अनुवाद और निर्वचन (Translation and Interpretation)
अनुवाद के क्षेत्र में अभी दो नाम सुनने को मिलते हैं- अनुवाद
और निर्वचन (Translation and Interpretation)। इनमें से अनुवाद से तो हम सब परिचित हैं, ‘निर्वचन’ का
प्रयोग अपेक्षाकृत विशिष्ट है। अतः इन दोनों के आगे संक्षेप में देखते हैं।
अनुवाद (Translation): एक भाषा में लिखे गए पाठ को दूसरी भाषा में यथासंभव उसी
अर्थ के साथ प्रस्तुत करना अनुवाद कहलाता है। अनुवाद में केवल भाषा का परिवर्तन
होता है। यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि अनुवाद में मूल भाव को बनाए रखते हुए ही
शब्दों और वाक्यों को दूसरी भाषा में अभिव्यक्त किया जाता है।
निर्वचन (Exegesis / Commentary /
Interpretation)
निर्वचन के लिए अंग्रेजी में तीन शब्द देखे जा सकते हैं- Exegesis
/ Commentary / Interpretation. निर्वचन
शब्द का प्रयोग भारतीय ज्ञान परंपरा में बहुत प्राचीन है। पारंपरिक रूप में इसे ‘किसी ग्रंथ,
श्लोक, या विचार की गहराई से व्याख्या करना,
उसका तात्पर्य समझाना,
संदर्भों के साथ उसका अर्थ स्पष्ट करना’ के
संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता रहा है। इसमें केवल शब्दार्थ नहीं होता,
बल्कि भावार्थ, सांस्कृतिक, दार्शनिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी स्पष्ट की जाती है। साथ
ही मूल भाषा वही रहती है। अर्थात निर्वचन के लिए भाषा परिवर्तन होने की आवश्यकता
नहीं होती।
उदाहरण के लिए "धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे..." इस श्लोक का निर्वचन
करते समय यह बताया जाता है कि "धर्मक्षेत्रे" का क्या अर्थ है,
क्यों कुरुक्षेत्र को धर्मभूमि कहा गया,
इसका प्रतीकात्मक और ऐतिहासिक महत्व क्या है..........।
आदि।
वर्तमान में अनुवाद के क्षेत्र में ‘निर्वचन’ शब्द
का प्रयोग Interpretation के पर्याय के रूप में किया जाने लगा है। Interpretation
के लिए हिंदी में दो शब्द प्रचलित हैं- ‘आशु अनुवाद’ और ‘निर्वचन’। "आशु
अनुवाद" का शाब्दिक अर्थ है- ‘जल्दी किया गया अनुवाद’ या ‘तात्कालिक
अनुवाद’। अतः इसे परिभाषित करते हुए कह सकते हैं कि ‘किसी बात को
तुरंत एक भाषा से दूसरी भाषा में रूपांतरित करना आशु अनुवाद है, जो वाचिक होता
है।’ कहीं-कहीं इसे ‘तत्काल भाषांतरण’ भी
कहा गया है।
आशु अनुवाद बहुत तेजी से किया जाता है। कभी-कभी यह शब्दशः भी
हो सकता है। इसका प्रयोग सामान्यतः भाषणों,
एक से अधिक देशों के अधिकारियों या राजनेताओं के संवादों तथा
अनुवाद प्रतियोगिताओं आदि में होता है। इस अनुवाद में भावार्थ में त्रुटियाँ होने
की संभावना रहती है।
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