रूपविज्ञान (Morphology) की विषयवस्तु
1. रूपिम
क्या है? (What is Morpheme)
किसी भी भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई
को रूपिम कहते हैं। अर्थात रूपिम वह मूल शब्द या कोई शब्दांश है जिसका अपना एक अर्थ
(कोशीय या व्याकरणिक) होता है और जिसके और अधिक अर्थवान खंड या भाग नहीं किए जा सकते।
2. रूपिम के प्रकार (Types of Morpheme)
स्वतंत्र रूप से वाक्य में प्रयुक्त
हो सकने या नहीं हो सकने तथा अर्थ की दृष्टि से रूपिम के दो प्रकार किए जाते हैं-मुक्त
रूपिम और बद्ध रूपिम। फिर इनके भी कुछ उपभेद किए जाते हैं-
2.1 मुक्त रूपिम और इसके प्रकार
वे रूपिम जो भाषा व्यवहार में स्वतंत्र
रूप से प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं और जिनका कोशीय अर्थ होता है, मुक्त रूपिम कहलाते हैं, जैसे- राम, घर, जा, रुचि आदि। इसके मुख्यतः दो प्रकार किए
जाते हैं-
धातु और प्रातिपदिक।
2.2 बद्ध रूपिम और इसके प्रकार
वे रूपिम जो भाषा व्यवहार में स्वतंत्र
रूप से प्रयुक्त होने की क्षमता नहीं रखते हैं और जिनका व्याकरणिक अर्थ होता है, बद्ध रूपिम कहलाते हैं, जैसे- -ता, उप-, से आदि। इसके कई प्रकार किए जाते हैं-
उपसर्ग, मध्य प्रत्यय, प्रत्यय, परसर्ग, शून्य प्रत्यय, रिक्त प्रत्यय आदि।
3. रूपिम और रूप ((Morpheme and Morph)
रूपिम और रूप में वही संबंध है, जो स्वनिम और स्वन में है।
रूपिम वह एक मानसिक इकाई है, जो अमूर्त रूप से हमारे मन में रहती
है और उसका भाषा व्यवहार में बार-बार प्रयोग ‘रूप’ है, जैसे- ‘घर’ एक रूपिम है। अब किसी पाठ में यदि ‘घर’ शब्द का 100 बार प्रयोग हुआ हो, तो वे प्रयोग 100 रूप कहे जाएँगे।
4. रूपिम और संरूप (Morpheme and Allomorph)
जब किसी रूपिम के एक से अधिक ध्वन्यात्मक
रूप भाषा व्यवहार में प्रचलित हो जाते हैं तो वे परस्पर संरूप कहलाते हैं, उनमें सबसे सामान्य या अधिक व्यवहृत
रूप को रूपिम माना जाता है, जैसे- ‘बच्चा’ शब्द के हिंदी
में दो रूप प्रचलित हैं-
बच्चा- स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त शब्द
बच- ‘बच्चा’ शब्द का वह रूप जो ‘पन’ या ‘काना’ आदि प्रत्ययों के साथ लगता है, जैसे- बचपन, बचकाना आदि।
अतः ये आपस में संरूप होंगे। इन्हें
इस प्रकार से दर्शाया जा सकता है-
/बच्चा/ = {बच्चा, बच}
यही बात ‘घोड़ा’ और ‘घुड़’ रूपों के लिए भी कही जा सकती है।
हिंदी अथवा अंग्रेजी में बहुवचन प्रत्ययों
के संदर्भ में भी संरूप देखे जा सकते हैं, जैसे-
लड़का- लड़के, लड़कों
लड़की- लड़कियों
भाषा- भाषाएँ, भाषाओं
Boy- Boys
bus – buses
आदि।
5. रूपविज्ञान की शाखाएँ
किसी भाषा में दो प्रकार की रूपिमिक
प्रक्रियाएँ देखी जा सकती हैं- व्युत्पादन (Derivation) और रूपसाधन(Inflection)। इन रूपिमिक प्रक्रियाओं की दृष्टि
से रूपविज्ञान के दो भेद किए जाते हैं-
5.1 व्युत्पादक रूपविज्ञान (Derivational Morphology) : वह रूपविज्ञान जिसमें शब्दों से
और अधिक कोशीय शब्दों का व्युत्पादन किया जाता है, जैसे-
भारत = भारतीय, भारतीयता, भारतीयतावाद
चल = चलन
लिख = लेखन, लेखक
5.2 रूपसाधक रूपविज्ञान (Inflectional Morphology) : वह रूपविज्ञान जिसमें शब्दों से उनके
शब्दरूप अर्थात पद बनाए जाते हैं, जैसे-
अच्छा = अच्छा, अच्छी, अच्छे
लड़का= लड़का, लड़के, लड़कों
6. रूपिमिक वितरण (Morphological Distribution)
स्वनिमों की तरह ही रूपिमों में भी
दो प्रकार के वितरण प्राप्त होते हैं-
6.1 व्यतिरेकी वितरण (Contrastive Distribution): जहाँ एक रूप की जगह दूसरे का प्रयोग
होने पर अर्थ बदल जाए। सभी रूपिम व्यतिरेकी वितरण में होते हैं।
6.2 परिपूरक वितरण (Complementary Distribution): जहाँ एक रूप की जगह दूसरे का प्रयोग
होने पर अर्थ न बदले। रूपिम और संरूप परिपूरक वितरण में होते हैं।
7. शब्दभेद (Parts of Speech)
भारतीय वर्गीकरण : नाम, आख्यात, उपसर्ग, निपात
पाश्चात्य वर्गीकरण : संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, क्रियाविशेषण .... आदि।
और भी गहन स्तर पर इनके ‘विकारी और अविकारी शब्दभेद’ तथा ‘विवृत्त और संवृत्त समुच्चय (Open and Close set)’ आदि के रूप में वर्गीकरण किया जाता
है।
8. व्याकरणिक कोटियाँ (Grammatical Categories)
वे कोटियाँ शब्दों को पद बनाने पर जिनकी
सूचनाएँ संबद्ध हो जाती हैं-
लिंग, वचन, पुरुष, काल, पक्ष, वृत्ति, कारक, वाच्य
9. व्युत्पादन (Derivation) की प्रक्रियाएँ
9.1 प्रत्ययीकरण : उपसर्ग योग
प्रत्यय योग
9.2 समास
9.3 अन्य (पुनरुक्ति, शून्य प्रत्यय योग आदि)
10. रूपिमिक
प्रक्रियाएँ और संधि : संधि को रूपस्वनिमिकी (Morphophonemics) कहा गया है।
10. रूपसाधन
(पदसाधन) (Inflection)
शब्दों से पदों का निर्माण। उदाहरण-
संज्ञा :
लड़का= लड़का, लड़के, लड़कों
विशेषण :
अच्छा = अच्छा, अच्छी, अच्छे
क्रिया :
खाना = खाता, खाती, खाते, खाया, खायी, खाये (खाई, खाए), खाओ, खाएँगे, ....
अन्य शब्दभेद एवं अविकारी शब्द
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