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Wednesday, February 15, 2023

वाग्दोष चिकित्सा (Speech Therapy)

 वाग्दोष चिकित्सा (Speech Therapy)

इसे कुछ विद्वानों द्वारा वाक् चिकित्सा भी कहा गया है। भाषा व्यवहार में वाक् संबंधी विकारों (Speech Disorders) की चिकित्सा वाग्दोष चिकित्सा कहलाती है। इसकी अंग्रेजी में परिभाषा प्रकार से देख सकते हैं-

therapeutic treatment of impairments and disorders of speech, voice, language, communication, and swallowing

(स्रोत- https://www.merriam-webster.com/dictionary/speech%20therapy)

भाषा सीखना मानव मन तथा मस्तिष्क के लिए एक जटिल प्रक्रिया है। आज भी यह शोध का विषय है कि इतनी कम आयु में मानव शिशु इतनी सहजता से अपने परिवेश से भाषा को कैसे सीख लेता हैएक मानव शिशु के भाषा  व्यवहार करने योग्य अर्जन के संबंध में 3 पक्ष महत्वपूर्ण हैं- 

(क) भाषायी ध्वनियों का सही-सही उच्चारण सीखना

इसका संबंध ध्वनि के उच्चारण अर्थात वाक् अंगों (Speech organs) के ठीक से प्रयोग करने से है। भाषा की प्रत्येक ध्वनि सांस लेने के पश्चात अंदर से बाहर आती हुई हवा को एक निश्चित उच्चारण स्थान पर एक निश्चित प्रकार के परिवर्तन द्वारा निर्मित होती है। मानव शिशु बाह्य संसार में लोगों को केवल बोलते हुए सुनता है, किंतु अनुमान से उन स्थानों पर हवा को परिवर्तित करते हुए ध्वनियों का उच्चारण सीखता है। यदि सीखने में कोई कमी रह जाए तो किसी ध्वनि विशेष के उच्चारण में उसे समस्या हो सकती है।

(ख) मन में विचार उत्पन्न होने पर उसे व्यक्त करने के लिए ठीक वाक्य का निर्माण करना

हमारे मन में अमूर्त रूप से केवल विचार उत्पन्न होते हैं। हम उन विचारों के आधार पर वाक्य का निर्माण करते हैं। उदाहरण- जैसे प्यास लगने पर पानी मांगना, किंतु पानी मांगने के लिए किन शब्दों का और किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य का निर्माण किया जाएगा? इसके लिए एक मस्तिष्क की प्रक्रिया काम करती है, जो ठीक से काम करें तभी सटीक वाक्य का निर्माण होता है। इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि होने की स्थिति में त्रुटिपूर्ण बात के निर्मित होने की संभावना बनी रहती है।

(ग) किसी और द्वारा कोई बात कहे जाने पर उसे ठीक-ठीक सुनकर समझना

इसका संबंध हमारे श्रवण अंगों (Auditory organs) तथा उनसे संबंधित मस्तिष्क प्रक्रिया से है। यदि श्रवण अंग ठीक से काम न करते हों, तो हम ठीक से ध्वनियों को नहीं सुन सकते और किसी ध्वनि विशेष की जगह हमें दूसरी ध्वनि सुनाई पड़ सकती है। ऐसी स्थिति में भाषा व्यवहार प्रभावित होता है, किंतु मानव शिशु अपने परिवेश से यह भी अत्यंत सरलतापूर्वक सीख लेता है।

एक निश्चित उम्र तक यदि मानव शिशु में भाषा व्यवहार संबंधी इन क्षमताओं का विकास नहीं हो पाता, तो उसके भाषा व्यवहार में आने वाली समस्या को वाग्दोष की समस्या कहते हैं। इसके मुख्यतः 03 प्रकार के संभावित कारण हो सकते हैं-

§  वाक अंगों या श्रवण अंगूर में कोई कमी होना

§  मस्तिष्क में कोई न्यूरोलॉजिकल विकार होना

§  शिशु के भाषा अर्जन में कोई समस्या होने के कारण उच्चारण अथवा श्रवण में कोई कमी रह जाना

इनमें से तीसरे प्रकार की समस्या होने पर सजग भाषा शिक्षण, अभ्यास या चिकित्सा के माध्यम से उसे दूर किया जा सकता है, जिसे वाग्दोष चिकित्सा कहते हैं। यह भाषाविज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग का क्षेत्र है। 

भाषा व्यवहार के समय उत्पन्न होने वाली कुछ विशेष प्रकार की स्थितियों, जैसे- हकलाना या एक ध्वनि के स्थान पर दूसरी ध्वनि का उच्चारण करना आदि की चिकित्सा इसके माध्यम से की जा सकती है। एक ध्वनि के स्थान पर दूसरी ध्वनि का उच्चारण करना भाषा में पाई जाने वाली ध्वनियों की समानता और विषमता पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए हिंदी में कुछ ध्वनियों के संदर्भ में उच्चारण संबंधी समस्या कुछ विद्यार्थियों में देखी जा सकती है, जिसे बच्चों के संदर्भ में तुतलाना के नाम से भी जानते हैं-

§  '' की जगह '' या '' की जगह '' का उच्चारण करना

§  '' की जगह '' या '' की जगह '' का उच्चारण करना

§  '' की जगह '' या '' की जगह '' का उच्चारण करना

 आदि।

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