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Wednesday, November 6, 2019

वेदांग और भाषा चिंतन


 वेदांग और भाषा चिंतन  
वेद को ज्ञान का पर्याय माना गया है। वेद आर्य सभ्यता के आदि ग्रंथ हैं। इनमें तत्कालीन आर्चायों/ऋषियों आदि द्वारा मानव जीवन और तात्कालिक ज्ञान से संबंधित अनेक बातें की गई हैं।
वेदों के बाद वेदांगों की बात की जाती है। संस्कृत आचार्यों द्वारा 06 वेदांग माने गए हैं, जो इस प्रकार हैं-
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष।
इनमें से 04 भाषा से संबंधित हैं। इन चारों को संक्षेप में इस प्रकार से समझा जा सकता है-
शिक्षा : इनका संबंध ध्वनि से है। इनमें मंत्रों के शुद्ध और सम्यक उच्चारण के लिए आवश्यक ध्वनि संबंधी ज्ञान की चर्चा की गई है। शिक्षा के बारे में निम्नलिखित बिंदु उल्लेखनीय हैं-
  स्वरवर्णोपदेशक शास्त्र। (विष्णुमित्र)
  वर्णस्वराद्युच्चारणप्रकारो यत्रोपदिश्यते सा शिक्षा।
  (ऋग्वेदभाष्यभूमिका, सायण)
  (स्वर और व्यंजन के उच्चारण प्रकार का जिसमें निरूपण हो, वह शिक्षा है।)
  पाठक/वक्ता के दोष: बोलने में शीघ्रता, गायन, सिर हिलाना, बिना अर्थ समझे पढ़ना आदि।
  पाठक/वक्ता के गुण: मधुरता, अक्षरों की स्पष्टता, उचित स्वर आदि।
  डॉ. सिद्धेश्वर वर्मा- संख्या 65।
  इसी के समानांतर प्रातिशाख्य की भी चर्चा जिसे आधुनिक भाषावैज्ञानिकों द्वारा अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (Applied Linguistics) कहा गया है।
  वेदों की 130 शाखाएँ। इनमें उच्चारण संबंधी भेद। उनका विश्लेषण और निर्धारण।

व्याकरण : इसका संबंध पद और वाक्य रचना के नियमों की व्याख्या करना है। इसके अंतर्गत शब्द-वर्गीकरण (धातु-प्रातिपादिक आदि), संधि, समास, कारक सहित पद एवं वाक्य से जुड़े सभी बातें आती हैं। व्याकरण के बारे में निम्नलिखित बिंदु उल्लेखनीय हैं-
  मुखं व्याकरणं स्मृतम्।
  महाभाष्य में व्याकरण के अनेक प्रयोजनों की बात।
  दो बातें-
  लघु (=भाषा सीखने का लघु मार्ग);
  असंदेह (=भाषा संबंधी संदेह का निवारण व्याकरण द्वारा)
  सर्वप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य : पाणिनि .....(विस्तृत चर्चा बाद में)
  इनके बाद कात्यायन और पतंजलि
  (मुनित्रय)

निरुक्त : इसका संबंध शब्दों की व्युत्पत्ति से है। एक कालखंड से दूसरे कालखंड (जैसे- वैदिक संस्कृत से लौकिक संस्कृत) तक पहुँचते-पहुँचते भाषा में बहुत शब्दों के रूप या अर्थ बदल जाते हैं। संस्कृत के साथ भी यह स्थिति देखी जा सकती है। इस कारण शब्दों के क्रमिक रूप, उनमें हुए परिवर्तन आदि की व्याख्या निरुक्त की गई। निरुक्त के बारे में निम्नलिखित बिंदु उल्लेखनीय हैं-
वर्णागमों वर्णविपर्ययश्च द्वौ चापरो वर्णविकारनाशौ।
धातोस्तदर्थातिशयेन योगस्तदुच्यते पंचविधं निरुक्तम्॥
  (वर्णागम, वर्ण-विपर्यय, वर्ण-विकार, वर्ण-नाश (लोप) और धातु का अर्थ-विस्तार, निरुक्त के पाँच भेद हैं)
  दो खंड
  निरुक्त : व्युत्पत्ति, प्रकृति-प्रत्यय विभाग का विवेचन।
  निघंटु : वैदिक शब्दों का कोश।

छंद : इसमें वैदिक मंत्रों का सम्यक पाठ की व्यवस्था बताई जाती है। चूँकि आज के समय के छंद का संबंध साहित्य से है, इसलिए यहाँ विस्तार नहीं दिया जा रहा है।

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