक्य है, किंतु अर्थ की दृष्टि से दो वाक्यों का समुच्चय है। इस
वाक्य को इस प्रकार से विश्लेषित किया जा सकता है-
(4) मोहन घर जा रहा है।
(5) रमेश घर जा रहा है।
अतः सूक्ष्म स्तर पर यह निर्धारित करना
कठिन हो जाता है कि इन्हें सरल वाक्य कहा जाए या असरल वाक्य। चॉम्स्की द्वारा ऐसे
वाक्यों के विश्लेषण के लिए ‘गहन संरचना’ (deep
structure) और ‘बाह्य संरचना’ (surface structure) की बात की गई है। अतः कहा जा सकता है कि वाक्य (3) बाह्य
संरचना के स्तर पर एक सरल वाक्य है, किंतु आंतरिक संरचना के स्तर पर यह दो वाक्यों– वाक्य (4)
एवं वाक्य (5) का समुच्चय है। बाह्य संरचना के स्तर पर ही देखा जाए तो असरल
वाक्यों के दो प्रकार हैं- मिश्र वाक्य और संयुक्त वाक्य। संयुक्त वाक्य में एक से
अधिक मुख्य उपवाक्य होते हैं, जो समुच्चयबोधक शब्दों द्वारा आपस में जुड़े होते हैं। इस
शोधपत्र में ‘मिश्र वाक्य’ और इसके भी अंतर्गत ‘कि उपवाक्य’ की विविध स्थितियों
की चर्चा आगे की जा रही है।
2. मिश्र वाक्य
वे वाक्य जिनमें एक से अधिक उपवाक्य इस
प्रकार होते हैं कि एक मुख्य उपवाक्य होता है और शेष आश्रित उपवाक्य होते हैं, मिश्र
वाक्य कहलाते हैं। मिश्र वाक्य की संरचना को समझने के लिए उपवाक्य संरचना पर एक
दृष्टि डालना समुचित होगा। असरल वाक्यों के वाक्य स्तरीय खंड ‘उपवाक्य’ कहलाते हैं। उपवाक्य
के दो प्रकार किए गए हैं- मुख्य उपवाक्य और आश्रित उपवाक्य। वह उपवाक्य जिसके अर्थ
को समझने के लिए किसी अन्य संदर्भ वाक्य की आवश्यकता नहीं होती, मुख्य उपवाक्य होता
है। आश्रित उपवाक्य वह होता है, जिसके अर्थ को मुख्य उपवाक्य के सापेक्ष समझा जाता है।
आश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्य में सहायक की भूमिका निभाता है और उसके अर्थ को
मुख्य उपवाक्य के अर्थ में समायोजित करके देखा जा सकता है। प्रकार्य की दृष्टि से
इनके तीन प्रकार किए जाते हैं- संज्ञा उपवाक्य, विशेषण उपवाक्य और
क्रियाविशेषण उपवाक्य।
आश्रित उपवाक्यों की रचना आश्रित समुच्चयबोधक
शब्दों (कि, जो, जिस, ताकि आदि) द्वारा होती है। प्रस्तुत शोध पत्र इनमें से ‘कि’ समुच्चयबोधक शब्द
द्वारा बनने वाले मिश्र वाक्यों पर केंद्रित है। ऐसे उपवाक्यों को यहाँ रचना के
आधार पर ‘कि उपवाक्य’ कहा जा रहा है। इसमें यह चर्चा की जाएगी कि मुख्य उपवाक्य
और ‘कि उपवाक्य’ को मिलाकर किस-किस प्रकार के मिश्र वाक्यों की रचना होती है अथवा मिश्र
वाक्यों में ‘कि उपवाक्य’ किन-किन रूपों में पाए जाते हैं और कौन-कौन सी भूमिकाएँ
संपन्न करते हैं? इन्हें कुछ संदर्भों में इस प्रकार से देखा जा सकता है।
3. मुख्य क्रिया और ‘कि
उपवाक्य’
‘कि उपवाक्य’ वे उपवाक्य हैं, जिनके आरंभ में ‘कि’ समुच्चयबोधक
शब्द रहता है। इन उपवाक्यों के माध्यम से प्रकार्य की दृष्टि से ‘संज्ञा उपवाक्य’ निर्मित होते हैं, जो संबंधित मुख्य
उपवाक्य में विभिन्न भूमिकाएँ निभाते हैं। वैसे तो मुख्य रूप से ‘कि उपवाक्य’ मुख्य उपवाक्य में ‘कर्म’ की ही भूमिका निभाते
हैं, किंतु कुछ वाक्य रचनाओं में ‘कर्ता’ की भूमिका भी निभाने
की क्षमता रखते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्यों को देखा जा सकता है-
(6) मैंने कहा कि तुम काम करके आना।
(कर्म)
(7) उसने सोचा कि वह मुझे रोक लेगा।
(कर्म)
(8) लगता है कि तुम्हारा दिमाग खराब
है। (कर्ता)
उपर्युक्त उदाहरणों में से वाक्य (6)
एवं (7) में ‘कि उपवाक्य’ कर्म की भूमिका में हैं, जबकि वाक्य (8) में
कर्ता की भूमिका में। इन्हें मुख्य उपवाक्य में ही समाहित करके निम्नलिखित प्रकार
के वाक्य बनाए जा सकते हैं-
(9) मैंने तुम्हें काम करके आने को
कहा।
(10) उसने मुझे रोक लेने को
सोचा।
(11) तुम्हारा दिमाग खराब लगता
है।
वाक्यों (9), (10) और (11) में
क्रमशः वाक्यों (6), (7) और (8) में आए कि उपवाक्यों को मुख्य उपवाक्य में समाहित किया गया है और सरल
वाक्य की रचना की गई है। आश्रित उपवाक्यों में मुख्य उपवाक्य की ही कोई सूचना
वाक्य स्तर पर रहती है, इसलिए उन्हें इस प्रकार से समाहित करके भी देखा जा सकता
है। यदि समाहित करना संभव न हो तो संबंधित उपवाक्य आश्रित उपवाक्य नहीं होगा, जैसे-
(12) मैं गया कि बारिश होने लगी।
(13) मैंने खाया कि मोहन आ गया।
इन वाक्यों (12) और (13) में कि
उपवाक्यों को मुख्य उपवाक्यों में समाहित करके एक रूपांतरित वाक्य बनाना संभव नहीं
है। अतः यहाँ पर ‘कि उपवाक्य’ आश्रित उपवाक्य नहीं हैं और ये वाक्य मिश्र वाक्य न होकर
संयुक्त वाक्य हैं। इससे एक महत्वपूर्ण बात यह निकलकर आती है कि सभी प्रकार की
मुख्य क्रियाओं के साथ ‘कि उपवाक्य’ मिश्र वाक्यों का निर्माण नहीं करते। उदाहरण के लिए इन्हें
देखें-
(13) मैंने खाया कि मोहन आ गया।
(14) मैंने कहा कि मोहन आ गया।
वाक्य (13) मिश्र वाक्य नहीं है, जबकि वाक्य (14)
मिश्र वाक्य है। क्योंकि वाक्य (14) में ‘मोहन आ गया’ कहना क्रिया का कर्म
है, जबकि वाक्य (13) में दोनों दो स्वतंत्र कार्य हैं, जो परस्पर घटित हो
रहे हैं। अतः उन मुख्य क्रियाओं की सूची भी बनाई जानी चाहिए, जिनके साथ ‘कि उपवाक्य’ आकर मिश्र वाक्यों
की रचना करते हैं। इस प्रकार की कुछ प्रमुख क्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
कहना, सुनना, बोलना, समझना, समझाना, पाना, लिखना, पढ़ना, सोचना, देखना, चाहना, लगना आदि।
4. मिश्र क्रिया और ‘कि
उपवाक्य’
यहाँ ‘मिश्र क्रिया’ से तात्पर्य मुख्य
उपवाक्य की मुख्य क्रिया के रूप में आने वाली ‘मिश्र क्रिया’ से है। इस स्तर पर
देखा जाए तो कुछ ही मिश्र क्रियाओं में ‘कि उपवाक्य’ प्रयुक्त होकर मिश्र वाक्यों की रचना कर सकते हैं।
प्रकार्य की दृष्टि से यहाँ भी ‘कि उपवाक्य’ मुख्यतः ‘कर्म’ का ही प्रकार्य संपन्न करते हैं। यदि संबंधित मुख्य
उपवाक्य की मिश्र क्रिया का कर्म लुप्त हो और उसकी जगह ‘यह’ का भाव हो, तो उसके साथ आने
वाले ‘कि उपवाक्य’ से मिश्र वाक्यों की रचना होती है, जैसे-
(15) उसने ठीक किया कि किसी को नहीं
बुलाया।
जिन वाक्यों में कर्म आ जाए, उनमें ‘कि उपवाक्य’ आकर मिश्र वाक्यों की
रचना नहीं कर सकते, जैसे-
(16) *उसने कार ठीक किया कि किसी को
नहीं बुलाया।
ऐसे
वाक्य संभव नहीं हैं। इसी प्रकार कुछ दूसरे प्रकार के वाक्य भी देखे जा सकते हैं-
(17) मेरा जाना सफल रहा कि सब का
काम हो गया।
आर्थी दृष्टि
से कहा जा सकता है कि जिन क्रियाओं का कर्म कोई वस्तु ना होकर घटना या विचार हो, उनके लिए कि
उपवाक्यों का प्रयोग करके मिश्र वाक्य बनाए जा सकते हैं।
5. संयुक्त क्रिया और ‘कि
उपवाक्य’
सभी संयुक्त क्रियाओं में ‘कि उपवाक्य’ द्वारा मिश्र
वाक्यों की रचना नहीं की जाती। अतः यह देखना आवश्यक है कि किस प्रकार की मुख्य
क्रिया के साथ कौन-सी रंजक क्रिया जुड़ने पर मिश्र वाक्यों की रचना होती है।
उदाहरण के लिए-
(18) मैंने सोच लिया कि आपका काम हो
जाए।
यह एक मिश्र वाक्य है इसकी जगह-‘मैंने सोच दिया कि
आपका काम हो जाए’ जैसे वाक्य नहीं बनाए जा सकते। इसी प्रकार वाक्य (19)
दर्शनीय है-
(19) मैंने कह दिया कि आपका काम हो
जाएगा।
इसकी जगह ‘मैंने कह लिया कि
आपका काम हो जाएगा’ जैसे वाक्य नहीं बनाए जा सकते। संयुक्त क्रिया वाले मुख्य
उपवाक्यों में भी मुख्य क्रिया के रूप में वही क्रियाएँ रहती हैं, जिनकी
चर्चा सरल क्रिया के अंतर्गत ऊपर की गई है, केवल रंजक क्रियाओं
के साथ सहयोजन विचारणीय रहता है।
6. कोप्यूला वाक्य और ‘कि
उपवाक्य’
कुछ कोप्यूला वाक्यों में भी ‘कि उपवाक्य’ द्वारा मिश्र
वाक्यों की रचना होती है। जिन कोप्यूला वाक्यों में मुख्य उपवाक्य में ‘यह’ का भाव छुपा रहता है
या व्यक्त रूप से ‘यह’ शब्द का प्रयोग होता है, उनमें ‘कि उपवाक्य’ आश्रित उपवाक्य के
रूप में आता है और मिश्र वाक्य की रचना होती है। कोप्यूला वाक्यों में ‘कि उपवाक्य’ ‘कर्ता’ (मुख्य पद) और ‘पूरक’ दोनों का प्रकार्य
करने की क्षमता रखता है। उदाहरण के लिए कुछ वाक्य इस प्रकार हैं-
(20) यह झूठ है कि वहाँ आग लगी थी।
(कर्ता/मुख्य पद
प्रकार्य)
(21) सच है कि आग नहीं लगी थी। (कर्ता/मुख्य पद
प्रकार्य, यह लोप)
(22) बात यह है कि आपका काम नहीं
होगा। (पूरक प्रकार्य)
(23) मेरे कहने का मतलब है कि आपका
काम नहीं होगा। (पूरक प्रकार्य, यह लोप)
कोप्यूला वाक्यों के संदर्भ में भी कहा
जा सकता है कि कुछ विशेष शब्द ही हैं, जिनके साथ कर्ता या पूरक के रूप में ‘यह’ का प्रत्यक्ष (अथवा
अनुक्त) प्रयोग होता है और उनके साथ प्रयुक्त ‘कि उपवाक्य’ द्वारा मिश्र
वाक्यों की रचना होती है। ऐसे कुछ शब्द इस प्रकार हैं-
मतलब, अर्थ, सारांश, संदर्भ, भाव, तात्पर्य, सच, झूठ, स्थिति, वास्तविकता, समस्या आदि।
7. अन्य संदर्भ
कि उपवाक्यों द्वारा मिश्र वाक्य
निर्माण संबंधी कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं-
·
यौगिक
क्रियाओं के साथ सामान्यतः ‘कि उपवाक्य’ मिश्र वाक्य नहीं बनाते, किंतु प्रथम मुख्य
क्रिया उपर्युक्त सूची में से होने पर कुछ वाक्य बनते भी हैं, जैसे-
(24) वह
कह आया कि तुम चले जाना।
(24) वह
कह गया कि तुम चले जाना।
·
मुख्य
उपवाक्य में प्रश्नवाचक शब्दों का प्रयोग होने पर आश्रित उपवाक्य की प्रकार्यात्मक
स्थिति बदल जाती है, जैसे-
(25) तुमने क्या कहा कि
वह आएगा?
(26) तुमने क्यों कहा
कि वह आएगा?
(27) तुमने कैसे कहा कि
वह आएगा?
(28) तुमने कितना कहा
कि वह आएगा?
एक वाक्य होने के
बावजूद प्रश्नवाचक शब्दों के बदल जाने से उपर्युक्त वाक्यों में ‘कि उपवाक्य’ की आर्थी स्थिति बदल
जा रही है।
इसी प्रकार मुख्य
उपवाक्य की सभी प्रकार मुख्य क्रियाओं के साथ ‘कि उपवाक्य’ में प्रश्नवाचक शब्द
नहीं आ सकता-
(29) मैंने पूछा कि
तुम क्या करते हो?
(30) *मैंने समझा कि
तुम क्या करते हो?
कुछ क्रियाओं के साथ
संदर्भ सूचकता में ‘कि उपवाक्य’ में प्रश्नवाचक शब्द आ सकता है, किंतु ऐसा होने पर
वाक्य की स्थिति बदल जाती है और इसमें आया हुआ प्रश्नवाचक शब्द ‘ज्ञात कर्म’ की सूचना देने लगता
है-
(31) तब मैंने समझा कि तुम क्या करते हो। (तुम जो करते हो, उसे तब मैं समझा)
·
कुछ
वाक्य रचनाओं में दो संयोजकों के साथ भी ‘कि उपवाक्य’ का प्रयोग हो सकता
है, जैसे- ‘वह .... जो’ तथा ‘ऐसा ...... कि’ युग्म देखे जा सकते हैं-
(32) काम वह रखिए जो
हो जाए।
(33) काम ऐसा रखिए कि हो
जाए।
(8) निष्कर्ष
इस प्रकार हम देखते हैं कि मिश्र वाक्यों
की रचना में ‘कि उपवाक्य’ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। सामान्यतः ‘कि उपवाक्य’ मिश्र वाक्यों के
अंतर्गत मुख्य उपवाक्य में कर्म का काम करते हैं, किंतु इसके अलावा
कुछ दूसरे प्रकार्य भी कर सकते हैं। सभी क्रियाओं के साथ ‘कि उपवाक्य’ के प्रयोग द्वारा
मिश्र वाक्यों का निर्माण संभव नहीं है, बल्कि कुछ विशेष क्रियाएँ ही हैं, जिनके साथ यह रचना
संभव है। ऐसी क्रियाओं की समेकित सूची बनाई जा सकती है और उनके आर्थी भाव को
स्वतंत्र रूप से समझा जा सकता है। ‘कि उपवाक्यों’ का प्रयोग मुख्य उपवाक्य के सरल क्रिया पदबंध, मिश्र क्रिया पदबंध
और संयुक्त क्रिया पदबंध तीनों के साथ किया जा सकता है, किंतु उन सभी मुख्य, मिश्र और संयुक्त
क्रियाओं की सूची बनानी होगी, जिनके साथ कि उपवाक्य आकर मिश्र वाक्यों की रचना करते हैं।
यही स्थिति कोप्यूला वाक्यों की भी है। प्रश्नवाचक शब्दों का प्रयोग करने से ‘कि उपवाक्य’ के आर्थी भाव में
परिवर्तन होता है। प्रस्तुत शोध पत्र में इन बिंदुओं को सोदाहरण प्रस्तुत करने का
प्रयास किया गया है।
(9) संदर्भ
1. उलत्सिफेरोब, आ. गे. (1992). हिंदी का व्यावहारिक व्याकरण. नई दिल्ली : अखिल भारतीय
हिंदी संस्था संघ।
2. कपूर, बद्रीनाथ. (1992). हिंदी व्याकरण की सरल पद्धति. वाराणसी : विश्वविद्यालय
प्रकाशन, चौक।
3. गुरु, कामता प्रसाद. (2010). हिंदी व्याकरण. इलाहाबाद : लोकभारती प्रकाशन।
4.
चौधरी,
तेजपाल. (2003). हिंदी व्याकरण विमर्श. नई दिल्ली : वाणी प्रकाशन।
5. तरूण, हरिवंश. (2010). मानक हिंदी व्याकरण और रचना. प्रकाशन संस्थान : नई दिल्ली।
6.
तिवारी,
भोलानाथ. (2004). हिंदी भाषा की संरचना. नई दिल्ली :वाणी प्रकाशन।
7.
पाण्डेय,
अनिल कुमार. (2010). हिंदी संरचना के विविध पक्ष. नई दिल्ली : प्रकाशन संस्थान।
8.
प्रसाद, धनजी. (2019). हिंदी
का संगणकीय व्याकरण. नई दिल्ली : राजकमल प्रकाशन।
9. सिंह, पर्णदत्त. (1999). व्याकरणशास्त्रीय परिभाषाएँ एवं अनुशीलन. वाराणसी : कलाभवन।
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