समाजभाषाविज्ञान (Sociolinguistics)
समाजभाषाविज्ञान वह विषय है जिसमें
भाषा और समाज के परस्पर संबंधों का अध्ययन किया जाता है और इसमें यह देखा जाता है
कि भाषाएँ समाज को कैसे प्रभावित करती हैं या समाज भाषाओं को कैसे प्रभावित करता
है।
समाज क्या है?
समाज मानव संबंधों का जाल है। जब समान प्रकार
लोग विभिन्न संबंधों के माध्यम से आपस में जुड़ते हैं तो समाज का निर्माण होता है।
यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि समाज का अर्थ भीड़ नहीं है, बल्कि विभिन्न संबंधों के माध्यम
से जुड़े हुए लोगों का व्यवस्थित समूहीकरण है। एक समाज के लोग अपने समान
उद्देश्यों, मान्यताओं
और परंपराओं आदि के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। समाज को सामाजिक विज्ञान
में विविध प्रकार से परिभाषित किया गया है। विविध शब्दकोशों में समाज की परिभाषाएँ
देखी जा सकती हैं।
उदाहरण के लिए मेरियम वेबस्टर
शब्दकोश में समाज की परिभाषाएँ इस प्रकार से दी गई हैं-
Definition of society
(Entry 1 of 2)
1: companionship or association with one's fellows : friendly or intimate intercourse : COMPANY
2: a voluntary association of individuals for common endsespecially : an organized group working together or periodically meeting because of
common interests, beliefs, or profession
3a: an enduring and cooperating social group whose
members have developed organized patterns of relationships through interaction
with one another
b: a community, nation, or broad grouping of people having
common traditions, institutions, and collective activities and interests
4a: a part of a community that is
a unit distinguishable by particular aims or standards of living or
conduct : a social circle or a group of
social circles having a clearly marked identityliterary society
b: a part of the community that sets itself apart as a
leisure class and that regards itself as the arbiter of fashion and manners
.....
(संदर्भ- https://www.merriam-webster.com/dictionary/society)
समाज के संदर्भ में भाषा
मूलतः भाषा एक व्यवस्था है जो
ध्वनि को अर्थ से जोड़ती है।
ग + आ + य =>
गायें बैठी हैं
C+O+W
=> The cows are sitting.
भाषा और समाज का संबंध
समाज भाषा
मानव जाति की संपूर्ण व्यवस्था
समाज के माध्यम से ही संचालित हो रही है। हमारी सभ्यता का संपूर्ण विकास हमारी
सामाजिक संरचना से जुड़ा रहा है। समाज की अवधारणा के अंतर्गत मनुष्य, परिवार, सभ्यता, संस्कृति आदि सभी चीजें आ जाती
हैं। किसी भी समाज के सदस्य विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत भी देखे जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए-
· आयु के आधार पर
· लिंग के आधार पर : पुरुषx- x1,x2,x3… - महिला y- y1,y2,y3…
· क्षेत्र के आधार पर
· शिक्षा के आधार पर
· आय/वर्ग के आधार पर : उच्च, मध्य और निम्न
· धर्म के आधार पर
आदि।
इस तरह के विविध आधारों पर एक ही
समाज में भिन्न-भिन्न वर्ग और उपवर्ग देखे जा सकते हैं। इन वर्गों या उपवर्गों के
बीच भाषा व्यवहार में पर्याप्त समानता के बावजूद कुछ वैविध्य भी प्राप्त होता है। समाजभाषाविज्ञान
का उद्देश्य मानव समाजों में भाषा की स्थिति और विभिन्न सामाजिक संरचनाओं और
वर्गों उप वर्गों में भाषा व्यवहार में भेद का अध्ययन-विश्लेषण करना है। उदाहरण के
लिए ‘लिंग के
आधार पर’ पुरुषों और
स्त्रियों के भाषा व्यवहार में अंतर देखा जा सकता है।
भाषायी समाज और भाषाओं का मिलना
विश्व में हजारों का भाषाओं का
व्यवहार होता है। मानव सभ्यता के विकास के क्रम में यातायात के साधनों और संचार के
साधनों का निरंतर विकास हुआ है। इससे एक से अधिक भाषायी समाजों या समुदायों में
आदान-प्रदान हुआ है। इस कारण उनकी सभ्यता और संस्कृति का भी आदान-प्रदान हुआ है। इस
क्रम में भाषा भी प्रभावित होने से नहीं बची है। जब एक से अधिक भाषाओं के लोग आपस
में मिलते हैं तो उनकी परस्पर भाषिक आदान-प्रदान भी होता है। इस कारण निम्नलिखित
प्रकार की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं-
· कोड मिश्रण
· कोड परिवर्तन
समाजभाषाविज्ञान में ‘भाषा’ को ‘कोड’ कहा गया है। इसके कारणों पर अलग से चर्चा की
जा सकती है। इस दृष्टि से उक्त अवधारणाओं को इस प्रकार से व्याख्यायित कर सकते
हैं-
· कोड मिश्रण : किसी एक भाषा के वाक्यों में
दूसरी भाषा के शब्दों के प्रयोग की स्थिति कोड-मिश्रण है, जैसे-
सर, मेरी बुक
का पेज नहीं दिख रहा है।
यहाँ हिंदी वाक्य में अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग का कोड-मिश्रण है।
· कोड परिवर्तन : जब किसी एक भाषा के कथन में किसी
दूसरी भाषा का पूरा का पूरा वाक्य ही आ जाए तो ऐसी स्थिति को कोड-परिवर्तन कहते
हैं, जैसे-
आपका आना अच्छा लगा, यू आर मोस्ट वेलकम। तो अब आगे बढ़ते हैं।
यहाँ हिंदी कथन में अंग्रेजी वाक्य का कोड-मिश्रण है।
एक समाज में एकाधिक भाषाओं का
व्यवहार
किसी भी भाषायी समाज में एकाधिक
भाषाओं के व्यवहार के कारण कुछ विशेष प्रकार की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे-
द्विभाषिकता (Bilingualism)- किसी भाषायी समाज में दो भाषाओं
का व्यवहार होना।
बहुभाषिकता (Multilingualism)- किसी भाषायी समाज में दो से अधिक
भाषाओं का व्यवहार होना।
भाषा प्रभुत्व (Language Dominance)- किसी भाषायी समाज में एक से अधिक
भाषाओं का व्यवहार होने की स्थिति में किसी एक भाषा का व्यवहार अधिक प्रभुत्वशाली
माना जाना, जैसे-
हिंदी भाषी समाज में अंग्रेजी का व्यवहार प्रभुत्वशाली माना जाता है। यद्यपि यह
पूर्णतः एक काल्पनिक मानसिक वृत्ति है। इसका कारण समाज का आय या वर्ग के आधार पर
किया जाने वाला वर्गीकरण है। इसमें तथाकथित उच्च वर्ग द्वारा जिस भाषा का
प्रयोग किया जाता है, उसे ही
प्रभुत्वशाली भाषा मान लिया जाता है।
भाषा अंतरण (Language Shift): बहुभाषिकता की स्थिति में प्रभुत्वशाली
भाषा की ओर होता है। पूरे समाज का होता है।
संकटापन्न भाषा (Endangered Language): बोलने वालों की संख्या बहुत कम हो
गई हो। नई पीढ़ी उसे न सीख रही हो।
भाषा मृत्यु (Language Death): किसी भाषा को बोलने वाले सारे लोग
अपनी भाषा छोड़कर किसी अन्य भाषा का प्रयोग करने लगें। कोई आदिवासी भाषा। सरकारी
विद्यालय- हिंदी/अंग्रेजी।
भाषा अनुरक्षण (Language Maintenance): अपनी भाषा के प्रति सजग होना और
उसे बचाए रखने के लिए उसका व्यवहार करना। दो पक्ष-
उस भाषायी समाज के लोगों द्वारा
स्वयं से आरंभ करना।
सरकारी/गैरसरकारी (संस्थागत)
प्रयास : मातृभाषा दिवस, 21 फरवरी
किसी स्थान विशेष पर भिन्न-भिन्न
भाषियों के मिलने से उत्पन्न होने वाली स्थितियाँ
पिजिन
मारीशस = ‘हिंदी’ + ‘फ्रेंच’ को मिलाकर एक नई भाषा विकसित हो
गई= पिजिन
क्रिओल
पिजिन ही जब मातृभाषा बन जाती है, तो क्रिओल कहलाने लगती है।
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