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Monday, March 19, 2018

भाषा चिंतन की पाश्चात्य परंपरा : आरंभिक विकास


भाषा चिंतन की पाश्चात्य परंपरा : आरंभिक विकास
1.      दार्शनिक चिंतक
पाश्चात्य देशों में भाषा चिंतन हम ग्रीक सभ्यता के समय से देख सकते हैं इसके आरंभिक बीज सुकरात, अरस्तु और प्लेटो जैसे दार्शनिकों के वक्तव्य में प्राप्त होते हैंं। सुकरात और अरस्तु ने शब्द और अर्थ के बीच संबंधों की व्याख्या की, तो प्लेटो ने इस परंपरा को शब्द वर्गों के निर्धारण तक आगे बढ़ाया।
2.      ग्रीक और रोमन व्याकरण परंपरा
इसके पश्चात ग्रीक भाषा के व्याकरण पर काम किया गया, जिसमें थ्रैक्स और दिसकोलस के काम देखे जा सकते हैं। ग्रीक सभ्यता के बाद रोमन सभ्यता का आगमन हुआ रोमन भाषा चिंतकों ने भी ग्रीक परंपरा का ही अनुकरण किया और कोई विशेष काम नहीं किया जिसे अलग कहा जा सकेइसके बाद का समय डार्क एज (Dark Age) कहलाता है। क्योंकि रोमन परंपरा के बाद से 18वीं सदी के आरंभ तक भाषा के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ।
3.      सर विलियम जोंस और नवजागरण
डार्क एज के बाद नवजागरण का समय आता है इसकी शुरुआत करने वाले विद्वान का नाम है- सर विलियम जोंस ये एक अंग्रेज अधिकारी थे, जो कोलकाता कोर्ट में न्यायाधीश थे इन्हें भाषाओं में बहुत अधिक रुचि थी इन्हें ग्रीक और लैटिन भाषाओं का अच्छा ज्ञान था भारत आकर इन्होंने संस्कृत भाषा का गहन अध्ययन किया इस अध्ययन के पश्चात उनके अंदर इन भाषाओं को लेकर एक अंतर्दृष्टि पैदा हुई, जिसमें उन्होंने संस्कृत, ग्रीक और लैटिन भाषाओं में अद्भुत समानताएँ देखीं। इससे पहले भी कुछ लोगों द्वारा ग्रीक लैटिन संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया गया था और उनके संबंधों की ओर संकेत किया गया था, किंतु विलियम जोंस का अध्ययन अधिक व्यवस्थित है उन्होंने तीनों भाषाओं की तुलना की और इनमें प्राप्त समानताओं की ओर ध्यान आकृष्ट कियासमानताओं की बात करते हुए विलियम जोंस ने यह कहा कि इन भाषाओं के बीच प्राप्त समानता आकस्मिक नहीं है, बल्कि इन संबंधों की तुलना करने से पता चलता है कि ये भाषाएँ किसी समान स्रोत से निकली हुई है उन्होंने इस संबंध में निम्नलिखित वक्तव्य दिया था
“The Sanscrit language, whatever be its antiquity, is of a wonderful structure; more perfect than the Greek, more copious than the Latin, and more exquisitely refined than either, yet bearing to both of them a stronger affinity, both in the roots of verbs and the forms of grammar, than could possibly have been produced by accident; so strong indeed, that no philologer could examine them all three, without believing them to have sprung from some common source, which, perhaps, no longer exists; there is a similar reason, though not quite so forcible, for supposing that both the Gothic and the Celtic, though blended with a very different idiom, had the same origin with the Sanscrit; and the old Persian might be added to the same family.”
यह वक्तव्य सर विलियम जोंस द्वारा कोलकाता में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना दिवस पर 2 फरवरी 1786 ई. को दिया गया इसमें उन्होंने बताया है कि संस्कृत भाषा ग्रीक से भी अधिक संपन्न, रोमन से भी अधिक विपुल और दोनों से अधिक परिष्कृत प्राप्त होती है, फिर भी इन तीनों भाषाओं में पर्याप्त निकटता देखने को मिलती है इस वक्तव्य ने यूरोपीय भाषा चिंतन के जगत में हलचल उत्पन्न कर दी इससे यूरोपीय विद्वानों ने भाषाओं की तुलना पर काम शुरू कर दिया, इसीलिए इस घटना को ऐतिहासिक और तुलनात्मक भाषाविज्ञान के जन्म की घटना माना जाता है और सर विलियम जोंस को इसका प्रणेता माना जाता है
4.      W. हम्बोल्ट (1767-1835)
हम्बोल्ट एक भाषा दार्शनिक और राजनीतिक विश्लेषक हैं ये जर्मन विद्वान हैं। इन्होंने अपनी बातें बहुत ही सूत्रवत  रूप में प्रस्तुत की हैं ऑटो येस्पर्सन ने हम्बोल्ट के सूत्रों को समझाने का प्रयास किया है उनकी ही तरह कई लोगों ने समझाने का प्रयास किया है, किंतु लोगों ने जितनी बार समझाने का प्रयास किया उतने ही आशय प्राप्त हुए हैं। इससे उन सूत्रों की गूढ़ता का अनुमान लगाया जा सकता है। हम्बोल्ट भाषाओं के तुलनात्मक और ऐतिहासिक अध्ययन को दृष्टि देने वाले आरंभिक विद्वान हैं उन्होंने कहा कि हम संसार को उसी दृष्टि से देखते हैं जिससे भाषा हमें दिखाती है इसे फील्ड सिद्धांत (Field Theory) नाम दिया गयाबाद में लोगों ने इसे थ्योरी ऑफ लिंगविस्टिक रिलेटिविटी नाम दिया यही संकल्पना बाद में सपीर-ह्वोर्फ हाइपोथिसिस के रूप में सामने आई। हम्बोल्ट ने कहा कि भाषा वस्तु नहीं है बल्कि यह एक गतिविधि है यह गतिविधि नियमों द्वारा संचालित होती है यही बात बाद में चॉम्स्की ने भी कही है कि भाषा नियमों द्वारा शासित व्यवहार है
5.रैस्मस रास्क (1787-1832), RASMUS RASK (1787—1832)
रास्क एक डैनिश विद्वान हैं। इन्होंने Grammar of islandic language की रचना की 1814 . में इन्होंने ‘An Investigation into old Norse’ लेख लिखा| यह लेख भाषाओं की तुलना के वैज्ञानिक नियम प्रदान करता हैयदि आलेख अंग्रेजी या जर्मन भाषा में लिखा गया होता तो इसे बहुत ख्याति प्राप्त होती भाषाओं के बीच शब्दों या व्याकरणिक रूपों का आदान-प्रदान होता है इसलिए रास्क ने कहा कि भाषाएँ चाहे जितनी भी मिश्रित हो लेकिन उन भाषाओं की अत्यावश्यक शब्दावली में व्यापक स्तर पर समानताएँ अगर प्राप्त हो रही हैं तो
उन दोनों भाषाओं की ध्वनियों वर्णों में जो अंतर मिलते हैं, उन अंतरों को यदि नियम के आधार पर समझाया जा सके तो वे भाषाएं
समश्रोतीय भाषाएँ (Cognate languages) हैं।
रास्क ने भारत में अवेस्ता की भाषा और भारतीय आर्य भाषाओं में समानताओं की बात की इसी आधार पर बाद में भारत-रानी भाषा परिवार की बात की गई है उन्होंने भारतीय आर्य भाषाओं और द्रविड़ भाषाओं में भिन्नता की ओर भी संकेत किया
6.      याकोब ग्रिम
याकोब ग्रिम पेशे से वकील थे। लेकिन इनकी भाषाओं और लोक साहित्य में बहुत अधिक रुचि थी इन्होंने परी कथाओं (Fairy Tales) का संकलन भी किया है, जिसके लिए इन्हें मुख्य रूप से याद किया जाता है, किंतु भाषा विज्ञान की दुनिया में इन्हें इनके भाषा संबंधी विभिन्न योगदानों के लिए याद किया जाता है इनमें से पहली चीज है- देव भाषा का व्याकरण इन्होंने इस व्याकरण में जर्मन भाषा के ध्वनि परिवर्तन के नियम दिए हैं उस समय जर्मन भाषा को देव भाषा माना जाता था इसके प्रकाशन के बाद ग्रिम को रास्क द्वारा बताए गए नियमों का पता चला और उन नियमों को पढ़ने के बाद उन्होंने अपने ध्वनि परिवर्तन नियमों को संशोधित किया तथा प्रकाशित किया इसी प्रकाशन को बाद में मैक्समूलर आदि विद्वानों द्वारा ग्रिम नियम कहा गया इन नियमों का एक उदाहरण इस प्रकार है-
क त प कालक्रम में ख थ फ में परिवर्तित हो जाते हैं
बाद में फिर इसी प्रकार के परिवर्तन इन ध्वनियों में होते रहते हैं
इन नियमों के प्रतिपादन के बाद नव व्याकरण संप्रदाय का उदय हुआ इस संप्रदाय का उद्देश्य भाषा विज्ञान को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करना था इस संप्रदाय ने अवधारणा दी कि भाषा के नियम निरपवाद होते हैं इनके द्वारा कई नई-नई संकल्पनाएँ दी गईं । जिनका तात्कालिक भाषावैज्ञानिकों द्वारा मजाक उड़ाया गया और इन विद्वानों को नौसिखिया या नव व्याकरण (Junggrammatiker /Neo-grammarians) कहा गया
7.      आगस्ट श्लाइखर
आगस्ट श्लाइखर का तुलनात्मक भाषाविज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है इन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था और भाषाओं में तुलनात्मक और ऐतिहासिक दृष्टि से काम करते हुए उन्होंने भाषाओं के तीन वर्ग किए-
योगात्मक भाषाएँ
अश्लिष्ट योगात्मक भाषाएँ
श्लिष्ट योगात्मक भाषाएँ
यही वर्गीकरण बाद में आकृतिमूलक वर्गीकरण के रूप में विकसित हुआ इन्होंने मूल भारोपीय भाषा का पुनर्निर्माण भी किया जिसके अंतर्गत इन्होंने भारोपीय भाषा के स्वर, व्यंजन, धातु, रूप आदि का वर्णन किया है
8.      मैक्समूलर
प्राच्यविद्या को जर्मनी में प्रचारित-प्रसारित करने का श्रेय मैक्समूलर को दिया जाता है इन्होंने भाषिक नियमों की समीक्षा की है भाषा विज्ञान के क्षेत्र में इनका मूल योगदान जर्मनी और यूरोप में भाषा विज्ञान को एक लोकप्रिय विषय के रूप में स्थापित करना रहा है

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