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Wednesday, May 26, 2021

बुद्ध के ज्ञान का संक्षिप्त सार

 बुद्ध ने ज्ञान का संक्षिप्त सार जो हम सबको जानना चाहिए।

             चार - आर्य सत्य

             पाँच - पंचशील

             आठ - अष्टांगिक मार्ग और

              अड़तीस - महामंगलसुत 


    बुद्ध के चार आर्य सत्य


    1. दुनियाँ में दु:ख है।

     2. दु:ख का कारण है।

     3. दु:ख का निवारण है। और

     4. दु:ख के निवारण का उपाय है।

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            पंचशील


1. झूठ न बोलना

2. अहिंसा

3. चोरी नहीं करना

4. व्यभिचार नहीं करना और

5. नशापान/मद्यपान नहीं करना

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         अष्टांगिक मार्ग


1. सम्यक दृष्टि (दृष्टिकोण) /Right view

2. सम्यक संकल्प / Right intention

3. सम्यक वाणी / Right speech

4.  सम्यक कर्मांत/ Right action

5. सम्यक आजीविका/ Right livelihood (profession)

6. सम्यक व्यायाम / Right exersie (physical activity)

7. सम्यक स्मृति / Right mindfulness

8. सम्यक समाधि / Right meditation (Vpasana Meditation)


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तथागत बुद्ध ने 38 प्रकार के मंगल कर्म बताये है जो महामंगलसुत के नाम से भी जाना जाता है, निम्न प्रकार है


2. बुद्धिमानों की संगति करना। 

3. शीलवानो की संगति करना। 

4. अनुकूल स्थानों में निवास करना। 

5. कुशल कर्मों का संचय करना। 

6. कुशल कर्मों में लग जाना। 

7. अधिकतम ज्ञान का संचय करना। 

8. तकनीकी विद्या अर्थात शिल्प सीखना। 

9. व्यवहार कुशल एवं विनम्र होना। 

10. विवेकवान होना। 

11. सुंदर वक्ता होना। 

12. माता पिता की सेवा करना। 

13. पुत्र-पुत्री-स्त्री का पालन पोषण करना। 

14. अकुशल कर्मों को ना करना। 

15. बिना किसी अपेक्षाके दान देना। 

16. धम्म का आचरण करना। 

17. सगे सम्बंधियों का आदर सत्कार करना। 

18. कल्याणकारी कार्य करना। 

19. मन, शरीर तथा वचन से परपीड़क कार्य  ना करना। 

20. नशीली पदार्थों का सेवन ना करना। 

21. धम्म के कार्यों में तत्पर रहना। 

22. गौरवशाली व्यक्तित्व बनाए रखना। 

23. विनम्रता बनाए रखना। 

24. पूर्ण रूप से संतुष्ट होना अर्थात तृप्त होना। 

25. कृतज्ञता कायम रखना। 

26. समय समय पर धम्म चर्चा करना ।

27. क्षमाशील होना। 

28. आज्ञाकारी होना। 

29. भिक्षुओ, शीलवान लोगों का दर्शन करना। 

30. मन को एकाग्र करना। 

31. मन को निर्मल करना। 

32. सतत जागरूकता बनाए रखना ।

33. पाँच शीलों का पालन करना। 

34. चार आर्य सत्यों का दर्शन करना ।

35. आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना। 

36. निर्वाण का साक्षात्कार करना। 

37. लोक धम्म लाभ हानि, यश अपयश, सुख-दुख,जय-पराजय से विचलित ना होना। 

38. शोक रहित, निर्मल एवं निर्भय होना। 



नमो बुद्धाय....🙏🏻🙏🏻

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