Total Pageviews

Tuesday, August 20, 2024

भाषा और मीडिया (Language and Media)

 भाषा और मीडिया (Language and Media)

किसी सूचना को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह तक पहुंचाने की प्रक्रिया संचार (Communication) कहलाती है। जब यह संचार बहुत व्यापक स्तर पर हो तथा बड़े जनसमूह तक पहुंचता हो, तो इसे जनसंचार (Mass Communication) कहते हैं। इसके लिए प्रयुक्त होने वाले साधन मास मीडिया (Mass Media) अथवा संक्षेप में मीडिया (Media) कहलाते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं, जिन्हें उनके स्वरूप के आधार पर मुख्य रूप से निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जाता है-

प्रिंट मीडिया (Print Media)

प्रिंट मीडिया का नाम सुनते ही हमारे मन मस्तिष्क में 'समाचार पत्र' की संकल्पना उभर कर आती है, किंतु लिखित अथवा छपे हुए माध्यम से सूचनाओं के प्रसार का प्रत्येक माध्यम इसके अंतर्गत समाहित हो जाता है। इसमें समाचार पत्र तो मुख्य है ही, जो दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, अथवा मासिक हो सकता है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की पत्रिकाएं, कॉमिक्स, सूचनापरक पुस्तकें, पंपलेट, प्रतियोगी पत्रिकाओं आदि सब भी आ जाते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (Electronic Media)

इसे ब्रॉडकास्ट मीडिया (Broadcast media) भी कहा गया है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिकॉर्ड की हुई सामग्री का विविध इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, जैसे- रेडियो, टेलीविजन, फिल्म आदि का प्रयोग करते हुए व्यापक जन समूह में किया जाने वाला प्रसारण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अंतर्गत आता है। यह प्रसारण रिकॉर्ड की हुई सामग्री का भी हो सकता है अथवा तत्काल में चल रही घटनाओं का लाइव प्रसारण भी हो सकता है।

डिजिटल मीडिया (Digital Media)

डिजिटल मीडिया को इंटरनेट मीडिया भी कहते हैं। इसके अंतर्गत कंप्यूटर और मोबाइल के माध्यम से किया जाने वाला जनसंचार आता है, जिसके लिए इंटरनेट की आवश्यकता पड़ती है। इसमें ईमेल, सोशल मीडिया, वेबसाइट, युटुबआदि सभी आ जाते हैं।

इनके अलावा एक अन्य रूप भी प्राप्त होता है, जिसे आउटडोर मीडिया (Outdoor media) का नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार की चीजें आती हैं-

§  billboards

§  blimps

§  placards or kiosks

§  skywriting

§  public speaking

अब तो इसके अंतर्गत  augmented reality (AR) को भी रखा जाने लगा है।

विकिपेडिया में मीडिया के सात रूपों को क्रमवार इस प्रकार से प्रस्तुत किया गया है-

  1. Print (books, pamphlets, newspapers, magazines, posters, etc.) from the late 15th century
  2. Recordings (gramophone recordsmagnetic tapescassettescartridgesCDs and DVDs) from the late 19th century
  3. Cinema from about 1900
  4. Radio from about 1910
  5. Television from about 1950
  6. The Internet from about 1990
  7. Mobile phones from about 2000

(स्रोत- https://en.wikipedia.org/wiki/Mass_media)

ऊपर मीडिया के जिन भी रूपों की बात की गई है, सभी में भाषा मुख्य घटक है। भाषा के बिना कोई भी संचार अथवा जनसंचार संभव नहीं है। यहां पर जब भाषा की बात की जा रही है तो ध्यान रखने वाली बात है कि मीडिया में प्रयुक्त भाषा केवल सामान्य भाषा नहीं होती है, बल्कि सूचनाओं सुव्यवस्थित अभिव्यक्ति करने वाली विशिष्ट भाषा होती है। यह भाषा का वह रूप है जो श्रोताओं तक जानकारी को तो पहुंचाता ही है, साथ ही उन पर अपना प्रभाव भी छोड़ता है।

मीडिया में प्रयुक्त भाषा मीडिया के स्वरूप के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। अर्थात प्रिंट मीडिया में जिस भाषा का प्रयोग होता है, वही भाषा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अथवा डिजिटल मीडिया में प्रयुक्त नहीं होती। यह बात मीडिया के सभी भिन्न-भिन्न रूपों पर लागू होती है। केवल समाचार पत्रों की ही बात की जाए तो दैनिक समाचार पत्रों में जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया जाता है, साप्ताहिक, मासिक अथवा पाक्षिक समाचार पत्रों या पत्रिकाओं में उसी भाषा का प्रयोग करते हुए समाचार प्रकाशित नहीं किए जाते।

 अतः मीडिया के स्वरूप की भिन्नता के आधार पर उसके लेखों या पाठ में प्रयुक्त भाषा का स्वरूप भी बदल जाता है। इसे हम मीडिया के अलग-अलग रूपों में आगे देखेंगे ।

मीडिया भाषाविज्ञान (Media linguistics)

 मीडिया भाषाविज्ञान (Media linguistics)

मीडिया अथवा जनसंचार (मास कम्युनिकेशन) भाषा व्यवहार का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है, जिसकी अपनी लेखन शैली और विशिष्ट विशेषताएं होती हैं। मीडिया की भाषिक सामग्री का विश्लेषण उसके प्रकार्य और विशिष्टता को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए। सामान्य भाषावैज्ञानिक सिद्धांतों से उसकी पूरी तरह उद्घाटन संभव नहीं है। जिस प्रकार 'साहित्य' का विश्लेषण भाषा विज्ञान की स्वतंत्रता शाखा 'शैलीविज्ञान' के माध्यम से किया जाता है, उसी प्रकार मीडिया की भाषा का विश्लेषण भाषा विज्ञान की जिस शाखा या जिस रूप के माध्यम से किया जाता है उसे 'मीडिया भाषा विज्ञान' कहते हैं।

दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि 'मीडिया की भाषा के स्वरूप और संरचना आदि का विश्लेषण करने के लिए भाषा विज्ञान के जिस प्रक्षेत्र या अंतरानुशासनिक शाखा का प्रयोग किया जाता है, उसे मीडिया भाषा विज्ञान कहते हैं। एक विषय क्षेत्र के रूप में इसकी सामग्री 'भाषा और मीडिया' या 'मीडिया और भाषा' शीर्षक के अंतर्गत आती है। 

मीडिया भाषा विज्ञान के माध्यम से मीडिया के विविध रूपों प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया, आउटडोर मीडिया आदि में प्रयुक्त भाषा को उसके स्वरूप एवं संप्रेषणात्मक क्षमता को ध्यान में रखते हुए अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रोक्ति विश्लेषण, अर्थविज्ञान, शैलीविज्ञान, भाषा और नवीन तकनीकें, रीतिविज्ञान, समाजभाषाविज्ञान आदि की सक्रिय सहायक भूमिका होती है। 

मीडिया भाषाविज्ञान (Media Linguistics) की तरह मीडिया शैलीविज्ञान (Media Stylistics) की भी बात की जाती है, जिसका उद्देश्य मीडिया पाठों या मीडिया में प्रयुक्त हो रही भाषिक सामग्री का शैलीपरक विश्लेषण करना होता है। 

भाषा और प्रिंट मीडिया (Language and Print Media)

 भाषा और प्रिंट मीडिया (Language and Print Media)

लिखित अथवा छपे हुए माध्यम से सूचनाओं के प्रसार के सभी माध्यमों को सामूहिक रूप से प्रिंट मीडिया के अंतर्गत रखा जाता है।  इसमें समाचार पत्र तो मुख्य है ही, जो दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, अथवा मासिक हो सकता है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की पत्रिकाएं, कॉमिक्स, सूचनापरक पुस्तकें, पंपलेट, प्रतियोगी पत्रिकाओं आदि सब भी आ जाते हैं।

प्रिंट मीडिया की भाषा सुगठित और स्पष्ट होती है। इसकी संरचना इस प्रकार की होती है कि पाठक को सीधे-सीधे सूचना का संप्रेषण कर सके तथा आवश्यक प्रभाव भी उत्पन्न कर सके।

भाषा और प्रिंट मीडिया के संदर्भ में निम्नलिखित बिंदु दर्शनीय हैं- 

1. भाषा और शैली (Language and Style)

 इसके अंतर्गत यह देखा जाता है कि समाचार अथवा लेख की भाषा किस प्रकार की (formal, informal, persuasive, neutral आदि) है तथा वह पाठकों पर किस प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करती है। इसमें समाचार लेखन में प्रयुक्त शब्दावली और वाक्य रचना दोनों ध्यात्व्य होती है।   

  प्रिंट मीडिया हेतु समाचार या लेख लेखन में शैली की भी महत्वपूर्ण भूमिका होता है। इसके लिए लेखक द्वारा विविध प्रकार की युक्तियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे- metaphors, similes, hyperbole आदि का प्रयोग करते हुए पाठकों पर विविध प्रकार के प्रभाव उत्पन्न करना।

 2. कथ्य (Content)

 कथ्य समाचार या लेख का संदेश होता है, जिसे लेखक संप्रेषित करना चाहता है।   

3. प्रस्तुति संरचना (Framing)

 इसमें हम देखते हैं कि अपने संदेश को प्रेषित करने के लिए लेखक द्वारा किस प्रकार की संरचना का प्रयोग किया गया है। उदाहरण के लिए किस प्रकार के शीर्षक और उपशीर्षक का प्रयोग किया गया है तथा पाठ संरचना कैसी है। एक ही समाचार को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि सकारात्मक तरीके से प्रस्तुति संरचना रखी जाती है तो पाठक पर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, किंतु यदि प्रस्तुति संरचना नकारात्मक हो तो उसका प्रभाव नकारात्मक होगा । अतः प्रिंट मीडिया में समाचार लेखन या प्रस्तुति के संदर्भ में प्रस्तुति संरचना बहुत महत्व रखती है।

4. प्रविष्टि चयन (Register Selection)

भाषा व्यवहार के विविध क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाली प्रक्षेत्र आधारित शब्दावली या तकनीकी शब्दावली को उसकी प्रविष्टि (register) कहते हैं। समाचार लेखन में भी इसी प्रकार की विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। किसी समाचार या मीडिया लेख के लेखन में किस प्रकार की प्रविष्टियों का चयन किया गया है, यह उसकी पाठ संरचना और प्रस्तुति में अंतर उत्पन्न करता है।

5. पाठ और दृश्य सामग्री का एकीकरण (Text and Visual Integration)

   किसी लेख, समाचार अथवा पाठ को समाचार पत्र या पत्रिका में कहां पर और किस प्रकार से रखना है? यह भी ध्यान रखने वाली बात होती है। प्रिंट मीडिया के लेख का प्रकार्य इस दृष्टि से भी प्रभावित होता है कि पाठ की संरचना और प्रस्तुति कैसी है, जैसे- उसे कौन से पृष्ठ पर रखा गया है?, पृष्ठ में ऊपर है अथवा नीचे है, कितनी साइज का है और उसमें किस प्रकार के चित्रों का प्रयोग किया गया है। इन सभी के अनुरूपता का ध्यान रखना ही पाठ और दृश्य सामग्री का एकीकरण कहलाता है। इसमें मुख्य रूप से दो बातें आती हैं –

§  Text-Image Relationship

§  Layout and Design

6. प्रोक्ति विश्लेषण (Discourse Analysis)

   प्रिंट मीडिया का प्रत्येक लेख या समाचार अपने आप में एक प्रोक्ति होता है अथवा किसी प्रोक्ति की के किसी पक्ष विशेष की प्रस्तुति होता है। अतः इसमें प्रोक्ति विश्लेषण एक अनिवार्य घटक है। इसके अंतर्गत मुख्य रूप से दो बातों का ध्यान रखा जाता है-

(क) वर्णनपरक तकनीकी (Narrative Techniques): इसका संबंध पाठ की संरचना और प्रस्तुति की प्रणाली से है, जो सैद्धांतिक प्रोक्ति विश्लेषण से संबंधित है।

(ख) भाषा और विचारधारा (Language and Ideology) : इसमें यह देखते हैं कि मीडिया किस प्रकार से सामाजिक विचारधाराओं और सत्ता संरचना को प्रस्तुत या प्रतिदर्शित करती है। इसका संबंध अनुपयुक्त प्रोक्ति विश्लेषण से है। 

7. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ (Historical and Cultural Context)

प्रिंट मीडिया की भाषा के संदर्भ में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ भी महत्वपूर्ण होते हैं। प्रिंट मीडिया की भाषा में संबंधित समाज की समाज-सांस्कृतिक अवस्था का भी बोध होता है। साथ ही यदि प्रिंट मीडिया को विभिन्न काल बिंदुओं पर क्रमिक रूप से देखा जाए तो भाषा के ऐतिहासिक विकास की झलक भी उसमें दिखाई पड़ती है। 

भाषा और इलेक्ट्रानिक मीडिया (Language and Electronic Media)

 भाषा और इलेक्ट्रानिक मीडिया (Language and Electronic Media)

इलेक्ट्रानिक मीडिया को ब्रॉडकास्ट मीडिया (Broadcast media) भी कहा गया है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिकॉर्ड की हुई सामग्री का विविध इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, जैसे- रेडियो, टेलीविजन, फिल्म आदि का प्रयोग करते हुए व्यापक जन समूह में किया जाने वाला प्रसारण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अंतर्गत आता है। यह प्रसारण रिकॉर्ड की हुई सामग्री का भी हो सकता है अथवा तत्काल में चल रही घटनाओं का लाइव प्रसारण भी हो सकता है।

इलेक्ट्रानिक मीडिया के मुख्यतः दो पक्ष हैं- रेडियो और टेलीविजन। दोनों की अपनी-अपनी भाषिक विशेषताएँ होती हैं, जिन्हें निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत समझ सकते हैं-

§  रेडियो की भाषा (Language of Radio)

§  टेलीविजन की भाषा (Language of Television)

इन्हें क्लिक करके विस्तार से पढ़ सकते हैं।

रेडियो की भाषा (Language of Radio)

 रेडियो की भाषा (Language of Radio)

रेडियो एक ऑडियो-माध्यम है। इसलिए इसकी भाषा में सुनने में प्रभाव उत्पन्न करने वाली विशेषताओं का होना आवश्यक है। रेडियो की भाषा के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:

 1. स्पष्टता और संक्षिप्तता

   - स्पष्टता: रेडियो की भाषा को स्पष्ट और समझने में आसान होना चाहिए, क्योंकि श्रोता केवल सुनकर ही जानकारी ग्रहण करते हैं।

   - संक्षिप्तता: रेडियो प्रसारण में भाषा को संक्षिप्त और सटीक रखा जाता है, ताकि सूचना को जल्दी और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जा सके।

 2. उत्साही और आकर्षक टोन

   - स्वर और लहजा: रेडियो प्रसारण में स्वर और लहजे का महत्वपूर्ण रोल होता है। श्रोता के साथ बेहतर कनेक्टिविटी के लिए प्रसारक का स्वर उत्साही, गर्मजोशी भरा, और सजीव होता है।

   - लय और पेस: बोलने की गति और लय को ध्यान में रखते हुए, रेडियो प्रसारण को सुनने में आकर्षक और समझने में आसान बनाया जाता है।

3. रिटोरिकल और संवादात्मक भाषा

   - सवाल और जवाब: रेडियो प्रोग्रामों में आमतौर पर सवाल-जवाब की शैली होती है, जो श्रोता को सक्रिय रूप से शामिल करती है।

   - आकर्षण और प्रोत्साहन: प्रसारक अक्सर श्रोताओं को विशेष कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं, और इवेंट्स में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं।

 4. कहानी सुनाना और संवाद

   - नैरेटिव स्टाइल: रेडियो कार्यक्रमों में कहानियाँ, घटनाओं का वर्णन, और वृत्तांत प्रस्तुत करने का विशेष ध्यान दिया जाता है। यह श्रोताओं को सुनने में आकर्षित करता है और उनकी कल्पना को उत्तेजित करता है।

   - विवरण और चित्रण: ऑडियो माध्यम होने के नाते, रेडियो प्रसारक शब्दों के माध्यम से स्पष्ट चित्रण और भावनात्मक प्रभाव पैदा करने की कोशिश करते हैं।

 5. सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ

   - सांस्कृतिक संदर्भ: रेडियो की भाषा आमतौर पर उस क्षेत्र या देश की सांस्कृतिक और सामाजिक संवेदनाओं को दर्शाती है। स्थानीय बोली, मुहावरे, और रिवाजों का उपयोग आम है।

   - सामाजिक मुद्दे: रेडियो प्रसारण सामाजिक मुद्दों पर बातचीत और बहस को भी प्रोत्साहित करता है, जिसका भाषा में सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव होता है।

 6. समाचार और सूचना प्रसारण

   - आधिकारिक भाषा: समाचार और सूचना के लिए एक मानक और आधिकारिक भाषा का उपयोग किया जाता है, ताकि जानकारी सटीक और निष्पक्ष हो।

   - अद्यतन और सक्रियता: समाचार की रिपोर्टिंग में नवीनतम जानकारी प्रदान करने के लिए सक्रिय और तुरंत प्रतिक्रिया देने वाली भाषा का उपयोग होता है।

 7. संचार के तकनीकी पहलू

   - अंतरवैयक्तिकता: रेडियो में भाषा को श्रोता से संवादात्मक तरीके से पेश किया जाता है, जैसे व्यक्तिगत संबोधन और श्रोता की प्रतिक्रियाओं को शामिल करना।

रेडियो की भाषा की इन विशिष्टताओं के अध्ययन से पता चलता है कि यह कैसे श्रोताओं के साथ एक गहरा और प्रभावी संवाद स्थापित करती है, और कैसे भाषा को अनुकूलित किया जाता है ताकि वह सुनने में प्रभावी और दिलचस्प हो।

टेलीविजन की भाषा (Language of Television)

 टेलीविजन की भाषा (Language of Television)

टेलीविजन की भाषा एक खास शैली और तकनीक का उपयोग करती है जो दृश्य और श्रवण तत्वों के साथ मिलकर एक प्रभावी संवाद स्थापित करती है। यहाँ टेलीविजन की भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ और तत्व दिए गए हैं:

1. दृश्य और श्रवण का संयोजन

   - विजुअल्स और ऑडियो: टेलीविजन में भाषा का उपयोग दृश्य तत्वों (जैसे वीडियो क्लिप्स, ग्राफिक्स, और इमेजेस) और श्रवण तत्वों (जैसे संवाद, संगीत, और साउंड इफेक्ट्स) के साथ मिलकर किया जाता है। यह संयोजन संदेश को और अधिक प्रभावशाली और समझने में आसान बनाता है।

   - कैमरा एंगल और शॉट्स: कैमरा एंगल और शॉट्स भी भाषा के हिस्से के रूप में काम करते हैं, जो दृश्य को फ्रेम करने और ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं।

2. स्वर और टोन

   - स्वर और लहजा: प्रसारकों और अभिनेताओं का स्वर और लहजा कार्यक्रम की शैली और भावना को व्यक्त करता है। टेलीविजन प्रस्तुतकर्ताओं का स्वर आमतौर पर दोस्ताना, सजीव, और स्पष्ट होता है।

   - डायलॉग और मोनोलॉग: संवाद (डायलॉग) और एकल भाषण (मोनोलॉग) में भाषा का उपयोग करके पात्रों और प्रस्तुतकर्ताओं के भावनात्मक और सूचना संबंधी अभिव्यक्तियों को प्रस्तुत किया जाता है।

 3. प्रस्तुति और स्वरूप

   - हैडलाइन और टैगलाइन: समाचार बुलेटिन और विज्ञापन में संक्षिप्त और आकर्षक हैडलाइन और टैगलाइन का उपयोग किया जाता है ताकि दर्शकों का ध्यान खींचा जा सके।

   - एंकरिंग और होस्टिंग: समाचार एंकर और होस्ट्स आमतौर पर एक विशिष्ट शैली में पेश आते हैं, जिसमें भाषा का उपयोग पेशेवर, जानकारीपूर्ण, और अक्सर रोमांचक होता है।

4. कार्यक्रम शैली और स्वरूप

   - ड्रामा और सिटकॉम: ड्रामा और सिटकॉम जैसे कार्यक्रमों में संवादों का चयन और उनका प्रदर्शन पात्रों की विशेषताओं और कथानक के अनुसार किया जाता है।

   - विज्ञापन: विज्ञापनों में भाषा को आकर्षक और प्रेरक बनाने के लिए संक्षिप्त और प्रभावी शब्दों का उपयोग किया जाता है, साथ ही दृश्य प्रभाव और संगीत का भी ध्यान रखा जाता है।

 5. सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ

   - सांस्कृतिक संदर्भ: टेलीविजन कार्यक्रमों की भाषा अक्सर उस क्षेत्र या देश की सांस्कृतिक और सामाजिक संवेदनाओं को दर्शाती है। स्थानीय बोली, मुहावरे, और सांस्कृतिक संकेतों का उपयोग किया जाता है।

   - सामाजिक मुद्दे: सामाजिक मुद्दों पर आधारित कार्यक्रमों में भाषा का चयन सावधानीपूर्वक किया जाता है ताकि दर्शकों की भावनाओं और विचारों का सम्मान किया जा सके।

6. शैली और शास्त्र

   - शैली और शैलीगत विशेषताएँ: भाषा की शैली कार्यक्रम के प्रकार के आधार पर भिन्न हो सकती है, जैसे कि समाचार, डॉक्यूमेंट्री, या मनोरंजन। यह शैली की विशेषताओं को दर्शाती है जैसे कि औपचारिकता, जानकारीपूर्णता, या हास्य।

   - संपादकीय और प्रोडक्शन टेक्निक्स: भाषा का चयन संपादकीय निर्णय और प्रोडक्शन टेक्निक्स पर निर्भर करता है, जैसे कि स्क्रिप्ट लेखन, संपादन, और दृश्य निर्माण।

7. दर्शक सहभागिता

   - इंटरएक्टिव तत्व: कुछ टेलीविजन कार्यक्रम दर्शकों से सीधी प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं, जैसे कि रियलिटी शो या लाइव कॉल-इन प्रोग्राम। इन कार्यक्रमों में भाषा का उपयोग दर्शकों को शामिल करने और उनकी प्रतिक्रियाओं को प्रबंधित करने के लिए किया जाता है।

इन सभी तत्वों के माध्यम से, टेलीविजन की भाषा एक सशक्त और मल्टीमीडिया अनुभव प्रदान करती है, जो दर्शकों को सूचित, मनोरंजन, और प्रेरित करने में सक्षम होती है।