स्वनविज्ञान (Phonetics) की विषवस्तु
1. स्वनविज्ञान
(Phonetics) क्या है?
स्वनविज्ञान भाषाविज्ञान की
वह शाखा है, जिसमें स्वनों (भाषायी ध्वनियों)
का उच्चारण, संवहन और श्रवण की दृष्टि से
अध्ययन-विश्लेषण किया जाता है। इसमें किसी भाषा विशेष की ध्वनियों की बात नहीं की
जाती, बल्कि भाषा मात्र की ध्वनियों की
बात की जाती है। अतः इसमें यह नहीं देखा जाता कि कोई ध्वनि, जैसे- ‘क’ हिंदी की ध्वनि है या अंग्रेजी या
जापानी की; बल्कि यह देखा जाता है कि ‘क’ एक
स्वन है और इसका उच्चारण मुख विवर में कंठ नामक स्थान के पास हवा को स्पर्श कराकर
किया जाता है। इसकी उच्चारणात्मक विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
ध्वनि/स्वन =
क
खंडीय वर्ग=
व्यंजन
उच्चारण स्थान
= कंठ्य
उच्चारण
प्रयत्न = स्पर्श
घोषत्व= अघोष
प्राणत्व =
अल्पप्राण
आदि।
इसके बाद यह विश्लेषण भौतिक
ध्वनि के रूप में हो सकता है,
जैसे- ‘क’
ध्वनि का वायारंभ काल, पीक, कोडा आदि देखना।
स्वनविज्ञान में इसी प्रकार से सभी स्वनों का विश्लेषण किया
जाता है। विश्लेषण के उपरांत यह देखा जा सकता है कि यह ध्वनि किन-किन भाषाओं में
पाई जाती है या नहीं पाई जाती है।
2. स्वनविज्ञान की शाखाएँ
उच्चारण, संवहन
और श्रवण की दृष्टि से स्वनविज्ञान की 03 शाखाएँ होती हैं। इन्हें चित्रात्मक रूप से
इस प्रकार से देखा जा सकता है-
3. वाक् अंग
एवं वाक् उत्पादन प्रक्रिया (Speech Organs & Speech
Production Process)
3.1 उच्चारण संबंधी
अंग-
स्त्रोत- http://www.phon.ox.ac.uk/jcoleman/phonation.htm
3.2 श्रवण संबंधी
अंग-
4. उच्चारण स्थान
(Places
of Articulation)
मुख विवर में वे स्थान जहाँ से
वायु प्रवाह को बाधित या प्रभावित करके स्वनों का उच्चारण किया जाता है। उदाहरण के
लिए उपर्युक्त चित्र में बताए गए उच्चारण अंग विभिन्न ध्वनियों के उच्चारण स्थान हैं, जैसे-
‘क’ का उच्चारण स्थान कंठ या कोमल
तालु है
‘च’ का उच्चारण
स्थान तालु है
‘प’ का उच्चारण
स्थान होठ है
‘ह’ का उच्चारण
स्थान स्वरयंत्र या स्वरतंत्री है
5. उच्चारण प्रयत्न
(Manners of Articulation)
किसी स्वन के उच्चारण हेतु अंदर से
बाहर आती हुई हवा पर की जाने वाली गतिविधि उच्चारण प्रत्यन कहलाती है। इस आधार पर स्वनों
के विविध प्रकार किए जाते हैं, जैसे-
स्पर्श = क, त, प आदि
स्पर्श संघर्षी = च, छ, ज आदि
संघर्षी = श, ष, स आदि
उत्क्षिप्त = ड़, ढ़ आदि
लुंठित = र
6. खंडीय ध्वनियाँ (Segmental Phones)
वे ध्वनियाँ जिन्हें ध्वनि तरंग का खंडीकरण करके प्राप्त किया
जा सके, खंडीय ध्वनियाँ कहलाती हैं। इनके
दो भेद हैं-
स्वर : अ, आ, इ, उ, ए आदि
व्यंजन : क, ख, च, ह आदि
7. अधिखंडात्मक अभिलक्षण (Suprasegmental Features)
ध्वनि तरंगों की वे विशेषताएँ जिन्हें खंडीकरण करके न प्राप्त
किया जा सके, अधिखंडात्मक अभिलक्षण कहलाते हैं, जैसे-
दीर्घता (Length), बलाघात
(Stress),
सुर (Pitch), संहिता (Juncture)
आदि
8. स्वनिक लिप्यंकन (Phonetic
Transcription)
किसी बोली गई बात को किसी भी लिपि का प्रयोग करते हुए लिखना
स्वनिक लिप्यंकन (Phonetic Transcription) है। पारंपरिक
लिपियों के संदर्भ में यह आवश्यक नहीं है कि जैसा बोला जाए, वैसा ही लिखा जाए।
इसे ही ध्यान में रखते हुए भाषावैज्ञानिकों द्वारा अंतरराष्ट्रीय
ध्वन्यात्मक वर्णमाला (आई.पी.ए.) का विकास किया गया है, जिसे अंग्रेजी
में International Phonetic Alphabet (IPA) कहते हैं।
इसमें विश्व की लगभग सभी भाषाओं की भिन्न ध्वनियों को एक चिह्न दिया गया है और उसका
उच्चारण समझाया गया है।
9. ध्वनि तरंग (Sound Wave)
मानव मुख से उच्चारित होने के पश्चात वायुमंडल में किसी ध्वनि
की जो लहर बनती है, उसे ध्वनि
तरंग कहते हैं।
ध्वनि तरंग की प्रमुख विशेषताएँ-
वायारंभ काल (Voice
onset time), आवृत्ति (Frequency), आयाम
(Amplitude),
प्रबलता (Loudness), फॉर्मेंट (Formant),
प्रस्फोट (Burst) आदि।
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