संरचनात्मक भाषाविज्ञान: संक्षिप्त परिचय
संरचनात्मक भाषाविज्ञान एक विस्तृत शब्द है। इसके अंतर्गत एफ.डी. सस्यूर के
बाद भाषाविज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने वाले अधिकांश विद्वान आ जाते हैं।
किंतु चूँकि लोगों द्वारा अलग-अलग भाषा-विश्लेषण पद्धतियों का विकास भी किया गया
है,
इसलिए उन्हें छोड़कर केवल भाषा की संरचना पर कार्य करने वाले
विद्वानों को इस वर्ग में अलग से रखकर देखा जाता है। इस दृष्टि से मूल काम अमेरिका
में हुआ है। अतः उसी का यहाँ पर परिचय दिया जा रहा है। इसकी अमेरिकी परंपरा में बोआज, सपीर, ब्लूमफील्ड, हॉकेट और हैरिस आते हैं, जिनमें से ब्लूमफील्ड और हॉकेट का यहाँ परिचय दिया जा रहा है।
ब्लूमफील्ड आधुनिक भाषाविज्ञान के स्तंभ भाषावैज्ञानिक हैं। आधुनिक
भाषाविज्ञान की स्थापना में सस्यूर के बाद इनका नाम बहुत ही आदर के साथ लिया जाता
हैआधुनिक भाषाविज्ञान में अध्ययन-विश्लेषण को व्यवस्थित ढाँचा प्रदान करने का
श्रेय ब्लूमफील्ड को दिया जाता है। 1933 ई. में प्रकाशित उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘Language’ को भाषाविज्ञान की बाइबिल
(मामबर्ग) तक कहा गया है। इस ग्रंथ के माध्यम से उन्होंने भाषाविज्ञान को सचमुच
विज्ञान का रूप देने का कार्य किया। अपने प्रकाशन के लगभग 90 वर्ष बाद आज भी इस
पुस्तक का महत्व किसी भी दृष्टि से कम नहीं हुआ है।
इस पुस्तक के अलावा ब्लूमफील्ड ने ‘An introduction to the study of language’ (1914) आदि कई पुस्तकों और आलेखों की भी रचना की है। इनकी भाषा विश्लेषण संबंधी महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं-
इस पुस्तक के अलावा ब्लूमफील्ड ने ‘An introduction to the study of language’ (1914) आदि कई पुस्तकों और आलेखों की भी रचना की है। इनकी भाषा विश्लेषण संबंधी महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं-
1. व्यवहारवादी दृष्टिकोण
ब्लूमफील्ड को व्यवहारवादी भाषावैज्ञानिक कहा गया है। ये भाषा की सत्ता को
मानव मस्तिष्क में न मानते हुए सामान्य भाषा व्यवहार में मानते हैं। इन्होंने भाषा
को उद्दीपन (stimulus) से उत्पन्न
होने वाली औच्चारिक अनुक्रिया (response) कहा है, तथा इसे परीक्षणीय (verifiable) माना है। इस संबंध
में इनका ‘जिल’ और ‘जैक’ का सुप्रसिद्ध उदाहरण देखा जा सकता है-
भूख लगने पर जिल ने पेड़ पर एक सेब देखा। अतः भूख ‘उद्दीपक’ के कारण उसे
सेब पाने की ‘अनुक्रिया’ हुई। अब उसके
पास दो रास्ते हैं- या तो स्वयं तोड़कर लाए या फिर जैक से तोड़कर लाने के लिए कहे।
उसने जैक से सेब लाने को कहा। अतः उसकी अनुक्रिया ‘भाषिक
व्यवहार’ के रूप में अभिव्यक्त हुई। अतः उद्दीपन होने पर दो
प्रकार से अनुक्रिया की जा सकती है- कार्य करके या फिर भाषा में अभिव्यक्त करके।
अतः किसी उद्दीपक से प्रेरित होकर किया जाने वाला भाषिक व्यवहार (या भाषिक
अनुक्रिया) ही ‘भाषा’ है।
2. स्वनिम
ब्लूमफील्ड ने स्वनिमों की सत्ता को भी भौतिक माना है। Language में उन्होंने स्वनिम को ‘a
minimum unit of distinctive sound features’ (विभेदक ध्वनि-लक्षणों की लघुतम इकाई) के रूप में परिभाषित किया है।
3. रूपिम और शब्द
रूपिम के संदर्भ में विस्तृत चर्चा करते हुए उन्होंने इसे ‘minimum meaningful unit’ (लघुतम सार्थक
इकाई) के रूप में परिभाषित किया और इसके दो वर्ग किए- मुक्त (free)
और बद्ध (bound)।
‘शब्द’ को भाषाविज्ञान में आज भी व्यापक संकल्पना के
रूप में देखा जाता है। इस कारण इसे परिभाषित करना बहुत कठिन रहा है। ब्लूमफील्ड ने
इसे ‘minimum free form’ (लघुतम मुक्त रूप) कहा है।
4. वाक्य
वाक्य को ब्लूमफील्ड ने संरचनात्मक दृष्टिकोण से परिभाषित करते हुए कहा है कि
वाक्य वह स्वतंत्र भाषिक इकाई है जो व्याकरणिक दृष्टि से किसी बड़ी इकाई का अंग न
हो। वाक्य विश्लेषण के लिए उनके द्वारा ‘immediate
contituent’ (निकटस्थ अवयव) विश्लेषण पद्धति दी गई, जो बहुत अधिक प्रसिद्ध हुई थी। इस पद्धति
में उन्होंने रचनाओं के दो प्रकार माने- ‘endocentric’ (अंतःकेंद्रिक)
तथा ‘exocentric’ (बाह्यकेंद्रिक)।
निकटस्थ अवयव विश्लेषण (IC Analysis)
निकटस्थ अवयव विश्लेषण (IC Analysis)
5. अर्थ
ब्लूमफील्ड ने अर्थ संबंधी अध्ययन की कुछ कठिनाइयों की ओर संकेत करते हुए
भाषाविज्ञान को अर्थ के अध्ययन में असमर्थ बताया। इस कारण बाद के संरचनावादियों
द्वारा भी अर्थ पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
भाषा के संरचनात्मक पक्ष के अलावा ब्लूमफील्ड ने ऐतिहासिक भाषाविज्ञान और भाषा
भूगोल जैसे विषयों में भी विचार किया है। उन्होंने संस्कृत भाषा का भी अध्ययन किया
था और वे पाणिनी से बहुत प्रभावित थे। ‘अष्टाध्यायी’ को उन्होंने मानव मेधा (human
intelligence) के महानतम स्मारकों में से एक कहा है। वे स्वयं भी
ऐसा एक व्याकरण तैयार करना चाहते थे। इस क्रम में उन्होंने ‘मेनोमिनी
भाषा’ (Menomini Language) का व्याकरण भी लिखा है, जो 1962 ई. में प्रकाशित हुआ।
कई दृष्टियों से यह एक उच्च कोटि का व्याकरण है।
हॉकेट (C.
F. Hockett)
हॉकेट ने भाषा के स्वनिमिक, रूपिमिक और वाक्य स्तरों पर काम किया और ‘A Manual of Phonology’ (1955) तथा ‘A Course in Modern Linguistics’ (1958) पुस्तकों की रचना की। इस क्रम में 1954 ई. में प्रकाशित उनका एक आलेख ‘Two Models of Grammatical Description’ भी महत्वपूर्ण है, जिसमें सुप्रसिद्ध ‘Item and Arrangement’ (मद एवं विन्यास) तथा ‘Item and Process’ (मद एवं प्रक्रिया) सिद्धांत दिए गए हैं।
हॉकेट ने भाषा के स्वनिमिक, रूपिमिक और वाक्य स्तरों पर काम किया और ‘A Manual of Phonology’ (1955) तथा ‘A Course in Modern Linguistics’ (1958) पुस्तकों की रचना की। इस क्रम में 1954 ई. में प्रकाशित उनका एक आलेख ‘Two Models of Grammatical Description’ भी महत्वपूर्ण है, जिसमें सुप्रसिद्ध ‘Item and Arrangement’ (मद एवं विन्यास) तथा ‘Item and Process’ (मद एवं प्रक्रिया) सिद्धांत दिए गए हैं।
Item and Arrangement (मद एवं विन्यास)
जब किसी भाषिक रचना के निर्माण में एक से अधिक मदों का प्रयोग किया जाता है,
तो उन्हें और उनकी व्यवस्था को विश्लेषित करने की पद्धति ‘Item and
Arrangement’ (मद एवं विन्यास) है।
उदाहरण-
शब्द मद-1 + मद2
भाषाएँ- भाषा
+ एँ
सड़कों – सड़क + ओं
Item and Process (मद एवं प्रक्रिया)
कुछ भाषिक रचनाओं के निर्माण में एक से अधिक मदों के योग के साथ कोई प्रक्रिया
भी होती है। ऐसी रचनाओं का विश्लेषण करते हुए उनमें लगे हुए मदों के साथ उनके निर्माण
की प्रक्रिया भी बतानी होती है। अतः वह पद्धति जिसमें इस प्रकार की भाषिक रचनाओं में लगे मदों और उनके योग के समय घटित हुई प्रक्रिया को भी बताया जाता है, मद एवं प्रक्रिया है।
उदाहरण-
शब्द मद-1 + मद2 प्रक्रिया
कौए - कौआ + ए (आ>ए)
लड़कों – लड़का + ओं (आ>ओं)
Very useful
ReplyDeleteThanks mam
Deleteसर,
ReplyDeleteबहुत ही लाभदायक रहा।धनयवाद।
Dr. Shibi Chembra
Assistant Professor
Department of Hindi
University of Calicut
Kerala
धन्यवाद सर
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